मेरी प्यारी सी प्रेम कहानी...!
मेरी प्यारी सी प्रेम कहानी...!
मुझे पता था कि वो मुझे देख रही थी। पता तो चल ही जाता है न ! कभी अपनी जुल्फें संवारते हुए तो कभी अपनी सहेली से बातें करते वक़्त, उसका ध्यान मुझ पर ही था। मैं भी खुद को रोक न सका, क्या करता ? वो थी ही इतनी खूबसूरत ! उसके माथे पर पसीना कुछ यूँ लग रहा था मानो गुलाब की पंखुड़ी पर ओस बैठी हो। उसका पलकें झपकाना कुछ यूँ था मानो सूरज बादलों के साथ लुका छुपी खेल रहा हो। उसके गाल कश्मीर के सेब से भी जयादा लाल थे लेकिन मैं तो उस मासूमियत का कायल हो गया था जो उसके चेहरे पर कुछ यूँ घर किये हुए थी मानो उसका और कोई ठिकाना ही नहीं। जब वो नज़रें हटाती तो मैं उसे देखता और जब मेरा ध्यान कहीं और होता वो मुझे देखती। दोनों नज़रें मिलाना चाहते तो थे लेकिन डरते भी थे कि कहीं सामने वाले ने नज़रें फेर लीं तो ? फिर उसने दुबारा मुड़कर नहीं देखा तो ? अभी नज़रें तो नहीं मिल रहीं थी लेकिन इस बात की सुहूलियत थी कि वो मुझे देख रही थी और मैं इस एहसास को खोना नही चाहता था। तो बस दबी हुई नज़रों से उसे देख रहा था और वो भी मुझे कुछ इसी तरह देख रही थी। शायद वो भी नज़रें मिलाकर उस एहसास को खोना नहीं चाहती थी।
मेले में हज़ारों लोग थे। बहुत सारी दुकानें भी थी जिनको बहुत सुन्दर तरीके से सजाया गया था और दुकानदार बहुत ही रोचक बातें बोलकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींच रहे थे। कोई चूड़ियों की खूबियाँ बताता तो कोई चाट पकोड़ी का स्वाद चखाता। कोई किताबों का बखान कर रहा था तो कोई खेल की तरफ बच्चों का ध्यान आकर्षित कर रहा था। माहौल बहुत रंगीन और दिलचस्प था। लेकिन मेरा मन मेले की चकाचौंध छोड़कर सिर्फ उस पर टिका हुआ था। उसके सिवा कहीं और देखने को जी ही नहीं कर रहा था लेकिन दोस्तों को शक न हो इसलिए थोड़ी थोड़ी देर में बेमन ही सही, अपनी नज़रें दुकानों पर भी लगा लेता था। अब दोस्तों का तो पता ही है सबको, किसी लड़की को देख भर लो उसे तुरंत अपनी भाभी घोषित कर देते हैं। और मैं ऐसा बिलकुल नहीं चाहता था। अभी सिर्फ देखना ही तो शुरू हुआ था अभी तो कई मुकाम बाकी थे हासिल करने को। वो एक दुकान पर पहुंची और वहां से उसने मुझे कुछ यूँ देखा जैसे मुझे बुला रही हो। ये पहली बार था जब मैंने उसकी नज़रों से नज़रें मिलाईं। अब दोस्तों को लेकर जाता तो बेवजह का रायता फ़ैल जाता इसलिए मैंने कुछ बहाना बनाया और थोड़ी देर के लिए उनसे दूर हो गया। पहुंचा उस दुकान पर जहाँ वो खड़ी थी और शरमाते हुए उसकी तरफ देखने लगा। उसने भी थोड़ी घबराहट के साथ मेरी आँखों में देखा और तुरंत अपनी नज़रें उन चूड़ियों पर लगा दी जिन्हें खरीदने का उसका मन बिलकुल भी नहीं था। हम दोनों इसी कश्मकश में थे कि पहले बात की शुरुआत कौन करेगा और मैं बोलने ही वाला था कि तभी चूड़ी वाले की आवाज आती है, “अरे भैया कुछ लेना है तो लो क्यूँ चूड़ियों पर हाथ फेरकर उनकी चमक ख़राब कर रहे हो?” इस पर हम दोनों हंसने लगे और इसी हंसी के साथ शुरुआत हुई हमारे बीच गुफ्तगू की। पहले नाम पूछा, फिर गाँव, फिर पता और पता पूछते पूछते पता ही नहीं चला कि कब मैं अपने घर का पता भूल बैठा ! उसके होंठों से लफ्ज़ कुछ यूँ निकल रहे थे मानो गरमा गरम जलेबी से रस टपक रहा हो। अब मिठास का अंदाज़ा तो आप खुद ही लगा सकते हो। मैं उससे पूछने ही वाला था कि वो कल मेले में आयेगी या नहीं लेकिन तभी पीछे से मेरे दोस्त की आवाज आती है, “अरे चूड़ी खरीद लीं हो तो आजा लहंगा भी खरीद ले”। मेरी बात अधूरी ही रह गयी पर उसे शायद इस बात का इल्म हो गया था कि मैं क्या पूछने वाला था शायद इसीलिए जाते जाते उसने कहा, “मैं कल फिर आउंगी”।
