एक प्रेम कहानी ऐसी भी

एक प्रेम कहानी ऐसी भी

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मन के भीतर एक आकाशगंगा है विचारों की, ये सर्वथा भिज्ञ है किंतु उसी आकाशगंगा में शून्यता का अस्तित्व भी है, जो पदार्थ और ऊर्जा दोनों से ही परे है। यदि परे न होता तो शून्य ही क्यों होता भला ! विचार को मैं ऊर्जा का ही अप्रत्यक्ष रूप मानता हूँ। एक प्रश्न पैदा होता है यहाँ कि विचारों के मध्य उस शून्यता को कैसे खोजा जाए ! तो उत्तर इस कहानी में है। आइए जानते हैं "छवि" और "अंकुर" की दुनिया को !

कहते हैं जब प्रेम होता है तो हृदय दोगुनी गति से धड़कता है, किन्तु मैं इससे इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता। मेरा मानना है कि जवानी आते ही हृदय चौगुनी गति से धड़कना शुरू कर देता है ! अंकुर के साथ भी यही हुआ, पहले ही दिन कॉलेज में उसे एक लड़की दिखी और उसे उससे प्रेम हो गया। जी हाँ, प्रेम ! यदि आप इसे ठरक कहते हैं, तो आपकी लोकभाषा पर मैं टिप्पणी नहीं करूँगा। मुम्बई जैसे बड़े शहर में अंकुर किसी को नहीं जानता था, "स्कॉलरशिप" के मदद से वो यहाँ तक पहुँचा था। विद्युत उपकरणों में बचपन से ही उसकी रुचि थी, अतः उसने इलेक्ट्रिकल ब्रांच चुनी इंजीनियरिंग के लिए। अब भई, करंट तो लगना ही था ! कॉलेज का पहला दिन और सीनियर्स के सामने पेशी। घोर विपदा ! अंकुर हॉस्टल से निकला ही था कि उसने एक लड़की को देखा, और कसम देखने की, क्या ख़ूब देखा ! "अबे क्या घूर रहा है उसको, चार साल पड़े हैं तेरे पास, तसल्ली से देखना, अभी चल वरना सीनियर्स की लात पड़ेगी !" अंकुर के दोस्त शादाब ने उसके आँखों के आगे हाथ हिलाते हुए कहा।

अंकुर के जीवन की पहली समाधि टूटी !

"हाँ, चलो।"

वे दोनों सीनियर्स की रैगिंग-सभा में पहुँचे और अपने जूनियर होने के पाप का 2 घंटों तक प्रायश्चित किया और फिर मुक्ति पाकर लौट आए हॉस्टल। पहले दिन तो प्रेतों को भी मन नहीं लगता होगा नई दुनिया में !

"यार शादाब, तू जानता है वो कौन थी ?"

"कौन कौन थी ?"

"अरे वही जिसे मैं अनजाने में घूर रहा था।"

"अनजाने में ?"

"हाँ, मुझे नहीं मालूम था कि मैं उसे देख रहा था।"

"गाँव वाले लोग पागल होते हैं क्या ?"

"शट अप एंड आंसर मी !"

"ओके, हाँ, जानता हूँ, उसका नाम छवि है, हमारे ब्रांच की ही है !"

"तुम कैसे जानते हो उसके बारे में ?"

"छोड़ो, मज़े लो तुम !"

"हा हा !"

अगले दिन क्लास में अंकुर छवि का इंतज़ार कर रहा था, कि तभी अचानक वो सामने से आ गई। अंकुर इंतज़ार कर रहा था फिर भी चौंक गया, ठिठक गया ! वो अपने सीट पर जाकर बैठ गई। अंकुर पढ़ने में भौकाल तेज था। उसके गाँव में लोग उसे "विकिपीडिया", "इनसाइक्लोपीडिया", "कैलक्यूलेटर" इत्यादि नामों से पुकारते थे ! उसके पास हर प्रश्न का सटीक उत्तर होता था, वो भी क्षण में !

