एक एहसास
एक एहसास
एहसास :
एक मनोभाव, जिस पर किसी का नियंत्रण नहीं| जिसकी परिभाषा मेरी कल्पना व लेखन क्षमता से परे है| मै बस इतना ही समझ पाया हूं कि “एहसास”एक ऐसा स्त्रोत है जो खुशी, पीड़ा, अच्छा, बुरा, सही, गलत या किसी अन्य प्रकार के भावों से मन पर हाथ की रेखाओं की तरह अमिट छाप छोड़ जाता है|उद्देश्य :
पाठक के मनोरजंन के साथ-साथ मेरा उद्देश्य प्यार को परिभाषित करने का है| वैसे तो बडे से बडे विद्वान के लिये भी प्यार को परिभाषित करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि प्रेम वह स्थिति है जिसमें विद्वान भी अपनी बुद्धि, विचार, ज्ञान और ध्यान को भूल जाते हैं| इस सारी धरती को कागज बनाकर, सारे पेडों से कलम बनाकर और समुद्र के सारे जल को स्याही बनाकर भी प्यार की परिभाषा को नहीं लिखा जा सकता| कलम बहुत कुछ लिख सकती है परन्तु विद्या और बुद्धि के जरिये प्रेम की व्याख्या संभव नहीं| चाहे कोइ कयामत तक प्रेम के विषय पर ही बोलता रहे तब भी वह प्रेम का वर्णन नहीं कर सकता| फिर भी हर कोइ जीवन के अनुभवों के आधार पर प्यार को परिभाषित करने की कोशिश करता है, मेरी नजर में प्यार वह एहसास है जो हमें किसी की खुशी व इज्जत का ख्याल रखना सिखाता है| एक ऐसा खूबसूरत एहसास जो इंसान की जिंदगी को खुशियों से सराबोर कर देता है| हर इंसान चाहे वह छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब, ताकतवर हो या कमजोर, इस शब्द से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है| प्रेम वह सच्चा सागर है जो कभी समाप्त नहीं होता|
प्रस्तावना :
मनोरंजन व रोचकता को ध्यान मे रखते हुए कहानी मे कुछ ऐसे वाक्या भी इस्तेमाल किए गये है जिनका हकीकत से कोइ वास्ता नहीं है| पाठकों से अनुरोध है कि उन वाक्यों को हकीकत से न जोडकर केवल मनोरंजन के लिये पढें|
समर्पित :
अब तक जीवन में जिस तरह से मेरे माता-पिता व दोस्तों ने मुश्किलों में मेरा साथ दिया, मुझे जो प्यार और स्नेह दिया है उसके लिए मैं शुक्रगुजार हूं और ये “एक एहसास” मैं अपने माता-पिता व सहायक दोस्तों को समर्पित करता हूं |
इस कहानी के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक है तथा किसी भी पात्र या घटना का किसी भी नाम, जाति या धर्म से कोइ सम्बंध नहीं है| यदि इसकी समानता किसी घटना से होती है तो यह केवल एक संयोग माना जायेगा| कहानी में शहरों एवं इलाकों के नाम घटना को रोचक बनाने के लिये दिये गये हैं उपन्यास की कुल सामग्री मनोरंजन के उद्देश्य से प्रकाशित की गयी हैकिसी भी प्रकार के वादविवाद का न्यायक्षेत्र कैथल ही रहेगा|
प्यार तड़ है, प्यार खुशी है,
प्यार होश है, प्यार बेखुदी है,
प्यार तॄप्ति है, प्यार एक प्यास है,
प्यार ममता है, प्यार “एक एहसास” है|
“एक एहसास” कहानी है “! शान्ति नगर” में रहने वाले एक मध्यम वर्गीय परिवार की| एक संयुक्त परिवार की तरह रहने वाले इस मोहल्ले में गली के सिरे से देखने पर गली के दोनों तरफ कुछ खूबसूरत कोठियों का सिलसिला दिखायी पड़ेगा| उस सिलसिले से थोड़ा हटकर गली में एक दो म्ंजिला मकान भी है जिसके बाहर लगी नेम प्लेट पर लिखा है श्रीहरिनारायण “माजरा नन्दकरण” वाले|
यह कहानी उसी घर में रहने वाले श्रीहरिनारायण व उसके परिवार की है| श्रीहरिनारायण की पत्नी का नाम है सोनिया देवी| उनके तीन पुत्र हैं| बड़े पुत्र का नाम कुलदीप उससे छोटा किशन और सबसे छोटे का नाम सागर हैं| कुलदीप की उम्र बाइस वर्ष, किशन अठारह वर्ष और सागर की उम्र लगभग बारह वर्ष हैं|
कुलदीप ने दो वर्ष पहले बी∙ए∙ की पढ़ाई पुरी करने के बाद पढ़ना छोड़ दिया और अब वह अपना दूध का कारोबार संभालता है| किशन सरस्वती स्कूल में बाहरवीं कक्षा का छात्र है तथा सागर नगर के स्थानीय “गायत्री मिड़ल स्कूल” में छठी कक्षा में पढ़ता है|
एक तरफ कुलदीप जिसका कद करीब छह फुट का है वह हष्ट-पुष्ट तथा अच्छे शरीर का मालिक है, और मानसिक तौर पर भी परिपक्व है| वहीं दूसरी तरफ किशन का कद 5’6” तथा साधारण कद काठी के शरीर के साथ-साथ दब्बु किस्म का लड़का है| उसके चरित्र में अभी तक बाल भाव ही प्रधान है, उसमें वही उत्सुकता, वही चंचलता, वही विनोदप्रियता विद्यमान है जो बचपन में होती हैं|
किशन के साथ एक अजीब संयोग होता है कि जब-जब वह बहुत खुश होता है उसकी पिटाइ अवश्य ह
राधिका : कहानी की नायिका|
रोहन : किशन का दोस्त|
शीतल : रोहन की प्रेमिका|
सीमा : रोहन की बहन|
सुनील : किशन का दोस्त|
ट्रिंग … ट्रिंग … ट्रिंग … ट्रिंग … फोन की घंटी बजती सुनाइ दे रही थी|
“हैलो” दूसरी तरफ से बड़ी ही मधुर आवाज आई|
“हैलो शीतल… ”
“… हैलो” कुछ देर की खामोशी के बाद फिर आवाज आई|
“शीतल मैं रोहन……” इतना बोलकर रोहन भी खामोश हो गया|
“कौन रोहन और अभी सुबह के 3:00 बजे है, ये फोन करने का कौन सा टाईम है”
“वो शीतल म्म्ममैं आज आस्ट्रेलिया जा … बात को बीच में ही काटते हुए दूसरी तरफ से आवाज आई“ यहां कोइ शीतल नहीं रहती और आप आस्ट्रेलिया जाओ या कुए में गिर जाओ… मगर दोबारा यहां फोन मत करना”|
“जी…” रोहन अभी इतना ही बोल पाया था कि दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया|
सौफे पर बैठते हुए वह बड़बड़ाया “इसका नाम तो डाकू रानी चम्पी बाई या पुतली बाई होना चाहिए था… न जाने इसका नाम “शीतल” किसने रख दिया | ”
“कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी रही| फिर रोहन ने फोन का रिसीवर उठाकर रिड़ायल का बटन दबा दिया”
ट्रिंग … ट्रिंग …
“हैलो शीतल मेरी बात तो सुनो… ”
“मै शीतल नहीं हूँ … आप प्लीज दोबारा फोन मत करना”
मगर रोहन तो इस आवाज को अच्छी तरह पहचानता था| वह बोला मै जिनकी खामोशी तक को पहचानता हूँ क्या मुझे उनकी आवाज को पहचानने मे धोखा हो सकता है|
“एक बार कहा ना… मैं शीतल नहीं हूँ ”|
रोहन ने भी हार न मानते हुए शायराना अंदाज में शीतल को मनाना जारी रहाए जान ले लेगी ये अदा, यूं अपने ही नाम से मुकरने की,
ओर कसम से कसम खा ले रे जालिम, कभी न सुधरने की|
रोहन से इस अंदाज में अपनी तारीफ सुनकर शीतल खुश हो गई| अब उसने गुस्सा भुलाकर नखरे भरी नाराजगी शुरू कर दी|
“आज हमारी याद कैसे आ गइ यूं ही चले जाते आखिर हम आपके हैं कौन | ”
“सॉरी यार कुछ घरेलू परेशानियां के चलते वक्त नहीं निकाल पाया मगर अब जो थोड़ा सा समय है उसे तो बेवजह झगड़े में बर्बाद मत करो”
“अच्छा जी… अब मैं बेवजह झगड़ा कर रही हूं… आपको याद हो तो आज आपने तीन दिन बाद फोन किया है और अब भी मुझसे बात करना आपको समय की बर्बादी लगती है तो फिर ठीक है… मैं फोन रख देती हूं”
“अरे नहीं… रूको… यार ऐसी बात नहीं है‚ असल में मेरे जाने के बाद माँ और सीमा कितनी अकेली हो जायेंगी यही सोचकर मैं थोड़ा परेशान हूँ ”|
“आपने तो कभी अपने घरवालों से भी नहीं मिलवाया… थोड़ी बहुत जान पहचान होती तो कभी कभार मैं भी आ सकती थी” शीतल ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा|
“नाराज क्यों होती हो… थोड़ा इन्तजार करो… आपको हमेशा के लिए इस घर में आना है”|
“वो तो ठीक है … मगर ये तो बताओ कितना इन्तजार करना होगा”|
शीतल की बातों में इकरार की झलक पाकर रोहन का चेहरा खिल उठा|
मुस्कुराते हुए उसने कहा “बस दो साल”|
“दो… साल… दो साल… आपको थोड़ा सा वक्त लगता होगा‚ मगर मैं तो दो साल के इन्तजार में मर ही जाऊगीं” शीतल के मुख से एकदम निकल गया|
ये शब्द सुनकर तो रोहन की खुशी का कोई ठिकाना न रहा| उस खुशी की लहर में उसने शीतल को शायराना अन्दाज में छेड़ते हवो कहती है मर जाऊंगी, मगर दो साल इन्तजार न होगा,
कोई समझाओ यारो, तब इन्तजार एक जन्म का होगा|
“ला मुझे दे रिसीवर मैं समझाता हूँ ”रोहन के पीछे खड़े किशन (जो अभी-अभी सुनील के साथ आया था) ने रिसीवर छीनने की कोशिश करते हुए कहा मगर रोहन ने उसे धकेलकर सौफे पर बैठा दिया”
रोहन फिर से शीतल के साथ बातों में मशगुल हो गया|
“ये कौन बोल रहा था”
“है एक कार्टून नेटवर्क ”
“क्या … कार्टून नेटवर्क … ये कौन है ” शीतल ने आश्चर्य से पूछा|
“इसके बारे में फिर कभी बताऊंगा फिलहाल इतना जान लो इसका नाम किशन है और आज दिल्ली तक ये मेरे साथ जा रहा है,” |
बातों-बातों में वक्त कैसे गुजरा दोनों को कुछ पता ही न चला| अगर बस चलता तो शायद वे इन बातों के सिलसिले को कभी रूकने न देते| परन्तु अब समय रोहन को अधिक बातों की इजाजत नहीं दे रहा था|
“अच्छा शीतल अब मुझे जाना होगा” मजबूर सा होकर रोहन ने कहा|
“ओके जी बाए… अपना ख्याल रखना” एक गहरी सांस लेकर मगर बड़ी ही मधुर आवाज में शीतल ने कहा|
“ओके बाए… आप भी अपना ख्याल रखना” कहने के बाद रोहन ने फोन रख दिया|
“रोहन भाई अब जल्दी करो 4:00 बज गये हैं| अगर समय से पहुंचना है तो हमे 4:40 वाली बस ही पकड़नी होगी” बाहर से दरवाजा खटखटाते हुए सुनील ने आवाज दी|
रोहन ने माँ से आशीर्वाद लिया और फिर तीनो किशन,रोहन और सुनील बस स्टैंड़ पहुंचे| वहां से दिल्ली के लिए बस पकड़ी जो सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर दिल्ली अन्तर्राज्यीय बस अड्डे पहुंच गई| वहां से तीनो ने ऐयरपोर्ट के लिए बस पकड़ ली| सुबह जल्दी उठने की वजह से रोहन व सुनील दोनों को नींद आ रही थी| सफर भी लगभग 2 घंटो का था इसलिए दोनों ही सो गये| पहली बार दिल्ली आने पर किशन आज बहुत खुश था इसलिए नींद उससे कोसों दूर थी| बस की लगभग आधी सीटें खाली थी लेकिन दिल्ली दर्शन की ख्वाहिश दिल में लिए किशन महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर बैठा, क्योंकि वहां से बाहर का नजारा ज्यादा स्पष्ट था| वह खिड़की से बाहर झांकता हुआ दिल्ली की ऊंची-ऊंची इमारतों के दॄश्य का नजारा देख रहा था| कुछ देर पश्चात् एक लड़की के लिए उसे खिडकी के साथ वाली सीट छोड़नी पड़ी ओर उसी सीट पर लड़की के बराबर में बैठना पड़ा| अब वह बाहर के दॄश्य का उतना आनन्द नहीं ले पा रहा था| इसलिए उसे खिडकी के साथ वाली सीट छोड़ने का दु:ख था|
कुछ देर बाद किशन का ध्यान लड़की की तरफ गया| जो खिड़की से आने वाली हवा के कारण अपने उड़ते हुए बालों से परेशान थी| उसे देखकर किशन को एक शरारत सूझी| उसने खिड़की का शीशा थोड़ा सा ओर खोल दिया| अब लड़की पहले से भी ज्यादा परेशान हो गइ|
लड़की की तरफ देखेवो तो परेशां थी, अपनी उड़ती हुइ जुल्फों से पहले ही,हाए फिर क्युं, मैने ये खिड़की थोड़ी सी ओर खोल दी|
लड़की ने किशन को गुस्से से देखा लेकिन बिना कुछ बोले वह मुंह फेरकर बैठ गई|
मगर किशन को इतने से आराम कहां वह शायद कुछ ओर ही चाहता था|
“जरा सी खिड़की खोलकर देखें क्या होता है,” बोलते हुए उसने खिड़की जरा ओर खोल दी| इस बार लडकी गुस्सा करने की बजाय बिल्कुल बेपरवाह होकर खिडकी के सामने कुछ इस तरह बैठ गई के उसके बाल उड़कर किशन के चेहरे तक जाने लगे|
किशन परेशान हो गया|
“ऊं हूँ… खिड़की जरा सी क्या खोल दी… अब मैं भी परेशान हो गया उनकी जुल्फों से” बोलकर उसने खिड़की बंद करने के लिए हाथ बढ़ाकर लड़की को देखा जो उसे गुस्से से यूं घूर रही थी जैसे वह उसे कहना चाहती हो “अब बस करो वरना कयामत होगी”| लड़की के इस तेवर को देखकर किशन ने लड़की को परेशान करने की बजाए चुप बैठने में ही अपनी भलाई समझी|
थोडी देर बाद एक दूसरी महिला सवारी बस मे चढ़ी| जिसके लिए किशन को अपनी सीट छोड़कर खड़ा होना पड़ा| नौकरीपेशा लोगों के लिए यह दफ्तर जाने का वक्त था इसलिए भीड़ बढ़ती ही जा रही थी| देखते ही देखते बस खचाखच भर गई| अब हालत ऐसी थी कि किसी को ठीक से खड़े रहने के लिए भी जगह नहीं मिल रही थी| भीड़ से परेशान किशन ने देखा एक लड़की बस में चढ़ी तथा ड़्राइवर के पास ही बस के बोनट पर बैठ गई| बोनट पर अब भी काफी जगह खाली थी| उसने सोचा क्यों न वह भी जाकर बोनट पर आराम से बैठ जाये| इसी इरादे के साथ आगे जाने के लिए किशन ने अपने से आगे खड़ी एक औरत जिसका रंग बिल्कुल काला था, से साइड़ मांगी| परन्तु काली औरत ने उसकी बात को अनसुना कर दिया|
“आंटी प्लीज थोड़ी साइड़ दे दीजिये मुझे आगे जाना है,” किशन ने फिर कहा
औरत ने घूरते हुए रास्ता छोड़ दिया| भीड़ को चीरता हुआ किशन बोनट के पास पहुंच गया| लेकिन उसकी सारी मेहनत तब व्यर्थ हो गइ जब बोनट पर बैठते ही ड़्राइवर ने उसे ड़ांटकर उठा दिया| वह बहुत निराश हुआ| उसने सोचा—“भीड़ में खड़ा ही रहना है तो क्यों न वापिस जाकर अपने दोस्तों के पास खड़ा हो जाऊं ”
भीड़ में से गुजरते हुए किशन दोबारा उसी काली औरत तक पहुंच गया
“आंटी प्लीज थोड़ी साइड़ देना”
काली औरत का चेहरा अब बिल्कुल लाल हो गया… गुर्राकर वह बोली “बदतमीज अगर तुमने दोबारा मुझसे बात की तो मैं तेरा मुंह नौच लूंगी”
“मगर आंटी मैनें कुछ गलत तो नहीं बोला आपको” किशन ने भोलेपन के साथ कहा|
“कार्टून… कहीं का” बड़बड़ाती हुर्इ औरत उसे घूरने लगी|
किशन समझ नहीं पाया काली औरत उसकी किस गलती से नाराज हुर्इ| इसलिए एक बार फिर प्यार से बोला “अगर मुझसे कोइ गलती हुर्इ है तो मुझे माफ कर दो आंटी जी”|
“कुत्ते कमीने पागल लुच्चे लफंगे बदमाश” मुझे छेड़ रहा है,” औरत चिल्लाकर बोली|
“मुझे छेड़ रहा है…” शब्द सुनकर तो किशन के होश ही उड़ गये|
“क्या हुआ बहन जी” एक यात्री ने पूछा जो देखने में किसी पहलवान जैसा था|
“भाइ साहब देखो न ये बेशर्म मुझे छेड़ रहा है,”
“झूठी आंटी…” बोलकर किशन उस यात्री की तरफ देखकर बोला “सर ये आंटी झूठ बोल रही हैं| मैने तो इनसे बस थोड़ी सी साइड़ मांगी थी” मगर आदमी ने किशन की एक न सुनी और उसका गला पकड़कर उसे अपनी तरफ खींच लिया| इससे पहले किशन कुछ सोच पाता तब तक एक अन्य यात्री भी उसकी तरफ लपक लिया”
दूसरे आदमी को भी अपनी तरफ बढ़ता देखकर किशन घबरा गया| वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा “बचाओ… सुनील… रोहन… बचाओ…”
शोर सुनकर रोहन की आँख खुल गई और खुली की खुली रह गई| जब उसने देखा दो आदमी मिलकर किशन को बुरी तरह मार रहे हैं|
“अरे भाई क्या बात है| क्यों मार रहे हो इसे| ” रोहन ने किशन को छुड़ाते हुए कहा|
“ये बदमाश इस बहन जी को छेड़ रहा था” पहले आदमी ने जवाब दिया|
सारा किस्सा सुनकर रोहन गुस्से में बोला “किशन… साहब क्या बोल रहे है तुमने क्या बदतमिजी की आंटी के… ”
“चटाक… आंटी शब्द सुनते ही काली औरत ने रोहन को जोर से चांटा मार दिया”
“तुमको मैं आंटी दिखती हूँ ” काली औरत गुस्से में बड़बड़ाई
“अभी रोहन अपने गाल पर हाथ रखकर आश्चर्यचकित खड़ा था कि सुनील भी जाग गया”
“क्या हुआ” सुनील ने रोहन को हैरत से देखते हुए पूछा
“मैनें गलती से इस गुड़िया को आंटी बोल दिया और इसने पता नहीं क्या किया ” किशन की ओर इशारा करते हुए रोहन ने कहा|
सुनील ने प्रशनवाचक भावों भरे चेहरे से किशन को देखा जैसे बिना बोले ही वह पूछ रहा हो “अबे क्या किया तुमने ”
“मैने थोड़ी सी साइड़ मांगी थी इनसे…” बेचार सा बनकर किशन ने बताया
“सुनील ने औरत को देखा तो हैरान रह गया— तुम इसे गुड़िया क्यों… सुनील अभी इतना ही बोल पाया था कि रोहन ने उसके मुंह पर हाथ रखकर उसे चुप करा दिया|
रोहन उसके कान के पास फुसफुसाया मैं जानता हूँ यह किसी भी ऐंगल से गुड़िया नहीं लगती बल्कि 50-55 साल की बुढ़िया है और शायद 90% चुड़ैलें भी इससे ज्यादा सुन्दर होगी| लेकिन मेरे दोस्त तुम वो गलती मत करो जो हमने की”|
“सुनील सारी कहानी समझ गया मौके की नजाकत को समझते हुए हाथ जोड़कर वह बोला “बेटी इन दोनों को अपनी गलती का एहसास हो चुका है… मैं इनकी तरफ से आपसे माफी मांगता हूँ … आप इनको अपने छोटे…बड़े भाई...सॉरी मेरा मतलब ताऊ जी समझकर माफ कर दो”|
“अंकल जी आप बोल रहे है इसलिए छोड़ रही हूँ नहीं तो आज मैं इसको पुलिस के हवाले कर देती” किशन की तरफ देखकर दांत पीसते हुए औरत बडबडायी|
“चलो माफी मांगो बिटिया से ” ड़ांटने के से अंदाज में सुनील ने कहा|
“रोहन तथा किशन दोनों ने माफी मांगी”|
औरत के चेहरे का रंग अब पहले की तरह ही “सदाबहार ब्लैक” हो गया”|
“यार सुनील दिल्ली ने तो अच्छा स्वागत किया पहले ही दिन मार पड़ गइ” काली औरत के बस से उतरने के बाद किशन ने धीरे से कहा|
“दु:खी क्यों होता है तुझे तो खुश होना चाहिए दिल्ली में तुझे एक नया नाम मिल गया आज से तेरा नाम “KKPLLB”KKPLLB” … मतलब” किशन ने आश्चर्य के साथ पूछा|
“रोहन क्या कहा था उस लाडली बिटिया ने “ये कुत्ता कमीना पागल लुच्चा लफंगा बदमाश मुझे छेड़ रहा है,”मगर रोहन ने कोइ जवाब नहीं दिया तो किशन बोला “हाँ..यही कहा था तो”
“बस यही मतलब हैकुत्ता कमीना पागल लुच्चा लफंगा बदमाश”|
“यार घर से लड़ाइ करके आइ होगी… मैने तो बस थोड़ा रास्ता ही मांगा था”
“बेवकूफ अभी तक तेरी समझ में नहीं आया… तूने उसे आंटी कहा इसलिए यह सब हुआ” रोहन ने गुस्से में कहा|
“दिल्ली में किसी आंटी को आंटी बोलने का मतलब छेडना होता है क्या”
“यार… चुप हो जा क्यों दिमाग खराब कर रहा है,” रोहन की बातों में बेरूखी थी|
किशन उसकी मनोदशा को समझकर चुप हो गया|
बस एयरपोर्ट पहुँच गई|
सुनील ने रोहन को जीवन में कामयाबी की शुभकामनायें दी|
“भाइ मेरे जाने के बाद माँ और सीमा का ख्याल रखना… तुम लोगों का अहसान रहेगा मुझ पर” सुनील के कंधे पर हाथ रखकर यह बोलते हुए रोहन की आंखें भर आई|
“कमीने… दोस्त बोलता है और ऐहसान की बात करता है| तू बिल्कुल फिक्र मत कर” सुनील ने उसे गले लगाकर कहा|
किशन अभी तक चुपचाप खड़ा था|
“आज तेरा कौन सा बटन दब गया जो अब तक चुप है,” रोहन ने उसे मनाने के लहजे में कहा
“तुमने ही तो कहा था चुप रहने को” नाराजगी जाहिर करते हुए किशन ने कहा
“अच्छा भाई अब मैं ही बोल रहा हूँ खुश रहा कर”
“ओके तो भाभी जी का फोन नम्बर बता दो… फिर मैं खुश रहूंगा”|
“किशन तू फिर शुरू हो गया…Grow up yaar”
“सॉरी भाई… माफ करें मगर अब मुझ पर गुस्सा होने की बजाये जाकर सीट रोक लो, ये दिल्ली है अगर कहीं जहाज में भी भीड़ हो गई तो आस्ट्रेलिया तक खड़े होकर जाना पड़ेगा” इस भावुक घड़ी में रोहन को हंसाने के इरादे से किशन ने घड़ी दिखाते हुए कहा”|
“अच्छा भाई तुम लोगों को इतनी जल्दी है तो मैं चला जाता हूँ”|
दोनों से गले मिलने के बाद रोहन अपनी मंजिल की ओर चल दिया| कुछ कदम चलने के बाद उसने पीछे मुड़कर देखा तो किशन व सुनील भी मुड़कर उसे देख रहे थे|
एक-दूसरे को देखकर तीनो मुस्कुराये|
एकदम से किशन बोला “अरे रोहन भाई जरा सुनो जहाज में किसी को आंटी मत बोलना” इस पर एक बार फिर तीनो मुस्कुराये| तीनो ने एक-दूसरे को हाथ हिलाकर अलविदा कहा|
दिल्ली आने से पहले तो किशन व सुनील ने सोचा था कि वे सारा दिन दिल्ली घुमेंगें मगर इस यात्रा में उनको वह मजा नहीं आया, जिसकी दोनों ने कल्पना की थी| काली औरत वाली घटना ने उनका मूड़ खराब कर दिया था|
उन्होने एयरपोर्ट से सीधे दिल्ली अन्तर्राज्यीय बस अड्डे के लिए बस पकड़ ली तथा वहां से सीधे अपने शहर “कैथल” के लिए|
रात के सन्नाटे को चीरती हंसी की गूंज से सारे मोहल्ले को पता चल गया कि किशन व उसके दोस्त स्कूल ग्राउंड़ में एकत्रित हो गये है| ये हंसी सुनील द्वारा बस में किशन के काली औरत के साथ हुए वाक्या बताये जाने पर थी| इन सबके लिए यह बस आज की बात नहीं थी बचपन से ही ये सब दोस्त शाम को बिजली गुल हो जाने के बाद स्कूल ग्राउंड़, में जमा हो जाते, फिर शुरू होता हंसी–मजाक, किस्से–कहानियां सुनने–सुनाने का सिलसिला, जो देर रात तक जारी रहता| जब उनकी आंखें झपकने लगतीं, जबान साथ छोड़ देती, तभी वे सोने का नाम लेते थे| एक तरह से बिजली जाने के बाद इस स्कूल ग्राउंड़ में एकदूसरे का मजाक बनाकर ठहाके लगाना इनकी दिनचर्या का एक हिस्सा बन गया था| हर रात 9:00 बजे से लगभग दो घंटो के लिए बिजली का कट होता और ये सभी बिजली गुल हो जाने के बाद स्कूल ग्राउंड़ में आकर टाइम पास करते थे|
आज कुछ देर रोहन के बारे में बातें होती रही फिर सब अपने दोस्त के साथ अपनी-अपनी यादों में खो गये| अब रोज की तरह न तो उनके कहकहे गूंज रहे थे ओर न ही उनके बीच एक–दूसरे को किस्से सुनाने की होड़ थी| खामोशी को तोड़ते हुये किशन का एक दोस्त बोला यार किशन आज तो सब चुपचाप बैठ गये, इस तरह तो एक घंटा बिताना भी मुश्किल हो जायेगा| जब तक बिजली नहीं आती तुम ही अपनी “लांडी” शायरी में कुछ सुना दो|
किशन को शायरी का बहुत शौक था मगर उसकी ज्यादातर बातों का मतलब किसी को भी समझ नहीं आता था| इसलिए सब उसकी शायरी को “लांडी” शायरी बोलते थे| लेकिन वह खुद भी हर किसी को अपनी शायरी सुनाने के लिए बेताब रहता था| किसी के जरा सा भी कहने पर वह शुरू हो जाता था| जैसे कि कह दो जमाने वालों से, बिछालें जितने कांटे और शोले बिछानें हों मेरी राह मे,
मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता, मैं तो आ रहा हू “EICHER TRACTOR” पर बैठ के|
“अरे वाह किशन क्या बात है ऐसे ही तड़कते भड़कते दो चार ओर आने दो”
“जरूर भाई… दोस्तो जरा गौर फरमाइये” बोलकर किशन फिर शुरू हो गहमने ख्वाब में भी तो नहीं देखा, उनको जी भर के कभी,
जब भी ख्वाब आया, पिंच करके देखा ओर नींद खुल गइ|
“वाह क्या बात है किशन आज तो तुम छा गये यार”
“शुक्रिया… तो फिर सुनिये अर्ज किया है,”
कुछ ऐसा रिश्ता जुड़ गया, मेरी रूह का उसकी रूह से,जैसे वो होता है न, किसी सड़े हुए टमाटर का बदबू से|
अ…इइइइइ…अरे बस कर जालिम… अब क्या मार ही डालोगे|
“अरे भाई अब शुरू हो गया हू तो दोचार तो ओर सुनने पडेंगें
ऐ रब मुझपर भी कुछ रहम कर दे, के नींद आए न उनको रातों मे,
पल भर को न मिले शुकुन उसे, असर कुछ ऐसा कर दे मेरी बातों मे|
इधर किशन का शेर पूरा हुआ के बिजली आ गई|
“भाई किशन तेरा तो पता नहीं मगर रब ने हम बच्चों पर तो रहम कर दिया जो तेरी शायरी से बचा लिया” सागर के बोलते ही सब हस पड़े|तेरे पास आ के मेरा वक्त गुजर जाता है,
दो घडी के लिए गम जाने किधर जाता है|
तू वही है जिसे इस दिल ने सदाएं दी है,
तू वही है जिसे इस दिल ने सदाएं दी है,
तू वही है जिसे नजरों ने दुआएं दी है,
तू वही है जिसे नजरों ने दुआएं दी है,
तू वही है के जो दिल लेके मुकर जाता है,
दो घडी के लिए गम जाने किधर जाता है,
तेरे पास आ के मेरा वक्त गुजर जाता है|
यह सुनील के मोबाइल की रिंगटोन थी| अब जबकि बिजली आ चुकी थी तो यह उसके घर का बुलावा था| सब लोग अपने-अपने घर को चल दिये मगर किशन वहीं बैठा रहा|
“क्या हुआ भाई “ उसके पास बैठते हुए सागर ने पूछा|
ये तो सच है मेरे भाई, आज गरदिश में हैं मेरे सितारे मगर,
एक दिन होगा, जब कोइ आख न सह सकेगी चमक इनकी|
किशन की आखें भर आई|
भाई की आंखों में आसूं देखे तो सागर को एहसास हुआ उसे सबके सामने किशन का मजाक नहीं बनाना चाहिए था| बड़ी मासूमियत से वह बोला “मुझे माफ कर दो भाई मैं बहुत बुरा हूं मैने आपको दु:ख दिया”|
सागर की मासूमियत देखकर किशन हस पडा…आज रूलाने के लिए बुरा क्यों कहूं ,
याद है कभी-कभी हसाता भी तो है तू|
“मुझे तेरी कोइ बात बुरी नहीं लगती… तू तो मेरा छोटा भाई है… मगर जब कोइ दूसरा मुझ पर हँसता है तब मै दु:खी हो जाता हू| सोचता हू अगर मै बाबू जी की उम्मीदों पर खरा न उतरा तो उनको कितना दु:ख होगा| मैं अपने मा-बाप के दु:ख का कारण नहीं बनना चाहता|
मैं खुद को साबित करके रहूंगा म्म्म्मै… बोलते हुए किशन अटक गया ओर सागर को समझाने के लिए हाथों को घूमाकर इशारा करने लगा “U Know …U Know …U Know that”|
“हां… हां… भाई मैं समझ गया… चलो अब घर चलते है,” सागर ने हँसकर कहा|
चलते-चलते सागर ने कहा - भाई कुछ दिन से मेरे मन में एक बात है| मैने एक-दो बार रोहन को भी बताना चाहा था, मगर बता नहीं पाया|
“कोई परेशानी है क्या अपने भाई को नहीं बतायेगा तो किसे बतायेगा” सागर के कंधे पर हाथ रखकर अपनापन जताते हुए किशन ने कहा|
“भाइ… बात ये है कुछ दिन से एक लड़का सीमा को परेशान करता है,” |
“कौन है वो” किशन का लहजा कुछ गंभीर था,
“भाई उसका नाम संजय है, वह सुभाष नगर का रहने वाला है,”
“मगर यह सब तुझे कैसे मालुम हुआ”
“पिछले कुछ दिनो से हमारे स्कूल जाने के वक्त संजय अपनी गली के मोड़ पर चाय की दुकान के बाहर बैठा रहता है ओर जब सीमा स्कूल जाती हैं, तब वह उसका पीछा करता है| सीमा उसे देखते ही परेशान हो जाती है| सीमा उससे कभी बात नहीं करती मगर संजय रास्ते भर कुछ न कुछ बोलता ही रहता है|
“क्या बोलता है…” किशन के शब्दों में कठोरता थी|
“भाई ज्यादातर तो सीमा उसकी सहेलियों के साथ जाती है, और मैं अपने दोस्तों के साथ| इसलिए मैं उसकी बातें ठीक से नहीं सुन पाता मगर कल मैं उनसे ज्यादा दूर नहीं था| वह अपने एक दोस्त के साथ था, उसने सीमा को देखते हुए कहा था लाल रंग के कभी हम भी न थे कायल इस कदर,
जब तक न देखा हमने ये इस जालिम के बदन पर|
उस वक्त सीमा ने लाल रंग का सुट पहन रखा था| तब सीमा ने संजय को धमकी भी दी थी मगर संजय पर इसका कोई असर नहीं हुआ| आज भी वह उसे तंग करता रहा|
इसलिए मुझे लगा मुझे इसके बारे में आपको बता देना चाहिए|
“तुमने बहुत अच्छा किया जो मुझे बता दिया बल्कि इस बारे में तुझे रोहन को ही बता देना चाहिए था खैर अब भी कुछ नहीं बिगड़ा कल सुबह मैं तुम्हारे साथ चलूंगा| तुम मुझे बस संजय को एक बार दूर से ही दिखा देना| उसके बाद मैं उसे संभाल लूंगा चल अब चल के सो जा सुबह स्कूल भी जाना है,”|
अगली सुबह सागर को साथ लेकर किशन उसी चाय की दुकान पर पहुंचा| जहां बैठकर संजय सीमा का इन्तजार किया करता था| किशन ने सागर को समझाया कि उसे कुछ भी बोलकर बताने की जरूरत नहीं है, बल्कि जब संजय आयेगा तब तुम उठकर घर की तरफ चल देना… मैं समझ जाऊगा”|
दोनों संजय का इन्तजार करने लगे|
कुछ देर बाद संजय जिसकी उम्र लगभग 18-19 साल, कद लगभग 5’8” होगा, वहां आया| एक चाय का आर्ड़र देकर वह एक कुर्सी पर बैठ गया| संजय के बैठते ही सागर उठकर घर की तरफ चल दिया|
“तो ये है संजय…” किशन ने उसे गौर से देखते हुए सोचा मगर अभी वह संजय से बात करने की हिम्मत भी नहीं कर पाया था कि संजय का एक दोस्त भी वहां आ टपका| जिसका कद करीब छ: फुट था| उसके होंठ मोटे चेहरा चौड़ा सपाट और कठोर था| उसकी आंखे बड़ी-बड़ी तथा अजीब से अन्दाज में खुली रहती थीं| वह शक्ल से किसी गुण्ड़े या बदमाश जैसा नजर आता था| यह लड़का किशन को खुद के मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर लगा इसलिए वह उनसे झगड़ा करने की हिम्मत नहीं कर पाया|
किशन ने दुकान के मालिक से संजय व उसके दोस्त बारे में पता किया| जैसा कि दूसरे लड़के के चेहरे से ही जाहिर हो रहा था चायवाले ने भी उसे बदमाश टाइप का लड़का बताया| उसका नाम प्रदीप मिन्हास था|
दुकानदार से संजय और प्रदीप के बारे में जानकारी लेकर किशन घर आया| उसने सागर से कहा मैं आज कुलदीप के साथ जाकर संजय को समझा दूंगा, और अगर इसके बाद भी वो सीमा को तंग करे तो तुम मुझे बता देना|
किशन ने कुलदीप व सुनील को पूरे मामले से अवगत कराया|
दोनों उस पर गरज पड़े|
गुस्से से आग बबूला होकर कुलदीप बोला - इतिहास गवाह “एक भाई से बढ़कर बहन का ख्याल भगवान भी नहीं रख सकता, लेकिन अगर भाई तेरे जैसे होने लगे तो बहुत जल्द ये मिसाल बदल जायेगी”|
“मुझे ये समझ नहीं आता वो लड़का तुम्हारे सामने था ओर तुम… अगर कोइ हमसे ताकतवर है ओर वो हमारी बहु–बेटियों को तंग करेगा तो क्या सहते रहेंगें” दांत पीसते हुए सुनील ने कहा|
“मुझे बस इतना बता संजय कहां मिलेगा मैं देखता हू वो कितना ताकतवर है,” किशन को गुस्से में घूरते हुए कुलदीप ने पूछा|
“मुझे माफ कर दो भाई मुझसे गलती हो गई… ” दोनों के गुस्से से बचने के लिए किशन बोला
“तू बस इतना बता संजय इस वक्त कहां मिलेगा” कुलदीप ने फिर गुस्से मे पूछा|
“अभी तो वो स्कूल में होगा भाई ऐसा करते हैं कल सुबह हम उसे वहीं दुकान पर पकड़ लेंगे” किशन हड़बड़ाकर बोला|
“हाँ जैसे आज सुबह पकड़ा था सुनील… स्कूल की छुट्टी होने वाली है,” घड़ी देखते हुए कुलदीप ने सुनील को इशारा किया|
“भाई मुझे भी अपने साथ ले चलो… मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका है मैं आपके सामने उसे मारूगा”|
“तुझे तो वहां ले जाना ही पड़ेगा क्योंकिं हम दोनों को तो उसकी पहचान ही नहीं है,” सुनील ने उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा|
स्कूल की छुट्टी के वक्त तीनो किशन, कुलदीप और सुनील स्कूल के बाहर संजय का इन्तजार करने लगे| छुट्टी के बाद संजय अपने एक दोस्त के साथ स्कूल से बाहर निकला|
“भाई वो रहा संजय” किशन ने उसे देखते ही कहा|
सुनील और कुलदीप दोनों ही जानते थे किशन झगड़े से बहुत डरता है मगर फिर भी दोनों बोले “किशन अब सही मौका है अपनी बात को सही साबित करने का”|
“कौन सी बात भाई |
“वही जो यहां आने से पहले तुमने कही थी कि तू हमारे सामने संजय को मारेगा” किशन को संजय की तरफ धक्का देते हुए सुनील ने कहा|
किशन धीरे-धीरे संजय की ओर बढ़ गया मगर वह उसे टोकने की हिम्मत नहीं कर पाया|
“जा न … मार उसको नहीं तो मैं तुझे मार दूंगा” कुलदीप ने कहा|
“भाई अ… अभी तो वो दो हैं इसके दोस्त को जाने दो फिर मैं इसे मारूंगा”
किशन ने बहाना बनाया मगर उसका ये बहाना भी ज्यादा देर तक उसका साथ न निभा सका| कुछ दूर जाने के बाद एक चौराहे पर संजय का वह दोस्त अलग रास्ते चला गया| अब संजय अकेला रह गया था|
“ले चला गया उसका दोस्त चल अब जा मार उसको”|
“हैलो दोस्त जरा रूकना” किशन ने पीछे से आवाज लगाई|
संजय रूक गया|
किशन हिम्मत करके संजय के सामने खड़ा हो गया तथा कुलदीप व सुनील संजय के पीछे|
“तुम सीमा को क्यों परेशान करते हो” किशन ने कांपती आवाज में पूछा|
“तुमसे मतलब” संजय ने अकड़कर कहा
“मतलब है तभी पूछ रहा हूँ ,… तुम उससे दूर रहो”
“अबे ऐ… मै सीमा को चाहता हूँ अगर इसमे तुझे कोइ परेशानी है तो जल्दी बोल” संजय के लहजे में अब भी वही अकड़ थी|
“तुम मेरी परेशानी की छोड़ो अगर आज के बाद तुमने सीमा को परेशान किया तो तुझे बहुत परेशानी होगी” किशन ने भी कुछ गंभीर होते हुए कहा|
“बस… बहुत सुन ली तेरी बकवास, अब मेरी बात सुन तू इस मामले में न पड़े तो तेरे लिए बेहतर होगा” संजय ने फिर उसी अक्कड़ के साथ कहा|
“संजय तू मेरी बात मान… तू सीमा को परेशान करना बंद कर दे वरना… ” सुनील को देखते हुए किशन ने कहा| वह सुनील की तरफ कुछ इस तरह देख रहा था, जैसे वह कहना चाहता हो “मै तो इसे हर तरह से समझाना चाहता हूँ , मगर इस पर तो मेरी किसी बात का कोइ असर ही नहीं है अब मैं क्या करू | ”
“वरना क्या… क्या कर लेगा तू | ”
किशन को कुछ समझ नहीं आया अब वह क्या कहे|
मासूम निगाहों से किशन कुलदीप की ओर देखने लगा|
