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Krishnakant Prajapati

Abstract

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Krishnakant Prajapati

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एक लेखक की कहानी।

एक लेखक की कहानी।

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कभी कभी सोचता कि कोई क्यूँ लिखता है ? क्यूँ बनता है कोई लेखक या कलमकार ? क्यूँ दुनिया के सामने अपने अनुभवों को बांटता है और क्यूँ बस चाहता है कि वो उन शब्दों की दुनिया में उलझा रहे ? फिर खुद के बारे में सोचता हूँ कि मैंने क्यूँ लिखना शुरू किया ? क्यूँ मैंने शब्दों के उस दरिया में डूबने का निर्णय लिया जो इतना गहरा और बड़ा है कि शायद उसकी गहराई को नाप पाना लगभग नामुमकिन सा ही है ? पहले तो लगता था कि लिखूंगा तो लोग वाहवाही करेंगे और तारीफों के पुल बांधेंगे लेकिन जैसे जैसे मेरा रिश्ता शब्दों से गहराता गया ये सारी बातें बहुत मामूली लगने लगी । ये जो तारीफें और सराहना है ये उस आनंद के आगे कुछ भी नहीं जो एक लेखक को उसकी रचना को पूरा करने के बाद प्राप्त होता है । ये एक ऐसा सुख है जो किसी की तारीफों या सराहना का मोहताज नही । जब एक बार व्यक्ति लिखने में मशरूफ हो जाता है तो बाहरी दुनिया से कट सा जाता है । उसकी एक अलग ही दुनिया बन जाती है जिसमे लोग नहीं, शब्द रहते हैं ।जहाँ कोई भेद भाव नहीं है । अगर है तो बस मेल कई तरह के शब्दों का; हिंदी, उर्दू, अरबी, अंग्रेजी और पता नहीं कितने सारे ! हर शब्द का अपना एक महत्त्व और अपना एक अर्थ है जिसे समझना एक लेखक के लिए किसी खेल से कम नहीं । और ये एक ऐसा खेल है जिसमे कभी हार नहीं होती, या तो लेखक जीतता है या सीखता है । मुझे लगता है कि एक लेखक इसलिए लेखक नहीं बनता कि लोग उसे जाने और वो प्रिसिद्धि पाए बल्कि वो बस चाहता है कि उसकी कला को सम्मान और आदर मिले और वो लोगों तक अपने वो विचार पंहुचा पाए जिन्हें वो शायद किसी और माध्यम से नहीं पंहुचा सकता । कोई हिचकिचाहट नहीं होती शब्दों में अपने हाल को बयान करने के लिए और यही लिखने का मज़ा है । जो एक लेखक बातचीत में नहीं कह पाता, वो अपनी रचना के द्वारा कह देता है । अगर लेखक से उलझोगे तो उसकी रचना के विलेन बन जाओगे और उससे प्यार से पेश आओगे तो उसकी रचना में उसका प्यार बन जाओगे । क्यूँ है न मजेदार ! तो बस यही सारी चीजें है जो लेखक को प्रेरित करती हैं । इसके आगे की कहानी अपने अगले अध्याय में बताऊंगा । तब तक के लिए लिखते रहिये और पढ़ते रहिये ताकि लेखन और बेहतर होता रहे



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