उस पहली क्लास में अंकुर अकेला छात्र था जिसने शिक्षक द्वारा पूछे गए हर प्रश्न का उत्तर दिया था। प्रश्न भी उससे खार खाए हुए रहते थे !

अगले एक महीने में पूरे कॉलेज में अंकुर के अप्रतिम प्रज्ञा की चर्चा होने लगी। छवि भी बहुत इम्प्रेस हो गई थी। अब अंकुर के लिए माहौल बन चुका था, उसने एक दिन उससे बात करने की सोची और प्रैक्टिस करने लगा। अंकुर की क्लास में एक लड़का था "संत्रास", जो निहायत वाहियात क़िस्म का लड़का था, ना किसी की इज़्ज़त करना जानता था और ना पढ़ने में ही ठीक था। वो भी छवि को पसंद करता था किन्तु छवि के बारे में अनर्गल अफ़वाहें फ़ैलाता रहता था। छवि अनजान थी संत्रास के करतूत"शादाब एक बात बताओ, छवि संत्रास से क्यों बात करती है ?"

"मतलब ?"

"मतलब, वो लड़का ठीक नहीं है, मैं कल ही छवि से जाकर बोल दूँगा की वो छवि के बारे में गंदी अफ़वाहें फ़ैलाता है। "बोलो बोलो, ज़रूर बोलो, देखते हैं क्या होता है।"

"हम्म।"

अंकुर, छवि और संत्रास के बीच सामान्य बातचीत को भी टेढ़ी नज़रों से देखता था, क्योंकि उसे संत्रास के व्यक्तित्व पर निमिष मात्र भी भरोसा नहीं था। वैशाख की ग्रीष्म निशा में चंद्रमा की शीतल छाँह में बैठा अंकुर सोच रहा था, " ऐसी ही तो गोल, मासूम और शीतल है मेरी छवि !"

प्रेम जब उत्कर्ष पर हो, तो नींद ख़त्म हो जाती है। ब्रह्म सो रहा था ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले, प्रेम ने ही तो जगाया था सृष्टि के आदिकवि को ! प्राणों का वेग प्रेम के कारण ही तो है। चित्त नहीं, प्रेम सर्वस्व है। देवता अमर कहाँ, प्रेम अमर है।

अंकुर की रात पलछिन में समाप्त हो गई।

सुबह कॉलेज में अंकुर एक घंटे पहले पहुँच गया। आश्चर्य की बात है कि बड़ी-बड़ी परीक्षाओं की धज्जियाँ उड़ाने वाला अंकुर आज छवि से बात करने में नर्वस हो रहा था। मानों यू पी एस सी का इंटरव्यू देने जा रहा हो "अबे घोंचू, छवि को आए हुए आधे घंटे बीत गए, जा बात कर उससे, कह दे जो कहना है !"

"यार शादाब, मेरी साँसें टूटती हैं, तू नहीं समझता !"

"लाहौल विला कुव्वत !"

"मुझसे नहीं होगा दोस्त, मैं न बात कर पाऊँगा उससे !"

अंकुर निर्निमेष छवि को देखे जा रहा था क्लास में, किन्तु बात करने की हिम्मत न जुटा पा रहा था। तभी हाथ में सूचना पत्र लिए शिक्षक महोदय की एंट्री हुई।

"आज ऑफ है, शहर में इमरजेंसी लगी है, आप लोगों को अभी इसी वक्त सेफ़ली घर चले जाना चाहिए। कॉलेज तीन दिनों के लिए बंद रहेगा !" शिक्षक महोदय ने पर्चा लहराते हुए कहा !" लो भैया, अब चलो हॉस्टल। तीन दिन और प्रैक्टिस करो।" शादाब खीजते हुए बोलता है।