“चल अब मेरा वक्त बर्बाद मत कर तुझे जो करना है कर ले” बोलकर संजय आगे बढ गया|
संजय अभी मुश्किल से दो-चार कदम ही चला था कि सुनील ने उसका रास्ता रोक लिया|
“तू एक बात बता अगर मैं तेरी बहन को तंग करता तो तू क्या करता” सुनील ने कहा
“हम तो काट दिया करते हैं,” संजय ने उसका कालर पकड़कर कहा|
संजय के इतना बोलते ही कुलदीप व सुनील दोनों ने उसे मारना शुरू कर दिया| किशन के लिए किसी के साथ झगड़ा करने का यह पहला मौका था| इसलिए वह घबराया हुआ था| मगर जब उसने कुलदीप व सुनील को संजय को मारते देखा तो न जाने कैसे उसमे भी हिम्मत आ गई| लगे हाथ उसने भी दो चार हाथ छोड़ दिये| साथ ही कुलदीप की नजरों में बहादुर बनने के लिए वह संजय को मारते वक्त जोर-जोर से गालियां देने लगा| अगले 4-5 मिनटों में ही तीनो ने मार-मार कर संजय की हालत खराब कर दी| फिर तीनो वहां से भाग गये| लेकिन अब किशन इन दोनों से आगे था| आज उसने जिन्दगी में पहली बार किसी की पिटाई की थी इसलिए वह बहुत खुश था|
रात को बिजली गुल हो जाने के बाद सब दोस्त स्कूल ग्राऊड़ में आये तो किशन ने अपने दोस्तो की टोली में अपनी बहादुरी का बखान बढ़ा-चढ़ा कर किया|
एक दिन स्कूल के पश्चात् सीमा किशन से मिलने आई वह बहुत घबरायी हुइ थी|
“बहुत परेशान लग रही हो सीमा क्या बात है ” किशन ने पूछा|
“भैया आज सुबह प्रदीप मिला था वह आपके बारे में पूछ रहा था| उसका कहना है, आपने और आपके दोस्तों ने मिलकर संजय को बुरी तरह मारा है,” |
“प्रदीप कौन ” किशन ने अनजान सा बनकर पूछा|
“भैया प्रदीप… संजय का दोस्त है,” |
“ओहो… संजय का दोस्त है… हसते हुए किशन ने बताया “सही बोल रहा था वो प्रदीप… मैने ही मारा है संजय को… लगता है, इस प्रदीप को भी वही दवाइ देनी पड़ेगी जो संजय को दी है| इसके अलावा क्या बोल रहा था वो संजय का दोस्त|
“आपके बारे में पूछ रहा था”
“मेरे बारे में… क्या पूछ रहा था” किशन हड़बड़ा गया
“यही के आप कब ओर कहां अकेले मिल सकते हैं,” सीमा ने चिंतित स्वर में बताया
“उसने मेरे बारे में ही क्यों पूछा” वह सोच ही रहा था कि सीमा बोली “भाई ये प्रदीप सड़कछाप गुंड़े टाइप का लड़का लगता है आप इससे बचके रहना|
किशन ने सीमा के सामने अपनी परेशानी छिपाते हुए उसे निश्चिन्त रहने को कहा मगर सच तो यह था कि उसकी आखों के सामने प्रदीप का भयानक चेहरा घुमने लगा था| किशन यह सोचकर बहुत डर गया था, कि अब जब कभी उसका सामना प्रदीप से होगा तो उसकी भी पिटाइ होगी”|
उसके लिए यह अजीब तनाव वाला वक्त था| भयभीत, असुरक्षित सा वह अपने कमरे में पड़ा रहता| पिटाई के डर से वह इतना आहत था, कि उसने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया| यहा तक कि उसके घरवाले कभी उसेे किसी काम के लिए बाजार जाने को बोलते तब भी वह या तो उनको टाल देता था या फिर किसी दूसरे को भेज दिया करता| किशन अन्दर ही अन्दर घुटता जा रहा था| डर के मारे उसकी हालत खराब थी| उसे डरावने सपने आने लगे| जब उसे इस समस्या का कोइ उपाय नहीं सुझा तब उसने सोचा “क्यों न चलकर भाई से कह दूं| यह सोचकर वह उठा और जाकर कुलदीप के सामने खड़ा हो गया जो साथ के कमरे में बैठा खाना खा रहा था|
सहसा किशन को सामने देखकर कुलदीप चौंक पड़ा| उसका उतरा हुआ चेहरा, सजल आंखे और कुंठित मुख देखा तो कुछ चिंतित होकर पूछा−क्या बात है किशन, तबीयत तो ठीक है| |
किशन — भाई मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ पर डरता हूँ कि आप मेरा मजाक न उड़ायें|
“क्या बात है बता तो सही”|
“भाई मैं सो नहीं पा रहा हूँ मुझे डरावने सपने आते है,” |
“जरा बता तो तुझे कैसे-कैसे सपने आते हैं,” कुलदीप ने उसे पास बैठाते हुए पूछा
“भाई आज ही मुझे सपने में एक सुनसान रास्ते पर संजय का दोस्त प्रदीप मेरे पीछे तलवार लेकर भागता हुआ दिखाइ दिया| वह बोल रहा था भाग कुत्ते भाग मैं भी देखता हूँ आज तुझे कौन बचायेगा| मैं उस सुनसान रास्ते पर भागता रहा| जब मैं भाग-भाग कर थक गया तो मैं एक पेड़ के पीछे छुपकर आराम करने लगा| अचानक प्रदीप मेरे सामने आ गया और तलवार फेंककर वह किसी खूनी दरिन्दे की तरह मेरी तरफ बढ़ने लगा| फिर देखते ही देखते वह मच्छर बनकर मुझे खा गया|
किशन की बात सुनकर कुलदीप पागलों की तरह हँसने लगा हे भगवान… अबे तुझे सोते हुए किसी मच्छर ने काट लिया होगा| इसीलिए तुझे ऐसा सपना आया तू एक काम कर आज के बाद तू कछुआ छाप लगाकर सोया कर फिर तुझे ऐसे भयानक सपने नहीं आएंगे|
कुलदीप उसे समझाकर दरवाजे से बाहर निकला ही था के एकाएक वह पलटा और बोला “अरे किशन सुन तू जमीन पर मत सोना कहीं शाम को घर आऊ तो पता चले तुझे चींटी खा गई“| ठहाका लगाकर हंसते हुए कुलदीप बाहर चला गया “सपने भी बिल्कुल अपने जैसे देखता है,”
किशन ने इसका कोइ उत्तर नहीं दिया| आंखे डबडबा आयीं, कंठावरोध के कारण मुंह तक न खोल सका| चुपके से आकर अपने कमरे में लेट गया| अब उसकी परेशानी ओर भी बढ़ गई क्योंकि यह सोचकर कि कोइ उसकी परेशानी नहीं समझेगा, बल्कि सब उसका मजाक ही उड़ायेंगे| वह इस बारे में अब किसी से भी बात नहीं करना चाहता था मगर वह यह भी नहीं समझ पा रहा था कि वह इस परेशानी से कैसे छुटकारा पाए|
प्रदीप का डर उसे दिन रात सताने लगा| वह इस डर को ज्यादा दिन छिपा भी न सका| एक रात जब वह सो रहा था तब अचानक नींद में बड़बड़ाने लगा “मुझे मत मारो-मुझे मत मारो”| ये शब्द जब कुलदीप के कान तक पहुचे तब वह समझा किशन ने उसे जो डरावने सपनों की बात कही थी वह बिल्कुल सच थी| उसे एहसास हुआ कि उसे किशन की बात को हंसी में टालने की बजाये उसे समझाना चाहिए था|
सुबह ही कुलदीप ने किशन को अपने पास बुलाकर बड़े प्यार से पूछा “किशन क्या बात है| आजकल तुम कुछ गुमसुम से रहते हो”|
“नहीं तो भाई कोइ परेशानी नहीं है”|
बार-बार पूछने पर भी जब किशन ने अपना जवाब नहीं बदला तो कुलदीप गुस्से से उस पर चिल्लाया “तुझे कोइ परेशानी नहीं है तो फिर रात को क्यों चिल्ला रहा था मुझे मत मारो- मुझे मत मारो”| किशन सिर झुकाये चुप खड़ा रहा| उसकी आँखो से आसू टपक रहे थे|
“बेवकूफ इस तरह डरेगा तो तू उसके मारे बगैर भी मर जायेगा लड़ाई झगड़े तो होते ही रहते है इसमे डरने की क्या बात है,…”|
लेकिन किशन अब ओर भी ज्यादा सुबक-सुबक कर रोने लगा|
जब कुलदीप ने देखा किशन पर उसकी बातों का कोइ असर नहीं हो रहा है तब उसने पूरी बात अपने पिता श्रीहरिनारायण को बताई|
श्रीहरिनारायण ने किशन को अपने पास बिठाया औखुद की चाहत इन्सानियत की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैे| एक बात हमेशा याद रखना जीवन और मॄत्यु भगवान के हाथ में होती है, कोइ भी जीव न तो इसमे एक भी पल जोड़ सकता है और न हि एक भी पल घटा सकता है| जीव चाहे कहीं भी हो मॄत्यु अपने निर्धारित समय पर आकर रहेगी इसलिए मॄत्यु से इतना डरना उचित नहीं है अगर कोइ व्यक्ति तुम्हारे देश, समाज या परिवार को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचा रहा हो तो उसे कभी बर्दास्त न करो बल्कि उस समय यथाशक्ति लड़ना ही हमारा परम कर्तव्य होता है|
इन बातों से किशन को कुछ हिम्मत मिली… “आखिर कब तब प्रदीप से छिपकर वह घर बैठा रहेगा” सोचकर उसने अपना मन मजबूत कर लिया| आज कई दिनों के बाद वह कुछ सामान्य महसूस कर रहा था| वह खुश था मगर इसी की वजह से उसे डर भी लग रहा था क्योकिं जब-2 वह खुश होता था उसकी जिन्दगी में कोइ न कोइ परेशानी जरूर आती थी और आजकल तो उसे परेशानी का अंदेशा पहले से ही था|
दिन गुजरते गये| सब बातें भूलाकर किशन अब पहले की तरह जीने लगा था| अब तक वैसा कुछ भी नहीं हुआ जो कुछ सोचकर वह इतना डर रहा था| वह अपने आप पर मन ही मन हँस पडबड़ा नासमझ हूँ यारो,न जाने मैं ये कैसे समझा|
एक शाम कुलदीप ने किशन को कुछ सामान लाने के लिए बाजार भेजा| किशन अपने छोटे भाई सागर को सामान पकड़ने के लिए अपने साथ लेकर चल दिया| न जाने किन ख्यालों में खोया हुआ अपनी मोटरसाइकिल को हवा से बातें कराता हुआ वह बाजार की तरफ बढ़ता जा रहा था| एक दुकान के सामने जाकर उसने मोटरसाइकिल रोक दी| अचानक प्रदीप अपने एक दोस्त के साथ उसके सामने आ गया| ताकत के हिसाब से तो प्रदीप अकेला ही उसकी पिटाई के लिए काफी था मगर शायद किशन की किस्मत कोइ कसर नहीं छोड़ना चाहती थी| इसलिए उसने प्रदीप के दोस्त को भी प्रदीप के साथ भेज दिया था| किशन मोटरसाइकिल पर बैठा-बैठा काँप रहा था|
“क्या बात है भाई आप ठीक तो है| ” सागर ने पूछा
किशन कोइ जवाब न दे सका| इससे पहले के वह बचने का कोई उपाय सोच पाता प्रदीप ने उससे बिना कोइ सवाल- जवाब किये एक जोरदार थप्पड़ जड़ा| किशन का शरीर बिल्कुल सुन्न पड़ गया| वह किसी पत्थर की भांति ऐसे बैठा रहा जैसे उसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा हो| फिर प्रदीप ने अपने दोस्त के साथ मिलकर उसको मोटरसाइकिल से उतारकर पीटना शुरू कर दिया| उन दोनों ने मिलकर उसकी जमकर पिटाइ की| बुरी तरह पिटने के बाद प्रदीप के एक जोरदार घंुसे के प्रहार से किशन के लिए सब कुछ घूमने लगा| वह लड़खड़ाकर सड़क पर गिर गया| बेहोश होने से पहले उसने वो मंजर देखा जब बीच बाजार लोग उसे पिटते हुए देख रहे थे और सागर उसे पिटते हुए देखकर मोटरसाइकिल पर बैठा-बैठा रो रहा था| उसके बाद क्या हुआ किशन को कुछ पता नहीं था|
इसके बाद का वॄतांत सागर ने ही उसे बताया था| प्रदीप और उसके दोस्त के जाने के पश्चात् एक भले आदमी ने सागर से उनके घर का फोन नम्बर पूछा था| तब सागर ने उस आदमी को कुलदीप का फोन नम्बर बताया ओर कुलदीप उसे अस्पताल लाया था|
आह… आह… म्म्मै कहाँ हूँ … अस्पताल के एक बेड़ पर पड़ा-पड़ा किशन कराह रहा था| उसे होश में आता देखकर कुलदीप तथा उसके बाबू जी की आंखों में एक चमक उभर आई|
पिटाई के समय तो किशन को कुछ भी महसूस नहीं हुआ था| मगर अब उसके शरीर के सभी अग उसे अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे|
किशन का हाथ अपने हाथ मे लेकर कुलदीप बोला “ तू चिंता मत कर सब ठीक हो जायेगा और प्रदीप को तो मै ऐसा सबक सिखाऊंगा…”
“कुलदीप बेटा तुम शान्त रहो” उसकी बात काटते हुए श्रीहरिनारायण ने कहा|
उसे समझाते हुए श्रीहरिनारायण नलड़ाई झगड़ा किसी बात का हल नहीं होता| पहले तो तुम लोगों को संजय के साथ ही मारपीट नहीं करनी चाहिए थी अगर उसने तुम्हारी बात नहीं भी मानी थी तब भी उसको मारने की बजाय पहले उसके माता पिता से बात करनी चाहिए थी| बेटा गुंड़ागर्दी में जिन्दगी ज्यादा दिन की नहीं होती| तुम यहीं से सोच लो कुछ दिन पहले तुमने उनको मारा था आज उन लोगों ने तुमको मारा है और अगर अब तुम उनको मारोगे तो फिर वो तुमको मारेंगे| इस तरह तो ये किस्सा कभी खत्म ही नहीं होगा… बेटा शरीर का कोइ भी अग इस जन्म में दोबारा नहीं मिल सकता, इसलिए जहां तक संभव हो अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए|
किशन शरीर के अंगों की अहमियत अच्छी तरह जान चुका था इसलिए उसने हाँ में सिर हिला दिया| श्रीहरिनारायण ने कहा— अब तुम लोगो को प्रदीप या संजय किसी से कोइ बात करने की जरूरत नहीं है| मैं समझौता करने के लिए उनके माता-पिता से बात करूगां| अपने पिता की यह बात किशन कोे बहुत अच्छी लगी उसे लगा अब ये मामला सुलझ जायेगा| उसका मन किया कि वह ठीक से बैठकर अपने बाबू जी की बातें सुने| लेकिन जैसे ही उसने बैठने की कोशिश की उसे चक्कर आने लगे| मन ही मन प्रदीप को कोसते हुए वह बेहोश हो गयबुरा हो रे साले मुझे पीटने वाले तेरा,
मुझे तो बैठे-बैठे भी चक्कर आ रहे हैं|
“भाई सीमा आई है,” सागर ने किशन को जगाते हुए कहा| सीमा के साथ उसकी एक सहेली भी थी| जिसे देखकर किशन अपनी सारी पीड़ा भूल गया| किसी कवि की कल्पना से भी अधिक सुन्दर थी वह| किशन उसे पसंद करता था| उसका मन बार-बार उसे कह रहा था कि आज वह उसे बता दे कइ बार लौटा हूं आपकी राहों से,
अपने मन की बात, मन ही में लेकर|
किशन उसके चेहरे से अपनी नजर नहीं हटा पा रहा था| एकटक बस उसे ही देखे जा रहा था| मानो वह अपनी पलके झपकना ही भूल गया हो| कुछ क्षण के लिए वह उसे इसी तरह निहारता रहा अचानक सीमा की आवाज सुनकर वह हड़बड़ा गया| जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो”|
“भैया मैं जा रही हूंं” बोलते हुए सीमा बाहर जाने लगी|
“अरे मगर सीमा तुमने बताया नहीं… कोइ परेशानी है क्या” किशन ने सीमा से पूछा|
“नहीं भैया मैं तो बस आपका हाल-चाल जानने के लिए आइ थीं”अपनी सहेली की ओर देखते हुए सीमा ने कहा|
“हाल तो तुम देख ही रही हो सीमा और चाल देखकर शायद अभी कुछ दिन लोग मुझे लंगड़ा समझें| किशन के इतना बोलते ही सीमा की सहेली हँस पड़ी|
किशन चेहरे सेे उसे पहचानता था मगर उसका नाम वह नहीं जानता था| वह तो अब तक उसे भूरी आखों वाली कहा करता था| उसका नाम जानने के लिए उसने सीमा से पूछा “सीमा ये मोहतरमा कौन हैं जो हमारी खुशियों में शामिल होने आई हैं|
सीमा ने दोनों का परिचय कराया| उसका नाम राधिका था|
“राधिका जी आपकी हसीं तो बहुत प्यारी है मगर आपको किसी ऐसे इन्सान के सामने नहीं हँसना चाहिए जिसे हँसते हुए सारे शरीर में दर्द होता हो”|
“सॉरी किशन जी… मगर मुझे आपकी बात सुनकर एक कहावत याद आ गई थी| इसलिए मैं अपनी हंसी को नहीं रोक पायी” राधिका ने कहा|
“कहावत… कैसी कहावत”
“किशन जी हलवे के बारे में कहा जाता है कि मजा तो बस हलवा खाने में ही आता है जो गले में से ऐसे उतरता है जैसे कोइ लंगड़ा सीढ़ीयों में से उतरता हो| इसके अलावा आज सुबह एक लंगड़े को मंदिर की सीढ़ीयों से उतरते हुए देखा था| बस इसीलिए मुझे हँसी आ गई|
“न जाने ये कैसे-2 उदाहरण देगी” यही सोचकर किशन ने बात बदलते हुए सीमा से पूछा “सीमा तुम बताओ… तुमको कोइ परेशानी तो नहीं है ना”|
“नहीं भैया अब तक तो कोइ परेशानी नहीं हुई… भैया समझ नहीं आता मैं कैसे आपका शुक्रिया अदा करूं| ”
“शुक्रिया किस बात का”
“भैया मुझे पता है आज आप इस हालत में मेरी वजह से हैं,”सीमा ने अपनापन जताते हुए कहा
“तुम्हारी वजह से… मैं तो समझी थी लड़कियां छेड़ते हुए पिटे होगें” राधिका तुरन्त बोली “राधिका… प्लीज कुछ देर के लिए चुप बैठो” सीमा ने सख्त लहजे में कहा|
सीमा का यह लहजा राधिका को रास न आया “सॉरी” बोलकर वह बाहर चली गई|
किशन उसे रोकना चाहता था मगर वह कुछ बोल न पाया| बस मन ही मन अभी कुछ शुकून आया था इस मन को,
और अभी आप जाने की बात करते हो|
इसके बाद कुछ देर तक किशन और सीमा की बातें होती रही| मगर किशन का मन तो इस वक्त बाहर बैठा हुआ था| उसे इन बातों में कोइ दिलचस्पी न थी|
“भैया मेरे लिए जो आपने किया है… आप तो मेरे लिए भगवान जैसे हों”|
“भगवान जैसे…” शब्द सुनकर किशन खुश हो गया| मन ही मन वह सोचने लगा “क्या किसी की मदद करने से इन्सान भगवान बन सकता है| अब तो मैं हमेशा सबकी मदद किया करूंगा| वह बोला सीमा छोड़ो इन बातों को… बहन की रक्षा करना तो भाइ का फर्ज होता है| तुम किसी बात की चिंता मत करो रोहन यहां नहीं है तो क्या हुआ| किसी भी परेशानी को तुम तक पहुंचने से पहले मुझसे निपटना पड़ेगा|
सीमा बाहर आई तो देखा राधिका मुँह फुलाये बैठी थी|
“अब आप अन्दर जाकर जो चाहो मजाक करो| मैं आप दोनोंं को ड़िस्ट्रब नहीं करूंगी” ऐसा कहते हुए सीमा ने राधिका को भीतर धकेल दिया|
राधिका अन्दर आयी तो किशन ने मुस्कान के साथ उसका स्वागत किया|
राधिका ने उसकी मुस्कान का जवाब “बाए” बोलकर दिया|
“राधिका जी… फिर कब मिलेंगें” किशन ने कातर निगाहों से देखते हुए पूछा|
“मै आपसे फिर क्यों मिलूंगी” राधिका ने बड़ी नजाकत से जवाब दिया
किशन ने उसके इस सवाल का जवाब कुछ इस अन्दाज में दिया - राधिका जी आजगाली दोगे सह लूंगा, सैंड़िल मारोगे सह लूंगा,मगर आज आप ना कहोगे, तो सह ना सकूंगा|
“अच्छा जी… तो सैंड़ल खाने की हिम्मत अभी बाकी है,”
फिर मुस्कुराकर वह बोली देखेंगे…|
अब तो किशन को दर्द का बिल्कुल भी एहसास नहीं था|
अस्पताल के बिस्तर पर पड़े-पड़े वह ख्यालों से ही अपने मन को बहलाने लगबहुत जल्द होगा, उनसे सामना ऐ दिल,
होश हमें ना होगा, खुद संभलना ऐ दिल|
किशन राधिका से हुई अपनी पहली मुलाकात की यादों में खो गया|
कुछ दिन पहले जब किशन स्कूल से आ रहा था| राधिका भी उसके पीछे-पीछे स्कूल से आ रही थी| राधिका हरे रंग की टी-शर्ट और जींस में थी| वह चलते-चलते कोइ किताब पढ़ रही थी| यूं राधिका उसकी सुन्दरता की वजह से किशन को पहली नजर में ही भा गई थी| उसपे उसकी भूरी-भूरी आखों ने तो उसे घायल ही कर दिया था| राधिका किशन की इस हालत से बिल्कुल अनजान अपनी किताब पढ़नें में मग्न थी| उसे देखकर किशन ने सोचा “क्यों न इस किताबी कीड़े को परेशान किया जाए”| इसी इरादे से वह धीरे-धीरे चलने लगा| जैसे ही राधिका उसके नजदीक पहुंची, आकाश की ओर देखता हुआ वह एकदम रूक गया|
राधिका उससे टकरा गई जिससे उसके हाथ से किताब भी गिर गई|
“स…स…सॉरी” हड़बड़ाकर वह बोली ओर किताब उठाकर आगे बढ़ गई|
किशन के लिए तो यह सब एक सोची समझी शरारत थी| उसने तो बस एक बहाना ढूंंढ़ा था राधिका को परेशान करने का|
बस बहाना मिलते ही वह शुरू हो गयाहरे-हरे रामा| हरे-हरे रामा | रामा-रामा ये हरे-हरे,
अरे भाई ये जो हरे-हरे हैं ना, ये तो बस रामा-रामा|
न चलें ये देखकर इधर-उधर,
न जाने है इनका ध्यान किधर,
खेलें हमसे टक्कर-टक्कर,
और ये खेल भी तो बस रामा-रामा|
अरे भाई ये जो हरे-हरे हैं ना, ये तो बस रामा-रामा|
जितनी हसीन - उतनी ही जालिम,
जुल्म करके ये हम पर हँस ते हैं,
यूं जालिम लाखों है मगर,
ये भूरी आँखे है ना, ये तो बस रामा-रामा
हरे-हरे रामा| हरे-हरे रामा | रामा-रामा ये हरे-हरे,
अरे भाई ये जो हरे-हरे हैं ना, ये तो बस रामा-रामा|
राधिका कुछ तेजी से चलने लगी, मगर साथ ही साथ वह किशन की हरकतों पर थोड़ा मुस्कुरा भी रही थी| उसकी इस मुस्कान ने किशन का हौंसला बढ़ा दिया| शायद उसकी बातें राधिका को अच्छी लग रही हो यह सोचकर वह फिर शुरू हो गया -एक तो तुम्हारी, स्माईल प्यारी,
उस पर ये आखें, हाये कजरारी|
जुल्फें झटक गई,
थोड़ी मटक गई,दिल में खटक गई,
कुड़ी कुवांरी,
एक तो तुम्हारी, स्माईल प्यारी,
उस पर ये आखें, हाये कजरारी|
नित सवेरे,
दर्शन हों तेरे,
सुन प्रभु मेरे,
विनती करता पुजारी,
एक तो तुम्हारी, स्माईल प्यारी,
उस पर ये आखें, हाये कजरारी|
राधिका को तंग करता हुआ किशन उसके साथ-साथ चलता रहा| जब किशन अपने मोहल्ले के नजदीक पहुंच गया तो उसने अपनी बकवास बंद कर दी|
“Excuse me Miss राह चलते हुए पढ़ना ठीक नहीं है,” किशन ने बात शुरू करते हुए कहा
“ठीक तो राह चलती लड़किया छेड़ना भी नहीं है,” राधिका ने सपाट शब्दों में कहा|
“मैने तो बस आपका ध्यान किताब से हटाने के लिए मजाक किया था… जरा सोचिये अगर आप मेरी बजाय किसी ट्रक से टकरा जाती तो”
“आपकी बजाय ट्रक होता तब भी कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ता| आप भी कोइ छोटी बला नहीं| मेरे हिसाब से आप हाथीं के मुकाबले थोड़े से पतले हो| इसलिए आपको कमजोर हाथी भी कहा जा सकता है,” |
खुद को कमजोर हाथी कहे जाने पर किशन को गुस्सा आया ओर अपने सीने से लेकर पेट तक हाथ फिराते हुए बोला “ऐ हैलो… जरा ईधर देखो ये सरफेश इंगलैंड़ की तेज पिचों की तरह एकदम फ्लैट है,”
“आप मजाक बर्दास्त नहीं कर सकते तो किसी के साथ मजाक किया भी मत करो” राधिका ने भी उसके रूखेपन का जवाब कड़ककर दिया और वह आगे बढ़ गई|
“स्स्स्स… सॉरी मैड़म… मुझे क्या पता था आप मजाक कर रहे हो,”
“सुनिये मिस्टर आपकी हरकतों को देखते हुए तो मुझे आपको नहीं बताना चाहिए लेकिन अगर आपकी आँख खराब हो गई तो आप और भी बुरे दिखेंगे| इसलिए मैं आपको बता रही हूँ आपकी आँख के पास कुछ कचरा लगा है,”
किशन ने तुरन्त रूमाल से अपनी आँख साफ की ओर कहा “थैंक्स ड़ियर”
“थैंक्स किस लिए” राधिका ने चेहरे पर एक शरारती हँसी के साथ पूछा
“आपने मेरी आँख में कचरा जाने से बचा लिया उसके लिए” किशन राधिका के इस प्रकार हंसने को अब तक समझ न सका था|
“आपके रूमाल पर कुछ लगा क्या… नहीं न, क्योंकी वहां कुछ था ही नहीं”
अब किशन समझा कि राधिका उससे रास्तेभर की परेशानी का बदला ले रही है|
“आप काफी दिलचस्प बातें करते होे लगता है हमारी खूब जमेगी … मुझसे दोस्ती करेंगी ”
“सरी अब मैं बच्चों के साथ नहीं खेलती” राधिका ने जवाब दिया और आगे बढ़ गई|
किशन बेवकूफ सा बना वहीं खड़ा रह गया और मन ही मन वह सोचने लगा “अजीब लड़की है किसी बात का सीधा जवाब ही नहीं देती”|
राधिका एक बात कहूं आप देखने में तो आवारा नहीं लगतेलड़कियों को घूरने से आपको क्या मिल जाता है| आपकी ये मानसिक विक्लांगता शारीरिक विक्लांगता की अपेक्षा ज्यादा खतरनाक है इस स्थिति से जल्दी से जल्दी बाहर निकलना आप के लिए बेहतर है| किशन कुछ न कह सका बस सिर झुका लिया| उसे लगा कि वह ठीक कह रही है| किशन के मन में उसके प्रति भावनाए बदल चुकी थी अब वहा आदर और शिष्टाचार ने स्थान ले लिया|
किशन अपनी हर उलझन के लिए रोहन से सलाह लिया करता था| शाम को स्कूल ग्राऊंड़ में मिलने पर राधिका के बारे में भी उसने रोहन को बताया|
“भाई आज एक लड़की मिली वह मेरी शायरी सुनकर बहुत खुश थी| मैं उससे दोस्ती करना चाहता हूंं और शायद वह भी मुझसे… मगर मुझे समझ नहीं आता बात को आगे कैसे बढ़ाऊं|
किशन की बात सुनकर सुझाव देने की बजाये रोहन हँसने लगा “क्या कहा उसे तेरी शायरी … तेरी शायरी सुनकर भी वो खुश थी और तुझसे दोस्ती करना चाहती है,”
“हां भाई ”
“मेरे भाई वो बेचारी कोइ बहरी होगी”|
“भाई साहब न तो वह कोइ बेचारी है और न ही बहरी” किशन ने कुछ खीझकर कहा|
“अच्छा… वैसे पूछ सकता हूँ तुझे किस बात से लगा कि वह तुमसे दोस्ती करना चाहती है,”
“क्योंकि वह बार-बार मुस्कुरा रही थी” किशन का चेहरा यह बताते हुए खिल उठा|
“शायद वो तेरी शायरी पर हंसी होगी यकैसे समझाऊं, वो तुझे देखकर क्यों मुस्कुराया करती है,
अरे बावले, शुरू-शुरू में लड़की ऐसे ही लुभाया करती है|
रोहन की व्यंगय भरी हंसी सुनकर किशन उदास होकर बोला— क्या यार तू तो जानता है एक आप ही हो जिसे मैं अपने मन की बात बता देता हूँ और अब आप भी मेरा मजाक बना रहे हो|
“सॉरी यार अब मजाक नहीं करूंगा ओके… चल अब ये बता मैं तेरे लिए क्या कर सकता हूंं|मेरे ही कत्ल के लिए हो जाए उम्र कैद उनको,
वरना न जाने कितने और बेमौत मारें जाएगंे|
“वो सब तो ठीक है मगर तू मुझसे क्या चाहता है| ”
“सुझाव……अब मैं क्या करू | „
“ओके… सबसे पहले तू उसकेे बारे में जानने की कोशिश कर जैसे उसका नाम कहां रहती है और उसकी पसंद नापसंद… वगैरा-वगैरा”|
“थैंक्स भाई…” किशन ने कहा
“थैंक्स किस लिए यार… प्रेम कहानियों को बनाना व बचाना महज प्रेमियों के हाथ में नहींं होता, हर प्रेम कहानी में एक युग के सपने गुथे होते हैं जिनको हकीकत में बदलने के लिये बहुत से लोगों का योगदान चाहिए होता है|
“अच्छा भाई मैं समझ गया मुझे क्या करना है,” किशन खुशी में उछलता हुआ घर चला गया|
अगले दिन किशन उसी रास्ते पर राधिका का इन्तजार करने लगा|
आपकी राह में बैठे, आपके एक दीदार को तरसें,
अब तो आजा रे कयामत, हमे इन्तजार है कब से|
कुछ देर बाद उसे राधिका सामने से आती हुई दिखाइ दी| रोहन के बताए अनुसार ही किशन ने उससे नाम जानने की कोशिश की
मेरा ये मन सवालों का एक सागर है,
अक्सर आपके नाम की एक लहर उठती है|
लेकिन राधिका ने उससे बात करने से इन्कार कर दिया और वह आगे बढ़ गई| अब जब कभी भी उनका सामना होता तो किशन उसको शायरी के जरिये कुछ न कुछ बोलता रहता थाबड़ा गुरूर है उनको, अभी दिल न देने पर,हम भी इतनी आसानी से न मानेंगे मगर|
“माना वो बड़े पत्थर दिल होंगे, मगर यारो,आग हम मे भी वो नहीं, जो बस मोम पिघलाये|
परन्तु राधिका पर उसकी किसी बात का कोइ असर नहीं हुआ और जब 2-4 मुलाकातों के बाद भी राधिका ने उससे बात नहीं की तब किशन ने भी उसे तंग करना बंद कर दिया|
साबित आप भी करना, और कोशिश मैं भी करूंगा,
क्या था जो मुझे न मिला, कुछ था जो आपने खोया|
इसके बाद भी कई बार दोनोंं का सामना हुआ था मगर दोनों ही चुपचाप अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाते| उसके बाद राधिका से किशन की बात आज अस्पताल में हुइ थी| खुशी में पागल अपने मन में लड़ड़ू फोडते हुए वह सो गया|
किशन को अस्पताल से छुट्टी मिल गई मगर अभी वह चलने फिरने के लायक नहीं था| इसलिए अपने घर पर ही बिस्तर में पड़े-पड़े हर पल बस राधिका को याद करता रहँसे भी आपकी यादों में, याद करके आपको रोए भी हम,
याद करने को जागे तो ख्वाबों में मिलने को सोए भी हम|
कुछ देर बाद श्रीहरिनारायण अन्दर आए| उन्होने बताया बेटा जब तुम अस्पताल में भर्ती थे, तब मैं अपने मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ प्रदीप और संजय के घर गया था| उनके साथ अपना समझौता हो गया है‚ इसलिए अब इस बारे में फिक्र करने की कोइ जरूरत नहीं है,” |
उसे समझाते हुए श्रीहरिनारायण ने कहा— बेटा अब तुम भी अपने मन में उनके लिए किसी भी प्रकार से वैर भाव मत रखना| झगड़ा परेशानियों के अलावा किसी को कुछ नहीं देता शास्त्रों में लिखा है शक्तिशाली वही होता है जो अपने गुस्से को काबू कर ले, ओर क्षमता होते हुए भी बदला लेने की बजाये झगड़ा सुलझाने की सोचे|
किशन ने श्रीहरिनारायण के फैंसले पर रजामंदी जताते हुए कहा “बाबू जी आपने जो कर दिया सो ठीक है… मैं समझ गया हूंं शब्दों की मार तलवार के वार से भी ज्यादा खतरनाक होती है| मैने संजय को मारते वक्त उसे गालियां दी जिसकी सजा मुझे मिली| लेकिन अब मेरे मन में किसी के लिए वैर नहीं है… रही बात इन जख्मों की तो ये हफ्ते भर में ठीक हो जाएगें|
श्रीहरिनारायण के जाने के बाद किशन ने मन ही मन भगवान का शुक्रिया अदा किया ओर वह फिर से सो गया|
अचानक किशन की आखें खुल गई, उसे लगा जैसे उसने राधिका की आवाज सुनी है| फिर सोचा शायद यह उसका वहम होगा मगर दोबारा उसे वही आवज सुनाई दी| तब उसेे यकीन हो गया कि राधिका उससे मिलने आई है“दिल बड़े जोर से धड़का, बहुत डर लग रहा है मुझे अपने ही घर परजो तीर–ऐ–नजर से करते हैं कत्ल, वो आये हैं मेरे घर महमान बनकर|
किशन के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी| वह इसे राधिका के सामने जाहिर नहीं करना चाहता था| इसलिए वह जानबूझकर आंखें बंद करके सोने का नाटक करने लगा|
राधिका किशन की माता सोनिया देवी के साथ अन्दर आई|
“इसकी तो मौज हो गई बैठे-बैठे खाने को मिल जाता है न पढ़ता है, न कुछ काम धंधा करता है,” सोनिया देवी ने बड़बड़ाते हुए उसे जगाया|
“आंटी जी आप इनकी शादी करा दो… जिम्मेदारी पड़ेगी तो अपने आप ही काम करने लगेंगे” सोनिया देवी की बात में बात मिलाते हुए राधिका ने कहा”|
“हाँ माँ यही सही रहेगा… आप मेरी शादी करवा दो फिर हम दोनों बैठे खाएंगे” किशन ने मस्ती करते हुए कहा|
सोनिया देवी बड़बड़ाती हुइ बाहर चली गई|
“अगर आपकी शादी कर दी जाये तो आपको कोइ आपत्ति नहीं” राधिका ने गंभीर होकर पूछा
“आपत्ति क्यों| … मैं समझा नहीं”|
“मेरा मतलब लड़का हो या लड़की, जिंदगी में कुछ न कुछ लक्ष्य तो होना ही चाहिए| आजकल तो सभी बोलते है पहले अपने पैरों पर खड़े होंगे‚ तब शादी के बारे में सोचेंगे‚ और मेरे हिसाब से तो यही सोच सही भक्योंकि कुछ कर दिखाने की ख्वाहिश ही तो मनुष्य जाति के विकास की नींव है|”
राधिका के सवाल का जवाब उसने कुछ यूं दिय“मन के मन्दिर में सजाने के लिए,
कब से मैं अपना भगवान ढ़ूंढ़ता हू|
राधिका जी मेरे गुरू जी कहते हयूं कोइ काम नहीं है तो महोब्बत कर लो,
आजकल इसका भी स्कोप अच्छा है|
और रही बात कुछ कर दिखाने की तो मुझे पता है मुझे क्या करना है
“क्या बनना चाहते हैं आप| ”
“मेरा लक्ष्य तो, लेखन में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाना है,” किशन ने राधिका को प्रभावित करने के लिए कुछ ज्यादा ही विश्वास के साथ बताया|
“लेखक… अच्छा जी तो ये भी बता दीजिये क्या लिखा करेंगे आप” हंसते हुए राधिका ने पूछा
“हूँ… शायरी व कहानियां और मेरी पहली कहानी का नाम होगा “हमारा प्यारा भौंपू”
“अरे वाह कितना प्यारा नाम है… वैसे आप लिखने के बारे में क्या जानते हैं| ”
“क्या जानते हैं से मतलब…| ”
“मतलब ये कि शायरी लिखने के अपने कुछ नियम होते हैंै आपने इसकी शिक्षा कहांं से ली|
“राधिका जी यही तो मेरी परेशानी है मैं इसके नियमों के बारे में कुछ नहीं जानता और उससे भी बड़ी परेशानी ये है कोइ मुझे सिखाने को राजी नहीं होता”|
“मतलब… कौन सिखाने को राजी नहीं होता क्या आपने कभी किसी से सीखना चाहा|”
“हाँ एक मौलवी जी से सीखना चाहा था मगर उन्होने मुझे बस दो दिन के लिए ही अपना शिष्य बनाया| उसके बाद उन्होने मुझे पढ़ाने से मना कर दिया”
“मगर मौलवी साहब ऐसा क्यों करेंगे जरूर आपने ही कुछ गलती की होगी”|
“हुआ यूं के मौलवी साहब ने मुझे उर्दू शायरी का इतिहास बताया…”
“क्या है उर्दू शायरी का इतिहास” बीच में टोकते हुए राधिका ने उत्सुकता से पूछा|
“राधिका जी मौलवी साहब ने बताया था‚ उर्दू शायरी के जन्म दाता नजीर अकबराबादी साहब को माना जाता है| जिनका असली नाम “वली मुहम्मद” था| वह 18वीं शताब्दी के पहले भारतीय लेखक थे जिन्होने उर्दू में गजल और नज्में लिखी‚ जिनमे उन्होने अपना नाम “नजीर” लिखा था| उनके पिता का नाम “मुहम्मद फारूख” था| उनकी माता जी “नवाब सुलतान खान” की बेटी थी‚ जो आगरा फोर्ट के गवर्नर थे| उस समय अकबर आगरा का शासक था इसलिए आगरा शहर अकबराबाद के नाम से जाना जाता था|
“नजीर" साहब की जन्मतिथि की सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है मगर खगोलशास्त्री मानते हैं उनका जन्म सन, 1735 में दिल्ली में हुआ था जो उस वक्त देहली के नाम से जानी जाती थी| इत्तेफाक से उनके जन्म के बाद अजीतमें मुगल साम्राज्य का विरोध शुरू हो गया| सन, 1739 में “नादीर शाह” ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया और “मुहम्मद शाह रंगीला” गिरफ्तार कर लिए गए| उस वक्त “नजीर” साहब सिर्फ 4 साल के थे| हालांकि बाद में “मुहम्मद शाह रंगीला” को रिहा कर दिया गया मगर उस समय दिल्ली में अनगिनत लोग क्रूरता पूर्वक मार दिये गये थे| इस दुर्घटना का भय अब भी लोगों के दिमाग में ताजा था‚ जब “अहमद शाह अब्दाली” ने 1757 में दिल्ली पर आक्रमण किया‚ जिसके कारण बहुत से लोग दिल्ली छोड़कर दूसरे सुरक्षित शहरों में चले गये| इसी दौरान “नजीर” साहब भी अपनी माँ और दादी के साथ दिल्ली छोड़कर अकबराबाद आ गये|