इस तरह से मुलाकातों का दौर शुरू हुआ। पहली मुलाक़ात में तो पता ही नहीं चला कि समय कब चुपचाप बैठे बैठे गुज़र गया। वो मुझे देखती रही और मैं उसे देखता रहा और बस यूँ ही सूरज चाँद में बदल गया और रात के तारे टिमटिमाने लगे। उसने मुझसे बोला कि दिन के उजाले में मिलना बहुत मुश्किल होगा, तो हमने एक दूसरे से हर शाम मिलने का वादा किया। अब हर शाम मैं उससे मिलने का इंतज़ार करता। वो छिपते छिपाते आती उन खेतों से होकर जो रात की चांदनी में जुगनू की तरह चमकते थे और वो ठंडी ठंडी हवा उसकी महक मुझ तक पहुंचाती थी और कहती थी कि बस थोडा इन्तजार और ! मैं उस खेत की मुंडेर पर बैठा हुआ उसकी राह तकता और थोड़ी सी भी आहट पर मुड़कर देखता कि कहीं वो तो नहीं। और फिर जब वो आती तो बस उसके चेहरे से नज़र ही नहीं हटती। मुझे तो समझ ही नहीं आता था कि चाँद का नूर ज्यादा है या उसके चेहरे का। वो रात जो इतनी रोशन है वो कहीं उस चाँद और मेरे चाँद की करामात तो नहीं। उसे घर भी जल्दी पहुंचना होता था इसलिए हमें मिलने के लिए ज्यादा समय तो नहीं मिलता था लेकिन जितने भी लम्हे उसके साथ गुज़रते वो मेरी ज़िन्दगी के बेस्ट लम्हे होते थे। हमें बातें करने के लिए लफ़्ज़ों की जरुरत नहीं पड़ती थी। ज्यादातर हमारी आँखें और हमारी चुप्पी ही बातें किया करती थी और हमें बिना बोले ही एक दूसरे की बातें समझ आ जाती थी। हम दोनों ही बहुत शर्मीले थे इसलिए बातें करने की शुरुआत थोड़ा देर से ही शुरू हुई। और जब शुरू हुई तो ऐसी ही कि हम दोनों समय की सीमाएं ही भूल गए। घंटों हमारी बातें चलती और हम दोनों मुस्कुराते हुए एक दूसरे को जवाब देते। उसकी बातों में बहुत मासूमियत थी। एक ऐसी मासूमियत जो मुझे उसके और करीब ले जाती थी, कहती थी मुझसे उसे और जानने और समझने के लिए। कई दिनों तक हम यूँ ही मिले लेकिन एक दिन मैंने तय कर लिया कि आज उससे अपने दिल कि बात कह दूंगा। बता दूंगा कि वो मुझे कितनी अच्छी लगती और मैं उससे कितना प्यार करता हूँ। कह दूंगा वो हर बात जो अब तक मैंने अपने दिल के किसी कोने में छिपा रखी थी। अगर डरता रहूँगा तो शायद कभी कह ही न पाऊं। तो मैं हर शाम कि तरह उसी मुंडेर पर बैठा उसका इन्तजार कर रहा था। उस दिन भी चाँद वैसे ही चमक रहा था जैसे हर रोज चमकता था, तारे भी वैसे ही टिमटिमा रहे थे जैसे रोज़ टिमटिमाते थे। सब कुछ हर रोज़ की तरह शांत था लेकिन मेरे दिल में खलबली मची हुई थी। मैं बस इन्तजार कर रहा था कि कब वो आये और कब मैं उससे अपना हाल-ए-दिल बयां करूँ। आज जो इन्तजार था वो हर रोज से कुछ ज्यादा लग रहा था। मैं बार बार पीछे मुड़कर उसे देख रहा था लेकिन लहलहाते खेतों के अलावा कुछ और नहीं दिख रहा था। उसका कुछ अता पता नहीं था। ऐसे ही इन्तजार करते करते एक घंटा गुज़र गया और फिर दूसरा भी लेकिन वो नहीं आई। अब मैं मायूस होने लगा और सोचने लगा कि शायद वो नहीं आयेगी और उठकर अपने घर की तरफ बढ़ने लगा। तभी मैंने देखा कि एक बच्चा दौड़ता हुआ आ रहा है और मुझसे कहता है कि दीदी कल आयेंगी। तब जाकर दिल को थोड़ी तसल्ली हुई। दुःख भी था कि इतनी हिम्मत जुटाकर आज जो कहना था वो कह ही नहीं पाउँगा, चलो कल ही सही।
अगली शाम हम मिले। धीरे धीरे मैं अपना हाथ उसके हाथ की तरफ ले जाने लगा और उसके हाथ पर रख दिया। वो एकदम से चौंक गयी और उसके गाल टमाटर की तरह लाल हो गए। मैंने उससे बोला कि मुझे कुछ कहना है और ऐसा बोलते ही उसने मेरी तरफ अपनी नज़रें घुमा लीं। उसके दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि मैं उसे सुन सकता था और मेरा हाल भी कुछ अलग नहीं था। मैं भी पसीने पसीने हुए जा रहा था लेकिन मैंने सोच लिया था कि आज तो अपने दिल की बात कह कर रहूँगा। और जैसे ही मैं उससे अपने प्यार का इज़हार करने वाला था, झूले वाला मुझसे बोलता है, “अरे भाई कहाँ खोये हुए हो ? दस रूपये में और कितना झूलोगे?” मेरे सारे ख्वाब और सारी ख्वाहिशें वहीँ धरी की धरी रह गयी और मैं वापस अपनी असलियत में आ गया। झूले में बैठते हुए जिसे देख कर मैं ये सब ख्वाब बुन रहा था वो तो कबका वहां से जा चुकी थी और मैं था कि बस उसके साथ अपनी ज़िन्दगी बिताने का खयाली पुलाव पका रहा था। बस यही सोचते हुए घर वापस लौटा कि काश वो सपना सच होता, काश वो मेरे इतने पा स होती !