कॉलेज के बाहर निकलते ही अंकुर ने एक ऐसा दृश्य देखा कि उसके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई। उसके हृदय की धमनियों ने चलने से मना कर दिया, मानो चेतना सिमट गई हो, ठहर गई हो ! छवि संत्रास की बाइक पे बैठी अपने घर की ओर जा रही थी। शहर में लगी इमरजेंसी के कारण, ऑटोरिक्शा और कैब्स नहीं दिखाई दे रहे थे। अतः किसी न किसी से तो लिफ्ट लेना ही था।

संत्रास मौके का फायदा उठाना चाहता था, लिहाज़ा उसने छवि से पूछा, तिसपर छवि ने भी मुस्कुराते हुए हामी भर दी। ज़ाहिर है अंकुर का प्रेम स्वप्न टूट गया, क्योंकि प्रेम में पड़ा रांझा अपनी हीर को किसी दूसरे के साथ नहीं देख सकता। उसका मन विखंडित हो जाता है। हॉस्टल लौटने के बाद से ही अंकुर विचार मग्न रहने लगा। शादाब को ये बात खटकने लगी, सो उसने अंकुर से पूछा, "कैसी चिंता है जनाब ? आजकल तो संत्रास जैसे लड़कों पे ही लड़कियाँ फ़िदा हैं, आपने ग़लत नंबर डायल कर दिया !"

अंकुर ने चुप्पी का जवाब फेंक दिया शादाब की ओर !

तीन दिवस बहुत भारी लग रहे थे अंकुर को। एक-एक पल सदियों की चादर लपेटे हुए था। अंकुर के ज़ेहन में सवालों की लपट ने तापमान बढ़ा रक्खा था। अब अंकुर छवि से सीधा बातचीत करना चाहता था। ख़ैर, तीन लंबे दिवस बीते और आख़िरकार अंकुर ने छवि की ओर कदम बढ़ाए।

"सुनो, कुछ बात करना था।"

"ओह, अंकुर ! बहुत सुना है तुम्हारे बारे में फैकल्टीज़ के मुँह से और देखा भी है तुम्हारे टैलेंट को। बहुत मन था मेरा तुमसे बात करने का, लेकिन असमंजस में थी। वो मैं थोड़ा डरती हूँ नए लोगों से बात करते में।"

"अच्छा ! बात करने में डरती हो, और नए लोगों से लिफ़्ट लेने में ? लिफ्ट लेने में तो और डरना चाहिए न ?"

"मतलब ?"

"कुछ नहीं !"

अंकुर का गुस्सा अपने उत्कर्ष पर था। अगर वो कुछ देर और वहाँ ठहरता तो अनाप शनाप बक देता कुछ। सो लौट आना ही ठीक समझा उसने।

दो लेक्चर्स छोड़कर, अंकुर हॉस्टल आ गया और उसने छवि को एक लेटर लिखा। "सुनो, मैं आज कॉलेज से घर वापस आ गया क्योंकि मैं उस वक्त गुस्से में था। लिहाज़ा तुमसे कुछ कह न पाया।देखो छवि, मैं बहुत स्ट्रेटफॉरवार्ड लड़का हूँ, बातों की जलेबियाँ बनाना नहीं जानता। इसलिए स्पष्ट कह रहा हूँ, थोड़ा नर्वस था इसलिए तुमसे कॉलेज के इन दो महीनों में कुछ कह न पाया। मैं तुमसे कॉलेज के पहले दिन से ही प्रेम करता हूँ। एक ग़ुमनाम अंधेरा ही तो है जीवन, प्रकाश की बाट जोहता हुआ। मेरे लिए तुम ही वो प्रकाश हो ! मेरी रक्तशिराओं में तुम्हारे नाम का अनहद नाद गूंजता है, मुक्तकेशी ! तुम्हारी बोली कि अनुगूंज में बाँसुरी की मिठास है। यो कहूँ तो गलत न होगा, कि तुम मेरा सर्वस्व हो !

प्यार बड़ा इनसिक्योर होता है, अतः तुम्हें एक सूचना देना चाहता हूँ। संत्रास एक अव्वल दर्जे का लफ़्फ़ाज़ है ! उसने तुम्हारे बारे में अनर्गल अफवाहें फ़ैला रक्खी हैं। वो सबसे कहता फिरता है, कि तुम्हारे कईं प्बॉयफ़्रेंडस हैं। तुम बहुतों के साथ टाइमपास कर चुकी हो। वगैरह वगैअपना ध्यान रखना उस लफंगे से !