राधिका जी कहा जाता है “नजीर” साहब ने 200,000 कवितायें लिखी मगर दुर्भाग्य से उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया और आज सिर्फ 600 कविताओं की प्रिंटिड़ कॉपी ही मौजूद हैं| आज तक किसी भी उर्दू लेखक ने उर्दू के उतने शब्द इस्तेमाल नहीं किए जितने “नजीर” साहब ने किये| उनकी कविताओं की खासियत यह थी कि उनकी भाषा बहुत सरल होती थी जो लोगों में बहुत पसन्द की जाती थी| उनकी “बंजारा नामा”‚ “कलयुग नहीं करयुग है ये”‚ “आदमी नामा” जैसी कुछ यादगार कविताएं आज भी उपलब्ध है|
“नजीर” साहब अपनी नज्मों के लिए मशहूर थे| उन्होनें धर्म और त्योहारों के लिए भी नज्में लिखी| उदाहरण के लिए “दिवाली”‚ “होली”‚ “शब ए बारात” मौजूद है| इसके अलावा ‘पैसा’‚ “रूपया”‚ “रोटियं”‚ “आटा दाल”‚ “पंखा” और “कंकड़ी” पर भी नज्में लिखी| उन्होने इन्सानी जीवन के बारे में भी नज्मे लिखी जैसे “मुफलिसी” और “कोहरीनामा”| उन्होने अपनी नज्मों में जीवन के हर पहलु को दर्शाया|
सन 1830 में 98 साल की उम्र में उनका निधन हो गया”|
बस इसके बाद मौलवी साहब ने मुझे अपना शिष्य बनाने से इन्कार कर दिया|
“मगर मौलवी साहब ने आपको उर्दू सिखाने से क्यों मना किया” राधिका ने हैरानी से पूछा|
जब मौलवी साहब ने मुझे उर्दू शायरी के जन्मदाता “नजीर अकबराबादी” साहब का इतिहास बताया तो मैने भी उनको “हरियाणवी रागनी” के जन्मदाता हरियाणा के सूर्य कवि “श्री लख्मीचन्द जी” का इतिहास सुना दिया| बस यही मेरी गलती थी कि जब-जब मौलवी साहब हमें उर्दू के बारे में कुछ बताते थे‚ तब-तब मुझे हरियाणवी में उसका कोई उदाहरण याद आ जाता और मैं उसे उनको बता देता था| बस इसी वजह से उन्होने मुझे उर्दू सिखाने से मना कर दिया”|
“मगर यह तो कोइ ऐसी बात नहीं जिससे मौलवी जी आपको उर्दू सिखाने से मना करे”|
यकीन मानो राधिका जी ऐसा ही हुआ था| मुझे आज भी याद है‚ तीसरे दिन जब मैं मौलवी साहब के पास गया तो वे हाथ जोड़कर बोले “बेटा मुझपर एक कॄपा कर दो”|
मौलवी साहब हाथ जोड़कर खड़े थे‚ तो मैने भी हाथ जोड़कर कहा “आप मुझसे बड़े हैं और मेरे गुरू हैं‚ इसलिए आप मुझे आदेश दीजिये मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ | |
उन्होने मुझे वापिस चले जाने को कहा और मैं वापिस चला आया”|
“मगर तुमने इसका कारण क्यों नहीं पूछा”|
“पूछा था… उन्होने बताया मेरे आने के बाद जितने भी बच्चे उनसे उर्दू सीखने आए‚ मौलवी साहब उनसे उर्दू की बजाये हरियाणवी में बात करने लगे| साथ ही मेरे साथ वाले बच्चे भी उर्दू से ज्यादा हरियाणवी बोलने लगे थे| इसलिए कोइ भी मेरे साथ पढ़ना नहीं चाहता था”|
“ओहो तो ये बात थी| तुमने उर्दू सीखने के बजाये बाकी बच्चों को हरियाणवी सिखा कर आते थे”| “वैसे ये मौलवी उर्दू कहं सिखाते है| जिन्होने आपको दो ही दिन में पहचान लिया| बहुत ही समझदार इन्सान होंगें‚ प्लीज मुझे उनका पता बताओ मैं भी उर्दू सीखना चाहती हूँ “|
हालांकि राधिका की बातों में किशन ने कोइ गंभीरता महसूस नहीं की मगर फिर भी उसने उसे मौलवी साहब का पता बता दिया–“तलाई बाजार में घुसते ही रेलवे दरवाजे के बिल्कुल सामने”
“ओह नो… इसका मतलब अब तक आप मेरे सामने मेरे गुरू की बुराई कर रहे थे”|
“क्या मतलब आप मौलवी साहब से उर्दू सीख रही हैं” किशन ने बड़ी उत्सुकता से पूछा
“जी हाँ … मै कुरूक्षेत्रा युनिवर्सिटी से उर्दू मे एक वर्ष का कोर्स कर रही हूँ ‚ और मै मौलवी साहब से उर्दू की कोचिंग ले रही हूँ ”
“राधिका जी आपसे एक निवेदन है‚ मौलवी साहब जो भी आपको सीखाएं वही आप मुझे सिखा दिया करें‚ मैं आपको ही अपना गुरू मान लूंगा”|
“मगर एक शर्त है आप मुझे हरियाणवी किस्से नहीं सुनायेंगें” राधिका ने हंसते हुए कहा|
फिर दोनों इधर-उधर की बातें करते रहे और अपने को ताके जाने का ज्ञान होने के बाद, वे एक दूसरे से नजरें नहींं मिला पा रहे थे, राधिका छत को बेेवजह घूर रही थी, और खुद को ठीक से ताकने का मौका दे रही थीं| किशन यह सोचकर कि अगर वह जरा देर के लिए भी खामोश हुआ तो राधिका चली जायेगी| बड़े अपनेपन के साथ वह धाराप्रवाह ढ़ंग से उससे बतियाने में जुट गया| साथ ही उसे रोहन की बात याद आई— एक बार रोहन नेकिसी लड़की से दोस्ती करनी हो तो चाहे वो देखने में कैसी भी हो अगर आप उसकी तारीफ करोगेे तो वो खुश हो जायेगी| बरबस ही वह बोल पड“हजारो में नहीं कहूंगा मैं उनको, वो इस जहान में ही एक हैं,
सूरत से हसीन भी है मेरा दोस्त, ओर वो दिल की भी नेक है|
हल्की मुस्कुराहट के साथ राधिका ने कहा— “लगता है आप को कोइ गहरा सदमा लगा है वरना ऐसे अचानक ये क्या सुझा| ”|
“राधिका जी अचानक नहीं… न जाने कब से दिल के किसी कोने में पड़ा होगा– बस आज ये जुबान पर कैसे आया‚ ये मैं भी नहीं जानता”|
“क्या आपको शायरी पसंद है,” किशन ने बात आगे बढ़ाने के इरादे से पूछा|
“जी पसंद तो है मगर हल्की–फुल्की सी जिसे समझना आसान हो”|
किशन ने मन ही मन सोच लिया अब से जब तक राधिका उसके सामने होगी “वह खुद को गालिब साहब का भतीजा समझेगा”|
“राधिका जी कुछ तो आपको भी सुनाना पड़ेगाआप ही बताओ कैसे छिपाऊ मैं जमाने से,
हर सांस के साथ आपका नाम निकलता है|
“वाह… राधिका जी क्या बात है प्लीज ऐसा ही एक ओर…”|
“सॉरी सर बस यही याद था‚ ये भी आज क्लास में सुनाया था किसी ने”
“तो क्या… आप अभी मौलवी साहब के पास से आ रही हैं|
“जी हां मैं वहीं से आ रही हू ”|
“राधिका जी प्लीज मुझे भी बताओ आज क्या सिखाया मौलवी जी ने”
“सॉरी सर बहुत देर हो गई है‚ मुझे जाना होगा प्लीज आप बुरा मत मानना मैं वादा करती हू मैं कल आऊगी और अब तक जो भी मौलवी जी ने मुझे सिखाया है‚ वो मैं आपको बता दूंगी… लेकिन अभी मुझे जाना होगा”|
“चलिए कोइ बात नहीं… कल सही मगर जाने से पहले आपको कुछ सुनाना पड़ेगा”|
“ओह प्लीज… मुझे अभी कुछ याद नहीं है,”
“ओके नो प्रोब्लम अभी मैं सुना देता हूँ ‚ आप फिर कभी सुना देना और वह शुरू हो गया—मेरी जात, मेरा रंग, मेरा नाम न पूछ मुझसे,
मेरा घर्म, मेरे उसूल, मेरा इमान न पूछ मुझसे,
प्यार हमने भी किया है, किसी को जान से ज्यादा,
क्या मिला, फायदा या हुआ नुकसान न पूछ मुझसे|
“वाह… वाह… वाह…”
राधिका जी एक ओर जरा गौर फरमाइये
फिर मेरे अरमान मचल गये,
आसू मेरी आखों में आ गये,
दिन, महीने नहीं, वर्ष बीत गये,
छाले भी मेरे हाथों में पड़ गये,
मगर अभी अधूरा है मेरा प्रेम पत्र|
हर सांस का एक सलाम लिखा,
ठंड़ी आहों का एक पैगाम लिखा,दिल‚ जान‚ जिगर और गुर्दा,
जिसका भी जो था ब्यान लिखा,
मगर अभी अधूरा है मेरा प्रेम पत्र|
“वाह…वाह… क्या बात है जी मगर अब मैं जाऊं” राधिका ने कहा और वह जल्दी से दरवाजे की तरफ बढ़ गई”
“राधिका जी एक ओर प्लीज… बिल्कुल नया है—कैसे आयेगा ओर क्या आयेगा मेरे खत का जवाब
मेरी लिखाइ मैं खुद नहीं पढ़ पाता लिखने के बाद
राधिका मुस्कुराई और रूककर उसे हैरानी से देखते हुए बोली—“जनाब सच में आप नोरमल तो नहीं है ये मैं आपके सिर्फ इस शेर के लिए नहीं बोल रही हूँ बल्कि आपकी ज्यादातर बातें समझनी थोड़ी मुश्किल है,”
राधिका जी…इतना आसान नहीं, समझना किसी दीवाने की बातो को,
अगर समझना चाहते हो, तो दीवाने बनकर आप देखो|
“संभल जाइये जनाब आप पागलपन की हद से ज्यादा दूर नहीं हैं,”
किशन ने भी राधिका की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा— राधिका जी आप सही बोल रही हैं
मैने भी सुना था, इश्क में लोग अक्सर दीवाने हो जाते हैं,
मगर ये न सुना था, As a पागल मशहूर भी हो जाते हैं|
“किशन जी आपको ये ख्याल कहां से आते हैं‚ क्या बात है कहीं किसी से प्यार-व्यार तो नहीं हो गया” राधिका ने शरारती हंसी के साथ पूछा|
किशन चाहता था कि अब वह एक बार तो सीधे शब्दों में इजहार कर दे मगर फिर सोचा अगर वह अभी कहेगा तो क्या पता राधिका शर्माकर या नाराज होने का नाटक करके वहां से चली जाए| वह अभी राधिका के साथ कुछ वक्त बिताना चाहता था इसलिए उसने बात को थोड़ा बदल दिया‚ “राधिका जी-मेरे लिए तो कोइ मतलब नहीं इन सब बातों का,
कभी ये मेरा मजाक बनाती हैं ओर कभी मैं इनका|
“मैं तो समझती थी अभी कुछ कसर बाकी होगी मगर नहीं… आप तो बिल्कुल पागल हो चुके हो, अच्छा किशन जी एक बात बताओ प्यार में पागल होने के बाद कैसा महसूस होता है… क्या बहुत दर्द होता है ”|
किशन ने हँसते हुए जवाब दिया…
यूं अन्दाजे न लगाओ किसी आशिक के दर्द के,
उठो, हिम्मत करो और प्यार करके देखो किसी से|
राधिका उठ गई… “न बाबा न आपकी हालत देखकर ही मुझे तो डर लग रहा है| अच्छा जी मैं चलती हूँ और आप किसी अच्छे ड़ाक्टर से अपना इलाज करवालो आपके लिए बेहतर होगा”
“ओके बाए कल मिलेंगे” राधिका ने जाते हुए कहा
“मै इन्तजार करूंगा” मुस्कुराते हुए किशन ने कहा
“तो फिर मैं नहीं आऊंगी” नजाकत से वह बोलीहमे तो बस इन्तजार करना है आपका कयामत तक,
आप आए तो कयामत होगी, न आए तो कयामत होगी|
राधिका मुस्कुराई ओर “बाए” बोलकर खुशी में झूमती हुई बाहर चली गई|
किशन बहुत खुश था| राधिका के साथ अपने जीवन के सुनहरे पलांे के बारे में सोचते-सोचते वह सो गया|
मगर कुछ देर बाद वह दर्द के मारे चीखते हुए जाग उठा|
एक आदमी जिसकी उम्र लगभग 55-60 वर्ष होगी‚ उस पर अंधाधुंध लाठीयां बरसा रहा है| साथ ही साथ वह बोल रहा था आज मैं बताता हूँ तुझे गुंड़ागर्दी कैसे करते हैं| जोर-जोर से चिल्लाता हुआ किशन अपने बाबू जी को पुकारने लगा| चीख पुकार सुनकर श्रीहरिनारायण अन्दर आए| उस आदमी के हाथ से ड़ंड़ा छीन कर श्रीहरिनारायण उसे कमरे से बाहर ले गये| सारा मोहल्ला इक्कठा हो गया| पूछताछ के बाद पता चला कि वह संजय का पिता सुरेन्द्र पाल सिंह था| अब सारी बात श्रीहरिनारायण की समझ में आ गइ| गुस्से के साथ सुरेन्द्र पाल सिंह को किशन के कमरे में ले जाकर बोले— आपको अपने बेटे से जितना प्यार है हमे भी हमारा बेटा उतना ही प्यारा है| गलती आपके बेटे की थी किसी की लड़की को छेड़ेगा तो उसको मार ही पड़ेगी… मेरे बेटे का ये हाल बनाने वाले कोइ ओर नहीं बल्कि आपके बेटे संजय के दोस्त है| हम शान्ति पसंद लोग हझगड़े को सुलझाने के लिए समझौता करना किसी पवित्र ग्रंथ को पढ़ने के सम मानते है| लेकिन शायद आप लोग इसे हमारी कमजोरी समझतेे हैं| इसलिए अब मैं आपको सबक सिखाकर रहूंंगा| मैं अभी थाने जाकर आप पर घर में घुसकर मेरे बेटे पर जानलेवा हमला करने की रिपोर्ट लिखवाता हूँ |
परन्तु मोहल्ले के लोगों ने बीच में आकर श्रीहरिनारायण और सुरेन्द्र पाल सिंह को समझा बुझाकर एक बार फिर उनका समझौता करवा दिया|
अगले दिन राधिका किशन से मिलने आई “किशन जी कैसे हो| ”
“अजी जिस हाल में आप छोड़कर गये थे वैसा ही है और शायद मरते दम तक ऐसा ही रहने वाला है,” |
“चु…चु…चच्च्च्च… क्या थोड़ा–सा भी आराम नहीं है,” राधिका ने तरस दिखाते हुए कहा|
“क्या बताऊं राधिका जीएक बार थोड़ा प्यार से वो जिसे देख ले है,मरते दम तक फिर सुकंून उसे न मिले है|
किशन की नजरों के भाव को समझकर राधिका नजरे झुकाकर बैठ गई| अचानक उसकी नजर किशन के हाथ की सूजन पर गई|
उसने पूछा—“किशन जी कल तो आपके हाथ ठीक थे मगर आज हाथों पर भी सूजन है,” |
“अजी छोड़िये इन बातों को कल आपने वादा किया था‚ कि मौलवी साहब ने आपको अब तक जो भी सिखाया है वह आप मुझे बताओगे” किशन ने बात बदलते हुए कहा|
“कहा तो था… मगर आज मैने मौलवी साहब से इस बारे में बात की थी तो उन्होने कहा मैं आपको सिर्फ इतना बताऊं किशायरी इन्सानी जज्बात का वो खूबसूरत इजहार है‚ जो पढ़ने वाले या सुनने वाले के मन को छू जाये… बस इससे ज्यादा कुछ भी जानना आपके लिए अभी न जरूरी है और न आपके हित में ह,”|
“इससे ज्यादा जानना मेरे हित में क्यों नहींं| ” किशन ने हैरानी से पूछा
“मौलवी साहब का कहना है‚ नियमों के दायरे में रहकर तो आप शायद कभी कुछ न लिख सकें… अभी आप उस स्तर के लेखक नहीं है… सॉरी किशन जी ये शब्द मेरे नहीं बल्कि मौलवी साहब के थे| मैने तो आपको बस वो बताया जो मौलवी साहब ने मुझे बताने को कहा”|
“ओके… नो प्राब्लम यार… आप बताओ आपकी उर्दू की पढ़ाई कैसी चल रही है “
“बहुत अच्छी… अरे हां आज क्लास में मुस्दस का एक बहुत ही अच्छा उदाहरण सुनाया था, मैं आपको सुनाती हू
न किसी को परेशान करना,
न दिल दुखा ऐ दोस्त किसी का,
कमजोर की मदद को रहो तैयार,
मिटा दो नफरत, सबसे करो प्यार,
कुछ है तो धर्म भी बस यही है,
और इन्सानियत भी है नाम इसी का|
“गुरू देव आप इजाजत दंे तो कुछ मैं भी सुनाऊंं“ किशन ने शिष्य के अन्दाज में इजाजत ली|
“अवश्य सुनाओ मगर प्लीज मजाक मत करना”|
“अरे नहीं सुनो तो आपको अच्छा लगेगा”|
“ओके-ओके सुनाओ वैसे भी अब मेरे पास सुनाने के लिए कुछ नहीं बचा है,”
राधिका जी अर्ज किया है…
ना पुछे… कोइ हमसे… क्या-क्या हम इस दिल में… अरमान लिये बैठे हैं|
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
जान से ज्यादा तुमको यार
हर पल किया है मैंने प्यार
मासूम से मेरे उस दिल के
टुकड़े तूने किये हजार जिस दिल में.. तुमको हम … मेरी जान लिये बैठे हैं|
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
हंस के आँख सी मार गयी
लूट के चैन - करार गयी
क़त्ल कर गयी रे जालिम
कर बिन चाकू-तलवार गयी
अजी हम तो .. सब अपना... हरे राम किए बैठे हैं
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
बदले एक बदले लिए हजार
गजब थी वो सौदागर यार
मुफ्त में लूट लिया सब कुछ
ऐसा किया उसने व्यापार
ऊपर से... हम दिल ये .. ईनाम दिए बैठे हैं
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
तु कर ले लाख सितम हमपे
जो चाहे कर ले जुल्म हमपे
चाहे दे सारी उम्र का गम
इल्जाम न कोई होगा तुमपे
अजी हम तो… इनका भी… एहसान लिए बैठे हैं|
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
क्या पाना है क्या खोना है
सब मिट्टी है सब सोना है
जो चाहे जिसका हो जाये
हमको तो बस तेरा होना है
अजी हम तो… जीवन ही… तेरे नाम किए बैठे हैं|
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
क्या घबराना क्यूं है छुपाना
बोलकर लेकिन क्यूं है बताना
खुद ही देखो खुद ही समझो
क्या होता है जब हो दीवाना
अजी हम तो… जख्मों को… सरेआम लिये बैठे हैं|
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
ना घर है ना है घरवाली
ना बाहर कोइ बाहरवाली
सुनसान पड़ा घर-बार मेरा
यहां तक के दिल भी खाली
देखो फिर भी… बेवफा का… इल्जाम लिए बैठे हैं
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
समझ के दिलबर अपने को
सच कर दे मेरे सपने को
ली मन से मनको की माला
तेरे नाम की जपने को
अजी हम तो... .तुमको ही... भगवान किये बैठे हैं
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
तेरी-मेरी एक फोटू को
लाईक मिले बड़े हॉटू को
कहा तुझे है क्यूट बड़ी
और मुझे बताया मोटू स
राधे-कृष्ण.. कहे कोई... कोई सिया-राम कहे बैठे हैं
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
ना मिली वो तो भी क्या होगा
जी सकूँ मै खा के भी धोखा
फ़िक्र मुझे तो बस इतनी
ना जाने उसका क्या होगा
वो भी तो .. भई दिल में... सलमान लिये बैठे हैं
ना पुछे… कोइ हमसे… क्या-क्या हम इस दिल में… अरमान लिये बैठे हैं|
इश्क का तो कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
ना पुछे… कोइ हमसे…
ना पुछे… कोइ हमसे…
ना पुछे… कोइ हमसे
“राधिका जी सच-सच बताना कैसा लगा| ”
“बहुत जोर से लगा… ” राधिका ने चिड़ाते हुए जवाब दिया|
“अच्छा जी तो फिर आप ही सुना दो कुछ अच्छा सा”
“ठीक है बताओ किस बारे में सुनना पसंद करोगे आप”
“कुछ भी ऐसा जो मुझे लगे मेरे हाल जैसा है"
“किशन जी भला मुझे क्या मालूम आपका हाल कैसा है| उसके लिए तो पहले आपको ही बताना होगा, कि आपका हाल कैसा है,” राधिका के चेहरे पर शरारती हंसी थी|मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आता, न जाने मेरी हालत कैसी है,
कभी लगता है सब ठीक है, कभी लगता है कुछ भी ठीक नहीं|
“जब आपको ही नहीं पता तो मुझे भी क्या पता जनाब”
“राधिका जी मैं तो आपके सामने हूँ … कुछ अंदाजा लगाइये न”
एक नजर भरकर उसने किशन को देखा और एक शरारती हंसी के साथ उसने कहा “हम्म्म्म्म्… मुझे नहीं पता आप किसी दूजे से पूछ लिजिये”
“अजी कितनो से पूछूं
जो भी देखता है मुझे‚ रूककर कुछ सोचने लगता है,
मगर वो बोलता कुछ नहीं‚ न जाने मेरा हाल कैसा है|
“ठीक है... ठीक है अब बस कीजिये मैं सुनाती हूं”
“ये हुइ न कुछ बात… इरशाद”
क्या कहूं, कैसा नशा है मुझे उनकी दोस्ती का,
एक उसके सिवा, मुझे कोइ अपना नहीं लगता|
वाह… राधिका जी कसम से आपकी शायरी में एक कशिश है मेरी मानें तो आप लिखना शुरू कर दीजिये|
“बस-बस रहने दीजिये… मैं जानती हूँ मैं लिख सकती हूँ या नहीं‚ आप लिखते रहिये हम तो आपकी कहानियां पढकर ही खुश होंगें…” राधिका ने पलटवार करते हुए कहा|
यूं न मजाक बना ऐ दोस्त मेरा,
सब जानते हैं सच क्या होगा,
जिसे पढ़ना नहीं आता ठीक से,वो लिखता भी क्या घन्टा होगा|
“राधिका जी आप बुरा न मानें तो मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं ”
“मगर ऐसा क्या … पूछिये” थोड़ा रूककर राधिका ने कहा
“क्या आप किसी से प्यार करते हैं,”
“बस इतनी सी बात थी… अरे इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है हर कोइ किसी न किसी से प्यार करता हैं, मैं भी करती हूँ ”|
“किससे…” किशन ने जल्दी से पूछा
“मम्मी से दीदी से ड़ैड़ी से और… सैंड़ी से”|
किशन का दिल जोर से धड़क उठा… कहीं ऐसा तो नहीं जहां वह अपना नाम सुनना चाहता था राधिका की जिंदगी में वहां सैंड़ी का नाम आता हो| वह बैचैन हो उठा और पूछे बिना न रह सका “ये सैंड़ी कौन है| ”
“सैंड़ी… हमारे कुत्ते का नाम है,” |
किशन ने राहत की सांस ली| राधिका जी अपने परिवार के सदस्यों से तो सभी प्यार करते हैं मगर मेरा मतलब आपके जीवन साथी से था|
“उस प्यार का मतलब तो मैं आपको नहीं बता सकती मगर जहां तक बात मेरे जीवन साथी की है तो मैं बस ये सोचतीउसके सिवा न कभी कोइ मेरा होगा,
ओर मेरे सिवा न कभी वो हो किसी का|
“अब आप बताइये… आपके जीवन साथी के बारे मे या फिर कुछ अपने प्यार के बारे मे‚ क्या आपने जीवन मे किसी से प्यार किया है ” राधिका ने पूछा
“राधिका जी अगर कोइ ऐसा है जिसे किसी से प्यार नहीं है तो वह बस पत्थर हो सकता है… मेरी नजर में -
प्यार पागलपन है, प्यार जवानी है,
प्यार आग है, प्यार शीतल पानी है,
प्यार धरती है, प्यार ही आकाश है,
प्यार भरोसा है, प्यार एक विश्वास है|
“अजी आपकी परिभाषा ने तो पूरी सॄष्टि को ही प्यार में समेट दिया है मगर किशन जी हकीकत इससे बहुत अलग होती है,”
“राधिका जी प्यार के बारे मे मेरा जो नजरिया था‚ मैने बता दिया… मै जानता हूँ हर किसी का नजरिया एक जैसा नहीं होता‚ जैसे कि सेक्सपीयर साहब ने कहा है प्यार अंधा होता है जिसमे प्रेमीजन उन महान मूर्खताओं को ही नहीं देख पाते जिन्हे वे स्वयं करते हैं|
“हां… देखा सेक्सपीयर साहब ने प्रेमीजनो को मूर्ख कहा है,”राधिका ने चटकारा लेते हुए कहा|
“राधिका जी किसी भी बात को सही या गलत बनाने मे इन्सान के सोचने का नजरिया बहुत हद तक जिम्मेदार होता है‚ अब देखिये न आपने ध्यान दिया कि सेक्सपीयर साहब ने प्रेमीजनो को मूर्ख कहा‚ मगर मुझे इस बात ने ज्यादा प्रभावित किया कि उन्होने प्रेमीजनो की मूर्खताओं को भी महान बताया| वैसे भी किसी की खुशी में खुश और दु:ख में दुखी रहना ही प्यार है, अब इसे कोइ मूर्खता समझे तब भी प्यार एक पवित्र एहसास है|
“ओहो… लव गुरू रूको जरा प्यार की एक परिभाषा ये हैं कि प्यार एक धोखा है… क्योंकि हम जिसे जितना प्यार करते है वो हमे उतना ही दु:ख देता है ओर अपनो को दु:ख देना धोखा ही तो है और इसकी दूसरी परिभाषा ये है कि सच्चा प्यार हमेशा बर्बाद करता है|
“अरे… रे… आप तो गुस्सा हो गये… राधिका जी मैं आपसे पुरी तरह सहमत हूँ मैं भी मानता हूँ प्यार एक धोखा है… मगर बडा ही प्यारा सा … अजी प्यार तो जल की तरह शीतल है| जिस तरह किसी गर्म वस्तु को पानी में ड़ालने पर भले ही पानी कुछ देर के लिए गर्म हो जायेगा मगर आखिर में पानी उस गरम वस्तु को ठंड़ा कर देगा, ठीक उसी तरह सच्चा प्यार करने वाले धोखा देने वालो को भी दुआ ही देते हैं‚ और एक दिन उनका भी दिल जीत लेते हैं|
“अच्छा गुरू जी आप जीते मैं हारी‚ अब चुप हो जाओ— हे भगवान इनको कोइ कैसे सहेगी|
“अजी जिसे मुझसे प्यार होगा वो सहेगी और हँसकर सहेगी… क्योंकिकिसी की खुशी की खातिर मजबुर हो जाना भी प्यार है,”|
“तुम बिल्कुल पागल हो तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता… मैं तो जा रही हंंू ”|
“अरे राधिका जी किसी की खुशी की खातिर दूर हो जाना भी प्यार ही होता है,”
“Will u please shut up & please stop your Horse laugh|”
राधिका को परेशान देखकर किशन बहुत खुश था| इतना खुश कि वह राधिका के गुस्से को भी न देख सका| राधिका का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था| वह उठकर बाहर जाने लगी| किशन अब भी उसके गुस्से से अनजान हस रहा था| इससे राधिका का गुस्सा ओर ज्यादा भड़क गया| वह दरवाजे से बाहर चली गई| एकाएक वह दरवाजे पर आयी और एक कंकर किशन को दे मारी| दरवाजे में खड़ी-खड़ी वह उसे घूर रही थी| किशन अब भी हँस रहा था ओर मसकरी करने के मूढ़ में हाथ से कुछ फेंकने का इशारा करते हुए बोकुछ यूं झटका उसने हाथ को,
और कुछ यूं लगा मुझे,
जैसे मुझे कुछ लगा हो|
“राधिका को इतना गुस्सा आया कि उसने एक बार फिर किशन को मारना चाहा मगर उसने अपना हाथ बीच में ही रोक लिया‚ क्योंकि मारने के लिए उसके हाथ में कुछ भी नहीं था|
“राधिका जी आपके हाथ को जिसने रोका वह भी प्यार ही है,” ठहाका लगाकर हंसते हुए किशन ने कहा|
इतना सुनते ही राधिका ने अपनी सैंड़िल निकालकर जोर से किशन को दे मारी|
किशन को थोड़ी चोट लगी मगर फिर भी वह हँसकर बोला “राधिका जी किसी को सैंड़िल मारना भी प्यार हो सकता है,” |
गुस्से में राधिका अपनी सैंड़िल लेने अन्दर आई तथा सपाट शब्दो में बोली “मेरी सैंड़िल दो अब मुझे आपसे कोइ बात नहीं करनी… न ही आज के बाद मैं कभी आपसे मिलूंगी”|
अब किशन को उसके गुस्से का अंदाजा हुआ साथ ही उसे एहसास हुआ कि उसकी बकवास कुछ ज्यादा हो गई और अगर अभी उसने राधिका को नहीं मनाया तो फिर शायद वह कभी भी उससे नहीं मिलेगी|
“पहले आप मुस्कुराइये तब मैं आपकी सैंड़िल दूंगा राधिका जी मैं तो मजाक कर रहा था मुझे क्या पता था… प्लीज मुझे माफ कर दीजिये|”
“मै कब से… मुझे किसी का एक ही बात को बार-बार रटते रहना बिलकुल पसंद नहीं … मैने आपसे क्या पूछा था और आप बात को कहां ले गये|
“आप इस बार माफ कर दो… मै वादा करता हू अब कभी ऐसा नहीं करूंगा… अब मैं आपके सवाल का सीधा जवाब देता हंू… राधिकअगर न सोचे इन्सान सुख में जीने की,
तो खुश रह सकता है हाल में कैसे भी|
“आप कुछ सोचो या न सोचो… बस मेरी सैंड़िल दे दो मुझे देर हो रही है,”
“मगर आप मुझसे नाराज तो नहीं हैं न”
“नहीं… बस… अब मुझे मेरी सैंड़िल दे दो”
“मगर राधिका जी आपकी सैंड़िल मेरे पास कैसे आई “हल्की मुस्कान के साथ किशन ने कहा|
राधिका बिना कुछ कहे नजरे झुकाकर खड़ी थी|
किशन ने सैंड़िल नीचे रख दी|
सैंड़िल पहनकर राधिका चुपचाप बाहर जाने लगी तो वह बोला—राधिका जी जाने से पहले एक शेर सुनते जाइये”|
वह रूजो दोस्त हँसकर माफ कर दे हमारी गलती को,
जान के बदले भी मिले ऐसा दोस्त, तो भी सस्ता है|
“ओके बाए…” राधिका ने मुस्कुराकर कहा “आप भी मुझे माफ कर देना वो मैने गुस्से में …”
अजी -
जब बात जन्मो के साथ की हो,
तब छोटी-2 बातों पे नाराज न हों|
“जी… क्या मतलब| ”
“जी मतलब ये कि छोटी-छोटी बातों पर क्या नाराज होना”| राधिका मुस्कुराकर चली गई|
हंस के आँख वो मार गया
दिल का चैन - करार गया
जिसने लूटा मेरा सब कुछ
एक के बदले ले हजार गया
उसको ही.. दिल हम ये... ईनाम दिए बैठे हैं
इश्क का कतरा भी ना संभले… फिर हम तो… तूफान लिये बैठे हैं||
ना पुछे… कोइ हमसे… क्या-2 इस दिल में… अरमान लिये बैठे हैं|
ना पुछे… कोइ हमसे…
गुनगुनाते हुए राधिका अन्दर आई किशन अब भी सो रहा था|
“किशन जी आप भी कमाल करते हो जब देखो सोते रहते हो,”
“हूँ ... ऊं… राधिका जी आप… अब आप से क्या छिपाना यार जबसे प्यार हुआ है मेरी तो रातों की नींद ही उड़ गइ है,” किशन ने आँख मलते हुए कहा|
“अच्छा जी तो आप कहना चाहते हैं पहले आप को रात में नींद आती थी”
“जी हाँ बहुत अच्छी नींद आती थी मगर अब… देर रात तक तो नींद नहीं आती और सुबह में जल्दी आँख नहीं खुलती”
मगर राधिका के सवाल से उसकी सारी सुस्ती गायब हो गई “क्या आप कुदरत को झूठा साबित करना चाहते हैं,”|
“कुदरत को… क्या मतलब” किशन ने हैरानी से पूछा|
“जी मतलब ये कि सारी दुनिया जानती है उल्लू को रात में नहीं बल्कि दिन में नींद आती है और आपकी चोरी पकड़ी गई तो प्यार का बहाना बनाकर अपनी असलियत छिपाना चाहते हैं,”|
राधिका की हंसी थी कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी|
राधिका को टोकते हुए उसने कहा राधिका जी … आज कुछ ज्यादा हो रहा है|
“जी नहीं ज्यादा नहीं… हिसाब बराबर हुआ है परसों आपने मुझे परेशान किया था आज मैने आपको … बस हिसाब बराबर|
“तो आप हिसाब बराबर करना चाहती है… तब जरा याद करो आपने परसों क्या किया था| राधिका नजरें झुकाकर बैठ गई |
किशन जानता था राधिका को क्या याद आया है जो वह नजरें झुकाकर बैठ गई …“कैसे करू तारीफ उनकी खूबसूरती की, मेरे पास शब्द बहुत कम हैं,
वो खूबसूरत हैं बहुत ज्यादा, और मुझे लिखने का तजुर्बा बहुत कम है|
राधिका बड़ी गंभीर निगाहो से किशन को देखने लगी|
कुछ देर की खामोशी के पश्चात् वह बोली किशन जी परसों हमारी बातें अधूरी रह गई थी— अगर आप हमे इस लायक समझते हो कि आप हमे अपने उस दोस्त के बारे में कुछ बता सकें, तो बताइये आपकी वो दोस्त कौन है वो देखने में कैसी है|
किशन राधिका के इस सवाल से हक्का–बक्का रह गया|
राधिका ने हल्की सी मुस्कान के बाद अपनी नजरें झुका ली|
राधिका के अंदाज में ही किशन ने भी जलेबी की तरह का बिल्कुल सीधा जवाब दिया—वो लबों की लाली, वो गालों की सुर्खी,
वो आखों की चमक, वो दिलकश अदाएं,
राधिका जी बस यूं समझिये—
वो दिखते भी हैं जालिम, ओर हैं भी जालिम|
आप किसी बात का जवाब सीधा-सीधा नहीं दे सकते क्या| चलिए आपकी मर्जी हमे मत बताइये मगर आपने उनको तो बता ही दिया होगा या उनको भी नहीं|
“जी अभी तक तो नहीं”
”मगर क्यों नहीं बताया”
“अजी क्या बताऊं…
अजब सी हालत हो जाती है उनके सामने आते ही,
बहुत कुछ कहना चाहता हूँ मगर कहता कुछ नहीं|
“वैसे तो आप बहुत बोलते हो फिर एक लड़की के सामने क्यो नहीं बोल पाते”
“राधिका जी ऐसी बात नहीं है कि मैं उनके सामने कुछ नहीं बोल पाता… जिस दिन मैं उनकी आँखों में इकरार की झलक देख लूंगा‚ उस मैं सारी दुनिया के सामने इजहार कर दूंगा|
ओहो… तो आप नजरों की बातें भी समझते है|
“जी हां बिल्कुल…किसी की झलक को तरसते हैं, तो किसी का दिखना कहर होता है,
हर नजर की बात अलग होती है, अलग हर नजर का असर होता है|
“कभी-कभी आप बहुत अच्छी बातें करते हैं अगर आप जैसा कोइ खिलौना होता हो तो मुझे बताना मुझे अपने घर के लिए चाहिए” राधिका ने हंसते हुए कहा|
“राधिका जी … आप मुझे ही ले जाइये न…
कोइ हँसकर देखे तो खुशी से लुट जाता हू ये आदत मेरी है,
एक प्यार भरी नजर और दो मीठे बोल बस ये कीमत मेरी है|
राधिका शरमाकर नजरें झुकाकर बैठ गई|
ओर किशन उसकी तारिफ करता रहा—
एक तो तुम्हारी, स्माईल प्यारी,
उस पर ये आखें, हाये कजरारी|
अब दूर न जा,
दिल में समा जा,
बन जाओ राधा,
मै गिरिवरधारी,
एक तो तुम्हारी, स्माइल प्यारी,
उस पर ये आखें, हाये कजरारी|
जानेमन ए जाने जां,
कहूं क्या तेरे बिना,
जीना तो है जीना,
मरना भी भारी,
एक तो तुम्हारी, स्माइल प्यारी,
उस पर ये आखें, हाये कजरारी,
हाये दो धारी …|
“तो जनाब उनकी खूबसूरती से घायल हो गए… खैर अब हो भी क्या सकता है| आपको पहले ही अपने मन को काबू में रखना चाहिये था या फिर उसे मन की गहराई में उतरने ही न देते|
“राधिका जी बोलना तो आसान है, जरा सोचिये—
“भला क्या कहें उनको, जिनके बिना जी भी न सकें,
कैसे रोकें उस कातिल को, जो जान से भी प्यारा लगे|
“किशन जी प्लीज बताओ न वो कौन है,”
किशन ने सोचा तो था कि वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाने के पश्चात् इजहार करेगा मगर अब ज्यादा देर करना भी उसने उचित न समझा…
“दिल है मेरा मगर इसमे अरमान हैं तेरे,
आप ही कातिल, आप ही भगवान हो मेरे|
ये शब्द सुनकर तो मानो राधिका की खुशी का कोइ ठिकाना न रहा| वह मुस्कुराते हुए उठकर बाहर जाने लगी| किशन ने उसे पकड़ने की कोशिश की मगर जब उसे बिस्तर से उठने में तकलीफ हुई तो वह वापस लेट गया| राधिका उसे अंगूठा दिखाकर बाहर चली गई|
इस दौरान राधिका की कुछ पासपोर्ट साइज तस्वीरें नीचे गिर गई‚ जो किसी फार्म पर चिपकाने के लिए वह अपने साथ लाई थी|
तस्वीरें उठाने के लिये किशन को थोड़ा दर्द सहना पड़ा| उसने एक तस्वीर अपने तकिये के नीचे रख ली और बाकी तस्वीरें तकिये के पास रख दी|
राधिका आई ओर दरवाजे के पास से ही धीरे से बोली—“अच्छा तो हम चलते हैं…”
“अजी फिर कब मिलेंगें…” उसे अन्दर आने का इशारा करते हुए किशन ने कहा|
एक बार फिर राधिका उसे अंगूठा दिखाकर चली गउफ्फ ये जिद्द तेरी‚ एक हां के लिए 100 बार ना‚ क्या गुजरती है दिल पे तुझे क्या बताऊं
इतना करम करना रे जालिम‚ कभी हां न कहना‚ तु हां कहे तो कहीं मैं पागल न हो जाऊं
किशन जानता था जब राधिका को तस्वीरों की जरूरत होगी तब वह उन्हे लेने लौटकर उसके पास जरूर आएगी| इसलिए वह निशचिंत होकर आखें बंद करके लेटा रहा| उसने सोच लिया था‚ जब राधिका फोटो लेने आएगी तब वह उसे अंगूठा दिखाने के बदले में थोड़ा सबक तो जरूर सिखाएगा|
कुछ देर बाद राधिका वापस आई शायद उसे रास्ते में ही पता चल गया होगा तस्वीरें उसके पास नहीं हैं| वह दबे पांव किशन के कमरे में दाखिल हुई| वह नहीं चाहती थी कि किशन को उसके अन्दर आने का पता चले या फिर वह नहीं चाहती थी कि किशन की नींद टूटे|
मगर किशन तो पहले से ही जाग रहा था| फोटो ढ़ूंढ़ते हुए जैसे ही राधिका की पीठ किशन की ओर हुई उसने राधिका की तस्वीर हाथ में ली ओर वह बोअरे “बांगरू”क्यों करता है हर वक्त खुशामद इसकी,
वो खुद बात नहीं करते, तो उनकी तस्वीर क्या बोलेगी|
राधिका ने मुडकर देखा तो किशन ने उसका स्वागत एक शरारती मुस्कान के साथ किया|
राधिका के चहरे पर बड़ी हैरानी के भाव थे -जैसे उसने मन ही मन सोचा हो हे भगवान इस पागल के पास मेरी तस्वीरें कैसे पहुच गई|
