एन.ऐज 103
एन.ऐज 103


साढे पाच फ़ीट का एक दुबला-पतला लड़का जिसका रंग शावला है। अपने पापा की बाइक स्टार्ट कर निकल जाता है। सुनशान सड़क के किनारे वो बाइक को डबल स्टैंड में खड़ा करता है और सर से हेलमेट निकाल कर बाइक के हैंडल पर रख देता है। फिर बाइक पे बैठ कर अपने कंदो से बैग उतार, बैग की चैन खोल बैग से सिगरेट का डब्बा और माचिस निकाल लेता है। सिगरेट को अपनों दोनों होंठों के बीच रख जलती हुई माचिस की तीली से सिगरेट जला लेता है और फिर धुएँ को अपने अंदर लेकर बड़ा ही सुकून महसूस करता है। बाइक वापस से स्टार्ट कर फिर से निकल जाता है।
कॉलेज पहुंच कर बाइक को पार्क करता है और अपनी क्लास की तरफ जाने लगता है। तभी पीछे से आवाज़ आती है, 'ओेए रुख! मैं भी आ रही हूँ।' आवाज़ सुन कर अंशुल पीछे घूम कर देखता है और वही पे रुक जाता है। फिर चलते-चलते बोलती है, "और बता कैसा है तू, आजकल बातें भी नहीं करता है, सब ठीक है ना?"
"ठीक हूँ, ऐसी कोई बात नहीं है। बस वक़्त का ही कुछ पता नहीं चलता।" बातें करते-करते वो अपनी क्लास में पहुंच जाते है और अपने-अपने दोस्तों के सा
थ में जाकर बैठ जाते है।
थोड़े ही देर बाद टीचर क्लास में पहुंच जाता है और पढना शुरू कर देते है। थोड़े देर पढाने के बाद वो अंशुल से सवाल पूछते है, "तो बैठा क्या समझ मे आया तुझे ?"
"सर!" अंशुल चौकता हुआ बोलता है।
"सायद तुम्हारा क्लास में ध्यान नहीं है ? बहुत दिनों से देख रहा हूं, तुम कभी ठीक दीखते हो तो कबी एक दम ही परेशान! कोई बात है तो बताओ बैठा!"
"नहीं सर ! ऐसी कोई बात नहीं है, बस वक़्त का ही कुछ समझ नहीं आ रहा। सर मैं जा सकता हूँ ?"
" हां बैठा, तुम जाओ, तुम वैसे भी ठीक नजर नहीं आ रहे हो।"
वो फिर क्लास से बहार निकल आता है। क्लास का सारा शोर पीछे छोड़ के पार्किंग में पहुँच कर वो फिर से एक सिगरेट जला लेता है। सिगरेट पी लेने के बाद बाइक स्टार्ट कर निकल लेता है।
बाज़ारो की सड़को की भीड़ को पीछे छोड़ता हुआ वो एन.ऐज १०३ पे पहुंच जाता है। अपने दाये हाथ से बाइक के कानो को ऐठता हुआ सड़क को छोड़ हवा में पहुंच जाता है और बाइक सीधे नदी में जा गिरती है। और अंशुल पानी के अंदर डूबता जाता है।