तुम्हारा,

अंकुर"

शादाब ने छवि तक ये चिट्ठी पहुँचवा दी !

छवि ने चिट्ठी पढ़ी और मुस्कुराते हुए उसे अपने दुपट्टे में बाँध लिया। अगले दिन कॉलेज में छवि अंकुर के पास आई और कहा, "मुझे बहुत अच्छा लगा ये देखकर कि तुम्हें मेरी चिंता है। अंकुर, मैं बहुत अकेली हूँ, कोई दोस्त भी नहीं जिसे मैं अपनी हर छोटी बात बता सकूँ। क्या तुम मेरे सबसे खास दोस्त बनोगे ?"

"मतलब ?"

"मेरा मतलब मैं प्यार व्यार में विश्वास नहीं करती। मैं तुमसे दोस्ती करना चाहती हूँ। कहो न, क्या तुम मेरे सबसे ख़ास दोस्त बनोगे ?" अंकुर ने कोई जवाब नहीं दिया और मुस्कराता हुआ वहाँ से निकल गया।

प्यार में महत्वाकांक्षाओं का एक विशिष्ट स्थान है। अंकुर की सभी महत्वाकांक्षाएँ टूट गईं लेकिन फिर भी वो यही सोच रहा था कि दोस्ती भी बहुत है। छवि के पास रहने का तो मौका मिलेगा न !

अंकुर ने शादाब की मदद से छवि का फ़ोन नंबर पता लगवाया। छवि के पास एक सामान्य बजट का फ़ोन था। वो एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक़ रखती थी। लिहाज़ा आर्थिक मजबूरियाँ थी, फ़ोन नंबर पता लगते ही अंकुर ने छवि के व्हाट्सएप्प पर मैसेज किया, "छवि, मैं अंकुर ! मैं ज़रूर तुमसे दोस्ती कर सकता हूँ। दोस्ती तो प्यार से भी बढ़कर है। जो समर्पण दो दोस्तों के बीच होता है वो दो प्रेमियों में कहाँ ? छवि ने जवाब में एक स्माइली भेजी।

फिर तो धीरे-धीरे दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ने लगी। वे दिन रात बात करते। दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए।दो महीनों बाद, एक दिन अचानक अंकुर ने छवि को मैसेज करना चाहा कि तभी उसने देखा कि वो मैसेज नहीं कर सकता। कुछ देर तो अंकुर को समझ न आया, फिर पता चला कि छवि ने उसे ब्लॉक कर दिया है।

अंकुर बेचैन हो उठा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या।

अगले एक हफ्ते तक उसने हर संभव कोशिश की छवि से बात करने की, पर कुछ भी न हुआ।

ठीक एक महीने बाद अंकुर के फेसबुक पर एक मैसेज आया।

छवि ने मैसेज किया था !

"अंकुर, प्लीज मुझे फ़ोन या मैसेज मत करना !" अंकुर इस मैसेज को देखकर भौंचक्का रह गया। उसकी हालत ऐसी थी जैसे कोई निष्प्राण मत्स्य तालाब-किनारे पड़ा हो !

अंकुर एक अनजान पीर को सह रहा था कि तभी उसने देखा कि मैसेज आईफोन से आया हैं। बड़े आश्चर्य की बात थी, क्योंकि छवि के पास आईफोन होना असंभव था। अंकुर शादाब के कमरे में गया और उसे मैसेज दिखाया !

शादाब : यार अंकुर, हमारी क्लास में आईफोन 8 तो केवल संत्रास के पास है !

अंकुर : मतलब ?

उस रात अंकुर सब समझ चुका था, फिर भी अपने हृदय के पोरों से रिसते अश्रुओं छुपाने की झूठी कोशिश कर रहा था !


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