“आपके पास ये तस्वीरें कैसे आई” राधिका ने बड़ी नजाकत के साथ पूछा
“लो कर लो बात अजी आप ही तो मुझे अपनी तस्वीर निशानी के तौर पर दी थी” राधिका को सताने के लिए उसकी तस्वीर सीने से लगाते हुए किशन ने कहा|
“आ हा हा… मैने दी थी…”
“राधिका जी शायद आपको याद नहीं है आपने मुझे ये तस्वीरें देते हुए कहा था कि मैं इनका ख्याल रखूं| अब आप चाहें तो पूछ लिजिये मैने एक पल के लिए भी इनको अपने सिने से अलग नहीं किया‚ तब से लेकर अब तक मैने प्यारी-प्यारी बातें करके इनका मन बहलाया है|
“अच्छा जी… मगर जब तक ये तस्वीरें मेरे पास थी तब तक तो ये बातें नहीं करती थी|
“अजी ये बड़ी जालिम शख्श की तस्वीर हबाते… बड़ी प्यारी … ये तुम्हारी… तस्वीर करती है,बंध जाती हैं नजरें… ये बंधन… इश्क की जंजीर करती है|
छाया एक खुमार सा है,
दिल ये बेकरार सा है,
सुध न अपनी, जबसे ये तस्वीर देखी है,
न जाने… जादू कैसा… ये तस्वीर करती है,
बाते… बड़ी प्यारी … ये तुम्हारी… तस्वीर करती है,बंध जाती हैं नजरें… ये बंधन… इश्क की जंजीर करती है|
“अच्छा-अच्छा अब आपकी बातें खत्म हो गइ हों तो लाओ मेरी तस्वीरें वापिस दो” राधिका ने अकड़ते हुए कहा
“मगर फिर मेरा वक्त कैसे कटेगा”
“प्लीज- आप ये तस्वीरें मुझे दे दीजिये… मै आपको कोइ दूसरी तस्वीर दे दूंगी” राधिका ने इतने प्यार से तस्वीरें मांगी थी कि वह किशन को दूसरी तस्वीर देने का वादा न भी करती तब भी वह उसे मना नहीं कर पाता|
“ठीक है जी ये रखी हैं आपकी तस्वीरें आप उठाकर ले जाइये” किशन ने तस्वीरें अपने सिरहाने रखते हुए कहा|
राधिका आगे बढ़ी| अब तस्वीरे उसके हाथों की पहुंच में थी मगर जैसे ही उसने तस्वीरें उठाने के लिए अपना हाथ बढ़ाया किशन ने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लि“चूमकर उनके माथे को, लगा लूंगा उनको गले से,
भा गइ ये खता, तो शायद कर लें गुनाह मर्जी से|
राधिका की धड़कने तेज हो गई थी| उसकी आंखांे का रंग बदल गया था| होंठ कुछ नशीले से हो गये थे| वह बड़े ही नशीले अदांज से किशन की आंखो में झाकने लगी|
राधिका के शरीर के स्पर्श से किशन भी बहक गया| उसने एक पल के लिए राधिका की नशीली आखों में देखते हुए उसे बाहो में भर लियाचढ़ेगा जब मेरी चाहत का रंग‚ मेरी बाहों में आकर बिखरोगे आप, यूं खूबसूरत हो आप बहुत‚ मिलकर मुझसे ओर भी निखरोगे आप|
अपने जीवन में किसी लड़की के इतने अधिक निकट उसने अपने आपको कभी नहींं पाया था| उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि उसकी किशोरावस्था यहा समाप्त हो गई, और एक नई अवस्था का श्री गणेश हो रहा है| उसका दिल जोरों से उछलने लगा था| धड़कने तेज़ हो चली थी| उसके भीतर का भाव तीव्रता पा चुका था| भीतर की ऊष्णता उसकी आखों तक आ गई थी| समुद्र के ज्वार भाटे की तरह कोइ चीज उसमें ऊधम मचा रही थी|
कंपन और गर्म धड़कनों के साथ उसने राधिका को अपनी बाहों में बांध लिया| वह भी निर्जीव सी बंध गई|
किशन ने राधिका को अंगूठा दिखाने का सबक सिखाया|
राधिका आखें बंद करके बैठी थी| वह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी|
एक बार फिर राधिका की प्लीज- के सामने किशन को झुकना पड़ा|
हाथ छोड़ते हुए किशन ने कहा मैं भी बोलता हूँ प्लीज- कुछ तो इलाज करो मेरे मन का|
“इसका तो अब एक ही इलाज है,”
“ओर वो इलाज है क्या| “
“भूल जाओ…” किशन को तस्वीरें दिखाकर हँसते हुए वह दरवाजे की ओर बढ गई|
किशन को भनक भी न पड़ी थी कि कब राधिका ने वे तस्वीरें उठा ली|
“मोहतरमा आपके लिए एक शेर अर्ज करता हू जरा गौर फरम“आखिर यूं पर्दा करने से भी क्या होगा,
हो सके तो हमे अपने दिल से निकाल दो,
अगर आप चाहते हो मैं भूल जाऊ आपको,
तो एक पर्दा अपनी तस्वीर पर भी ड़ाल दो|
“तस्वीर ही ले चले है जनाब” राधिका ने उसे तस्वीरें दिखाते हुए कहा|
इस पर किशन ने तकिये के नीचे रखी हुइ तस्वीर निकाली ओर बोला—शायद वो नहीं चाहते कभी भूल पाऊं मैं उनको,
नहीं तो क्यों दे रहे हैं वो अपनी तस्वीर मुझको|
राधिका पलटी| किशन के हाथ में अपनी तस्वीर देखकर वह बनावटी गुस्से में बोली—“यार ये क्या मजाक है मुझे मेरी तस्वीरें वापिस चाहिए”
“राधिका जी आपके पास 20 फोटो हैं इसलिए मैने एक अपने लिए रख ली …
“लेकिन जब मैं सही सलामत आपके साथ हूँ तो फिर आपको मेरी तस्वीर क्यों चाहिए”
“राधिका जी आपके होने मे ओर आपकी तस्वीर के होने में बहुत अन्तर है…”
“वो कैसे”
“तुमको हैं बन्दिशे हजार, तुम पर निगाहें है जमाने की,
मजबुरी तेरी लाखों हैं, आते ही बात करते हो जाने की|”
हर लड़की की तरह राधिका भी अपनी तारीफ सुनकर खुश थी| मगर दिखावे की अक्कड़ के साथ वह बोली “ओर भी कुछ बचा हो तो वो भी बता दो”
“ओरहमे अब आपसे ज्यादा लगाव है आपकी तस्वीर से,
दोस्तों का ख्याल रखना सीखा है आपकी तस्वीर से|
राधिका की तस्वीर को चुमकर सीने पर रखते हुए किशन बोला “इसकी सबसे बड़ी खूबी ये है राधिका जी इसे कितना भी प्यार करो या मजाक करो ये कभी बुरा नहीं मानती| अच्छा राधिका जी मेरा अब मेरी जान के साथ सोने का वक्त हो गया है,”
राधिका गुस्से में बाहर चली गई|
किशन बहुत खुश था|
राधिका के जाने के बाद कुछ देर तक वह दिवानों की तरह उस तस्वीर को निहारता रहा| अचानक उसे किसी के कदमों की आहट सुनाइ दी|
“शायद राधिका अपनी तस्वीर वापस लेने आई होगी” यह सोचकर किशन तस्वीर को सीने से लगाकर सोने का नाटक करने लगा| उसने महसूस किया किसी का हाथ उसके सीने पर उसके हाथों के नीचे से तस्वीर निकालने की कोशिश कर रहा है| अब तो किशन को यकीन हो गया था हो न हो यह राधिका ही है| किशन ने उस हाथ को प्यार से सहलाते हुए कहा… “हकीकत भले न हो मेरा ख्यालों में आपसे मिलना,
मगर कम्बख्त मुझे ये कोइ ख्वाब भी तो नहीं लगता|
किशन ने आखें खोली तो उसकी आखें खुली की खुली रह गई| जैसे उसे 440 V के करंट का झटका लगा हो| जिस हाथ को वह बड़े प्यार से सहला रहा था| वह श्रीहरिनारायण यानी उसके बाबू जी का हाथ था|
“बाबू जी आप कब आए| ” किशन ने हड़बड़ाते हुए पूछा|
“बेटा जब तुम सो रहे थे… किशन दर्द अब भी ज्यादा है क्या|
“किशन को अब दर्द का ख्याल ही कहां था…जी न्न्न्नही…है…अब मुझे बिल्कुल दर्द नहीं है|
“अच्छा बेटा अब तुम आराम करो… मैं कुछ काम से बाहर जा रहा हू” बोलने के बाद श्रीहरिनारायण बाहर चले गए|
किशन ने अपने सीने पर देखा तो वह अपनी मुर्खता पर तिलमिला उठा|
उसका मन किया कि वह खुद को गोली मार ले क्योकि राधिका की तस्वीर उसके सीने पर सीधी पड़ी थी|
अगले दिन राधिका फिर उससे मिलने आई| राधिका को देखते ही किशन को एहसास हुआ‚ उसे वह तस्वीर अपने पास नहीं रखनी चाहिए थी ओर इससे पहले कुछ ओर भी ऐसा हो उसे वह तस्वीर वापिस कर देनी चाहिए| मगर क्या सब कुछ जानने के बाद राधिका उससे दोबारा कभी मिलेगी| उसके मन का जवाब था “शायद नहीं” इसलिए एक बार उसने सोचा कि वह राधिका से इस बारे में कोइ बात नहीं करेगा| लेकिन उसे रोहन की एक बात याद आइ किदोस्ती की शुरूवात तो झूठ से भी हो सकती है मगर जिस रिश्ते को कायम रखने के लिए लगातार झूठ का सहारा लेना पडे, वह रिश्ता दोस्ती का नहीं हो सकता|
“राधिका जी ये लिजिए आपकी तस्वीर” किशन ने तस्वीर राधिका की तरफ बढ़ाते हुए कहा
“ये कौन सी नई शरारत है… आप ही रखो … मुझे नहीं चाहिए अब ये तस्वीर”
“राधिका जी ये शरारत नहीं है… आपने ठीक कहा था मुझे ये तस्वीर नहीं रखनी चाहिए थी|
“मै कुछ समझी नहीं… क्या हुआ| ”
किशन ने उसे सारा वॄतांत सुनाना शुरू किया| अभी वह उसे आधी बात ही बता पाया था कि बिना कुछ सोचे समझे ही राधिका हंसने लगी… आपने अपने बाबू जी का हाथ मेरा हाथ समझा ओर शेर भी सुनाया… that’s very good yaar… यार…
“आगे भी तो सुनो” किशन ने उसे बीच में टोकते हुए कहा
“अच्छा जी… अभी बाकी है क्या… सुनाओ-सुनाओ…” बोलते हुए राधिका फिर से ठहाका लगाकर हंसने लगी|
जैसे ही किशन ने बताया उसके बाबू जी ने उसके सीने पर पडी राधिका की तस्वीर भी देख ली थी तो जैसे राधिका को कोइ गहरा सदमा लगा|
वह अपना सिर पकड़कर वहीं बैठ गइ|
“हे भगवान…” वह बस इतना ही बोलकर चुप हो गइ| वह किशन को ऐसे घूरने लगी|
जैसे वह कह रही हांें कमीने मैने तुझे पहले ही कहा था मेरी तस्वीर दे दे मगर तूने मेरी एक न सुनी| लेकिन हकीकत में वह कुछ भी न बोल सकी और चुपचाप बाहर चली गई|
कइ महीने गुजर गये|
एक दिन सीमा किशन से मिलने आई वह कुछ परेशान थी
“क्या बात है सीमा… क्या संजय ने फिर परेशान करना शुरू कर दिया”
सीमा का जवाब सुनकर तो किशन के होश ही उड़ गये|
“भैया संजय तो अब इस दुनिया में ही नहीं है,”|
“मगर… कब … ये सब कैसे हुआ…“ कांपती हुई आवाज में किशन ने पूछा|
“भैया उसने तो ढ़ाई-तीन महीने पहले जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी”|
“आत्महत्या… ओह नो… मगर यह सब तुम्हे कैसे पता| ”
“स्कूल की मेरी एक सहेली ने बताया था”|
किशन का चेहरा उतर गया वह बोला—सीमा हमारे लिए संजय चाहे जैसा भी रहा हो आज मुझे उसके बारे में जानकर दु:ख हो रहा है… न जाने संजय के माता-पिता के दिल पर क्या गुजरेगी| … चलो जो होना था सो हो गया‚ भूल जाओ सब कुछ… अरे सीमा तुम्हारी वो एक सहेली थी न, जो उस दिन तुम्हारे साथ अस्पताल…”
“हां जी भैया... राधिका” बीच में ही सीमा ने जवाब दिया|
“हां वही … वो कभी मिलें तो उनको याद दिलाना कुछ दिन पहले मैने उनसे कुछ नोटस मांगे थे, उर्दू शायरी के बारे मे|
“जी भैया जरूर बोल दूंगी” बोलकर सीमा चली गई|
शाम के समय बिजली गुल हो जाने के पश्चात् किशन व उसके सभी दोस्त धर्मवीर सोनु नवनीत सुनील और उसका छोटा भाई सागर स्कूल ग्राऊंड़ में पहुच गये| सबके इक्कठे होते ही सुनील ने सबके सामने किशन का मजाक बनाते हुए कहा—“मित्रो क्या आपको पता है हमारे जो भाई साहब कुछ महीने पहले टूटी-फूटी हालत में बिस्तर में पड़ें थे| उनके मन से पिटाई का डर कुछ इस कदर निकल गया है‚ कि उन्होने दोबारा पिटने का बन्दोबस्त कर लिया है| लेकिन एक बात की दाद देनी पड़ेगी… सुना है इस कमीने ने बहाना बड़ा खूबसूरत ढूंंढ़ा है|
“क्या मतलब… यार सुनील सीधे शब्दों मे बताओ बात क्या है| ” नवनाीत ने पूछा|
“मतलब ये है दोस्तांे कि इस महान आत्मा ने एक सुन्दर कन्या को अपने झांसे में ले लिया है,”
नवनीत ने भी सुनील का साथ देते बचपन में शरारतें और जवानी में छेड़छाड़बुढ़ापे में सही रे बांगरू‚ कोइ अच्छा काम भी करना|
“भाई बुढ़ापे तक तो कोइ न कोइ अच्छा काम अनजाने में भी हो जाएगा… वैसे अगर आप चाहो तो एक अच्छा काम अभी कर सकते हो… हमे उसका नाम बताकर” सोनु ने कहा
“नाम तो मैं आपको जरूर बता देता…मगर भाई मेरे सबके सामने मत पूछ, मुझसे नाम उसका,
उसे बदनाम करने की सोची, तो तेरे वाली का नाम ले दूंगा
“बताओ यार… मेरे वाली का ही नाम बताओ… इसको भी तो पता चले मेरी भी गर्लफ्रेंड है,” सोनु ने सागर की ओर इशारा करते हुए कहा|
“यार किशन हम सब तुझे बुद्दु समझते थे मगर यार तुम तो बहुत होशियार निकले… तुमने उस समय में प्यार किया जब तुम्हारे पास बिस्तर में पड़े रहने के अलावा कोइ काम न था” नवनीत ने हंसते हुए कहा
“किशन भाई हमे भी बताओ ये प्यार होता कैसा है| मेरा मतलब किसी को पता कैसे चले प्यार हो गया” धर्मबीर ने बड़े भोलेपन से पूछा|
इससे पहले किशन कुछ बोलता सागर बोल पड़ा “ये कौन सी मुश्किल बात है प्यार की पहचान तो मैं भी बता सकता हूअगर आपके भी दिल में होती है कभी चुभन सी,
तो समझ लेना प्यारे प्यार होने वाला है तुझे भी|
“तू अपनी बकवास बंद कर ओर ध्यान से सुन ले आगे चल कर ये बातें अपने बहुत काम आयेंगी” ड़ांटने के से अंदाज में दीपक बोला
“क्या खाक काम आयेगी अगर हमे अपना भविष्य बनाना है तो हमे मन लगाकर पढ़ाई करनी चाहिए| ये गर्लफ्रेंड वगैरा तो बस टाइम पास के लिए होती है,” सागर ने अपनी उम्र से ज्यादा समझदारी की बात की|
मगर बिजली न होने का फायदा उठाते हुए धर्मबीर ने जवाब दिया “बिजली के बिना कोइ रात में पढ़ाइ कैसे करेगा और वैसे भी Girlfriends are not only for time pass but we can learn so many things from them.”|
“अच्छा यार… बहस बंद करो मैं बताता हू” दोनों को टोकते हुए किशन ने कहा —जब से हुआ मेरा अख्तियार उस दिल की कायनात पर,
तब से मै भी समझता हूँ खुद को “एक छोटा सा राजा”|
“क्या बात है जनाब आप तो शायरी के अलावा बात ही नहीं करते… क्या प्यार से किसी में इस कदर का बदलाव आ सकता है,” नवनीत ने कहा
नवनीत भाई बात दरअसल ये है कि राधिका को शायरी बहुत पंसद है‚ इसलिए मैं कोशिश कर रहा हूँ कि मेरी भाषा शैली ही ऐसी हो जाये, और रही बात बदलाव की तो हां —
“इश्क से जिन्दगी में थोेड़ा बदलाव तो जरूर आता है,कोइ बहुत बोलने वाला है तो वो चुप हो जाता है,
कोइ कम बोलने वाला है वो ज्यादा बातें करता है,
किसी की रंगत खो जाती है तो किसी में निखार आता है|
“हाए मेरी जान अब तो तुम बड़ी प्यारी बातें करने लगे हो” किशन के पास बैठते हुए सागर ने कहा|“उनकी अदाओं का हो गया असर मुझपे,
वरना मैं कब करता था इतनी प्यारी बातें|
“देखना कहीं उनकी अदाओं का असर ज्यादा न हो जाए‚ कहीं फिर शिकायत करते फिरो के लोग तुम्हे घूरते हैं,” नवनीत के इतना बोलते ही सब हँस पड़े|
मगर सुनील ने बड़े गंभीर लहजे में कहा “किशन मेरी एक बात हमेशा याद रखना किसी से भी इतना प्यार मत करना कि कभी धोखा मिले ओर बस जिन्दगी से मन भर जाये|
“भाई साहब हमारी छोड़ो… आप कुछ अपनी सुनाओ बहुत गहरी चोट खाये लगते हो… ऐसी क्या बात है उसमे|जो उसके बिना जिन्दगी से मन भर गया” किशन ने सुनील के लहजे को परखते हुए पूछा|
“मत पूछ किशन वो बात है उस सितमगर में के देखना,
एक दिन उसके लिए तलवारें चलेंगी|
“ठीक है भाई वो तो वक्त आने पर सब देखेंगे मगर अभी नवनीत से भी तो पूछो इसकी लव स्टोरी क्या है| ”
“मुझसे क्या पूछोगे यार—
“न अपनी पसन्द है कोइ, न अरमान हैं किसी के,
जो मिलेगी किस्मत से, हम हो जायेंगे उसी के|
मै तो यही प्रार्थन करता हूँ—
भगवान बचाये इन हसीनो की दोस्ती से,
ये दोस्त बनें तो जमाना दुश्मन बन जाये|
और ये बेवफा जो दु:ख दे जाते हंै सो अलग”
नवनीत की इस दलील का जवाब सुनील ने कुछ इस तरह से दिया—
इतनी सादगी, इतनी सुन्दरता और ऐसी अदायें,
के देखकर हमारा दिल तो बस मचल जाता है,
भले ही मोहब्बत में बेवफाइ का दु:ख मिलता हो,
मगर सुकुन ये है, एक अरमान तो निकल जाता है|
मगर यार सुनील ये तो आपको मानना ही पडेगा मोहब्बत मे शुकुन कम और दर्द ज्यादा है|
ये तो अपनी-अपनी किस्मत है, अपनी-अपनी सोच है दोस्त,
कोइ दगा करके भी प्यार पाता है, कोइ प्यार करके भी नहीं|
इधर सुनील का शेर खत्म हुआ और बिजली के आने से सारा मोहल्ला फिर से जगमगा उठा|
“सुनील भाई अब हम बाकी बातों को विराम देते हैं और जाने से पहले किशन भाई के दो-चार तड़कते- भड़कते शेर सुनते हैं,” जल्दी से नवनीत बोल उठा|
“जरूर भाई……दोस्तो जरा गौर फरमाइये” बोलकर किशन शुरू हो गयाकभी–कभी सोचता हूंं अगर उसका भी हुआ हाल वही जो यहां मेरा है,
तो उसका बापू तो अपनी इज्जत के लिए दो बच्चों की जान ले रहा है|
“वाह… वाह… क्या बात है किशन“
“तो फिर एक और सुनो अर्ज किया है—
जब कहा हमने के हम मर जाएंगे आपके बगैर,
जब कहा हमने के हम मर जाएंगे आपके बगैर,
वो बोली जिसे भी मरना हो, बडे शौक से मरे,
मै अपना घर बसाऊं या लोगों की जान बचाऊं|
“हाहाहा हा हा… वाह क्या बात है किशन भाई खुश कर दिया… सुनाते रहो”
“जरूर भाई तो फिर लिजिये आपके लिए पेश है,”
मेरे खत का जवाब आया... वाह… वाह…
मेरे खत का जवाब आया... वाह… वाह…
मेरे खत का जवाब आया... अब आगे भी तो बोल यार
उसमे ऐसी-ऐसी गालियां लिखी थी के मैं बता नहीं सकता
हा…हा … खुश कर दिया यार” बोलकर नवनीत खड़ा हो गया|
“बस एक ओर सुन लो यार” किशन ने कहा
“चल अच्छा सुना …”मेरे खत का जवाब आया, उसमे एक भी सैंटेस्ं की स्पैलिंग ठीक नहीं है,
मगर मुझे बहुत खुशी हुइ, चलो कोइ तो है जो मुझसे भी ज्यादा ड़फ्फर है|
“हा…हा … वाह…वाह… क्या बात है,” सब लोग हंसते हुए अपने-अपने घर को चले गये
दूसरे दिन सवा पांच बजे सुबह ही किशन सुनील से मिलने पहुंचा तो सुनील चौंका|
“क्या बात है भाई आज सुबह-सुबह कैसे… | ”
“सुनील भाई एक छोटी सी परेशानी है,”
“परेशानी… कैसी परेशानी…” सुनील अचकचाया
“भाई दरअसल बात ये है कि कुछ दिन से राधिका मुझसे नाराज है और मुझे समझ नहीं आता मैं उसे कैसे मनाऊं | ”
“मगर बात क्या हुई „ सुनील ने गंभीर होकर पूछा
किशन ने उसे सारी बात बता दी| सारा मामला समझने के बाद सुनील ने उसे जो सुझाव दिये वो कुछ इस प्रकार थे— “यार किशन तुझे कितनी बार समझाना पड़ेगा‚ बस ट्रेन और लड़की के पीछे कभी नहीं भागना चाहिए| ये एक जाती है तो दूसरी आ जाती है … वगैरा- वगैरा”
सुनील को बताकर उसे अपनी परेशानी का समाधान तो मिला नहीं मगर रात को स्कूल ग्राऊंड़ में अपना मजाक बनाने के लिए उसने सुनील को एक अच्छा खासा मुद्दा जरूर दे दिया था| किशन को खुद पर बहुत गुस्सा आया… वह बो“अरे ओ मुझे समझाने वाले, कहने वाले मुझको नादान,
सुधर जा, कभी मैं भी खुद को बड़ा सयाना समझता था|
सुनील ने उसकी बात को अनसुना करते हुए… उसे सब कुछ भूल जाने के लिए कहा और साथ ही नसीहत भी दी… राधिका जैसी जिन्दगी में ओर बहुत आयेंगी|“अरे मुझे समझाने वाले, एक बार तू मिल उस कयामत से,
फिर कुछ समझाने लायक तुम रहे, तो मैं जरूर समझूंगा|
किशन ने राधिका की तस्वीर सुनील के हाथ पर रख दी|
सुनील ने राधिका की तस्वीर देखी तो बस देखता ही रह गया|
“सुनील भाई अब क्या बोलते हो…”
“मै क्या बोलूं यार… कुछ समझ नहीं आया ये तुम्हे कैसे…”
“कुछ देर पहले तक जो मुझे बहुत समझा रहा था,
एक झलक क्या देखी, अब कुछ उसे समझ नहीं आता|
“अबे कमीने मेरा मतलब था ये गुलाब परी तेरे चक्कर में कैसे आ गई…| ये मेरी समझ के बाहर है… खैर वो सब छोड़… ये बता परेशानी क्या है| ”
“क्या भाई कुछ ही देर पहले तो बताया था… ं”|
“ओहो बस इतनी सी बात है … यार सिम्पल है तुम उसे समझाओ आज नहीं तो कल… घरवालों को तो सब बताना ही था” |
“किशन ने सहमत होते हुए गंभीर अंदाज में गर्दन हिलाई और वहां से चला गया|
एक शाम सागर को साथ लेकर किशन जवाहरलाल नेहरू पार्क में राधिका का इन्तजार करने लगा| वह जानता था राधिका मौलवी साहब के पास से उर्दू सीखने के लिए इसी पार्क में से गुजरती है|
कुछ देर बाद राधिका आई|
उसे देखते ही किशन का चेहरा खिल उठा मगर अचानक ही जब उसने प्रदीप को राधिका के साथ देखा तो वह परेशान हो गया|
वह इस गहरी सोच में डूबने वाला ही था, कि आखिर प्रदीप राधिका से क्या बात कर रहा है एक बार फिर उसके चेहरे पर खुशी झलकने लगी… जब उसने प्रदीप को वापस जाते देखा|
अब राधिका उनकी तरफ आ रही थी| किशन तेज कदमों के साथ राधिका की तरफ बढ़ गया| मगर राधिका नजरे झुकाये हुए, उससे कोइ बात किए बिना ही आगे निकल गईशरारत भी करतें हैं वो, तो बड़ी नजाकत से करतें हैं,गौर से देखोे, झुकाकर नजरें भी वो इधर ही देखते हैं|
राधिका मुस्कुराई मगर किशन को घूरते हुए उसने अपना रास्ता बदल लिया|
किशन ने फिर उसेे छेड़ते हुए कहा“क्या नजाकत है यारो, आज वो दूर-दूर से जा रहे है,
न जाने कैसी खता हुई, आज वो घूर-घूर के जा रहे है|
“क्या बात है भाई आप तो बोल रहे थे, कि ये मेरी होने वाली भाभी है, मगर ये तो आपकी बात ही नहीं सुनती और आंखांे से भी जहर उगल रही है,” सागर ने कहा
“ऐसी बात नहीं है छोटे… शायद आज इनका मूढ़ कुछ ठीक नहीं है वरना “दोनोंं जहांं की मिठाइयों से ज्यादा मिठी होती है इनकी हर एक बात”|
“मगर मैं कैसे मान लूं भाई … क्या पता आप झूठ बोल रहे हों | मेरे सामने तो ये आपकी किसी भी बात पर ध्यान नहीं दे रही”|
“छोटे तू नहीं समझेगा… ये मेरी हर बात बड़े ध्यान से सुन रही है यकीन नहीं है तो ये देख… इतना बोलकर किशन बोला अरे सुनती हो|
“सेट अप… बंद करो अपनी ये बकवास”|
“देखा मैने क्या कहा था न… ये सब सुन रही है|
“सही कहा था भाई„ सागर ने कहा और वह झूलों के पास जाकर खेलने लगा|
उसके जाते ही राधिका किशन की खबर लेने लगी “आप क्या बकवास कर रहे थे सागर के सामने”|
“अरे यार क्यों भड़कती हो इसमे कौन सी आफत आ गई… सागर तो अभी बच्चा है|
“बच्चा है इसीलिए बोल रही हंू , अगर नासमझी में उसने किसी को बता दिया, तो आफत भी आ जाएगी”|
“कोइ आफत नहीं आयेगी यार वैसे भी आज नहीं तो कल अपना प्यार जगजाहिर तो होगा ही और सागर इतना भी बच्चा नहीं है, जो काम मैं 18 साल की उम्र तक नहीं कर पाया था वो उसने 12 साल की उम्र में कर लिया है|
“क…क… क्या काम कर लिया है उसने 12 साल की उम्र मे” राधिका ने हैरानी से पूछा|
”लड़की पटाने का”
“क्या बात करते हो, क्या सागर की भी कोइ गर्लफ्रेंड है,”
“हाँ,”
“कौन है वो लड़की”
“उसके साथ ही पढ़ती है,”
“हे भगवान, ये आजकल के लड़के भी कितने तेज हो गये हैं,”
“आखिर भाई किसका है,” किशन ने मुस्कुराते हुए कहा
“आ हा हा… रहने दो तुम मत बोलो, तुम तो एकदम लल्लु हो, फिर थोड़ा रूककर वह बोली जब आप सब जानते हैं तो उसे समझाते क्यों नहीं “जिसने 12 साल की उम्र में गर्लफ्रेंड बना ली, वो जवानी आने तक तो बहुत बिगड़ जाएगा”|
“अरे नहीं बिगड़ेगा यार बल्कि सुधर जायेगा बचपन में मैं भी तो ऐसा ही था”|
“मगर आपने तो कहा था मुझसे पहले आपकी जिन्दगी में कोइ नहीं थी”
“सच ही कहा था मगर मैने ये तो नहीं कहा था के मैने कोशिश भी नहीं की थी”
“कोइ ज्यादा ही पसंद आ गई थी क्या” राधिका ने नजाकत से पूछा
“आई तो थी यार मगर मानी नहीं… थोड़ा रूककर वह बोला… तब इतनी समझ ही कहां थी”
“खैर अब तो आपको बहुत समझ आ गई है मगर ये नासमझी वाली बात कब की है,” |
“तब मेरी उम्र 6 साल थी| मैने पहली कक्षा में दाखिला लिया था| उसका नाम रितू था| वह हमारी कक्षा की सबसे होशियार लड़की थी इसलिए वह मुझे अच्छी लगने लगी|
राधिका ने खुद की तरफ इशारा करते हुए कहा “वैसे एक खूबी तो है आपमे… आपको बचपन से ही होशियार लोग पसंद है, खैर छोड़ो फिर क्या हुआ| … उसने आपसे दोस्ती की या नहीं”
“मैने शुरू मे ही बताया था वो एक होशियार लड़की थी, तो भला मुझसे दोस्ती क्यों करने लगी”
“अच्छा जी … तो उस होशियार लड़की का जवाब नहीं था”
“अजी नहीं … वो तो मैं ही उसे बोलने की हिम्मत नहीं कर पाया था, इसलिए मैने अपने एक दोस्त की मदद से एक खत में अपने मन की बात लिखकर रितू को बताये बिना ही वह खत उसके बैग में रख दिया|
“ओके… तो फिर क्या जवाब आया आप“यूं मेरे खत का जवाब आया,
पिस्तौल लेके उसका बाप आया|
“क्या सच मैं ऐसा हुआ था” राधिका ने हँसकर पूछा|
“हाँ यार… उसके पापा को देखकर मैं सोचने लगा
बहुत छुपाना चाहा था, मगर न जाने कैसे सबको पता चल गया,
याइला कहीं ऐसा तो नहीं, मेरा खत उसके बाप के हाथ लग गया|
“फिर क्या हुआ| ”
“होना क्या था उसका बाप फौजी था, और देखने में भी भयंकर था|
मेरी क्लास में आकर उसने रितू से पूछा “कौन है वो किशन| ”
रितू ने मेरी ओर इशारा कर दिया तो उसके पापा बोले “ओए कुत्ते इधर आ”
अभी तक मैं पूरी बात समझ नहीं पाया था इसलिए मैने उसका जवाब कुछ इस तरह दिया अंकल जी -
बुरा न मानता, आप मुझे बुलाते कुत्ता, थोड़ा प्यार से मगर,बल्कि हिलाता हुआ आता ये जबरू, इसको पूछ होती अगर|
“फिर क्या हुआ| ”
“होना क्या था एक बार तो उसके पापा हँस पड़े मगर फिर पता नहीं क्या हुआ, उन्होने मुझे जोर से झकझौर कर कहा “आज के बाद तूने रितू को परेशान किया तो मैं तुझे जान से मार दूंगा… चल अब सबके सामने रितू के पांव पकड़कर उससे माफी मांग”|
“फिर… ” राधिका ने बड़ी दिलचस्पी दिखाते हुए पूछा
“मै क्या कर सकता था| … मैं रोने लगा और रितू के पाव पकड़कर उससे माफी माग ली|
उसके पापा जाने लगे तब मैं बोलाअरे जालिम अंकल, बस मेरी इतनी ही इज्जत रख लेते,
आप मुझे कुत्ता समझते, मगर मेरा नाम तो शेरू रख लेते|
राधिका ठहाका लगाकर हँसते हुए बोली अच्छा जी तो आपको रितू के पापा ने सुधारा|
“अरे नहीं, भला कुत्ते की दुम… इतना बोलकर वह चुप हो गया| फिर बोला मैं सुधरा नहीं बल्कि मैने रितू से सबके सामने मेरी बेइज्ज्ती करने का ऐसा बदला लिया कि उसने कुछ ही दिनो में वह स्कूल छोड़ दिया”|
“वो कैसे| ”
“वो ऐसे कि उस दिन के बाद मैं हर रोज उसका लंच खा जाता था”|
“तुम उसका लंच खा जाते थे… तो उसने तुम्हारी शिकायत क्यों नहीं की| ”
“शिकायत … हाहा … अजी उसे कभी पता ही नहीं चल पाया… उसका लंच कौन खाता है,”
“क्या…| मगर उसने ये जानने की कोशिश क्यों नहीं की| ”
“उसने तो बहुत कोशिश की थी बल्कि कुछ दिन तो वह पानी पीने तक के लिए भी क्लाश रूम से बाहर नहीं जाती थी”|
”मगर जब वह कभी बाहर ही नहीं जाती थी, तब तुम उसका खाना कैसे खाते थे| ”
“वो ऐसे… मैं सुबह घर से कुछ भी खाकर नहीं जाता था| जब सब बच्चे सुबह प्रार्थन मैदान में होते थे तभी मैं उसका खाना खा जाता था और जिस दिन वह लंच लेकर नहीं आती थी तब मैं उसकी कॉपी में से किए हुए होमवर्क के पेज फाड़ दिया करता था| जिससे कइ बार उसकी पिटाइ भी हुई| बस कुछ ही दिन में तंग आकर उसने वह स्कूल छोड़ दिया”|
“इसका मतलब तुम बचपन से ही झुठे और फरेबी थे”|
“मोहब्बत और जंग में सब जायज है मैड़म और फिर इसमे फरेब की क्या बात है उसने मेरी पिटाई करवाई थी, मैने उसकी करवा दी “हिसाब बराबर”
“अच्छा… तो रितू से हिसाब बराबर होने के बाद कोइ आपकी गर्लफ्रैंड़ बनी या नहीं”|
“जी उसके बाद एक लड़की मेरी जिन्दगी में आई, जिससे मैने दोस्ती करनी चाही थी”|
“वो कौन थी| ”
“उसका नाम सुलेखा था| वह बहुत सुन्दर थी| तब उसकी उम्र 9-10 साल होगी…
“वो सब छोड़ो मुद्दे की बात बताओ तुमने उसको कैसे प्रपोज किया, ओर उसका जवाब क्या रहा” बीच में टोकते हुए राधिका ने कहा|
“ये भी मुद्दे की ही बात थी| मैं आपको समझाना चाहता था कि वह शारीरिक और मानसिक दोनों ही तौर पर मुझसे ज्यादा परिपक्व थी|
“प्रपोज… हम्म्म्म्म्म इस बार मैने सोच लिया था कि मैं खत नहीं लिखूगां| क्योंकि मेरे एक दोस्त ने बताया था खत तो एक सालिड़ सबूत होता है, जिसके आधार पर पुलिस केस भी हो सकता है| इसलिए मैने सोचा इस बार मैं बोलकर ही इजहार करूंगा|
एक दिन मैं स्कूल से छुट्टी के बाद उसके साथ-साथ चल रहा था| अचानक सुलेखां ने मुझे बताया कि मेरी कमीज सुलग रही है,” |
“मेरी कमीज सच में सुलग रही थी| मैने आग बुझाकर सुलेखा को धन्यवाद कहा मगर मैं काफी नर्वस हो गया था इसलिए और कुछ न बोल पाया|
“फिर…”
कुछ दूर तक हम साथ-साथ चलते रहे| फिर सुलेखा मुझसे बोली “आप कैसे हो आपकी कमीज में आग लगी थी, और आपको बिल्कुल भी पता नहीं चला”|
“सुलेखा जी असल में बात ये है कि मुझे भी सीने के पास थोड़ी जलन तो महसूस हुई थी| मगर मैने सोचा किसी हसीन को देखकर दिल के किसी कोने में पड़ा जवानी का कोइ शोला भड़क उठा होगा… उसी वजह से मुझे जलन हो रही होगी”
मेरी बात सुनकर वह मुस्कुरा दी| उसकी मुस्कान ने मेरा हौंसला बढ़ा दिया और मैं बाते करते-करते उसके घर तक उसके साथ चला गया| लेकिन उसने जो किया उससे मैं बहुत देर तक डरा-डरा घुमता रहा उसके घर में|
“क्यों ऐसा क्या किया उसने ” राधिका ने आश्चर्य से पूछा
जब मैं उसके घर गया| उसके घर पर कोइ नहीं था| उसने मुझे अपने कमरे में बुलाया| मैं बहुत खुश हुआ ओर अन्दर चला गया| सुलेखा बोली आप बैठो मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ| मगर उस कमीनी ने कमरे से बाहर निकलते ही दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और मुझसे बोली, वह अपने पापा को बुलाने जा रही है|
“फिर तो आपकी खूब पिटाई हुई होगी” राधिका चेहरे पर शरारती हंसी लिए बोली
“मै शक्ल से इतना बेवकूफ लगता हूँ क्या … सुलेखा के जाने के बाद उसका छोटा भाई आया तो मैंने उसे बताया… यार सुलेखा ने मजाक में मुझे अन्दर बंद कर दिया है|
मेरी बात पर भरोसा करके उसने दरवाजा खोल दिया| फिर कुछ दिन मैं स्कूल ही नहीं गया|
“उसके बाद मैने कभी किसी को प्रपोज नहीं किया… आपको छोड़कर”
“फिर आपने मुझे ही प्रपोज क्यों किया”|
“Very Simple आप मुझे अच्छे लगे”
“किशन जी आपसे एक बात पूछूं|
“हां… हां … पूछो क्या पूछना है|
आपको मुझमे क्या अच्छा लगा|
“सच कहूं तो मैं किसी की खूबसूरती को कभी अहमियत नहीं देता मगर न जाने क्यों आप मुझे पहली नजर में ही पसंद आ गये थे|
“आप खूबसूरती को अहमियत क्यों नहीं देते” राधिका ने हैरत से पूछा
“राधिका जी इस दुनिया में तो एक से बढ़कर एक खूबसूरत लड़की है लेकिन मैं यअगर वफा नहीं है तो फिर खूबसूरती जहर के अलावा कुछ भी नहीं |
“फिर भी आपको मुझमे ऐसी क्या बात दिखी जो आप मुझे पसंद करने लगे”
“आपकी हाजिर जवाबी और आपकी ये भूरी-भूरी आँखें ”
“क्या मतलब”
“मतलब अजब सी हैं आपकी सारी बातें
और गजब की हैं आपकी भूरी आँखें |
राधिका नजरें झुकाकर खामोश बैठ गई जैसे वह ख्यालों में कहीं खो गई हो…
“निची निगाहें, प्यारी आवाज और चेहरे पर सादगी भी है,
कैसे यकीन दिलाऊ, मेरी कातिल देखने में भोली सी है|
यार आप भी कमाल करते हो जब भी मैं प्यार मोहब्बत की बातें करना चाहता हूँ आप नजरें झुकाकर बैठ जाते हो… क्या बात है अब किस उलझन में पड़ गये|“आप हमारी ऊल्झन की न सोचें,
कहीं ऊल्झने आपकी न बढ़ जायें|
अगर ये बात है तो आप भी हमारी ऊल्झन की न सोचो, हमने भी अच्छे-अच्छो को ऊल्झाया हैं|
“अच्छा जी ये बात है तो…लो नजर आपसे मिला लेते हैं,
देखें आप हमे उल्झाते कैसे है|
दोनों आँखों में आँखें ड़ालकर जैसे इस दुनिया को भूल ही गये थे|
एकाएक आवाज आई “लगे रहो इंड़िया… लगे रहो…” ये सागर के शब्द थे|
“हाँ छ…छ…छोटे… बोल क्या बात है,” किशन हड़बड़ा गया|
“बात क्या है… कब से चिल्ला रहा था मगर आपको कुछ सुने तब तो… मैं एक झूले पर इससे ज्यादा देर तक नहीं खेल सकता| अब आपको रूकना है तो रूको मगर मैं घर जा रहा हूँ|
किशन ने उसे आइसक्रीम के लिए पैसे दे दिये और सागर चला गया|
सागर के जाने के बाद किशन व राधिका फिर से अपनी बातों में मशगुल हो गये|
“किशन जी एक बात पूछूं आपसे”
“पूछो…”
“आप किस तरह की लाईफ पसंद है,”
“लाईफ… मैं इस तरह से नहीं जीना चाहूंगा के अपने आस-पड़ोस और रिस्तेदारों के सिवा किसी को पता भी न चले कब दुनिया में आये और कब चला गये| मैं अपनी मातॄभूमि की ऐसी सेवा करना चाहता हूं कि लोग मुझे भी भारतीय आन्दोलनकारियों की तरह याद रखें और मॄत्यु के बाद भी मै उनकी बातों व यादों में जिन्दा रहूं| यदि मै अपने देश के लिये कुछ ऐसा कर सका तो मै अपना जीवन सफल समझूँगा|
“ओहो … तब तो आपको लेखक बनने की बजाये फौज मे भर्ती होना पडेगा”
“राधिका जी मेरे लिएअपने आप को सुधार लेना ही संसार की सबसे बड़ी सेवा ह परन्तु ऐसा हरगिज नही है कि अपनी मातॄभूमि की सेवा करने के लिये फौज का जवान होना जरूरी है नि:सदेंह फौज के जवान देश की रक्षा करते हुए मातॄभूमि की उत्तम सेवा करते हैं लेकिन यह एकमात्र रास्ता नही हैं उदाहरण के लिये बाबा रामदेव जी को लिजिये, वे फौज के जवान नही हैं लेकिन आज के हालातों को देखते हुए बाबा रामदेव जी अपनी मातॄभूमि की अति उत्तम सेवा कर रहे हैं| हमारे समाज में आज भी बहुत सी कमियां है जिनमे सुधार करके या करने का प्रयास करके भी हम अपने देश के विकास मे मदद कर सकते है|”
“किशन जी मै आपकी बात से सहमत हूं परन्तु हर कोइ इस बात से सहमत नहीं है और शायद इसीलिए कुछ लोग उनकी आलोचना भी कर रहे हैं”
“राधिका जी मै जानता हूं कुछ लोग बाबा जी की आलोचना कर रहे हैं मगर मै उन लोगों से सहमत नहीं हूं जो यह कहते है कि बाबा रामदेव जी को सिर्फ योग सिखाना चाहिये और जिसका जो काम है वह उसको करने दें और बाबा रामदेव जी के कुछ आलोचकों के शब्दों में साफ तौर पर गुन्डागर्दी झलक रही है मैं उन लोगों से पुछना चाहता हूं काले धन का मामला पिछले कइ वर्षों से उठ रहा है जिन लोगों का इस काले धन को वापिस लाने का काम था उनको अब तक किसने रोक रखा था या जो लोग यह कहते हैं कि बाबा रामदेव जी को सिर्फ योग सिखाना चाहिये वह यह बतायें कि यदि देश मे कोइ विप्पति आयेगी या देश के हालात बिगडेंगें तो क्या उसका प्रभाव बाबा रामदेव पर नही पडेगा और यदि देश के अच्छे तथा बुरे का प्रभाव उन पर पडता है तो देश के अच्छे या बुरे हालातों पर विचार करने का और यदि उनके पास इसके बारे मे कोइ उचित उपाय है तो वह देश के समक्ष रखने का उनको पूरा अधिकार है, न सिर्फ बाबा रामदेव बल्कि इस देश के हर नागरिक को यह अधिकार है क्योंकि स्वदेशप्रेम, स्वधर्मभक्ति और स्वावलंबन आदि ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक मनुष्य में होने चाहिए|”
“किशन जी मै आपकी बात से फिर सहमत हूं मगर यह सवाल भी तो उठ रहे है कि बाबा रामदेव जी भी राजनिति मे आना चाहतें हैं”
“अरे तो इसमे गलत क्या है| क्या संविधान में कहीं ऐसा लिखा है कि देश का भला चाहने वाला कोइ योगी या महात्मा देश की बागढ़ोर संभालने के लिये राजनिति मे नहीं आ सकता| यह तो और भी अच्छा है कि बाबा रामदेव जैसे देशभक्त मेरे देश का नेतॄत्व करें| राधिका जी मै तो उनके इस निर्णय का भी सर्मथन करता हूं और अपनी शुभकामनाएं देता हूं|”
“परन्तु उनके बारे मे भी तो कुछ गैर कानुनी बातें सामने आ रही हैं जैसे की उनकी पंतजलि योगपीठ की जमीन व टैक्स चोरी के बारे मे भी तो सवाल उठ रहे हैं|”
“राधिका जी गुणों व अवगुणों के समावेश से ही इन्सान बनता है| इन्सान जीवन में बहुत सी गलतियां करता है, मगर कुछ लोग कोइ ऐसा नेक काम कर जाते हैं कि वे मरने के बाद भी लोगों की बातों में, उनकी यादों में जिन्दा रहते हैं| यदि बाबा रामदेव पर लगाये गये आरोप सत्य हैं और यदि वे यह साबित हो जाने पर भी उन मामलों में कानुनी कमियों मे सुधार नहीं करेंगें तब उन मामलों में मै उनका विरोध भी करूगा लेकिन इसका मतलब ये कतई नही है कि मै उनके “भ्रष्टाचार मिटाओ सत्याग्रह” का समर्थन नहीं करूगा| मै स्वामी रामदेव जी के “भ्रष्टाचार मिटाओ सत्याग्रह” का समर्थक था, हूं और रहूंगा क्योंकि इस सत्याग्रह मे उनकी हर मांग राष्ट्र हित में है| जब 5अप्रैल2011 सें माननीय श्री अन्ना हज़ारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष करते हुए “जन लोकपाल विधेयक” पारित कराने के लिये उन्होने आमरण अनशन आरम्भ किया था तब उनके समर्थन मे मैने भी जन्तर-मन्तर से इण्डिया गेट तक हाथ में मोमबत्ती लेकर प्रदर्शन किया था| कुल मिलाकर मै यह कहना चाहता हूं कि मै आंखें बंद करके बाबा रामदेव जी का समर्थन नहीं कर रहा हूं बल्कि मै उनका समर्थन इसलिये कर रहा हूं क्योंकि उनकी हर मांग राष्ट्र हित में है और मै देश हित वाले सभी मुद्दों का समर्थन करूगा|
“मगर सुनने मे तो यह भी आ रहा है कि इस आंदोलन के पीछे आर. एस. एस., बीजेपी व सांप्रदायिक ताकतें हैं| ”
“अगर यह मान भी लिया जाए कि अन्ना और बाबा को संघ का समर्थन हासिल है तो उससे क्या आदोलन का उद्देश्य कमजोर हो जाता है| क्या जिन सवालों को लेकर अन्ना हजारे या बाबा रामदेव आदोलन कर रहे हैं, वे बेमानी हो जाते हैं| क्या आज हमारे देश में भ्रष्टाचार और काला धन राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है| क्या देश और जनता से जुड़े इन मुद्दों को राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी को समर्थन देने का हक नहीं है| राधिका जी भ्रष्टाचार और काला धन पूरे देश की समस्या है और आंदोलन के पीछे चाहे जिसका भी हाथ हो मगर ये मुद्दे हैं तो विशुद्ध और गंभीर| जिनके लिए कड़े कानून बनाने ही होंगे| साथ ही काले धन को देश में वापस लाने के लिए भी ठोस रणनीति अपनाने की भी सख्त जरूरत है| राधिका जी कुव्यवस्था के विरूध इस लड़ाइ में हम सभी को लड़ना चाहिए या लडने वालों का समर्थन करके उनका हाथ मजबूत करें| भ्रष्टाचार से सभी परेशान हैं इसलिये हर धर्म और मजहब के लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं लेकिन सरकार काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने के बारे में अध्यादेश जारी करने की बजाए लोगों को गुमराह करने के लिये इधर-उधर की बातें कर रही है| इससे तो यही समझ आता है कि सरकार न तो लोकपाल का गठन करना चाहती है और न ही विदेशों में जमा कालाधन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करना चाहती है| शायद इसके पीछे कारण यह है कि कालाधन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने से सरकार के मंत्रियों और उसके सहयोगी दलों के कइ नेता बेनकाब हो जाएंगे| राधिका जी काले धन के खिलाफ कार्रवाइ मे देरी देश के लिये नुक्सानदायक है क्योंकि इस दौरान भ्रष्ट लोगों को अपने अवैध धन को मुखौटा कंपनियों में लगाने का मौका मिल जाएगा और इस बात से भी इन्कार नही किया जा सकता कि सरकार के कुछ लोग झूठे, धोखेबाज और षड़यंत्रकारी हैं| लोगों पर आधी रात में लाठियां और आंसू गैस के गोले चलाए गए लेकिन सरकार के कुछ अधिकारी उस कार्यवाई को जायज बता रहे हैं जबकि उसे षड़यंत्र के अलावा कोइ नाम नही दिया जा सकता| अहिंसा के साथ किसी भी परेशानी के लिये प्रर्दशन करने वाले लोगों पर जिसमे निर्दोष बच्चें और महिलाएं शामिल हों, इस तरह की कार्यवाइ को जो लोग जायज बता रहे हैं वे लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं| ऐसे कृत्य को किसी भी हालत में सही नहीं ठहराया जा सकता है|
“किशन जी अगर एक मिनट के लिये कार्यवाई के सही या गलत के मुद्दे को भुला दिया जाये तो आप पायेंगे कि औरतों और बच्चों को मिले कष्ट के लिये कुछ हद तक उनके माता-पिता की मुर्खता जिम्मेदार है…”
“मूर्खता… कैसी मूर्खता| ” राधिका की बात बीच मे ही काटते हुए किशन ने पूछा|
“किशन जी बच्चों को इस आंदोलन मे लाने की क्या जरूरत थी| ”
“राधिका जी बहुत जरूरत थी और जिसे आप मूर्खता कह रही है वह भविष्य की तैयारी है| यह इसलिए जरूरी है ताकि नई पीढ़ी बचपन से ही अपने अधिकारों के बारे में और गलत व्यवस्था ठीक करने का तरीका जाने| उनमें भ्रष्ट व्यवस्था से संघर्ष करने का जज्बा पैदा हो और बचपन से ही उनमें गलत चीजों को मिटाने और अच्छे संस्कार अपनाने की भावना जन्म ले|”
“मैने तो इस नजरिये से सोचा ही नही था, चलो आपकी ये बात तो मै मान लेती हूं मगर एक बात तो आपको मेरी माननी ही पड़ेगी कि हमारे देश के तत्काल सिस्टम को देखते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ इस लडाई को कामयाबी आसानी से नहीं मिलेगी|”
“भ्रष्टाचार के खिलाफ ये लडाई कितनी कामयाब होगी, यह तो वक्त ही बताएगा और ये भी सही है कि सिस्टम के खिलाफ लड़ना बहुत मुश्किल होता है मगर ये भी याद रहे सिस्टम के खिलाफ जाकर तख्ता पलट करने वाला क्रान्तिवीर कहलाता है राधिका जी इस मुद्दे पर तो कितनी भी देर बहस की जा सकती है और इसका नतीजा जो भी होगा वह सबके सामने आ ही जाएगा इसलिये इसे यहीं विराम देते हुए अपने मुद्दे पर आते हैं आपको कैसी लाइफ पसन्द है|” किशन ने पूछा
“हम्म्म्म्म्म्म किशन जी बात तो आपकी एकदम सही है”राधिका ने सहमति जताते हुए कहा मै तो फिल्मी लाईफ जीना चाहती हू जैसी लाईफ फिल्मी हीरोइनो की होती है… जैसे देश-विदेश की खूबसूरत जगहों पर घुमना अपने हीरो के साथ रोमांटिक गीत गाना वगैरा-वगैरा…
“राधिका जी मेरे लिए तो ये पार्क ही इस दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह है क्योंकि यहां आप मेरे साथ हो और आप मेरा साथ दो तो मैं गाना भी गा सकता हूंं
“अरे मगर यहां वो बात कहां …” राधिका ने एक ठंड़ी आह भरते हुए कहा|
“क्यों क्या कमी है यहां… इस पार्क में भी तो चारों तरफ हरियाली है| हरे भरे पेड़ है यहां… क्या ये मौसम प्यारा नहीं है| चलो अब बहाने छोड़ो और गाना शुरू करो|
“किशन… पागल हो क्या… हम कैसे गा सकते है गाने ऐसे ही थोड़े न बन जाते है ”
“अजी मगर अपने मनोरंजन के लिए तो हर कोइ गुनगुनाता है हम भी वही करेंगें| वैसे ये इतना भी मुश्किल नहीं है जितना आप समझते हो| चलो मैं शुरू करता हूंं… आपके मन में उसके जवाब मे जो भी आये… वो आप बोलना… मगर उसमे थोड़ा सा प्यार का अंदाज मिला देना… गीत अपने किशन - भावनाओ में बह गया, जाने मैं कैसे कह गया,
ढ़ह गया सबर का बांध, हो गया मन बेकाबू ,राधिका - क्या
किशन - अरे ऐ छोरी, सुन आई लव यू
राधिका - मदहोशी में जो बोला, कभी होश में भी तो बोल दे,
चाहे मेरा दिल, तुने जो कहा, मैं भी अब वो बोल दू ,
किशन - क्या
राधिका - अरे ओ छोरे, सुन आई लव यू
किशन - क्या है तू जादुगरनी, जो यादों पे मेरी छा गई,
राधिका - बात ये तुने ऐसी की, जो मेरे दिल को भा गई,
किशन - जीने में मजा आने लगा, तुम संग लगा के यारी,
राधिका - छा गये तुम भी यारा, कर लिया ये दिल काबू ,
किशन - क्या
राधिका - अरे ओ छोरे, सुन आई लव यू
राधिका - क्या कहेगी दुनिया, करो होश अब कुछ तो,
किशन - क्या हुआ न जाने, कुछ समझ न आया मुझको,
राधिका - तुमसे डर सा लगता है, कर दोगे रुशवा मुझको,
किशन - अच्छा जी ना बोलूंगा, मगर इशारें में तो कह दूं ,
राधिका - क्या
किशन - अरे ऐ छोरी, सुन आई लव यू |
राधिका - अरे ओ छोरे, सुन आई लव यू|
अरे वाह किशन जी आपने तो कमाल कर दिया|
अजी कमाल क्या… आप मेरा साथ देते रहिए धमाल अभी बाकी है
मै जानी हूंं तू मैरी है,
मै तेरा हूंं तू मेरी है,
दो पल हों प्यार के तेरे संग,
बस जिन्दगी बथेरी है…|
राधिका जी … आप चुप क्यों हो गये… गाओ …
बस… बस… किशन… बहुत अच्छे… अब तो मुझे यकीन है आप एक दिन जरूर कामयाब होंगंे|
“शुक्रिया मैड़म… अब एक बात बताओ आप प्रदीप को कैसे जानते हो”|
“प्रदीप… आप किस प्रदीप की बात कर रहे हैं,”|
“वही जो पार्क के गेट के पास आपसे बात कर रहा था”|
“ओह प्रदीप जी… वह तो मेरे जीजा जी के दोस्त थे… मगर मेरे लिए तो वह भगवान जैसे है| जैसे मुश्किल वक्त में उन्होने हमारी मदद की, वह सब बस भगवान ही कर सकता है,”
“इसने कौन से मुश्किल वक्त में तुम्हारी मदद कर दी” किशन ने उखड़े स्वर में कहा|
“बीते दिनो में मेरे जीवन में जो मुसीबतें आयी थी मैं उन्हे याद करके उस बुरे वक्त को दोहराना नहीं चाहती… मगर आप क्यों पूछ रहे है… क्या आप भी उन्हे जानते हैं| ”
“नहीं… मैं उसे नहीं जानता”
“तो फिर क्यों पूछ रहे थे उनके बारे मे”
“मुझे लगा शायद वह आपको परेशान करता हो” किशन ने कुछ खीझकर कहा|
“अच्छा बाबा सॉरी… अब गुस्सा छोडो… आपने वादा किया था आज हम ड़ीनर साथ करेंगंे|
“हां… हां… मुझे याद है… “
“ये हुई न कुछ बात” राधिका ने ईठलाते हुए कहा और दोनों एक रेस्टोरेंट की तरफ चल पड़े|
“हाये री छम्मक छल्लो एक बार जरा ऐसी ही अगंड़ाइ लेकर हमारे साथ आजा… ड़िनर तो तुझे हम भी करा देंगें” राह चलते तीन लड़कों ने राधिका को छेड़ते हुए कहा|
“ये क्या बदतमिजी है,” किशन ने कहा|
“किशन चलो यहां से कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं,” राधिका ने कहा|
“अबे ओ चिकने चल फुट ले… अब ये छम्मीयां हमारे साथ जायेगी”
“जबान संभाल कर बात कर कुत्ते” कहते हुए राधिका ने उस बदमाश पर हाथ छोड़ दिया| लेकिन दूसरे लड़के ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी बाहों की गिरफत में ले लिया|
वाह री मेरी बुलबुल बहुत गर्मी है तुझमे… अब तू देख ये कुत्ते भौंकते ही नहीं बल्कि काटना भी जानते है|बाकी बचे दो लड़को ने किशन को पकड़ रखा था| किशन भी मन बना चुका था कि वह तीनो से एक साथ भिड़ने की बजाये एक-एक करके तीनो को तसल्ली सेकहते हैं इन्सान सारे जीवनकाल मे अपने आत्मबल का दस प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं करता| जब कभी इन्सान पर कोइ ऐसी परिस्तिथि आती है कि यदि वह नाकामयाब हो गया तो वह अपनी ही नजरों मे गिर जायेगा या यूं कहे कि इन्सान अपने मातापिता या किसी अन्य जान से ज्यादा अजीज को मुसीबत मे पाता है तब इन्सान अपने आत्मबल का सौ प्रतिशत इस्तेमाल करता है ऐसी स्तिथि मे वह नाखुनों से खरोंच कर किसी पर्वत में से भी रास्ता बना सकता है|
किशन ने अपनी पूरी ताकत लगाकर दोनों लड़को की गिरफत से खुद को आजाद कराया| वह शेर के सी दहाड के साथ तीसरे लड़के पर टूट पड़ा और उसका कान काट खाया| किशन इतने जोर से चीखा था कि तीनो लड़के कुछ पल के लिय सहम गए थे| इस बीच राधिका भी खुद को आजाद करा चुकी थी| किशन ने अब तक लड़के का कान नहीं छोड़ा था जबकि लड़का दर्द के मारे तडप रहा था| अपने साथी की चीखें सुनकर दोनों लड़को ने उसे छुड़ाने की जोरदार कोशिश की| किशन की पकड़ इतनी मजबुत थी, कि दोनों के पसीने छूट गये| कड़ी मश्क्कत के बाद आखिर दोनों ने अपने दोस्त को छुड़ा लिया|
अब दोनों लड़को ने मिलकर किशन को मारना शुरू कर दिया तथा कान कटे लड़के ने राधिका को पकड़ लिया| एक जोरदार घंूसे के प्रहार से किशन लड़खड़ाकर सड़क पर गिरा जहां उसे एक आधी इंट पड़ी हुई दिखी| किशन ने इसे उठाया और अपनी पूरी ताकत के साथ उस कान कटे लड़के की तरफ फेंकी, जो इस वक्त राधिका के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था| इंट सीधे जाकर कान कटे लड़के के कूल्हे पर लगी और वह हाय माँ मर गया री माँ… की हॄदयविदारक चीख के साथ कूल्हे पर हाथ रखकर वहीं सड़क पर लेट गया| अपने कान कटे दोस्त को इस तरह कराहते हुए देखकर दोनों लड़कों ने पागलों की तरह किशन को मारना शुरू कर दिया| कुछ ही देर में उन्होने किशन को लहूलुहान कर दिया| किशन को कमजोर पडता देख, राधिका ने सहायता के लिए पुकारना शुरू किया|
देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ हो गई|
भीड़ में से एक नौजवान उनकी मदद के लिए आगे आया और तीनो लड़को को मार भगाया|
किशन ने उस नौजवान को देखा तो वह हैरान रह गया| वह नौजवान प्रदीप था|
“मुझे समझ नहीं आता, मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं | … मुझे विश्वास नहीं होता कि तुमने मेरी मदद की” किशन ने कहा|
“तुम्हारा ऐसा सोचना गलत नहीं है, क्योंकिं मैने मदद करने से पहले ये नहीं देखा था कि मैं किसकी मदद कर रहा हूंं| सहायता के लिए आवाज किसी लड़की ने लगाई थी, इसलिए मैने मदद की थी मगर इसका मतलब ये कतई नहीं है, कि मैं तुमको देख लेता तो तुम्हारी मदद न करता| अरे भई मेरी तुमसे कोइ जाति दुश्मनी तो नहीं है जो मैं तुम्हारी मदद न करूं|
किशन व राधिका दोनों ही ने प्रदीप को धन्यवाद दिया|
किशन एक अजबसी उलझन में था कि जिस प्रदीप को आज तक वह एक बुरा लड़का व अपना दुश्मन समझता था| आज उसी प्रदीप ने उसके प्यार की इज्जत बचाने में उसकी मदद की| वह मन ही मन खुद को प्रदीप के अहसान तले दबा महसूस कर रहा था|
“बाबू जी अगर किसी का दुश्मन उसकी कोइ मदद कर दे तो उसे क्या करना चाहिए” किशन ने श्रीहरिनारायण से पूछा|
“बेटा ऐसे में उसे उस दुश्मन की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा देना चाहिए”|
“मगर बाबूअहसान से दुश्मनी दोस्ती में बदल जाती है…, लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो”
“बस ऐसे ही ख्याल आया था बाबू जी…”|
किशन ने अगली ही मुलकात में प्रदीप की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया|
“बिना सोचे समझे या किसी के बारे में जाने बिना की हुई दोस्ती ज्यादा दिन नहीं रहती इसलिए मैं पहले ही आपको एक बात बता देना चाहता हूँ” प्रदीप ने कहा|
“कहो… क्या बात है| ”
”मै सीमा से प्यार करता हूँ और चाहे जो हो जाए मैं उसे नहीं भूल सकता इसलिए सोच लो|”
“अब इसमे मुझे क्या सोचना है… अगर आपका प्यार सच्चा है और सीमा की भी यही मर्जी हुई तो ये किशन का वादा है मैं तुम दोनों को मिलाने की कोशिश करूगा… एक बार फिर उसने प्रदीप की तरफ हाथ बढ़ा दिया|
इस बार प्रदीप ने किशन की दोस्ती स्वीकार करते हुए हाथ मिला लिया|
कुछ महीनों तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा|
राधिका व किशन दोनों साथ-साथ इतना वक्त गुज़ारते थे कि शुरुआती दोस्ती के बाद दोनोंं के बीच गहरे आत्मीय रिश्ते बन गए थे|
बरसात का मौसम अपनी पूरी रवानगी पर था| पल भर के लिए आसमान साफ होता फिर सारा गगन भूरे काले मेघों से आच्छादित हो जाता, और फिर वे अपनी रसधार से पूरी सॄष्टी को नहलाते चले जाते| जड, चेतन सब ओस में नहाये कमल का रूप अख्तियार कर लेते थे|
ऐसे ही मौसम की खूबसूरत शाम थी, जब किशन व राधिका जवाहरलाल नेहरू पार्क में मिले|
“राधिका जी आज तो आप बहुत खूबसूरत लग रहे हो| खासकर आपकी ये टी-सर्ट तो आप पर खूब जंच रही है इस पर कढ़ाई किया हुआ यह टेड़ी बियर कितना मुलायम और सुन्दर दिखता है,” टी-सर्ट पर हाथ फिराते हुए मनुहार भरे शब्दों में किशन ने कहा|
“हां-हां मैं खूब समझ रही हूँ आप मेरी तारीफ करते हुए जरा अपने हाथों को कंट्रोल में रखो”
“वो मैं तो… वो आपका वो तिल दिख रहा था इसलिए मैने तो टी-सर्ट ठीक करने के लिए…”
“अरे वाह- बड़ी तेज व पारखी नजर है आपकी - क्या कहने - मैं तो आपको भोंदू समझती थी लेकिन आप तो इधर-उधर नजर मारना भी जानते हो” राधिका ने आँख नचाते हुए कहा|
“मेरा भरोसा करो यार… सच में तुम्हे उस तरह से छुने का अभी मेरा कोइ इरादा नहीं था”|
“अभी… ये अभी का क्या मतलब है| ”|
“वो म्म्म मै… मेरा मतलब… कोइ ईरादा नहीं था यार”|
“अच्छा बाबा इसमे इतना घबराने की क्या जरूरत थी” राधिका के पतले–पतले होंठ विचित्र अंदाज में भिंचकर मुस्कुराये|
उसकी हँसी के अंदाज को देखकर किशन का मन मयूर सा नाच उठा| खुशी के मारे उछलकर वह राधिका के सामने आ बैठा और उसका गोरा गोल मुखड़ा हथेलियों में भर लिया|
“राधिका हड़बड़ाइ„ चेहरे पर घबराहट के भाव छा गये|
किशन अपलक उसे देखता ही रहा|
राधिका को ऐसा लगा जैसे किशन की नजर का वह तीखा अंदाज किसी कटार की भांति उसके कलेजे में उतर गया हो|
दोनों दुनिया को भूलकर एक दूसरे में खो गये|
“वो… वो किशन जी मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी” राधिका ने संभलते हुए कहा
“जरूरी बात… प्यार से बढ़कर कौन सी जरूरी बात होती है यार| ”
“सही कहा जी प्यार से बढ़कर कोइ जरूरी बात नहीं होती… मगर जनाब मैने भी आपसे सच ही कहा था मैं आपसे जरूरी बात ही करना चाहती हूंं|
“मतलब…”
“मतलब ये है किशन कन्हैया जी मुझे आपसे किसी के प्यार के बारे में ही बात करनी है,”
“किसी के… किसके प्यार के बारे मे”|
“प्रदीप के प्यार के बारे मे”
“प्रदीप का प्यार… मगर तुम्हे कैसे पता उसके प्यार के बारे मे” किशन ने गंभीरता से पूछा
“खुद प्रदीप जी ने ही बताया| वह कह रहा था वह सीमा से सच्चा प्रेम करता है, और उससे शादी करना चाहता है,”
“वो सब तो मुझे भी पता है मगर प्रदीप तुमसे क्या चाहता है…| ”
“प्रदीप चाहता है कि मैं उसके मन की बात सीमा तक पहंुचाऊं ं”|
“ओके … तो ये बात है … फिर परेशानी कहां है| ”
“मै इस उलझन में हूंं कि उसकी मदद करू या नहीं”|
“मगर आप उलझन में क्यों हो… क्या तुम्हे उसकी बाते झूठ लगती हैं| ”
“उसकी बातों से तो ऐसा कुछ नहीं लगता मगर एक तरफ जहां उसने हमारी मदद की थी दूसरी तरफ आपके साथ झगड़ा हुआ था…, मैं कोइ निर्णय नहीं ले पा रही हूंं”
“अरे इसमे ऊल्झन की क्या बात है, तुम एक बार सीमा से बात करके देख लो… सीमा जो फैसला करेगी वही सही होगा| रही बात मेरी तो मैने तो प्रदीप को कब का माफ कर दिया है बल्कि अब तो हम दोनों में दोस्ती भी हो गई है| यह बात तुम सीमा को भी बता देना|
“अगर ऐसी बात है तब क्यों न हम परसों नव–वर्ष की पार्टी में उन दोनों की मुलाकात करा दें| फिर उनको जो ठीक लगे वो जाने”|
“ख्याल बुरा नहीं है… सब मिलकर नव वर्ष का जश्न मनायेंगे” किशन ने खुश होते हुए कहा|
“ये ख्याल मेरा नहीं बल्कि प्रदीप का है और पार्टी भी उसी की तरफ से है … मगर पता नहीं सीमा हमारे साथ आने के लिए तैयार होगी भी या नहीं”|
“तुम उसकी फिक्र मत करो सीमा को पार्टी में लाने की जिम्मेदारी मेरी” किशन ने कहा|
“तो फिर ठीक है मैं प्रदीप को इस बारे में बता दूंगी”
पार्टी की सारी तैयारियां हो गई थी| ऊपर खुली छत पर एक तरफ ड़ी. जे. तो उसके ठीक सामने दीवार के सहारे फर्श पर मुलायम गददे बिछा दिये गए| अपनी परिकल्पना के अनुसार प्रदीप ने मेहमानों के बैठने की ऐसी व्यवस्था करवाई कि आने वाले को पहली नजर में लगे वह सचमुच किसी रईश की पार्टी में आया है|
प्रदीप ने महफिल में जान ड़ालने के लिए रश्मी, श्रुति, बिन्नी, हिमानी, शिवानी और ज्योति के साथ-साथ नितिका को विशेष रूप से बुलाया था, तथा इनको ऐसा निर्देश दिया जा चुका था कि महफिल में ऐसा रंग जमना चाहिए कि आने वाले मेहमान बरसों तक याद रखें| बावजूद इसके प्रदीप का जी ठिकाने नहींं है| सीमा उसकी पार्टी में आयेगी या नहीं इस बारे में सोचकर वह बेचैन हैं|
आमन्त्रित अतिथि आ चुके है| ड़ांस फ्लोर पर बच्चों (साहिल, सागर, अनिकेत, कमल, रिजूल, गुरविन्द्र आदि) की उछलकूद शुरू हो चुकी हैं, मगर किशन और राधिका का अब तक कहीं अता-पता नहीं है| उनके इन्तजार में प्रदीप की हालत यह हो गई कि दूर-दूर तक पसरी रोशनी में भीगा हर साया उसे उनके होने का भ्रम देने लगा है|
प्रदीप को जैसे ही किशन के आने की सूचना मिली, वह तेज़ी से दरवाजे की ओर लपका और सीमा को भी उसके साथ देखकर उसका मन एक शीतलता से भीग गया| वह सीमा को देखता ही रह गया| उसकी एक झलक ने ही प्रदीप को भीतर तक आश्वस्थ कर दिया|
"अबे यार कहा मर गया था| " किशन को देखते ही आत्मीय ड़ाट मारते हुए प्रदीप ने पूछा|
“बस यार ऐसे ही जरा सी देर हो गई थी” किशन ने जवाब दिया|
“सीमा जी, कैसी हो| " मुस्कान के साथ सीमा का स्वागत करते हुए प्रदीप ने पूछा|
"जी अच्छी हूं " सीमा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया|
इस बीच राधिका भी आ चुकी है|
"प्रदीप, सब ठीक तो है| " राधिका ने पूछा|
"वैसे तो ठीक है पर न जाने क्यों मेरा जी घबरा रहा है कहीं सीमा को बुरा न लग जाए|"
"तू बेफिक्र रह… मैं सब सभाल लूंगी”
राधिका ने अपनी ओर अपलक निहारती सीमा का अभिवादन किया|
सीमा ने भी हल्की मुस्कान के साथ राधिका का अभिवादन स्वीकार किया|
“यार किशन तुम जरा मेरे साथ आओ …” आंख दबाकर इशारे से बुलाते हुए प्रदीप ने कहा|
किशन प्रदीप के साथ चला गया|
खुली छत से आकाश में झूलती तारों की झीनी चादर से टिमटिमाते हुए तारे ऐसे दिखाई दे रहे है, मानो सितारों से जडी ओढ़नी पर ओस की बूदें चमक रही हैं|
दस बजते-बजते पूरी छत भर गई| अब कुछ रंगीन बल्बों को छोड़कर सारी बत्तिया बुझा दी गइं, और जैसे ही ड़ी• जे• पर “कार्तिक कॉलिंग कार्तिक" फिल्म ऊफ तेरी अदा, आई लाइक दा वे यु मुव,
ऊफ तेरा बदन, आई वान्ट टू सी यु ग्रुव,
ऊफ तेरी नजर, इट सेज आई वाना ड़ांस विद यू…
तब ड़ांस फ्लोर पर जो धमाल मचा, वह देर तक नहींं थमा| इसके बाद फिल्म “दबंग” के “मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिये…” और फिल्म “तीस मार खां” के माई नेम ईज शीला… शीला की जवानी… सुपरहिट गीतों के बजने पर तो मानो ड़ांस फ्लोर पर लरज़ती, बलखाती देहों से ड़ांस फ्लोर पर नॄत्य यज्ञ शुरू हो गया| जिसमें सब लोग ठुमकों के रूप में दो-चार चुटकी समिधा होम रहे थे| रश्मी, बिन्नी, हिमानी और ज्योति तो नाचीं ही, बीच-बीच में किसी न किसी के आग्रह पर नितिका भी एकाध ठुमका मार लेती| महफिल में शोखिया और शोखियों में गहराती रात का शबाब घुलने लगा| सही कहा था नितिका ने प्रदीप हम ऐसा आइटम तैयार करके लाई हैं, कि सब देखते रह जाएगे| इसके बाद एक के बाद एक बिन्नी नितिका और ज्योति तीनों ने ड़ी• जे• पर जो ड़ांस किया, उस पर अन्य मेहमान भी खुद को नहींं रोक पाए| अलसाए से पडी जिस्मों में ताकत लौट आई| सुप्त शिराओं में खून दौड़ने लगा और मेहमानों के खाली गिलास फिर से भर उठे| शराब व चाय-काफी के साथ-साथ ब्रेड-पनीर और जूस के दौर भी खूब चल रहे थे| किशन ने पास बैठे प्रदीप को इशारे से अपने पास बुलाया और लगभग फुसफुसाते हुए कहा, यार प्रदीप, वोººº वो पहला तोड़ कहाँ है|
प्रदीप तुरन्त उठा और एक लड़के को बुलाया|
"ये हूइ न कुछ बात" पहले तोड़ से भरते जा रहे गिलास को देख किशन की बाछें खिल उठीं|
जैसे-जैसे रात बीतने लगी हल्की ठंड़ के चलते आकाश से ओस गिरने लगी, वैसे-वैसे महफिल पर और रंग चढ़ने लगा| ज्योति ने तो जैसे आज क़सम खा ली थी, कि जब तक महफिल खत्म नहीं होगी, तब तक वह ड़ांस करती रहेगी, चाहे दिन निकल आए|
ग्यारह कब बज गए पता ही नहींं चला| इधर राधिका ने प्रदीप और सीमा की मुलाकात कराने का बंदोबस्त कर दिया और चार कुर्सियां अलग से छत के एक कोने में बिछ गई| जहां किशन और राधिका तथा सीमा और प्रदीप आमने सामने बैठ गये|
कुछ देर तक चारों खामोश बैठे रहे तब हारकर राधिका को ही कहना पडा“ प्रदीप मज़ा आ गया क्या शानदार पार्टी दी है तुमने"|
"सीमा जी, आपको अच्छा लगा या नहींं " राधिका ने पूछा|
"बस, एक कमी रह गई|"
"कºººकौन सी| " कलेजा धक्क से रह गया प्रदीप का| शब्द हलक में फसकर रह गए|
"यही कि महफिल खत्म होने को है मगर किशन के होते हुए भी कोइ शायरी-वायरी नहीं हुई|"
"अरे … अब कहा याद है शायरी-वायरी" टालते हुए किशन बोला|
"किशन, ऐसे बात न बनाओ|" राधिका ने नाराज होते हुए कहा|
"यार किशन, ये दोनों सही कह रही हैं… मुद्दत हो गई है सुने हुए" पास आकर प्रदीप ने कहा|
प्रदीप ने जिस तरह आग्रह किया, उस पर किशन से न कहते नहींं बना|
“वह कुछ सोचने लगा और बोला" ठीक है राधिका जी मैं याद करके देखता हूँ… तब तक आप प्रदीप को आदेश करो कुछ सुनाने के लिए"
"हाँ यार प्रदीप को तो मैं भूल ही गई थी|" राधिका ने चटकारा लेते हुए कहा|
"मैंºººमैं क्या सुनाऊ" अकबका गया प्रदीप अचानक सिर पर आ पडी इस बला को देख|
"कोइ भजन-वजन ही गा दो अगर शायरी नहीं आती हो तो"|
“अच्छी बात है मैं कोशिश करता हूँ” प्रदीप ने कहा|
खुमारी में ड़ूबी पलकें अपने आप खुल गई| शिराओं में घुल चुके अल्कोहल से अचेत पडी जिस्मों में भी हल्र्की हल्की जुम्बिश होने लगी| राधिका धीरे से उठकर प्रदीप के पास आ गई| किशन, सीमा और राधिका के कानों के परदे ढ़ीले हो गए| प्रदीप ने हल्र्के से पूरी महफिल पर नज़र दौड़ाई और पता नहींं कब सबसे नज़रें बचाकर, सीमा को देख पहले उसने गहरी साँस ली, फिर किशन को सम्बोधित करते हुए बोला, "किशन जी मै शायरी के नियमो को नहीं जानता इसलिए कोइ गलती हहाए रे महोब्बत तू क्युं , हमे बदनाम कर गई,
जीवन बिताने का यूं , अच्छा इन्तजाम कर गई|
हाए रे महोब्बत तू क्युं …
तेरे मारे दिल से हारे,
कहांं जाएं हम बेचारे,
हर तमन्ना इस दिल की,
तू कत्ले आम कर गई,
हाए रे महोब्बत तू क्युं , हमे बदनाम कर गई,
जीवन बिताने का यूं , अच्छा इन्तजाम कर गई|
जिन आखों में भारीपन उतर आया था, वे भी अब पूरी तरह खुल गइं|
"वाह, क्या बात है यार... जीता रह|" किशन की अधमुंदी आखें झिलमिलाने लगीं|
"किशन, अब तो याद आ गया होगा, या अभी कुछ और सुनवाया जाए" प्रदीप ने कहा
कुछ-कुछ याद आया है भाई लेकिन जब तक मुझे ठीक से याद आये राधिका जी …
“मैं… मै क्या… अच्छा ठीक है मगर इसके बाद आपका भी कोइ बहाना नहीं चलेगा” राधिका ने किशन की ओर देखते हुए नजाकत से कहा|
“हमे मंजूर है…” किशन ने कहा
राधिका -
दुआ करना हो सके तो, रे मिल जाए मुझको, वो है भगवान मेरा जो,
क्या आएगा दिन कोइ, अरे ऐसा भी, जब साथ मेरे दिलदार मेरा हो,
है ना परवाह मुझे जमाने की, बस एक साथ मेरे, अगर साथ तेरा हो,
दुआ करना हो सके तो, रे मिल जाए मुझको, वो है भगवान मेरा जो,
कभी हम निकले घुमने, और हो हाथों में एक दूजे का हाथ,
तेरी आंखों में ड़ाल के आंखें, मैं कह दूं अपने दिल की बात,कैसे कहूंं मुझे कब से है इन्तजार अपने मिलन की रात का,
काश के जल्द आए वो रात, और फिर कभी ना सवेरा हो,
दुआ करना हो सके तो, रे मिल जाए मुझको, वो है भगवान मेरा जो,
मै ना सुनुं किसी की जमाने में, जब आया मुझको, ख्याल तेरा हो|
दुआ करना हो सके तो, रे मिल जाए मुझको, वो है भगवान मेरा जो,
क्या आएगा दिन कोइ, अरे ऐसा भी, जब साथ मेरे दिलदार मेरा हो,
"किशन, अब कोइ बहाना बनाया तो बहुत मार पड़ेगी बेटा…"प्रदीप ने कहा
“उसकी नौबत नहीं आयेगी भाई…मेरे दिल पे बिजली गिराके, रे उसे क्या मिलता है,
मेरी धड़कन को बढ़ाके, रे उसे क्या मिलता हैमुड़ के भी ना देखे, बस चल देती है मुस्कुरा के,मेरे दिल पे छुर्रियां चलाके, रे उसे क्या मिलता है|
हर आशिक का मन मन्दिर, सनम भगवान है इसका,
लेके अरमानों की थाली, बस करते रहो इसकी पूजा,
मन्दिरों में रे घंटी बजाके, किसी को क्या मिलता है
मेरे दिल को धड़काके, रे उसे क्या मिलता है,मेरे दिल पे छुर्रियां चलाके, रे उसे क्या मिलता है|
मेरी धड़कन को बढ़ा के, रे उसे क्या मिलता हैमेरे दिल पे बिजली गिराके, रे उसे क्या मिलता है,
वाह… किशन प्यारे…
ऐ कुडिये हिमाचल
ना धड़का यूं मेरा दिल
ये हरियाणे का छौरा
हो ना जाये पागल
तू कितनी ब्यूटीफुल
कैसे करूं तारीफ मै
हाय एक अजूबा
ये तेरी भूरी आखें हैं
उस पे तेरी मीठी बोली
जिसका मै कायल
ऐ मिस हिमाचल
ना धड़का यूं मेरा दिल
सुन्दर् नगर की
सुन रे सुन्दरी
अब तो बस ये ही
ख्वाहिश है मेरी
मेरे आंगन मे
छनके तेरी पायल
ऐ मिस हिमाचल
ना धड़का यूं मेरा दिल
ऐ कुडिये हिमाचल
ना धड़का यूं मेरा दिल
ये हरियाणे का छोरा
हो ना जाये पागल....
वाह… प्यारे जीते रहो…
“प्रदीप जी अब जब तक राधिका जी चाहें ये महफिल ऐसे ही चलती रहेगी…”
“भला मेरे चाहने से कैसे… मै कुछ समझी नहीं”|
“राधिका जी आप एक कविता सुनाइयें… और मै आपकी हर एक कविता के बदले मे दो कवितायें सुनऊंगा… इस तरह जब तक आप चाहें ये सिलसिला जारी रहेगा|
“अगर ऐसी बात है तो ठीक है आप याद करना शुरू कर दीजिये… और जरा गौर फर्माइये…
लग जा गले यारा, रखा है क्या बहानों मे,
नाम तेरा पहला है, मेरे अरमानों मे,
छुपाने से न बात छुपेगी,
बदनामी तो होके रहेगी,
चर्चा तेरा मेरा है,
आजकल दीवानों में,
नाम तेरा पहला है, मेरे अरमानों मे…
कुछ भी कर ले तू, कुछ भी बन जा,
दीवाने को ना तूने समझा,
तुझसे ज्यादा पाएगा तुझे,
ये जग मेरे अफसानों में,
नाम तेरा पहला है, मेरे अरमानो मे…
प्यार करे जो, जिसे प्यार मिला हो,
दिल मे रहा जो दिल मे बसा हो,
खुश वो रहे कैसे,
मिट्टी के मकानों मेंं,
नाम तेरा पहला है, मेरे अरमानों मे|
“वाह क्या बात है…” संयोग से सीमा व प्रदीप ने एकसाथ कहा|
“बहुत अच्छे राधिका जी मगर अब जरा ध्यान दीजिये…
गुजर जायेगी जिन्दगी,
हो जायेगा अब गुजारा,
जीने को जो मिल गया,
तेरी यादों का सहारा|
मजे में गुजरते हैं दिन अब,
मिलने को तुमसे सो जाते हैं,
जब–जब याद आयी आपकी,
तन्हाई ने भी बस यही पुकारा,
गुजर जायेगी जिन्दगी,
हो जायेगा अब गुजारा,
जीने को जो मिल गया,
तेरी यादों का सहारा|
वाह किशन जी… आपने तो इस शाम को और भी यादगार बना दिया…
अजी एक ओर सुनिये इस हसीन शाम के नाम…
मुस्कुरा के, दिल धडका के
वो तो चैन चुराके, चली गई
प्रीत बढा के, लगन लगा के
वो तो प्यार सिखा के, चली गई
हा मुझे प्यार सिखा के, वो तो चली गई
हा मुझे अपना बना के, वो तो चली गई
यारो वो हसीना मेरे दिल का नगीना
आए रातों को अब नींद भी ना
सपने सजा के, अरमां जगा के
वो मन का मीत बना के, चली गई
हा मुझे प्यार सिखा के, वो तो चली गई
ख्यालों मे आज फिर वो आई थी
मेरे मन की नगरी फिर महकाई थी
कलम उठा के, कुछ गुनगुना के
वो प्रेम का गीत लिखा के, चली गई
हा मुझे प्यार सिखा के, वो तो चली गई
हा मुझे अपना बना के, वो तो चली गई
इस गीत को किशन ने जिस अंदाज़ में गाया, उसने सभी का मन मोह लिया|
आकाश से झरती ओस की बूदें भी थोडी देर के लिए जहा थीं, वहीं ठहर गइं|
इससे पहले कि राधिका कोइ टिप्पणी करती प्रदीप ने महफिल को समापन की ओर धकियाते हुए कहा “दोस्तों नया साल हम सबका इंतज़ार कर रहा हैººº मैं आप सब का शुक्रगुजार हूँ जो आप सब यहां आए और इस महफिल को इतना बेहतरीन बना दिया… मैं कामना करता हूंं कि आने वाला समय हम सबके लिए गरिमा और गौरव बढ़ाने वाला हो… आज की ये रात मेरी जिन्दगी की सबसे हसीन रात है| इसके लिए विशेषकर मैं अपने दोस्त किशन का शुक्रिया अदा करता हू , क्योंकिं इस रात को यादगार बनाने में उसका अहम योगदान है,” अब इससे ज्यादा मुझ जैसा ना चीज़ क्या कहेगा| मेरे पास शब्द ही कहां है जो मैं आप लोगो का मनोरंजन करने के लिए अपनी इस छोटी सी जुबान से बाहर उंड़ेल दूं|
तो दोस्तो, बातें बहुत हो गई बारह बजने को आए हैं| नया साल आने ही वाला हैººº अब मैं अपनी बात को समेटता हूँ और आप सब को नव-वर्ष की शुभकामनाएं देता हूँ|
ठीक बारह बजते ही बम-पटाखे बजाए गए| सभी ने एक दूसरे को नव-वर्ष की बधाई दी और ऐसे ही कुछ अवसर से जुडी वाक्यों का आदान-प्रदान हुआ| मगर किशन तो शराब के नशे में इस तरह धुत था| वैसे तो नशे में सभी थे लेकिन वह तो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था| उसकी इस हालत को देखते हुए कुछ मेहमानों ने उसे वही सो जाने की सलाह दी मगर सीमा के मना करने पर वह सीमा के साथ अपने घर के लिए चल दिया|
“सॉरी… सीमा आज मैनंे थोड़ी ज्यादा पी ली” सफाई देते हुए किशन ने कहा|
“थोड़ी ज्यादा… बहुत ज्यादा पी है,”
“सॉरी…”
“नहीं सॉरी बोलने की जरूरत नहीं है मगर आपको उतनी ही पीनी चाहिए थी जितनी में आपका शरीर और आपका दिमाग आपके कट्रोंल में रहे”|
“सच कह रही हो सीमा … मैं आज के बाद कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाऊगा… लेकिन अगर फिर भी कभी कही किसी शादी या पार्टी वगैराह में पीऊगा तो बहुत थोड़ी सी……”
“अच्छा - अच्छा… अब चुप हो जाओ लगता है तुमको चढ़ गई…” टोकते हुए सीमा बोली|
कुछ देर दोनों चुपचाप चलते रहे फिर सीमा बोली “भैया सच कहूंं तो शायद मैने भी ज्यादा पी ली| मैं भी अपने कदमों को कंट्रोल नहीं कर पा रही हूंं मेरे कदम भी कहीं के कहीं पड़ रहे हैं,”
“तुमने कितने पैग लगाये थे”
“एक बियर… ”
“बस एक बियर में…”
इस तरह दोनों आपस में बातें करते हुए चले जा रहे थे| कुछ देर चलने के पश्चात् किशन पर नशा इतना हावी हो चुका था कि अब उसके लिए चलना भी मुश्किल हो गया व उसे उल्टीयां शुरू हो गई| कुछ देर आराम करने के इरादे से वह वहीं सड़क पर पसर गया|
सीमा उसे जगाने का प्रयत्न कर ही रही थी कि एक कार उनके पास आकर रूकी|
कुछ देर के लिए वह सहम सी गई|
गाड़ी का दरवाजा खुला और प्रदीप गाड़ी से बाहर निकला| उसके पास आकर वह नाराजगी सी जाहिर करते हुए बोला “सीमा जी इतनी भी जिद अच्छी नहीं होती किशन की हालत को देखते हुए ही हमने आप दोनों को रूकने को कहा था मगर आप … ”|
“मुझे क्या पता था ऐसा होगा” सीमा ने किशन की तरफ देखते हुए कहा
“ओके-ओके… कोइ बात नहीं…आप चलकर गाड़ी में बैठो मैं आप दोनों को घर छोड़ देता हूँ|
“सीमा मन ही मन भगवान के साथ-साथ प्रदीप का भी शुक्रिया अदा कर रही थी| प्रदीप ने सुप्त अवस्था में ही किशन को उठाकर अपने साथ आगे वाली सीट पर बिठाया और सीमा गाड़ी की पीछली सीट पर बैठ गई| नशा सीमा पर भी कुछ इस कदर हावी था कि कुछ देर में वह भी गाड़ी में ही ढ़ेर हो गई|
सुबह जब सीमा नींद से जागी तो उसे अपना शरीर दर्द से टूटा हुआ सा महसूस हुआ| वह कमरे की दीवारों को हैरानी से देखने लगी| ये उसके घर की दीवार नहीं थी| वह झटके के साथ बैड़ से उतर गई मगर उसे चलने में भी दर्द महसूस हुआ| एकाएक सीमा ने पीछे से प्रदीपक्युं बिखरे-बिखरे हैं बाल, क्युं उड़ा है यूं रंग चेहरे का,अरे कुछ तो बता, ऐसी भी बीती तुझपे एक रात में क्या|
प्रदीप की आवाज सुनकर वह सहम गई| कुछ पल के लिए तो जैसे वह जड़ हो गई| वह समझ चुकी थी कि वह प्रदीप की हव्स का शिकार बन चुकी है| पीछे मुड़कर उसकी नजर प्रदीप पर पड़ी तो वह अंगारे बरसाने वाली नजरों से उसे घूरने लगी|
“आप मुझे क्यों घूर रही हैं… मैने आपके साथ कोइ धोखा नहीं किया मैने तो आपके साथ एक रात गुजारने के गिनकर पैसे दिए हैं किशन को… शायद आपको मेरी बात पर यकीन न हो मगर सीमा इतिहास गवाह है जो पैसे का हो जाता है फिर वो किसी का नहीं हो सकता… ये किशन उन्ही में से है|
“कुत्ते बंद कर अपनी बकवास… तू हैवान है या दरिंदा” सीमा उबल पड़ी थी|
अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो ये देखो कहते हुए प्रदीप ने उसे उसकी कुछ अश्लील तस्वीरें दिखाई|
सीमा को एक बड़ा आघात लगा| उसकी हालत ऐसी थी कि धरती फट जाती तो वह उसमें समा जाती|स्त्रिया स्वभाव से लज्जावती होती हैं| उनमें आत्माभिमान की मात्रा अधिक होती है| निन्दा और अपमान उनसे सहन नहींं होता|एक आबरू ही तो होती है औरत के पास, चाहे मर्द उसे ताकत से हासिल कर ले या औरत अपनी मर्जी से उसे उसके हवाले कर दे… औरत तो कंगाल हो ही जाती है,
सिर झुकाये हुए और रोती हुई सीमा वहीं घुटनो पर बैठ गई|
"मगर आप परेशान किसलिए है" इतना कहने के बाद कुटिल मुस्कान उछालते हुए वह बोला, "देखो सीमा जी, मैं नहीं पड़ता इस प्यार-व्यार के झमेले में… अपना तो साफ कहना है गलत काम भी ईमानदारी से करना चाहिए| अब देखिये न आपने अपनी आबरू मेरे हवाले की है तो बदले में मैंने भी रूपये दिये हैं, किसी ने किसी पर अहसान नहींं किया है|"
प्रदीप ने फिर उस पर जहरीले शब्दों का वार करते हुए कहा सीमा जी धन और धोखे में बड़ा गहरा संबंध होता है| दोनोंं की राशि एक ही है| धन की प्राप्ति होने से अक्ल की धार तीखी हो जाती है| अब देखो न आप किशन पर कितना भरोसा करते थे, मगर उसे धन मिला तो उसने आपके साथ ही धोखा कर दिया|
सीमा निरूत्तर खड़ी रही उसे लगने लगा जैसे उसके पाव किसी दलदल पर टिके हुए हैं| जहाँ उसे अपना होना न होना संदिग्ध दिखाई देने लगा| आँखों के आगे धुधलका सा छा गया और रोती बिलखती हुइ वह वहीं फर्श पर ढ़ह गई|
दूसरी तरफ सवेरे जब किशन को होश आया तो उसने सिर में दर्द महसूस किया| आस-पास कोइ न था| एका-एक उसे सीमा का ध्यान आया| वह तेजी से उठ बैठा मगर सामने का दॄश्य देखकर उसकी आंखे फट गई यह एक पुराना लाल छत वाला घर था जो थोडी सी समतल जमीन में अकेला खड़ा है| जिसके आसपास गन्दगी का ढ़ेर नजर आ रहा था| कहीं कोइ आवाज नहीं| एक गन्दे कोने में एक टूटा बेंच था| बायीं ओर देखा तो किशन धक से रह गया उसकी दॄष्टि फर्श पर पड़ी| वहा खून ही खून बिखरा हुआ था निकट ही एक तेज धार वाला चाकू पड़ा हुआ था| किशन की कांपती दॄष्टि कमरे में दौड़ गई| इसके बाद का दॄश्य देखकर तो मानो उसके पावों तले से जमीन ही खिस्क गई| एक ओर सीमा का कटा हुआ सिर रखा था| निकट ही कोहनियों से कटी हुई कलाइयां रखी थीं| कमरे के बीचो-बीच फर्श पर सीमा की हड़िडयों का ढ़ांचा पड़ा था| खाल पूरी तरह जल चुकी थी| हड़िड़यां बिल्कुल काली पड़ चुकी थी| कमरे में देह जलने की एक तीव्र गंध फैली हुइ थी| किशन ने यह गंध महसूस की उसे लगा जैसे वह किसी श्मशान में चिता के पास बैठा हों| उसके भीतर इस गंध ने एक हाहाकार मचा दिया| उसका दिमाग चकरा गया वह टूटे बैंच पर बैठते हुए सिर पकड़कर रो पड़ा| ये सब कैसे हो गया … किसने किया होगा… हे भगवान अब मैं क्या करूं … अचानक उसके दिमाग में आया कि सबसे पहले इस बात की सूचना पुलिस को देनी चाहिए|
वह लगभग भागता हुआ पुलिस चौंकी की ओर बढ़ गया| यहां के इन्चारज इस्पैक्टर ओ• पी• गुप्ता थे जो इस समय अपने केबिन में बैठे हुए किसी फाइल का अध्यन कर रहे थे उनका कद करीब छह फुट का था| वह हॄष्ट-पुष्ट शरीर के मालिक थे और कतॄव्य परायण इस्पैक्टर थे|
अपने केबिन के बाहर किसी के पैरों की चाप सुनकर वह चौक गये और सोचने लगे सवेरे-सवेरे कौन आ टपका| उन्होंने अपनी दॄष्टि थोड़, ऊपर उठाकर दरवाजे पर ड़ाली| दरवाजे पर हवलदार के साथ कोइ अपरिचित युवक खडा था जो कुछ हड़बड़या सा लग रहा था| उसके चेहरे से हवाइयां उड़ रही थी| कुछ देर तक उस युवक को एकटक घूरते रहे| फिर अपनी कड़कदार आवाज में इस्पैक्टर गुप्ता बोले “कहिये कैसे आना हुआ’’
“ज… ज… जी मेरा नाम किशन है’’ किशन ने इस्पैक्टर गुप्ता के समीप आते हुए कहा
फिर उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया और बोला “मैं शान्ति नगर का रहने वाला हूंं ”|
“आप करते क्या हैं’’ इस्पैक्टर ओ• पी• गुप्ता ने अपना पहला प्रश्न किया|
ज… ज… जी मैं अभी पढ़ता हूँ’’ किशन ने अपनी उखडी हुई सांस को नियंत्रित करते हुए कहा “आज सवेरे यानि अब से कुछ देर पहले जब म सोकर उठा तो मेरे सामने एक मुसीबत खडी हो गई उस मुसीबत ने मुझे परेशान कर दिया है इस्पैक्टर साहब मैं कुछ समझ नहींं पा रहा हूंं कि क्या करूं | ’’
“ऐसी कौन सी मुसीबत आ पडी जरा हम भी तो सुनें ’’इंस्पेक्टर ओ• पी• गुप्ता ने अपनापन व्यकत करते हुए बडी प्यार से पूछा|
किशन ने साहस करके सब कुछ सच सच बता दिया|
पूरी बात सुनकर ओ• पी• गुप्ता को एक झटका सा लगा उनका चेहरा कठोर हो गया वह हवलदार को गाड़ी निकालने का इशारा करके कुछ सोचते हुए बोले इसका मतलब जिस कमरे में लड़की का कत्ल हुआ आप भी उसी कमरे में उपस्थित थे|
“जी इंस्पेक्टर साहब’’
“चलो अब मैं उस जगह को देखना चाहता हूँ”
“इस्पैक्टर साहब परन्तु आप मेरी रिपोर्ट तो दर्ज कर लीजिये|’’
“मिस्टर मैं किसी को सबुत नष्ट करने का वक्त नहीं दिया करता घटनास्थल के निरीक्षण के पश्चात् तुम्हारी रिपोर्ट लिख ली जायेगी, फिलहाल तुम मुझे मौका-ए-वारदात पर लेकर चलो|
चार हवलदारों व किशन को साथ लेकर इंस्पेक्टर गुप्ता घटनास्थल पर पहुंचे| कमरे की तलाशी ली हर चीज का निरीक्षण किया व फोरेंसिक लैब के एक्सपर्टस को बुलाया गया|
किशन को पुलिस हिरासत में लेकर वापिस पुलिस चौंकी ले जाया गया|
“इस्पैक्टर साहब अब तो आप मेरी रिपोर्ट तो दर्ज कर लीजिये|’’
“मिस्टर किशन अब आप अपने घर का पता व अपनी रिपार्ट दर्ज करवा दीजिये|
“मैं आपकी बात से सहमत हूं मुझे कागज और पैन दीजिये ’’ किशन ने हाथ बढ़ते हुए कहा|
“आप उसकी चिन्ता न कीजिये मैं अभी लिखता हूँ|’’ इंस्पेक्टर गुप्ता का ईशारा पाकर हवलदार ने एक बड़ा सा कोरा कागज निकालकर रिपोर्ट दर्ज कर ली|
“यह लीजिये’’ हवलदार ने कागज और पैन दोनोंं चीजें किशन की ओर बढ़ा दी|
किशन ने अपने घर का पता लिखकर कागज और पैन हवलदार की ओर बढ़ा दिया|’’
“अब तुम ये बताओ तुमने ये खून क्यों किया” इंस्पेक्टर गुप्ता ने घूर्राकर पूछा|
“मैने खून नहीं किया सर”
लेकिन ऐसा हरगिज नहींं हो सकता किसी की उपस्थिति में उसी के कमरे में खून हो जाये और उसे पता भी न चले… मुझे लगता है तू झूठ बोल रहा हैं तूने खुद उस लड़की का कत्ल किया है और अब आप सजा से बचने के लिए रिपोर्ट लिखवाने यहां आया हैं लेकिन तू बच नहींं पायेगा| कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं मिस्टर अब भी समय है तू बता दे तूने उस लड़की को क्यों मार ड़ाला| मैं तेरी सजा कम करा दूंगा|’’
मैने उसे नहीं मारा इंस्पेक्टर साहब, अगर मैं उसे मारता तो आपके पास रिपोर्ट लिखवाने कभी नहींं आता, मैं इतना मूर्ख नहींं हूँ बल्कि मैं तो पढा लिखा हूंं और एक सभ्य परिवार से ताल्लुक रखता हूंं|
लेकिन यह कैसे हो सकता है किसी की उपस्थिति में यह सब … मैं तेरी बात पर कैसे भरोसा करू, जरा सोच अगर मेरी मौजूदगी में ऐसा कुछ हो रहा हो तो क्या मैं उसे रोकूंगा नहींं|
अवश्य रोकते सर, और मैं भी अवश्य रोकता परन्तु जिस समय यह घटना हुइ उस समय मैं शराब के नशे में बहोश पडा था इसलिए मुझे इसके बारे में बिल्कुल भी पता नहींं चला| सवेरे जब होश आया तब खून हो चुका था|
“हैलो कैथल पुलिस स्टेशन हैलो’’
“हैलो हम ! शान्ति नगर पुलिस चौंकी से बोल रहे हैं ’’ दूसरी ओर से आवाज उभरी
“क्या खूनी के बारे में कुछ पता चला’’
“सर हमने शक के बिनाह पर एक युवक को गिरफ्तार किया है जिसका नाम किशन है जो ! शान्ति नगर की रहने वाला है अभी उससे पूछताछ जारी है वैसे हमने पूरी छानबीन कर ली है मरने वाली लड़की का नाम सीमा था तथा वह भी ! शान्ति नगर की रहने वाली थी जहांं वह
अपनी माँ के साथ रहती थी| दोनों के घरवालों को सुचना भेज दी गई है, हमने वारदात की जगह को अपने कब्जे में लेकर छानबीन शुरू कर दी है’’ दूसरी ओर से आवाज आयी|
“ओ के… ओ के आप इस केस की अच्छी तरह से छानबीन करें” इतना कहने के बाद लाइन कट कर दी गई|
फोन रखते ही इस्पैक्टर गुप्ता अपनी कुर्सी से उठ गये तथा मेज पर रखी कैप सिर पर लगाते हुए बोले तुमने सूचना रजिस्टर में दर्ज कर ली|
“हां सर ’’दीवान अदब के साथ बोला|
तो फिर मैं श्रीहरिनारायण घी वालों के पास जा रहा हूँ इस केस की छानबीन करने|’’ कहकर इंस्पेक्टर गुप्ता उस और चल दिये जहां उनकी मोटरसाइकिल खडी थी|
मोटरसाइकिल के समीप पहुंचकर उन्होंने उसे किक लगाकर स्टार्ट किया फिर उस पर बैठकर श्रीहरिनारायण घी वालों की दुकान की ओर चल पडी |
इंस्पेक्टर गुप्ता ने अपनी मोटरसाइकिल उनकी दुकान के सामने जाकर रोक दी| पुलिस हमारी दुकान पर … कुलदीप अभी इतना सोच ही पाया था कि इंस्पेक्टर गुप्ता ने मोटरसाइकिल स्टैण्ड़ पर खड़ी की फिर काउन्टर के समीप आकर बोले सेठ जी मुझे आपसे कुछ बातें करनी है|
“तशरीफ रखिये इंस्पेक्टर साहब” कुलदीप ने काउन्टर के सामने पडी बैंच की ओर इशारा करते हुए कहा फिर स्वयं भी काउन्टर के अन्दर पडी कुर्सी पर बैठ गया|
“क्या आप किशन को जानते हंै’’ इंस्पेक्टर गुप्ता ने बैंच पर बैठते हुए कहा |
“किशन तो मेरा छोटा भाई…क्यों क्या हुआ उसें”
उसे एक लड़की के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है
“क… क… क्या’’ कुलदीप चौंकते हुए बोला यह आप क्या कह रहे हैं इंस्पेक्टर साहब… मेरा भाई ऐसा नहींं हैं जरूर कुछ गड़बड़ है… किशन तो किसी चींटीं को भी नहीं मार सकता… वो तो किसी को कत्ल कर ही नहीं सकता ’’
“मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ सेठ जी बल्कि यह तो “रेयरेस्ट आफ दा रेयर” केस है क्योंकि कत्ल करने के बाद लड़की के हाथ और सिर को काटकर जिस्म से अलग कर दिया है| इस कत्ल के लिए कम से कम सजा “सजा-ए-मौत” होगी”
“नहीं ये झूठ है… या तो कोइ ओर होगा या मेरे भाई को किसी षड्यंत्र मे फंसाया जा रहा है|”
“मुझे आपको मामले से अवगत कराना था… अच्छा अब मैं चलता हूँ यदि आपको अपने भाई के सम्बन्ध में कोइ कानूनी कार्यवाही करानी हो तो शीघ्र पुलिस स्टेशन आ जाइये| इंस्पेक्टर गुप्ता ने इतना कहा फिर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठ कर चल पडी |
कुलदीप ने जल्दी से दुकान बंद की तथा घर पहूंचकर अपने पिता श्रीहरिनारायण को पूरे मामले से अवगत कराया|
यह सोच कर श्रीहरिनारायण का सिर शर्म से झुकता चला गया कि उनके अपने बेटे ने ही उनके खान्दान के नाम पर धब्बा लगा दिया| श्रीहरिनारायण ने सबके सामने घोषणा करते हुए किशन को मन और आत्मा से त्याग दिया|
यह एक ऐसी शर्मनाक खबर थी जो अभी तक परिवार और मौहल्ले तक सीमित थी मगर जल्द ही जंगल की आग की तरह इसकी लपटें हर तरफ उठने लगेंगी|
एक घर के सामने जाकर इंस्पेक्टर गुप्ता ने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी|
इंस्पेक्टर गुप्ता ने ड़ोर बैल बजाई मगर कोइ उत्तर न मिला| उन्होने फिर ड़ोर-बैल बजाई|
इस बार सीमा की माता निर्मला देवी ने दरवाजा खोला| वह पलिस को देखकर चौंक गई थी
“आप सीमा की माता हैं…”|
“जी कहिये” हड़बड़ाहट भरे लहजे में निर्मला देवी ने कहा|
“जी मुझे बड़े दु:ख के साथ आपको सूचित करना पड़ रहा है कि आपकी बेटी सीमा का कत्ल हो गया है|
“क… क… क्या’’ निर्मला देवी की आंखों में सारा संसार अंधेरा हो गया था|
“मगर वो तो … किशन भी तो उसके साथ था इंस्पेक्टर साहब फिर कैसे…| “
“जी आप सही कह रही हैं, हमने किशन को सीमा के कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार किया है,”|
“मगर किशन… कैसे … नहीं… नहीं इंस्पेक्टर साहब किशन ऐसा लड़का नहीं है,”|
“मैड़म हमने उस पार्टी में उपस्थित लोगों से पूछताछ की है और सबका यही कहना है सीमा उसके साथ ही वहां से निकली थी”|
बस मुझे आपको यही सुचित करना था, यदि आपको अपनी ओर से कोइ रिपोर्ट करानी हो तो शीघ्र पुलिस स्टेशन आ जाइये| अच्छा अब मैं चलता हूँ इंस्पेक्टर गुप्ता ने इतना कहा फिर अपनी मोटरसाइकिल पर बैठ कर चल पडा |
निर्मला देवी की आखों के सामने उसके बीते वर्ष गुजरने लगे| जब उसके पति की मॄत्यु हो गई थी| घर में कोइ सम्पत्ति न थी| उनका तीन कमरों का वह घर जिसे उन्होंने घर के खर्चे और बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के बाद थोडी–थोडी बचत करके तीन–चार किश्तों में पूरा करवाया था| उस निर्धन घर में वह अकेली पड़ी रोती थी और कोइ आंसू पोंछने वाला न था| उसने न जाने किन तकलीफों से अपने बच्चे को पाल-पोस कर बड़ा किया था| मगर बच्चे पढ़ने में होशियार थे, इसलिए उनकी चिंता उसे नहींं थी| पढाई के साथ–साथ उनका आचरण भी ऐसा था कि कभी उन्हें किसी कठिनाई का सामना नहींं करना पडा| स्कूल की पढाई समाप्त कर वह कालिज में चले गए तब भी निर्मला देवी ने घर का खर्च चाहे कम कर दिया लेकिन बच्चों की पढाई में उसने कोइ कमी नहींं छोडी |
रोहन के आस्ट्रेलिया जाने के पश्चात् निर्मला देवी को लगा था कि अब उसके दु:ख भरे दिन कट गए हैं मगर आज उसकी जवान बेटी को उससे छीन लिया गया था| वह उसके पति की आखिरी निशानी थी| उसके हृदय में शूल सा उठ रहा था| उसे किसी तरह धैर्य नहीं होता| उस घोर आत्मवेदना की दशा में रह रहकर निर्मला देवी को सीमा की यादे सताने लगी|
सीमा ने बडी आकर्षक रूप पाया था| बेहद खूबसूरत थी|पूर्ण चन्द्रर्मा के आकार का खूबसूरत चेहरा| खिला रूप-गोरा खिलता तरूणई युक्त शरीर| रक्तिम होंठ जब मुस्कुराते तो उसके दोनों भरे गालों में नन्हे-नन्हे गड़ड़े पड़ जाते| उसके सौंदर्य में एक आश्चर्यजनक बात थी| उसका स्वभाव सीधा व व्यवहार शिष्ट था| उसे प्यार करना मुश्किल था, वह तो पूजने के योग्य थी| उसके चेहरे पर हमेशा एक बडी लुभावनी आत्मिकता की दीप्ति रहती थी| उसकी आंखे जिनमें लाज, गंभीरता और पवित्रता झलकती थी| उसकी एक-एक चितवन, एक-एक क्रिया एक-एक बात उसके हृदय की पवित्रता और सच्चाई का असर दिल पर पैदा करती थी|
निर्मला देवी दिन भर मातम मनाती रही उसे कोइ अपना मददगार दिखाई न दिया| कहीं आशा की झलक न थी| अगर भगवान की निश्चित की हुइ मॄत्यु ने सीमा को उससे छीना होता तो शायद वह सब्र कर लेती मगर सीमा की भयानक मौत के बारे में सोचकर वह रोती रही तड़पती रही| पड़ोस की नर्म दिल स्त्रिया आकर उसकी बेबसी पर दो बूद आंसू गिराकर चली जाती|
निर्मला देवी इतनी विवल थी कि दिन में कइ बार मूर्छित भी हुई| न घर से निकली, न चुल्हा जलाया, न हाथ मुंह धोया| पड़ोस की स्त्रियां उसे बार-बार आकर कहती ‘बहन, उठो, मुंह हाथ धोओ, कुछ खाओ पियो| कब तक इस तरह पडी रहोगी मगर निर्मला देवी के कंठ में आंसुओं का ऐसा वेग उठता कि उसे रोकने में सारी देह कांप उठती| उसे अपना जीवन मरूस्थल सा लगने लगा|
सूरज के ढ़लने के साथ साथ निर्मला देवी के जीवन का सूर्य भी अस्त हो गया|
प्रदीप की गाड़ी पुलिस स्टेशन के अहाते में पहुंच गई| गाड़ी से उतरकर वह सीधे इंस्पेक्टर गुप्ता के केबिन में प्रवेश कर गया|
इंस्पेक्टर गुप्ता ने एक कोरे कागज पर प्रदीप का बयान लिखना शुरू किया| प्रदीप बोलता गया और इंस्पेक्टर गुप्ता साथ-साथ लिखते चले गये|
रिपोर्ट तैयार करने के बाद वे प्रदीप से बोले अब आप जा सकते हैं मिस्टर प्रदीप… आगे का काम अब हमारा है|’’
प्रदीप उठ गया व हाथ जोड़कर बाहर निकल गया|
टेबल पर रखा फोन बज उठा|
“हैलो कैथल पुलिस स्टेशन’’
“जय हिन्द सर… मैं इंस्पेक्टर गुप्ता बोल रहा हूँ’’|
“जय हिन्द मिस्टर गुप्ता… सीमा हत्याकांड़ का केस कहां तक पहुंचा’’|
“सर… मामले की छानबीन में पुलिस के साथ स्पेशल स्टाफ को भी लगाया गया है| जांच की जा रही है और हमने कुछ सबुत बरामद किए हैं| जिनको फोरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है| जो इस हत्याकांड़ की गुत्थी को सुलझाने में मददगार हो सकते हैं|
साथ ही हमने लड़की की मां से भी पुछताछ की जिससे एक अहम बात सामने आई है कि लड़की की मां को किशन ने सीमा को पार्टी में ले जाने के लिए बहुत मिन्नतें करके मनाया था|
“शाबाश मिस्टर गुप्ता… मुझे आपसे यही उम्मीद थी”|
“सर… हमने इस हत्याकांड़ को सुलझाने के लिए लगभग सभी पर्याप्त सबूत जुटा लिए हैं|
“कैरी आन मिस्टर गुप्ता…शाबाश”
फोन रखकर इंस्पेक्टर गुप्ता अपनी कुर्सी से उठकर खडे हुए फिर मेज पर रखा काला ड़ण्ड़ा उठाकर उस ओर बढ़ गये जहाँ सलाखंो में किशन कैद था| सर्च लाईटस की रोशनी से किशन की आँखे बुरी तरह चौधिया रही थी| उसे एक आरामकुर्सी पर रस्सियों से बाधा गया था तथा उसके चेहरे पर सर्च लाईटस की रोशनी ड़ाली गई थी| जिससे उसका सारा शरीर पसीने से भीगा हुआ था, चेहरा भी पसीने से नहा रहा था| चेहरे से दर्द झलक रहा था साथ ही साथ वह बार-बार कहता जा रहा था कि मैने खून नही किया और न हि मुझे इस बारे में कुछ जानकारी है… मैं निर्दोष हूँ|
इंस्पेक्टर गुप्ता चेहरे पर मुस्कुराहट लिए किशन के समीप पहुंचे| वह ड़ण्ड़े के एक कोने से अपना दाहिना गाल रगड़ रहे थे अचानक उन्होने अपना गाल रगड़ना बन्द कर दिया फिर आँख मारकर उन्होने वहा उपस्थित कांस्टेबलो को बाहर जाने का ईशारा किया|
एक-एक करके सारे कांस्टेबल सलाखो से बाहर निकल गये| फिर दरवाजा बन्द हो गया| दरवाजा बन्द होते ही इंस्पैक्टर गुप्ता ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखे किशन के चेहरे पर गाड़ दी चन्द क्षणों तक वह उसे घूरते रहे|
किशन अब भी गहरी गहरी सांसे ले रहा था| उसके हाथ आराम कुर्सी की पुश्तगाह के साथ रस्सी से बधे हुए थे|
इस्पैक्टर गुप्ता ने अपना छोटा सा काला ड़ण्ड़ा एक तरफ रखा| फिर झुककर किशन के हाथ खोल दिये| इस काम से निपटकर उन्होने जेब से एक रूमाल निकाला और किशन को देते हुए बोले इससे पसीना पोछा जाता है बच्चू... लो पोछ लो|
किशन ने हड़बड़ाकर इंस्पैक्टर गुप्ता को देखा फिर रूमाल लिया और पसीना पोछने लगा|
च्युइंगम चबाते और मुस्कुराते हुए इंस्पैक्टर गुप्ता ने किशन को अपने विशेष अंदाज में देखा फिर वह बोले मिस्टर किशन आपने समाचार पत्रों में पढ़ा होगा कि फलां को फांसी दे दी गइ फलां को फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया| “लेकिन आपने अपनी आंखों से किसी कोे फांसी पर चढ़ते हुए नहीं देखा होगा” कहकर इंस्पैक्टर ओ• पी• गुप्ता किशन के सामने धीरे -धीरे टहलने लगे—फिर टहलते-टहलते वह रूककर बोले “अगर देखा भी होगा तो किसी सिनेमाघर में फिल्म के परदे पर… लेकिन वहां सिर्फ ड़्रामेबाजी होती है, असलियत कुछ अलग ही होती है| जब किसी को फांसी पर लटकाया जाता है ना… तो गर्दन लम्बी हो जाती है… आंखे बाहर उबल पड़ती है और हर खूनी को करीब-करीब यही सजा मिलती है| तुझे भी यही सजा मिलेगी|
“मै जानता हूँ इंस्पैक्टर साहब” किशन ने शान्त स्वर में कहा|
जब यह जानते हो तो झूठ क्यो बोलते हो कि सीमा का खून तुमने नहीं किया, इसका मतलब तुने उसका खून किया है
“नहीं “ किशन चीखकर बोला… मैं फिर कहता हूँ सर कि सीमा का खून मैने नहीं किया|
“तुमने किया है मिस्टर किशन… हमने प्रदीप, राधिका और उनके साथ-साथ उस पार्टी में उपस्थित सभी लोगों से पुछताछ कर ली है| सबका यही कहना है सीमा तुम्हारे साथ पार्टी से निकली थी| यह इस बात पक्का सबूत है कि सीमा की हत्या आप ही ने की है
“नहीं मैने उसकी हत्या नहीं की इंस्पैक्टर साहब… मैने उसकी हत्या नहीं की”|
“अगर तुने हत्या नहीं की तो फिर किसने की” इंस्पैक्टर गुप्ता ने च्यूइगम चबाते हुए कहा|
“मुझे नहीं पता… किशन एक गहरी सांस खींचते हुए बोला— क्योकि उस समय मैं शराब के नशे में चूर था… जब मुझे होश आया तो कत्ल हो चुका था…”
“और आप उस कत्ल की रिपोर्ट लिखवाने सीधे पुलिस स्टेशन आ गये ताकि आप पुलिस को यह साबित कर दें कि वाकइ में कत्ल किसी और ने किया है,” इंस्पैक्टर गुप्ता ने होठांे पर म्ुस्कान लाते हुए कहा… फिर कुछ सीरियस होकर बोले मिस्टर किशन यह मुजरिम की बहुत पुरानी चाल है| फांसी से बचने के लिए हर खूनी यही चाल चलता है|
“म म्म्म् मैं कुछ नहीं जानता इंस्पैक्टर साहब, मैं तो सिर्फ इतना जानता हूँ कि मैं बेकसूर हूंं मैने उसकी हत्या नहीं की” किशन का स्वर हड़बड़ाया हुआ था|
मिस्टर किशन इंस्पैक्टर गुप्ता कनपटियों के नजदीक अपने सफेद बालों की तरफ इशारा करते हुए बोले यह बाल मैने धूप में बैठकर सफेद नहीं किये| इंस्पैक्टर की ट्रैनिंग में हमे सबसे पहले चेहरे के भाव पढ़ना सिखाया जाता है तेरा चेहरा यह कहता है कि तूने सीमा का खून किया है
“इंस्पैक्टर साहब आपकी आंखे धोखा खा रही है… मैने सीमा का खून नहीं किया”|
मुझे सच उगल्वाना आता है मिस्टर किशन चाहूं तो मैं इस समय भी सच उगलवा सकता हूँ कहकर गुस्से में भरे हुए इंस्पैक्टर गुप्ता ने अपना छोटा सा काला ड़ण्ड़ा उठाया फिर उसके अगले सिरे से हौले -हौले किशन की छाती ठोकते हुए बोले “लेकिन अभी नहीं वक्त आने पर तुम स्वंय ही बता दोगे” कहकर इंस्पेकटर गुप्ता मुड़े और सलाखों से बाहर निकल गये|
शहर के सबसे चर्चित हत्याकांड़ मामले में नया मोड़, तब आया, जब पुलिस को सीमा की कुछ अश्लील तस्वीरें मिली| इस खबर ने तो शहर में सनसनी फैला दी थी|
समाचार पत्रों में दिये गये किशन के परिचय ने उसे सबकी नजरों में चढ़ा दिया| सारे शहर में इस मुकदमें के चर्चे थे| मुकदमा शुरु होने के समय हजारों आदमियों की भीड़ हो जाती थी| लोगों के इस खिंचाव का मुख्य कारण यह था कि कच्ची उम्र के नवयुवक पर इतनी भयानक हत्या का आरोप|
सरकारी वकील ने अपनी दलीलांे से अदालत की कार्यवाही शुरु की|
इसके बाद बहुत से गवाह पेश हुए जो उस रात प्रदीप की पार्टी में मौजूद थे, जिनमें अधिकांश शहर की जानी मानी हस्तियां थी| उन्होंने बयान किया कि हमने सीमा को किशन के साथ जाते देखा था| किन्तु आज एक एहम गवाह अदालत में मौजूद नहीं थी| वह थी राधिका| वकील की गुजारिश पर अदालत ने एक सप्ताह में फैसला सुनाने का हुक्म दिया|
किशन को अब अपनी हार में कोइ सन्देह न था|
मगर उसे अब भी रोशनी की एक आखिरी किरण दिख रही थी वह थी राधिका की उसके पक्ष में गवाही| उनका मन कहता था कि राधिका उसके पक्ष में गवाही देगी|
किशन को अदालत आज फैसला सुनाएगी| उसे मालूम है, अच्छी तरह सेे मालूम है कि आज कयामत का दिन है| जज साहब के आदेश पर अदालत की कार्यवाही शुरू हुइ| राधिका को कठगरे में बुलाया गया|
राधिका को कठगरे में अपने सामने देखकर किशन को कुछ आश्वासन मिला… मुझे यकीन था तुम इस मुसीबत के समय में मेरी मदद करने के लिए जरूर आओगी…
“हां, मैं तुम्हारी मदद के लिए ही तो आयी हूंं ” “राधिका ने किशन की तरफ लाल–लाल आखें निकालकर कहा – अगर तुम्हे बीच चौराहे पर किसी छुरी से काट दिया जाये तब भी तुम्हारी सजा तुम्हारे गुनाहों के लिए पर्याप्त न होगी” राधिका ने घॄणा से कहा किशन, मैं तुमको एक शरीफ और गैरतवाला इन्सान समझती थी, तुमने बेवफाई की… इसका मलाल मुझे जरुर था मगर मैने सपनें में भी यह न सोचा था कि तुम इतने बेशर्म हो कि इतना नीच काम करके भी तुम मुझसे मदद मांगोगे|
किशन ने तेज होकर कहा- तुम मुझे बेशर्म… और मैं बेगैरत हूँ |
राधिका – बेशक बेगैरत ही नहींं सौदेबाज, मक्कार, पापी, सब कुछ...| ये अल्फाज बहुत घिनौने है लेकिन मेरे गुस्से के इजहार के लिए काफी नहींं|
राधिका का यह जुमला उसके जिगर में चुभ गया, जिन होठों से हमेशा महोब्बत और प्यार की बाते सुनी हो उन्ही से ऐसे जहरीले शबइतना बुरा ना करो कि जो आत्मा आपके भीतर है,
वो आत्मा आपके सामने आकर बोले, ये गलत है|
राधिका भगवान के लिए मुझे इस मुसीबत से बचाओ, मैं तुम्हारे पैरो पड़ता हूँ , तुम मुझे जहर दे दो, खंजर से गर्दन काट लो लेकिन यह बदनामी सहने की मुझमें हिम्मत नहींं| उन दिलजोइयों को याद करों, हमारी मोहब्बत को याद करो, उसी के सदके इस वक्त मुझे इस मुसीबत से बचाओ|
राधिका – हमारी मोहब्बत…सौन्दर्य, आचरण की पवित्रता या मर्दानगी का जौहर ये ही वे गुण हैं जिन पर मोहब्बत न्यौछावर होती है| अब तुम मुझे बताओ तुम में इनमें से कौनसा गुण हैर् प्यार करना तो दूर की बात है मैं तुम्हें अपने पैरों की धूल के बराबर भी नहीं समझती|
“तुम तो धोखा मत दो…” कहते-कहते वह कठगरे में घुटनो पर बैठ गया|
किशन बहुत असहाय नजर आने लगा था|
किशन – मैने पढ़ा था किप्रेम अमर होता है इसकी कोइ सीमा नहीं होती| मुझे आश्चर्य होता था जब कोइ कहता कि सच्चे प्यार का एक कतरा भी प्रमी को बेसुध कर सकता है| आपका तो पता नहीं मगर मेरा प्यार वह था, जो मिलन में भी वियोग के मजे लेता है और वियोग में भी हरा-भरा रहता है, फिर क्यों मेरा प्यार दुनियादारी के एक झोंके को भी बर्दाश्त नहींं कर सका|
लेकिन किशन की दयनीय दशा और उसके ये विचार भी राधिका की घॄणा को न जीत सके|
'तुम्हे अपनी सफाई में कुछ ओर कहना है“ जज ने उससे पूछा|
'क्यों समय नष्ट करते हैं जज साहब… आपको चाहिए कि मुझे जल्दी से जल्दी सजा सुनाएं” किशन ने बहुत आदर से कहा|
किशन के ये वाक्य सुनकर जज ने अर्थपूर्ण ढ़ंग से इंस्पैक्टर गुप्ता की ओर देखा|
“देखो अगर अपनी भलाई चाहते हो तो जितना पूछा जाए उतने का ही उत्तर दो” इंस्पैक्टर गुप्ता ने कहा|
इंस्पैक्टर गुप्ता की इस घुड़की का असर ये हुआ के किशन ने बिल्कुल ही मौन धारण कर लिया वैसे इस स्थिति में चुप्पी ही उसके पास एकमात्र हथियार था| इसलिए अब वह एक अभेद्य दीवार बन गया, जिस पर गोली, पथराव, धक्का-मुक्की कुछ भी प्रभाव न ड़ालता, इंस्पैक्टर गुप्ता, सरकारी वकील व जज साहब उस दीवार से अपना सिर तो फोड़ सकते थे, लहूलुहान हो सकते थे मगर उत्तर तब भी न मिलता, भला दीवार क्या उत्तर देती|
किशन को सबसे कठोर दंड़ मिला “फांसी”| यद्यपि फैसला लोगों के अनुमान के अनुसार ही था, तथापि जज के मुँह से उसे सुन कर लोगों में हलचल सी मच गई|
हिन्दी फिल्मो की तरह जब किशन को सजा सुनाने के पश्चात् सिपाही अपने साथ अदालत से बाहर ले जा रहे थे तब प्रदीप उसके पास आकर बोला यार किशन इस जन्म में तो अपना साथ शायद इतना ही था| खैर ऊपरवाले ने चाहा तो अगले जन्म में हम फिर दोस्त बनेंगे और हां अगर हो सके तो अगले जन्म में किसी लड़की के लिए किसी से पंगा मत लेना… लाल–लाल आखों से घूरते हुए प्रदीप पीछे हट गया और किशन दांत पीसकर रह गया|
सोनिया देवी जो हर तारीख पर कचहरी जाती| एक कोने में बैठी सारी कार्यवाही देखा करती थी| सजा सुनाने के बाद जब किशन उसके सामने आया और वह माता को प्रणाम करके सिपाहियों के साथ चला तो वह मूर्छित होकर गिर पड़ी|
“मां…” चीखते हुए किशन सोनिया देवी की तरफ दौड़ा|
सोनिया देवी को बेहोश होकर गिरता देख सिपाही ने किशन की हथकड़ी ढ़ीली छोड़ दी थी|
“मां… मां… आंखे खोल मां” सोनिया देवी को हिलाते हुए वह बोला|
“सोनिया देवी ने धीरे से आंखे खोली ओर बोली- भाग जा बेटा … भाग जा… अगर तुझे फांसी हो गइ तो फिर तेरी बेगुनाही कभी साबित नहीं हो सकेगी और तुम्हारे खानदान के नाम पर से ये धब्बा कभी नहीं मिट पायेगा… जा बेटा… भाग जा…”|
किशन को भी मां की बात समझ में आ गई और झटके से हथकड़ी को सिपाही के हाथों से छुड़ाकर गोली की रफ्तार से भीड़ की आड़ लेकर भाग गया|
किशन को एक अखबार विक्रेता नजर आया| उसके मन में अखबार देखने की तीव्र इच्छा जागॄत हुई| जबरदस्त बेचैनी के साथ उसने अखबार विक्रेता से एक अखबार खरीदा|
अखबार विक्रेता साइकिल दौडाता चला गया| इधर अखबार के मुख्य पॄष्ठ पर नजर पड़ते ही किशन का दिल धक्क से किसी गंेद के समान उछलकर कंठ में आ अटका| उसका सारा शरीर पसीने से भरभरा उठा| आंखों के सामने अंधेरा छा गया और यह सच है कि चलना तो दूर अपनी टांगों पर खडा हो पाना भी उसके लिए असंभव हो गया था, वह वहीं फुटपाथ पर बैठ गया| उसकी ऐसी अवस्था अखबार में अपने फोटो को देखकर हूई थी| उस फोटो को देखकर जिसके नीचे लिखा था इस हत्यारे से विशेष रूप से युवा लड़कियों को दूर रहना चाहिए क्योंकि यह एक खूंखार दरिंदा है जो उनके साथ दुष्कर्म करने के बाद उन्हें बेरहमी से कत्ल कर देता है|
उफ्फ अखबार ने ऐसा खतरनाक परिचय दिया है मुझे… कुछ ही देर में ये अखबार पूरे कैथल शहर और उसके आस-पास के इलाके में फैल जाएंगे| शाम तक लगभग सारे भारत में हर व्यक्ति इस फोटो को घूर रहा होगा| वह समझ चुका था अब वह किसी भी सार्वजनिक जगह पर सुरक्षित नहीं है| अत: उसे जल्दी से किसी ऐसे स्थान पर पहुच जाना चाहिए जहां उसके अलावा कभी कोइ न आ सके|
यहां आस-पास ऐसा कौन सा स्थान हो सकता है, बौखलाकर उसने अपने चारों तरफ देखा| वह सड़क पर भागता चला गया उसे किसी ऐसे स्थान की तलाश थी जहां दुनिया के हर व्यक्ति की नजर से बच सके हालांंकि ऐसा कोइ स्थान उसकी समझ में नहींं आ रहा था फिर भी पागलों की तरह वह भागता रहा|
भागते हुए अचानक ही उसकी दॄष्टि एक ऐसे मकान पर पडी जो मकान नहींं सिर्फ मलबे का ढ़ेर नजर आ रहा था| यह एक पुराना मकान था, जो अपनी उम्र पूरी करने के बाद गिर चुका था और किसी वजह से जिसके मालिक ने मलबा हटाकर सका पुन: निर्माण नहींं कराया था| मलबे के ढ़ेर से दबा होने के बावजूद भारी मुख्य द्वार अभी गिरा नहींं था| द्वार पर एक बहुत पुराना ताला भी झूल रहा था, किन्तु उसका कोइ महत्व नहींं था क्यांेकि साइड़ मंे से कोइ भी मलबे के ऊपर से गुजरकर अन्दर जा सकता था| इस तरफ मलबे का एक छोटा सा पहाड़, बन गया था| वह भागता हांफता मलबे पर चढ़, गया और दूसरी तरफ मलबे के ढ़ेर से नीचे उतर गया| खन्ड़हर को देखने से पता चल रहा था कि अपने समय में मकान काफी बड़, रहा होगा| चारों तरफ मलबा ही मलबा पडा था दाएं कोने में एक ऐसा कमरा था जिसकी आधी दीवारें खडी थीं छत का एक कोना भी जाने कैसे लटका रह गया था| उस गन्दे कोने में एक व्यक्ति के लेटने जितनी जगह पर उसकी नजर पडी | इस कोने में छिपे व्यक्ति को कोइ इस कमरे में आए बिना नहींं देख सकता था अत: किशन को छिपने के लिए यही स्थान उपयुक्त लगा| कपडो की परवाह किए बिना वह धम्म से उस कोने में जा गिरा| मलबे के ढ़ेर पर बैठा वह दो गन्दी और आधी दीवारों से पीठ टिकाए बुरी तरह हांफ रहा था स्वयं को नियन्त्रित करने में उसे काफी समय लगा|
थोड़ा संभलने के बाद उसने अखबार में छपा खुद से संबंधित समाचार पढा |
बडे-बडे शब्दों में हैड़िंग बनाया गया था “सनसनीखेज हत्याकांड़”|
तात्पर्य यह है कि पूरा समाचार पढ़ने के बाद उसकी घबराहट चरम सीमा पर पहुच गई| उस दीवार के सहारे बैठे-बैठे जैसे ही उसने आखे बंद की सीमा का चेहरा उसके सामने घुमने लगा| उसकी आखउसने भी दी होगी गालीयां तो मुझे, कभी जिसके लिए भगवान था मै,
आज एक धोखे ने बना दिया पत्थर मुझे, वरना तो कभी इन्सान था मै|
इस शोक पूर्ण घटना के कइ दिन बाद जबकि दु:खी दिल सम्भलने लगे थे, एक रोज खबर हुई कि रोहन आस्ट्रेलिया से आ गया है| औरतों को आंसू बहाने के लिए दिल पर जोर ड़ालने की जरूरत नहीं होती, मगर रोहन को सामने पाकर तो हर किसी के आंसू बहने लगते थे|
रोहन की आखों में आंसू भरे हुए थे, लेकिन चेहरे पर मर्दान दॄढ़ता और समर्पण का रंग स्पष्ट था| इस दु:ख की बाढ़ में भी शान्ति की नैया उसके दिल को ड़ूबने से बचाये हुए थी|
इस दॄश्य ने सबको चकित ही नहींं बल्कि स्तम्भित कर दिया| संभावनाओं की सीमाए कितनी ही व्यापक हों ऐसी हृदय-द्रावक स्थिति में होश-हवास और इत्मीनान को कायम रखना उन सीमाओं से परे है| लेकिन इस दॄष्टि से रोहन पुरूष नहींं, महापुरूष था| किसी ने उसे समझाते हुए कहा - बेटा, अब संतोष की परीक्षा का अवसर है|
तब उसने दॄढ़ता से उत्तर दिया—हाँ सब इश्वर की इच्छा है|
रोहन का यह तपस्वियों जैसा धैर्य और इश्वरेच्छा पर भरोसा अपनी आँखों से देखने पर भी कुछ लोगों के दिल में संदेह बाकी था| मुमकिन है, जब तक चोट ताजी है सब्र का बाध कायम रहे| लेकिन उसकी बुनियादें हिल गई हैं, उसमें दरारें पड़ गई हैं| वह अब ज्यादा देर तक दु:ख और शोक की लहरों का मुकाबला नहींं कर सकता|
किसी भी इन्सान के लिए संसार की कोइ अन्य दुर्घटना इतनी हृदय विदारक, इतनी निर्मम, इतनी कठोर नहीं हो सकती— संतोष, दॄढ़ता, धैर्य और इश्वर पर भरोसा… यह सब उस आँधी के समाने घास-फूस से ज्यादा नहींं| धार्मिक विश्वास तो क्या, अध्यात्म तक उसके सामने सिर झुका देता है| उसके झोंके आस्था और निष्ठा की जड़ें हिला देते हैं| लेकिन लोगों का यह अनुमान गलत निकला| रोहन ने धीरज को हाथ से न जाने दिया| वह बदस्तूर जिन्दगी के कामों में लग गया| कुछ लोग अकेलेपन में जहां उसके विचारों के सिवा अन्य कोइ न होता था उसकी एक-एक क्रिया को, एक-एक बात को गौर से देखते और परखते| लेकिन उस हालत में भी उसके चेहरे पर वही पुरूषोचित धैर्य था| शिकवे-शिकायत का एक शब्द भी उसकी जबान पर नहींं आता था|
शाम का वक्त था| सुनील, कुलदीप व रोहन तीनों टहलते हुए नदी की तरफ निकल गये कि एक घर के नजदीक से गुजरते हुए रेडियो पर प्रसारित समाचारों को सुनने के लिय तीनों ही रूक गये|
नम्स्कार… ये आकाशवाणी है… अब आप विपिन वर्मा से समाचार सुनिये…
पहले एक नजर आज के मुख्य समाचारों पर … आस्ट्रेलिया मे एक और भारतीय छात्र पर हमला… भारतीय पुरूष हाकी टीम ने तमाम नाकामियों और विवादों को पीछे छोड लंदन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया और बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 527 अंको की तेजी के साथ हुआ बंद…
सुनिल - यार रोहन इन आस्ट्रेलिया वालों को भारतीयों से परेशानी क्या है, आखिर ऐसा करने से इनको क्या मिलता है|
रोहन - सुनिल भाई उनको परेशानी भारतीयों से नही है बल्कि वहां कुछ लोग आदतन अपराधी है| शायद आपको नही पता कि ब्रिटिश शासन काल में विशिष्ट रूप से आइरिश अपराधियों को राजनैतिक अपराधों या सामाजिक विद्रोहियों को आस्ट्रेलिया मे निर्वासित किया जाता था| इसलिये वहां कुछ लोग अपने पैदाइशी कमीनेपन से मजबुर हैं|
कुलदीप - यार फिर तो भारत सरकार को अपने यहां से कुछ कमीनों को आस्ट्रेलिया भेजना चाहिये, कसम से अगर ऐसा हो जाए तो एक-दो साल में ही इस विश्व मे सबसे शरीफ लोग आस्ट्रेलिया मे मिलेंगें|
बात करते-करते तीनों नदीं के पास पहुंच गये| नदी कहीं सुनहरी, कहीं नीली, कहीं काली, किसी थके हुए मुसाफिर की तरह धीरे-धीरे बह रही थी| कुछ दूर जाकर तीनो एक टीले पर बैठ गये लेकिन बातचीत करने को जी न चाहता था| नदी के मौन प्रवाह ने उनको भी अपने विचारों में ड़ुबो दिया| सुनील को ऐसा मालूम हुआ कि सीमा नदी की लहरों की गोद में बैठी मुस्करा रही है| वह चौंक पडा ओर अपने आँसूओं को छिपाने के लिए नदी में मुंह धोने लगा|
रोहन ने कहा भाई, दिल को मजबूत करो| इस तरह कुढ़ोगे तो मर जाओगे|
सुनील ने जवाब दिया इश्वर ने जितना संयम तुम्हें दिया है, उसमें से थोड़ा सा मुझे भी दे दो, मेरे दिल में इतनी ताकत कहां है भाई|
रोहन मुस्कुराकर उसे ताकने लगा|
मैंने किताबों में तो दॄढ़ता और संतोष की बहुत सी कहानिया पढ़ी हैं मगर सच मानों कि तुम जैसा दॄढ़, कठिनाइयों में सीधा खड़, रहने वाला आदमी आज तक मेरी नजर से नहींं गुजरा था| मैं यह न कहूगा कि तुम्हारे दिल में दर्द नहींं है| उसे मैं अपनी आँखों से देख चुका हूँ| फिर इस ज्ञानियों जैसे संतोष और शान्ति का रहस्य क्या है|
रोहन कुछ सोच-विचार में पड़ गया और जमीन की तरफ ताकते हुए बोला—यह कोइ रहस्य नहींं, मैं तो अपना कर्ज चुका रहा हूंं|
“कर्ज… “ कुलदीप ने हैरानी से पूछा|
“हां भाई कर्ज… पिता की मॄत्यु के पश्चात् जो मुसीबतें मेरे परिवार पर आयी थी उस समय अगर आपके पिता जी ने व मोहल्ले वालों ने हमारा साथ न दिया होता तो शायद मेरा परिवार बहुत पहले खत्जब कोइ किसी दूसरे के बच्चों को इतने लाड़, प्यार से पालता है तो उनके बीच में केवल प्रेम का सम्बन्ध रह जाता है| इस सम्बन्ध में अधिकार या सामाजिक नियम कोइ मायने नहींं रखते| प्रेम को कोइ किसी कानुनी दस्तावेज के द्वारा प्रमाणित नहींं कर सकता ओर न ही स्वयं प्रेम की यह अभिव्यक्ति होती है| प्रेम केवल और केवल प्रगाढ़ ही हो सकता है क्योंकि यही इसका रूप है| प्रेम का बदला केवल प्रेम है|
ये क्या हुआ, मैं तो सोचता ही रह गया,
चाल मेरा दोस्त, कयामत की चल गया|
ये एक धोखा खाये हुए दिल के शब्द थे| एक के बाद एक सब लोग किशन का साथ छोड़ चुके थे| उसके लिए अपने घर के दरवाजे भी बंद हो चुके थे| इसलिए उसने एक मन्दिर में शरण लेने के लिए मन्दिर के बाबा को अपनी आप बीती सुनाई|
बाबा ने सम्मान की दॄष्टि से देखकर कहा— बेटा तुम भगवान के घर में उनकी शरण में आए हो तो मैं कौन होता हूँ तुम्हे रोकने वाला, जब तक भगवान चाहेंगे तुम यहां रह सकते हो|
“बस बाबा मुझे कुछ ही दिन का वक्त चाहिए… भगवान की कॄपा रही तो मैं जल्द ही उस शैतान को बर्बाद कर दूंगा|
‘इश्वर का नाम न लो, इश्वर ऐसे मौके के लिए नहींं है| इश्वर की मदद उस वक्त मांगो, जब किसी का कोइ जोर न चले ओर दिल कमजोर हो… मगर जिसकी बांहों में बल, मन में विकल्प, बुद्धि में शक्ति और साहस हो, वो इश्वर का आशर्य ले यह शोभा नहीं देता - बेटा किशन तुम बस इतना ख्याल रखना तुम्हारे कदम सच्चाई के रास्ते से भटकने न पायें क्योंकिं सत्य का विश्वास साहस का मंत्र है|सच्चाई को कुछ समय के लिये कष्ट सहना पड सकता है मगर जीत हमेशा सच्चाइ की ही होगी… बेटा आशावादी नहीं बल्कि कर्मयोगी बनो…
“बाबा मैं आशावादी कैसे… म्म्म् मैं किस से आशा करूंगा बाबा, मेरा साथ तो मेरे अपनो ने… बाबा मैने सुना था कि इन्सान के बुरे वक्त में जमाना दुश्मन बन जाता है मगर मेरा साथ तो उसने भी छोड़ दिया जिसने साथ जीनेमरने की कसमें खाइ थी” राधिका को याद करते हुए उसकी आखें भर आई|
उसे धीरज बंधाते हुए बाबा ने कहा “बेटा इतना जान लोयूं रोज रोज महोब्बत का इम्तिहान नहीं होता,
मगर जब होता है, तो फिर आसान नहीं होता|
“बाबा… मैं तो इस इम्तिहान से गुजर जाऊंगा मगर मैं उसे माफ नहीं करूँगा| नफरत की जो आग उन लोगों ने मेरे मन में भरी है उसी से मैं उनकी दुनिया तबाह कर दूंगा| अब मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है इस धोखे का बदला लेना| मेरा दिल फफोलों से भर चुका है और अब इसमे अच्छी भावनाओं के लिए जगह नहीं है| मैं इस अत्याचार का बदला लेकर अपना जन्म सफल समझूंगा| जिस तरह मै खून के आसूं रोया हूँ उसी भांति मैं भी उन्हे रूलाऊंगा|
“नहीं बेटा तुम गलत सोच रहे हो… बेटा औरत का दिल उसके दिमाग पर राज करता है| नारी का हृदय कोमल होता है लेकिन केवल अनुकूल दशा में जिस दशा में पुरूष दूसरों को दबाता है, स्त्री शील और विनय की देवी हो जाती है| लेकिन जब कोइ उसकें किसी प्रिय के सर्वनाश का कारण बन गया हो, उसके प्रति स्त्री की घॄणा ओर क्रोध पुरूष से कम नहींं होती बस अंतर इतना ही होता है कि पुरूष शस्त्रों से काम लेता है, स्त्री कौशल से|
इसलिए तुम्हे राधिका की नफरत के पीछे के रहस्य का पता लगाना होगा| वैसे भी उसे नफरत करने से तुम्हे क्या हासिल होगा… अगर तुम खुद को बेगुनाह साबित करना चाहते हो तो तुम्हे उसे अपने प्यार का एहसास कराना होगा”|
“मगर बाबा… उसे मेरी किसी बात पर भरोसा नहीं है,”
“बेटा जब इश्क का असर होता है तब हुस्न अपनी नजाकत भी भूल जाता है,” |
बाबा की बात सुनकर किशन ने फैसला कर लिया जब तक वह राधिका को अपने प्यार का एहसास नहीं करा देगा वह चैन से नहीं बैठेगा
अगर न भुला दी उसे नजाकत उसकी,
तो मेरे इश्क में दम नहीं|
अगर न भुला दी उसे हदें उसकी,
तो मेरे इश्क में दम नहीं|
अगर उसे याद रहा अपना कोइ मेरे सिवा,
तो मेरे इश्क में दम नहीं|
जिसके लिए मैने खो दिया अपनो को,
अगर अब उसे भी अपना न बना सका,
तो मेरे इश्क में दम नहीं…
तो मेरे इश्क में दम नहीं|
“बेटा… अगर तुम अब भी ऐसा सोचते हो तो फिर तुमने प्यार नहीं किया क्योंकि जिससे प्रेम हो गया, उससे द्वेष नहींं हो सकता, चाहे वह हमारे साथ कितना ही अन्याय क्यों न करे| जहां प्रेमिका प्रेमी के हाथों कत्ल हो, वहां समझ लीजिए कि प्रेम न था, केवल विषय लालसा थी|
बाबा के इन विचारों ने किशन के क्रोध को पराजित कर दिया| वैसे किशन का दिल अब भी राधिका की तरफ खिचंता था कभी – कभी तो बेअख्तियार ही उसका जी चाहता कि उसके पैरों पड़े और कहे – मेरे दिलदार, ये बेरहमी क्यो | लेकिन बुरा हो इस स्वाभिमान का जो दीवार बनकर उसके रास्ते में खडा हो जाता था|
किशन ने बाबा की ओर पूर्ण-पूर्ण नेत्रों से देखकर कहा—बाबा मेरा मार्ग दर्शन कीजिये इस अवस्था में मैं कुछ भी नहीं सोच पा रहा हूँ|
“बेटा इस दुनिया के बैंक में जो जैसे कर्मो का बैलेंस जमा करता है उसे भगवान उसी आधार पर फल देते हैं तुम जमीं पर रहने वालों पर रहम करो भगवान तुम पर रहम करेगा| इस वक्त तुम्हारे लिए सबसे जरूरी है मन को शांत रखो ओर बाकी सब उपरवाले पर छोड़ दो”
“मगर कैसे बाबा… आप ही बताओ मैं क्या करू”
“ध्यान लगाओ बेटा… भगवान के नाम का सहारा बस ऐसी परिस्थितियों में ही लेना चाहिए”
आखें बंद करके किशन ध्यान लगाकर बैठ गया उसके मन को कुछ पल का शुकुन मिला मगर एक बार फिर उसका मन उसके अतीत की यादों को बुला लाया| उसका चेहरा कठोर होता चला गया| दांत पीसते हुए किशन ने आखें खोल दी|
“क्या हुआ बेटा|
“बाबा-एक नाम है जो मुझे करार दे जाता है,
एक नाम है जो बेकरार कर जाता है|
बाबा… जब तक वो शैतान जिन्दा है, मेरे पहलू में एक कांटा खटकता रहेगा, मेरी छाती पर सांप लौटता रहेगा| मुझे उस सांप का सिर कुचलना ही होगा, जब तक मैं अपनी आंखों से उसकी धज्जियां बिखरते न देखूंगा| मेरी आत्मा को संतोष न होगा| अब परिणाम कुछ भी हो मुझे परवाह नहींं, मगर मैं उस हरामी को नर्क में दाखिल करके ही दम लूंगा|
जब इन्सान कुछ अच्छा करना चाहे मगर बुरा होता रहे, तब चाहे वो कितना भी बड़ा नास्तिक हो, वो भाग्य और भगवान दोनोंं को मानता है|
सुबह-सुबह किशन ने साधू का भेष बनाया ओर राधिका के मौहल्ले में जाकर लगभग हर घर के बाहर भिक्षा के लिए आवाज लगाई “अलक निरंजन”| एक घर के दरवाजे के सामने जाकर वह रूक गया| उसके दिल की धड़कन बढ़ गई जिन्हे नियंत्रित करने में उसे कुछ समय लगा|
किशन ने आवाज लगायी “अलक निरंजन”|
दरवाजा खुला… राधिका को सामने पाकर वह सोचने लगा ये वक्त भी कितना बलवान है आज मैं खुद नहीं चाहता वो मुझे पहचानें—कभी जिनके सामने से मैं बस इसलिए गुजरता था कि एक बार उनकी नजर तो मुझपे पड़े… वक्त की नजाकत को समझते हुए वह बोला…
“हे देवी बाबा को बहुत भूख लगी है कुछ खाने को ला दो”
“क्षमा करें महाराज अभी तो घर में खाने के लिए कुछ नहीं है,” हाथ जोड़कर राधिका ने कहा
“कोइ बात नहीं देवी … जैसी प्रभु की इच्छा… “
“जरा रूको बाबा … मैं किसी महात्मा को अपने दर से खाली हाथ भेजने की गुस्ताखी नहीं कर सकती- आप थोड़ा इन्तजार कीजिये मैं आपके खाने के लिए कुछ बना देती हूंं|
“ठीक है देवी मैं यहीं बैठकर इन्तजार करता हूँ|
राधिका अन्दर चली गई ओर कुछ देर बाद अचार के साथ दो रोटीयां लेकर आयी|
तनिक रुककर उसने राधिका की खामोशी की नब्ज टटोलने के लिए कहा
“देवी मुझे इस घर में किसी अनहोनी का आभास हो रहा है,” |
“बाबा अनहोनी के लिए इस घर में बचा ही क्या है… जीजा जी के मरने के बाद हम पर तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा था| जीजा जी के मौत के पश्चात् शीतल दीदी ने भी आत्महत्या कर ली और इस दोहरे सदमे ने मेरे माता पिता को भी मुझसे छीन लिया… अब तो इन हालातों से दिल पर जो कुछ बीतती है वह दिल में ही सहती हूँ ओर जब न सहा जायेगा तो संसार से विदा हो जाऊंगीं|” वह सिसकने लगी थी|
“जीजा जी की मौत… बहन… और माता पिता की मौत… राधिका के मुख से ये शब्द सुनकर किशन को गहरा धक्का लगा मगर उससे भी बड़ा झटका उसे तब लगा जब सामने की दीवार पर लगी तस्वीर पर उसकी नजर पड़ी वह फटी-फटी आखों से उस तस्वीर को घूरे जा रहा था| उस तस्वीर में शीतल दुल्हन के लिबास में थी तथा उसके साथ दुल्हे की पोशाक में संजय था| जिस पर लिखा था “संजय वैड़स शीतल””| किशन की उलझन सातवें आसमान पर थी क्योकिं तस्वीर में जो लड़की शीतल थी वह हू ब हू राधिका जैसी दिखती थी|
“मगर यह सब हुआ कैसे“ एकाएक वह पूछ बैठा|
“क्या बताऊं बाबा मेरे जीवन में इतनी जल्दी इतने बड़े बदलाव की तो मुझे उम्मीद भी न थी… ये तस्वीर मेरी हमशक्ल बहन शीतल और मेरे जीजा संजय की है| शीतल किसी और से प्यार करती थी मगर फिर भी मेरे घरवालों ने जबरदस्ती उसकी शादी संजय से कर दी| धीरे-धीरे शीतल ने हालात से समझौता कर लिया और इस शादी को अपनी किस्मत और अपने माता पिता का आशीर्वाद समझकर अपने अरमानों का गला घोंट दिया था|
लेकिन शादी के महीने भर के भीतर उसकी जिंदगी क्या से क्या हो गई इतने अरसे में तो पति पत्नी एक दूजे को ढ़ंग से पहचान भी नहींं पाते और मेरी बहन विधवा … आगे के शब्द राधिका के गले में फंसकर रह गये| गला रूंध गया| वह फफक पड़ी थी|
किशन ने चारों तरफ नजर दौड़ाई घर की हालत खस्ता नजर आ रही थी| हर चीज से आर्थिक संकट जैसे बाहर झांक रहा था| राधिका के साथ कमरे में आया तो एकाएक उसकी नजर सुरेन्द्र पाल सिंह पर पड़ी… वह उन्हें देखता ही रह गया… बूढ़ा चेहरा … भीगी आंखें … कांपता स्वर … कहां गया इनका तेज–तर्रार, दबंग व्यक्तित्व| सुरेन्द्र पाल सिंह की आंखों में पहले जैसी चमक दिखाई नहींं दे रही थी| थोड़ी–थोड़ी देर बाद बुझी–बुझी आंखों से साधु की ओर देख लेता था, मगर उनके चेहरे के भावों से ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह ठीक से देख नहीं पा रहा हो|
सुरेन्द्र पाल सिंह होठों से कुछ बुदबुदाए जा रहे थे जो किशन समझ नहींं पा रहा था| थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद उसकी आंखें भर आती थी| वे बहुत असहाय से लग रहे थे| उसके चेहरे पर एक उदासी सी छायी रहती जिससे हृदय छलनी होता था और रोना आता था|
किशन खाना छोड़कर सुरेन्द्र पाल सिंह को हैरानी से देख रहा था|
"बाबा, इनकी आंखों की रोशनी चली गई है… और बेटे की मौत के सदमे से इनकी दिमागी हालत भी बिगड़ गई है इसलिए ऐसे ही कुछ भी बड़बड़ाते रहते हैं|" राधिका ने बताया|
“मगर यह सब हुआ कैसे“ उसने फिर पूछा|
“बाबा इस समाज… इस खौखले रिति रिवाजों वाली दुनिया में प्यार करने वालों के दुश्मनों की कमी नहीं है… मेरे जीजा जी किसी दूसरी लड़की से प्यार करते थे, मगर उनके साथ भी वही शीतल वाली कहानी हुई… जबरदस्ती उनकी शादी मेरी बहन से कर दी गई| परन्तु जोर जबरदस्ती के बनाये गये बन्धन किसी को सदा के लिए नहीं बांध सकते| एक दिन संजय ने जहर खा लिया| घर में जो कुछ जमा पुंजी थी वह सब उसे बचाने की कोशिश मे खर्च हो गई| बस बाबा संजय के साथ-साथ इस घर की तरक्की की हर उम्मीद का भी दम निकल गया… मगर बाबा जो इस सब के लिए जिम्मेदार है मैने उससे बदला ले लिया है अब जबकि वह ऐसे हालात मे है जहां सिर्फ मैं उसकी मदद कर स्कती हू लेकिन मै ऐसा करूंगी नहीं… अब वह भी नरक की आग में जलेगा| बाबा मुझे आशीर्वाद दीजिये कि मैं अपने इरादांे पर कायम रह सकूं|
राधिका की बातें सुनकर किशन को किसी पुस्तक से पढ़े हुए शब्द याद आ गये जो कइन्सान सूर्य और चन्द्रमा के भीतर का रहस्यों का भी पता लगा सकता है किन्तु जब एक औरत किसी को उलझाने पे आये तो उसको समझ पाना किसी के बस की बात नहीं”
“देवी शत्रु की हानि इन्सान को अपने लाभ से भी अधिक प्रिय होती है, मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है परन्तु बहुत कम लोग ऐसे खुशनसीब होते हैं जिनको सच्चा प्यार मिलता है| जहांं तक मैं समझ रहा हू तुमने अपने क्रोध के वशीभूत होकर अपनी व अपने प्रियतम दोनों की जिन्दगी बर्बाद कर ली है| क्योंकिं किसी ऐसे शख्श से नफरत करने के लिए जो उसके सर्वनाश का कारण हो किसी के आशीर्वाद की जरूरत नहीं होती| ऐसा केवल वही कह सकता है, जो अपने उस दुश्मन के लिए दिल से मजबुर हो ओर ऐसी परिस्थिती मे दिल को मजबुर या कमजोर बनाने का काम केवल मोहब्बत कर सकती है| महोब्बत बैर से कहीं ज्यादा पाक होती है ये उस दामन में मुंह छिपाने से भी परहेज नहींं करती जो उसके अजीजों के खून से सना हुआ है|”
“बाबा…
भगवान के लिए मुझे ये इल्जाम न दो,
मुझे उससे प्यार है, ये मुझसे सहा न जाएगा|
यह कहते-कहते राधिका की आँखों में आंसुओं की बाढ़ आ गई| मैने क्या गलत किया बाबा… यदि कोइ हमारी चीज छीन ले तो हमारा धर्म है कि उससे यथाशक्ति लड़ें| हार कर बैठना तो कायरों का काम ह मैने बस वही किया जो मुझे करना चाहिए था| मेरे शत्रु को उसके कुकृत्य का दंड़ देकर इश्वर ने भी मेरा सही होना व अपना न्याय सिद्ध किया है|
किशन उठ खड़ा हुआ| उसकी आखों से नफरत का पर्दा हट गया| उसे राधिका की बेवफाई का रहस्य समझ आ गया और बरबस ही उसकी आंखों से भी आंसू की चंद बूंदें टपक पडी| शर्म और अपमान की एक ठंड़ी लहर शिराओं में रेंग गई|
“जब मैं मान-मर्यादा से ही हाथ धो बैठा तो अब इस समाज में नीच बन कैसे जीऊंगा” इसी विचार के साथ वह उठकर चल दिया| उसने आत्म−बलिदान से इस कष्ट का निवारण करने का दॄढ़ संकल्प कर लिया| वह उस दशा में पहुच गया था जब सारी आशाएं मॄत्यु पर ही अवलम्बित हो जाती है| उसे मॄत्यु का अब जरा भी भय न था|
एक घर के नजदीक से गुजरते हुए इस गीत के बोल उसके कानों में पउजड़ा मेरा नशीब, हाथ मेरे खाली,तू सलामत रहे, अल्लाह है वाल्ली,
उजड़ा मेरा नशीब, हाथ मेरे खाली,तू सलामत रहे, अल्लाह है वाल्ली,
दिल पे क्या गुजरे,
वो शख्श जो हारा है|
भीगी पलकों पर, नाम तूम्हारा है,
बीच भंवर कश्ती बड़ी दूर किनारा है …
कैसा तड़पा देने वाला गीत था और कैसी दर्द भरी रसीली आवाज थी बब्बु मान की|
संगीत में कल्पनाओं को जगाने की बडी शक्ति होती है| वह मनुष्य को भौतिक संसार से उठाकर कल्पना लोक में पहुंचा देता है| किशन इस गीत से इतना प्रभावित हुआ कि जरा देर के लिए उसे ख्याल न रहा कि वह कहां है| दिल और दिमाग में बस वही राग गूँज रहा था| दिल की हालत में एक ज़बरदस्त इन्कलाब हो रहा था, उसके मन ने उसे धिक्कारा और इस जिल्लत ने उसकी बदला लेने की इच्छा को भी खत्म कर दिया| अब उसे गुस्सा न था, गम न था, उसे बस मौत की आरजू थी, सिर्फ, एक चेतना बाकी थी और वह अपमान की चेतना थी| उसने एक ठण्ड़ी सांस ली| दर्द उमड़, आया| आसुओं से गला फंस गया, जबान से सिर्फ इतना निकलये मै कैसे सहूंगा, कि मैं बेवफा हूँ ,
जब अपनी जगह सच्चा मेरा प्यार है|
अगर वो ही नहीं मेरे नसीब मे,
फिर चाहे भगवान भी करे वादा,
अब मुझको हर खुशी देने का,
तब भी मुझे जीने से इन्कार है,
ये मै कैसे सहूंगा, कि मैं बेवफा हूँ ,
जब अपनी जगह सच्चा मेरा प्यार है|
किशन की आखों से आंसू गिरने लगे|
दीवार फांदकर किशन चुपके से अपने घर में घुस गया| वह तेजी से एक कमरे की ओर बढ़ गया जहां एक कोने में एक बड़ी सी कैन रखी थी| जिसका प्रयोग खेतों में खरपतवार को नष्ट करने के लिए किया जाता है| उस कैन पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था ''जहर''|
किशन ने हाथ बढ़ाकर कांपती हुई अंगुलियों से उसे उठाया और दीवार के सहारे बैठ गया, फिर कुछ सोचते हुए उसने कैन का ढ़क्कन खोला और कैन को मुंह सें लगाकर आधी खाली कर दी| वह अभी उस कैन को फेंक भी नहीं पाया था कि उसकी आखों के सामने तारे झिलमिला गये| कुछ देर वह कटी मछली की भांति तड़पता रहा, फिर बेहोश होकर फर्श पर लेट गया|
कुछ क्षण बाद कुलदीप ने उस कमरे में प्रवेश किया तो किशन के हाथ में जहर की कैन देखकर वह चौंक गया| उसने तेजी के साथ आगे बढ़कर उसके हाथ से वह कैन छीन ली-फिर घबराते हुए स्वर में बोला “किशन..यह क्या किया तूने ... जहर खाने से पहले क्या तुझे अपने माता पिता का जरा भी ख्याल नहीं आया| उनके दिये हुए जीवन को तुम यूं ही व्यर्थ में नष्ट कर दोगे ... जिन्होने हर पल तुम्हारे लिए खुशियां मांगी तुम उनको जीवन भर का रोना दे जाओगे”|
मेरा ऐसा कोइ इरादा नहीं था भाई, मैंने तो बस अपनी जीवन लीला खत्म करने के लिए जहर खाया है… भाई मैं क्या करता मेरे पास कोइ रास्ता भी तो नहीं बचा था…”|
“कोइ रास्ता नहीं बचा था तो तुमने ये कौन सा रास्ता चुन लिया… आत्महत्या किसी भी समस्या का हल नहीं होता, अगर ऐसा होता तो संजय की आत्महत्या के पश्चात् सब ठीक क्यों नहींंप्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर समस्या का हल और हर दर्द की दवा हैं|
मेरे भाई जीते जी सब कुछ संभव है जिस तरह कुछ ही समय में तुम्हारे लिए सब रास्ते बंद हो गये थे, उसी तरह जिन्दा रहोगे तो रास्ते खुल भी जायेंगे, आत्महत्या किसी भी हालात में जिन्दगी के किसी भी सवाल का सही जवाब नहीं हो सकता| सुख व दु:ख जिंदगी की किताब के दो पन्ने हैं| जो इन दोनोंं पन्नो को पढ़ता है वही जिंदगी का सही मतलब समझता है”|
“नहीं भाई मुझे मर ही जाना चाहिए था… मैने सबको दु:ख दिया… राधिका… इतना बोलने के साथ ही किशन की आखें बंद होती चली गई|
“ओह… राधिका…मेरे भाई तुम राधिका के लिए दुखी हो लेकिन उसके लिए तो तुम किसी भी पल मर सकते हो, और शायद उसे तुम्हारे होने या न होने से कोइ फर्क न पड़े मगर क्या तुम्हे उनके लिए नहीं जीना चाहिए जो तुमसे बहुत प्यार करते हैं, और जिनको तुम्हारे होने या न होने से बहुत फर्क पड़ता है|
किशन कुछ बोल रहा था मगर अब उसके शब्द कुलदीप को समझ नहीं आ रहे थे| वह समझ गया जहर का असर होना शुरू हो गया है|
“मै तुझे मरने नहीं दुंगा मेरे भाई ” कुलदीप पागलों की तरह चीखते हुआ बोला | वह किशन को उठाकर तेजी से कमरे से बाहर निकला| कुछ ही देर में यह खबर मोहल्ले में आग की तरह फैल गई| किशन की हालत को देखकर तो अब उसका बचना मुश्किल लग रहा था…|
कुछ ही देर में एम्बुलैंस आ गई| कुलदीप ने किशन को उठाकर एम्बुलैंस में लिटा दिया| सुनील व रोहन भी कुलदीप के साथ एम्बुलैंस में किशन के समीप बैठ गये| उनके बैठते ही एम्बुलैंस अस्पताल की और चल दी|
करीब पन्द्रह मिनट बाद एम्बुलैंस हास्पिटल पहूंंची| गाड़ी का दरवाजा खोलकर सुनील रोहन व कुलदीप नीचे उतर गये| किशन को एम्बुलैंस से उतारकर स्ट्रैचर पर लिटाकर एमरजैंसी वार्ड़ में ले जाकर ड़ाक्टरों ने किशन का उपचार करना शुरू कर दिया|
माता-पिता के प्रेम में कठोरता होती है, लेकिन मॄदुलता से मिली हुई| श्रीहरिनारायण रात भर बिस्तर पर पड़े तड़पते रहे, सोचते रहे, खुद को समझाने की कोशिश करते रहे मगर महसूस हुआ कि लाख प्रयत्न करके भी वह अपने पुत्र से कटे नहींं हैं| आज उनके प्रेम में करूण थी, पर वह कठोरता न थी, यह आत्मीयता का गुप्त संदेश है| स्वस्थ अग की परवाह कौन करता है| लेकिन जब उसी अंग पर चोट लग जाती है तो उसे ठेस और घक्के से बचाने का यत्न किया जाता है| श्रीहरिनारायण को भी किशन के बारे में सोचकर अपने शरीर का एक अग कटने जैसा दु:ख महसूस हो रहा था, उनके भीतर एक लावा सा फट पडा था| वह ज़ोर-ज़ोर से रोना व चीखना चाहते थे| उनके बिस्तर पर जैसे अनगिनत काटें उग आए हों और श्रीहरिनारायण भीष्म पितामह की तरह उस पर पड़े अपने पुत्र की मॄत्र्यु शैय्या देख रहे थे|
कितना सुंदर, कितना शरीफ बालक था| सारा मोहल्ला उस पर जान देता था| अपने-बेगाने सभी उसे प्यार करते थे यहां तक कि उसके अध्यापक तक उस पर जान छिड़कते थे| कभी उसकी कोइ शिकायत सुनने में नहींं आयी| ऐसे बालक की माता होने पर सब सोनिया देवी को बधाई देते थे| आज उसका कलेजा टूकड़े-टूकड़े हो कर बिखर रहा था और वह तड़प रही थी| यदि अपने प्राण देकर भी वह किशन को बचा सकती तो इस समय अपना धन्य भागकितने आश्चर्य और शर्म की बात है कि इतने बड़े संसार में आज तक माँ–बाप की सेवा करने वालों में श्रवण कुमार को छोड़कर किसी का नाम जहन में नहीं आता| इसके विपरीत आत्महत्या करके माता पिता को दुःख देने वाले नौजवानों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ रही है|जब देखता हूँ बुरा हाल किसी आशिक का,
तब हाल फिर मेरा भी कुछ ठीक नहीं रहता|
सांयकाल रोहन कुलदीप से मिलने आया|
“हमें कुछ करना चाहिए… अब किशन अपनी बेगुनाही का इससे बड़ा क्या सबूत दे सकता है… कहते हैं मरते समय इन्सान झूठ नहीं बोलता और किशन की जबान पर बार-बार यही शब्द दोहराये थे कि वह निर्दोष है" रोहन ने कहा
"मेरा मन भी यही कहता है कि वह निर्दोश है, मगर मै ये दावे के साथ नहीं कह सकता क्योंकि मुझे अपने भाई पर भरोसा है मगर शराब पर नहीं और अगर एक पल के लिए सब बातें भुलाकर ये मान भी लें कि किशन निर्दोश है, तब भी हम ये साबित कैसे करें, सारे सबूत और गवाह उसके खिलाफ हैं,” बड़े ही बेबस लहजे में कुलदीप ने कहा|
“ये प्रदीप और राधिका कौन है जिनका नाम किशन बार-बार ले रहा था”
“भाई पूरा मामला तो मुझे भी नहीं पता मगर सागर बता रहा था कि राधिका से किशन की दोस्ती थी और प्रदीप के साथ एक बार उसका झगडा हुआ था मगर बाद मे उसके साथ भी किशन की दोस्ती हो गई थी”
“तब तो हो न हो इन दोनों मे से किसी एक का हाथ इसमे जरूर मिलेगा… मुझे शक है ये सब साजिश उस लडकी राधिका की है वरना कोइ ऐसे हालात मे अपने प्रेमी का साथ नहीं छोड सकती… मुझे उसके घर का पता चाहिए… अब मै सच्चाई का पता लगाये बिना चैन से नहीं बैठुंगा”|
“भाई मुझे तो उसके घर का पता मालुम नहीं है मगर शायद सागर हमंे बता सकता है|”
सागर से राधिका के घर का पता लेकर दोनोंं ने बहुत देर सलाह-मशविरा किया| राधिका व किशन के बारे मंे सागर से पूरा मामला जान लेने के पश्चात रोहन ने कुलदीप को अपना फैसला सुना दिया कि अगर किशन को कुछ हो गया तो उसकी चिता के साथ असली गुनहगारों की चिता भी जलेगी और अगर वह ऐसा करने मे नाकाम रहा तो फिर खुद उसकी चिता किशन की चिता के साथ जलेगी|
आधी रात का वक्त था| अंधेरी रात थी और काफी बेचैन इन्तजारी के बाद रोहन अपने जज्बात के साथ नंगी तलवार पहलू में छिपाये, अपने जिगर के भड़कते हुए शोलों को राधिका के खून से बुझाने के लिए आया हुआ है| आसमान में सितारे जगमगा रहे हैं और रोहन बदला लेने के नशे में राधिका के सोने के कमरे में जा चुका है|
कमरे में एक नाइट लैंप जल रहा था| जिसकी भेद भरी रोशनी में राधिका सो रही थी|
रोहन तलवार लेकर दबे पांव उसके पास पहुँचा| एक बार राधिका को आँख भर देखा| लेकिन राधिका को देखने के बाद उसके हाथ न उठ सके| जिसके साथ अपना घर बसाने के सपने देखें हो उसकी गर्दन पर छुरी चलाते हुए उसका हृदय द्रवित हो गया| उसकी आंखें भीग गयीं, दिल में हसरत भरी यादों का एक तूफान उठ गयाएक दिन असर देखना मेरे इश्क में होगा,
एक दिन हशर देखना मेरे इश्क में होगा|
कभी मिले तो बस इतना कहना उपरवाले से,
परेशां न हो, इन्तहां ये मेरे सबर की भी नहीं,
अगर अब भी बाकी जुल्म कुछ उसका होगा,
एक दिन असर देखना मेरे इश्क में होगा,
एक दिन हशर देखना मेरे इश्क में होगा|
हाँ, वही मोहिनी सूरत थी और वही इच्छाओं को जगाने वाली ताजगी| वही चेहरा जिसे एक बार देखकर भूलना असंभव था| वही गोरी बाहें जो कभी उसके गले का हार बनती थीं, वही फूल जैसे गाल जो उसकी प्रेम भरी आँखों के सामने लाल हो जाते थे| इन्हीं गोरी-गोरी कलाइयों में उसने कंगन पहनाने का वादा किया था|
हाँ, वही गुलाब के से होंठ, जो कभी उसकी मोहब्बत में फूल की तरह खिल जाते थे| जिनसे मोहब्बत की सुहानी महक उड़ती थी, और यह वही सीना है जिसमें कभी उसकी मोहब्बत और वफा का जलवा था, जो कभी उसकी मोहब्बत का घर था|
रोहन अपने अतीत में खोया हुआ था मगर उसके स्वाभिमान ने उसे ललकारा, जो आँखें उसके लिए अमॄत के छलकते हुए प्याले थीं आज वही आंखें उसके दिल में आग और तूफान पैदा कर रही थी|रूप उसी वक्त तक राहत और खुशी देता है जब तक उसके भीतर औरत की वफा की रूह हरकत कर रही हो वर्ना यह एक तकलीफ देने चाली चीज़ है, ज़हर है जो बस इसी क़ाबिल होती है कि वह हमारी निगाहों से दूर रहे|
स्वाभिमान और तर्क में सवाल-जवाब हो रहा था कि अचानक राधिका ने करवट बदली| रोहन ने फौरन तलवार उठायी मगर राधिका की आँखें खुल गई| वह घबराकर उठ बैठी परन्तु भय की चरम सीमा तो साहस ही होती है| हिम्मत करके वह बोली क् क्…क… कौन| ”
“मैं हूँ रोहन” रोहन ने अपनी झेंप को गुस्से के पर्दे में छिपाकर कहा|
“कौन रोहन… चले जाओ यहां से वरना मैं शोर मचा दूंगी”
“कौन रोहन… हां… तुम नाम बदलकर किशन को फंसा सकती हो शीतल मगर शायद तुम भूल गई कि आखिर मजीत हमेशा सच्चाई की होती है… इसलिए तुम्हारा पर्दा-फाश करने के लिए ऊपरवाले ने मुझे भेज दिया है,”
“रोहन … मैं शीतल नहीं बल्कि उसकी छोटी बहन राधिका हूँ और तुम किस झूठ सच की बात करते हो… किशन के साथ जो कुछ हुआ है या होगा उसके लिए वह खुद जिम्मेदार है,”
“झूठ बोल रही हो तुम… म्म्म्मै ये साबित नहीं कर सकता लेकिन अगर किशन को कुछ हो गया तो कसम पैदा करने वाले की मैं तुम्हे जिंदा नहीं छोड़ूंगा” दांत पीसते हुए रोहन ने कहा|
“कुछ हो गया मतलब… क्या हुआ किशन को"|
"किशन हास्पीटलाइज्ड़ है उसने जहर खा लिया है| वह पुलिस की कैद से भाग गया था मगर अपनी जान बचाने के लिए नहीं बल्कि अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए… क्योंकि अगर वह जान बचाने के लिए भागा होता तो उसे लौटकर घर आने की और जहर खाने की जरूरत नहीं थी… वैसे भी मरते हुए इन्सान झूठ नहीं बोलता… और उसने बार-बार कहा वह बेगुनाह है"|
"क्या… हे भगवान" वह सिर पकड़ कर बैठ गई| इसका मतलब उसके साथ बहुत गलत हुआ
… रोहन मैं जानती हूँ कि तुम मेरे खून के प्यासे हो, लेकिन पहले मेरी बात सुन लो|
“मै राधिका हूँ शीतल की छोटी बहन… शीतल तो अब इस दुनिया में भी नहीं है,” दीवार पर लगी शीतल की तस्वीर की ओर ईशारा करते हुए राधिका ने कहा|
राधिका के मुख से ये शब्द सुनकर रोहन के मस्तिष्क को गहरा झटका लगा| उसके सारे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई और उसकी कांपती नजर तस्वीर पर जा पड़ी| शीतल की तस्वीर पर फुलों की माला देखकर रोहन का दिल कांप उठा, जबान तालू से जा चिपकी|
राधिका ने रोहन को शीतल के बारे में वह सब कुछ बताया जो रोहन के आस्ट्रेलिया जाने के पश्चात् हुआ था|
रोहन की आँखें भर आई| उसका मन अब भी सच्चाई मानने के लिए पूर्णतया तैयार न था|
तस्वीर को उतारकर अपने कलेजे से लगाता हुआ वह कह अरे जालिम तू बेवफाइ न करती अगर,
तो जुदाइ एक जन्म की, कोइ बड़ा गम न था|
“तुम इतनी खुदगर्ज कैसे हो गई … मुझे कोइ गम न होता के तुम किसी दूजे के नाम का सिन्दूर लगाये मुझे दिखती, किसी दूजे के नाम का मगंलसुत्र ड़ालती… अगर मैं तुम्हें खुश पाता तो तुम नहीं जानती तुम्हे खुश देखकर मैं कितना खुश होता| मगर तुमने आत्महत्या करके मेरे प्यार को हरा दिया… तुमने मुझे यूं अकेला छोडकर जो बेवफाइ की है वह मेरे प्यार का, मेरे भरोसे का कत्ल है| तुम्हारे साथ जो हुआ वह बेशक दर्द भरा था मगर क्या तुम्हे अपने रोहन पर इतना भरोसा नहीं होना चाहिए था कि वह तुम्हे किसी भी हाल मे अपना लेगा” रोहन विचारों के बीहड़ ज़गंल में भटक रहा था, कि राधिका की आवाज सुनकर उसकी तंद्रा भंग हुई|
“मै जानती हूँ आप मेरी बहन शीतल से प्यार करते थे, मगर मुझे मालूम न था कि सीमा आपकी बहन है| किशन का वह लड़का होना भी जिसके साथ संजय का झगड़ा हुआ था मेरे लिए केवल एक संयोग था| मुझे तो यह सब बातें तब मालुम पड़ी जब सीमा की हत्या के बाद इन्सपैक्टर गुप्ता मुझसे मिले थे| लेकिन जब मुझे यह पता चला कि किशन ही वह शख्श है जिसने संजय को अपने प्यार को पाने में कामयाब नहीं होने दिया तो मेरे मन व बुद्धी के हर तर्क ने उसे मेरे परिवार की बर्बादी के लिए जिम्मेदार पाया| मेरा गुस्सा और घॄणा उसकी सच्चाई को पहचान न सके और मैंने जरूरत के समय किशन का साथ नहीं दिया| मगर सीमा के साथ जो भी हुआ वह चाहे प्रदीप ने किया हो या किशन ने मुझे उसके बारे में कोइ खबर नहीं, अगर अब भी आपको लगता है कि मैं खतावार हूँ तो आप जो सजा देना चाहें मैं भुगतने को तैयार हूँ|
राधिका की बातें सुनकर रोहन के हृदय में एक विचित्र करूणा उत्पन्न हुई| उसका वह क्रोध न जाने कहां गायब हलतीफेबाजी की तरह हिंसा भी हमारा ध्यान आकर्षित करती है| ओर अगर हिंसा बदले की भावना से प्रेरित हो तो हमारा मन कमजोर और पीड़ित के साथ हो जाता हैं, तब उसकी हिंसा भी हमें जायज लगने लगती है|
“इसका क्या अपराध है|यह प्रश्न आकस्मिक रूप से रोहन के हृदय में पैदा हुआ| इस समय मैं भी तो अपने दोस्त के लिए उतना ही विकल, उतना ही अधीर, उतना ही आतूर हूँ जितनी यह रही होगी| जिस तरह मैं अपने दिल से मजबूर हूँ, जो राधिका ने किया अगर वह गलत थी तो अब मैं भी तो वही कर रहा हूँ| ऐसे मेे मुझे इससे बदला लेने का क्या अधिकार है| रोहन अपने ही मन से तर्क वितर्क में उलझा था|
राधिका भी सिर झुकाये खड़ी थीलज्जा, याचना और झुका हुआ सिर, यह गुस्से और प्रतिशोध के जानी दुश्मन हैं|
आप यक़ीन मानो… राधिका के इन शब्दों ने रोहन की तंद्रा भंग की... अगर प्रदीप गुनहगार है तो मैं अगले 24 घंटों में उसे आपके कदमों में लाकर ड़ाल दूंगी|
अपने ही दिल से फैसला करो आप मुझे मारकर भी वो सुकून हासिल नहीं कर पाओगे जो सच्चाई सामने आने से मिलेगा|
“मगर अब आप मेरी मदद क्यों कर रही हो” रोहन उदास स्वर में बोला|
“मैने अब तक जो किया था वो शीतल दीदी के प्यार से विवश होकर किया था और अब जो करने को बोल रही हूँ वो मैं अपने प्यार के लिए करूंगी| मैं सच्चे दिल से कहती हूँ अगर एक बार मैं ये सुन लुं कि किशन बेगुनाह है फिर चाहे उसके लिए मेरी जान ही क्यों न चली जाये| तब मुझे कोइ गम न होगा|
बेबस सा होकर बिना कुछ बोले ही रोहन वहां से चला गया|
राधिका ने किशन के अहित का संकल्प करके उसका साथ नहीं दिया था और अब उसकी मनोकामना पूरी हो रही थी तब उसे खुशी से फूला न समाना चाहिए था, लेकिन ऐसा न था उसे दिल के किसी कोने में घोर पीडा हो रही थी| जैसी पीडा उसे अपने अपनो के लिए हुई थी| वह किशन को रूलाना चाहती थी मगर वह खुद रोती जा रही थी|औरत का मन दया का सागर है| जिसके स्वच्छ और निर्मल स्त्रोत को विपत्ति की क्रुर लीलाएं भी मैला नहींं कर सकतीं| इसीलिए औरत को देवी कहा जाता है|
प्रदीप को शरारत भरी नजरो से देखकर राधिका बोली- प्रदीप मैं तुम्हें बधाई देने आई हूँ … आज हमारा दुश्मन हस्पताल में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहा है|
“कौन किशन… | ”
“हाँ… किशन”
“मगर आप तो किशन से प्यार…” प्रदीप वाक्य पूरा न कर सका|
"हाँ… हाँ… मैं उससे प्यार करती थी और आज मैं शर्मिंदा हूँ कि मैने ऐसे घिनौने आदमी से प्यार किया था… हे भगवान मैं मर क्यों नहीं जाती, प्रदीप तन की खूबसूरती असली खूबसूरती नहीं होती, बल्कि खूबसूरत वह होता है जो दिल का साफ होता है|”
“मगर ऐसे इन्सान को खो देने का गम क्या इतना होना चाहिए, कि आप भगवान से मॄत्यु की मांग कर रही हैं… क्या ऐसा नहींं हो सकता आप उस शख्श को बिल्कुल भुला दें और अपनी जिन्दगी फिर खुशी से जियें|
“मगर कोइ कैसे…”
“राधिका जी एक साथी की चाह मुझे भी उतनी ही है जितनी आपकोººº हो सकता है इश्वर हमें एक साथ जीवन बिताने का मौका देना चाहता है| इश्वर ने हम दोनोंं के लिए यह रास्ता छोडा है जिस पर हम साथ चल सकते हैं|''प्रदीप ने राधिका के सम्मुख प्रस्ताव रखा|
राधिका सोच रही थी कि बकरा स्वयं शेरनी के सामने आ रहा है| कंधे पर हाथ के स्पर्श से वह पलटी ''वोºººवो मै…'' मुश्किल से दो शब्द कह पायी|
''चलिए कोइ बात नहीं… आपका जवाब ना है तब भी हम अच्छे दोस्त तो बन सकते हैं,”
“मैंने मना थोड़ी किया था… अब कोइ लड़की अपने मंुह से कैसे हाँ बोल दे" राधिका ने शरमाने का प्रयास किया|
"तो मतलब हाँ…” प्रदीप सोफे से उछलते हुए बोला| उछलने वाली बात ही थी|
प्रदीप ने कहा - अच्छा इजाज़त दी है तो इन्कार न करना| एक बार मुझे अपनी बांहों में ले लो| यह मेरी आखिरी विनती है|
राधिका के चेहरे पर एक सुहानी मुस्कुराहट दिखायी दी और मतवाली आँखों में खुशी की लाली झलकने लगी| बोली-आज कैसा मुबारक दिन है कि दिल की सब आरजुएं पूरी हो रही हैं|
“लेकिन कम्बख्त मेरी आरजुएं कभी पूरी नहींं होती…” प्रदीप इतना ही बोल पाया था कि राधिका ने उसके होठों पर उगली रख दी, ''कुछ मत कहो… इस बात का ज़िक्र भी मत करो|
''ठीक है जैसा तुम कहती हो, वैसा ही करूंगा लेकिन एक बार अपने हाथों को मेरी गर्दन का हार बना दो| एक बार… सिर्फ, एक बार मुझे कलेजे से लगाकर बाहों में भींच लो” यह कहकर प्रदीप ने बाहें खोल दी|
राधिका ने भी आगे बढ़कर प्रदीप के गले में बाहें ड़ाल दी और उसके सीने से लिपट गई| दोनोंं आलिंगन पाश में बंध गए| जैसे एक सागर दूसरे सागर में उतर रहा हो| यही मौका था प्रदीप के लिए – उसंने राधिका को बाहों में जकड़ लिया| राधिका की देह एक बार कांपी, फिर स्थिर हो गई| राधिका के साथ आलिंगन में बधे प्रदीप के लिए यह अदभुत उल्लास का पर्व था| इस समय उस पर एक मदहोशी छायी हुई थी|
“इस सीने से लिपटकर मोहब्बत की शराब के बगैर नहींं रहा जाता| आज एक बार फिर उल्फत की शराब के दौर चलने दो” प्रदीप ने कहा|
बस फिर क्या था राधिका भी तो यही चाहती थी… अंगूरी शराब के दौर चले और प्रदीप ने मस्त होकर प्याले पर प्याले खाली कर दिए| कुछ देर बाद मस्ती की कैफियत पैदा हुर्इ| अब प्रदीप का अपनी बातों पर व हरकतों पर अख्तियार न रहा| वह नशे में बड़बड़ाने लगा तुम नहीं जानती राधिका मैंने इस प्यार के लिए कैसी-कैसी परिशानियां उठाई| लड़कियां मेरी शक्ल से नफरत करती हैं… म्म्म्म्मैं सीमा को पसंद करता था और उसके एक इशारे पर अपना यह सिर उसके पैरों पर रख सकता था, सारी सम्पत्ति उसके चरणों पर अर्पित कर सकता था| मगर मेरी बदनसीबी देखो मुझे इन्हीं हाथों से उसका कत्ल करना पड़ा|
प्रदीप ने खुद ही सारे राज राधिका के सामने खोलकर रख दिये और चित लेट गया|
राधिका ने प्रदीप की यह सब बातें एक spy camera pen की सहायता से रिकार्ड कर ली|
प्रदीप कई घण्टे तक बेसुध पडा रहा| वह चौंककर होश में आया| मस्तिष्क में सैंकड़ों विचार चकरा गये| चेहरे पर हवाइयां उड़ गई| उसने उठना चाहा लेकिन उसके हाथ-पैर मजबूत बंधे हुए थे| उसने भौंचक्क होकर ईधर-उधर देखा|
रोहन व राधिका उसके पीछे खड़े थे| प्रदीप को माहौल समझते देर न लगी| उसका नशा फुर्र हो गया| वह राधिका को देखकर गुस्से से बोला - क्या तुम मेरे साथ दग़ा करोगी|
राधिका ने जवाब दिया - हाँ कुत्ते, इन्सान थोड़ा खोकर बहुत कुछ सीखता है| तुमने इज्जत और आबरू सब कुछ खोकर भी कुछ न सीखा| तुम मर्द थे| तुम्हारी दुश्मनी किशन से थी| तुम्हें उसके मुक़ाबले में अपनी ताकत का जौहर दिखाना था| स्त्री को तो हर धर्म में निर्दोष समझा गया है| लेकिन तुमने एक कमजोर लड़की पर दग़ा का वार किया, अब तुम्हारी जिन्दगी एक लड़की की मुट्ठी में है| मैं एक लहमे में तुम्हें मसल सकती हूँ मगर तुम ऐसी मौत के हक़दारएक मर्द के लिए ग़ैरत की मौत बेग़ैरत जिन्दगी से अच्छी है|
“आक… थू…” राधिका ने प्रदीप के मंुह पर थूक दिया|
रोहन ने भी अपने दर्द भरे दिल से प्रदीप को दुतकारा… साले हरामी … जब कोइ मर्द जिसे भगवान ने बहादुरी और हौसला दिया हो… एक कमजोर और बेबस लड़की के साथ फरेब करे तो उसे मर्द कहलाने तक का हक़ नहीदग़ा और फरेब जैसे हथियार औरतों के लिए होते हैं क्योंकि वे कमजोर होती है|
अपने को अपमानित महसूस कर प्रदीप ने रोहन को ललकारा- धोखे से मेरे हाथ बांधकर तू कौन सी मर्दानगी दिखा रहा है अगर एक बाप की औलाद है तो एक बार मेरे हाथ खोल, फिर देखते हैं मर्द कौन है|
“अबे कुत्ते की औलाद, राजपूत खानदान में पैदा हो जाने से कोइ सूरमा नहींं हो जाता और न ही नाम के पीछे ‘सिंह’ की दुम लगा देने से किसी में बहादुरी आती है ” प्रदीप के हाथ खोलते हुए रोहन ने कहा|
दोनोंं के बीच घमासान छिड़ गया| कुछ देर के दांव पेंच के पश्चात् रोहन ने प्रदीप को उठाकर पटक दिया और सीने पर सवार होकर पीटने लगा| इस वक्त रोहन बहुत खूखंर लग रहा था| फिर उठकर रोहन ने प्रदीप की गर्दन पकड़कर जोर से धक्का दिया| प्रदीप दो-तीन कदम पर औंधे मुह गिरा| उसकी आंखों के सामने अंधेरी आने लगी| उसके कपड़े तार–तार हो गए थे| होंठों से खून निकल कर ठुड़्ड़ी तक बह आया था|
रोहन अभी भी फाड़ खाने वाली नजरों से प्रदीप को घूर रहा था|
एकाएक प्रदीप के चेहरे पर चमक उभर आयी क्योंकिं उसके गैंग के लोगों का एक दल आ पहूंचा| पासा पलट गया था| राधिका ने सहमी हुई आंखों और धड़कते हुए दिल से उनकी ओर देखा मगर अगले ही पल रोहन का साथ देने के लिए कुलदीप भी आ पहुंचा| जिसे देखकर राधिका के चेहरे पर फिर वही आत्मविश्वास लौट आया|
“रोहन… छोड़ना नहीं सालों को…'' का जयकारा बोलकर कुलदीप भी रोहन के साथ प्रदीप के दल से भिड़ गया| कुलदीप व रोहन दोनों ही फिल्मों के नायकों की तरह खलनायक दल पर भारी पड़ रहे थे कि अब सुनील भी मोहल्ले के कुछ लोगों के साथ आ पहुंचा| सभी ने कन्धे पर लाठी रखी थी| जिसे देखकर प्रदीप और उसके दोस्त घबरा गये|
सभी ने अपने ड़ंड़े संभाले मगर इसके पहले कि वे किसी पर हाथ चलायें प्रदीप के सब गुन्ड़े फुर्र हो गये| कोइ इधर से भागा, कोइ उधर से| भगदड़ मच गई| दस मिनट में वहां प्रदीप के गैंग का एक भी आदमी न रहा|
अब बस कुलदीप और प्रदीप के बीच मलयुद्ध छिड़ने वाला था| कुलदीप किसी भूखे शेर की तरह अपने शिकार प्रदीप की तरफ बढ़ गया| उसकी आखों में खून उतर आया था| कुलदीप के मुकाबले प्रदीप अधिक शक्तिशाली था मगर कुलदीप दिल का कच्चा न था और आज तो उसके सिर पर अपने भाई की दूर्दशा व खानदान की बेइज्जती का बदला लेने का जुनून सवार था| दोनों एक दूसरे को कुश्ती के दांव पेचों से पठकनिया देते रहे| आखिर कुलदीप का जोश प्रदीप की ताकत पर भारी पड़ा| उसके बाएं हाथ का एक घूंसा कुछ ऐसे भीषण ढ़ंग से प्रदीप के चेहरे पर पड़ा कि एक लम्बी ड़कार निकालता हुआ वह दूर जा गिरा| जीवन में शायद पहली बार प्रदीप ने इतनी बुरी मार खायी थी| कुलदीप के सामने आज उसका हर दांव निष्फल रहा| परिणाम यह निकला कि प्रदीप लहुलुहान होकर धम्म से जमीन पर गिर पड़ा|
प्रदीप को अर्ध मूर्छित अवस्था में ही अस्पताल ले जाकर नसबन्दी का सफल आप्रेशन कराया गया| जिसके लिए बाद में उसे एक हजार रूपये नकद तथा एक कम्बल इनाम भी मिला| इसके बाद उसका मुँह काला करके गधे पर बैठाकर पूरे इलाके में घुमाया व बाद में उसे पुलिस के हवाले कर दिया गया|
सभी लोग खुश थे|
किशन को होश आया उसने अपने चारों तरफ अंधेरा देखा| उसने पाया कि यह जगह उसके सोने का कमरा नहींं था| उसने एक बार माँ कहकर पुकारा किन्तु अंधेरे में कोइ उत्तर नहींं आया| उसे अपनी छाती में दर्द उठना व सांस का रूकना याद आया| वह उठ बैठा मगर उसने खड़ा होने में असमर्थता महसूस की और पलंग पर गिर पड़ा| उसने हांफते हुए पुकारा “माँ … मेरे पास आओ माँ… मुझे लगता है मैं मरने वाला हूँ ”| उसकी आँखों के सामने अंधेरा छा गया ऐसे जैसे किसी लिखे हुए कागज के ऊपर स्याही फैल गई हो| उस क्षण किशन की सारी स्मरणशक्ति व चेतना को भी उसके जीवन की किताब के अक्षरों में भेद करना असंभव हो गया| उस समय उसको यह भी याद नहींं रहा कि उसकी माँ ने उसे अपनी ममता भरी आवाज से उसको आखिरी बार बेटा कहकर पुकारा था, या यह उसको प्रेम की दवा की आखिरी पुड़िया मिली थी जो उसकी इस संसार से मॄत्यु की अनजानी यात्रा पर देखभाल करेगी|
किशन को बचपन से लेकर अब तक की खास बातें एक-एक करके याद आने लगी| एक पल में उसको स्कूल के दोस्त, खेल का मैदान व अपने चिर परिचित चेहरों की कतार दिखाई दी| उसे याद आया कैसे संजय की आत्महत्या के पश्चात् उसके परिवार का विनाश हो गया था| उसकी आँखों के सामने संजय के माता-पिता के बेबस चेहरे घूमने लगे| अब उसे आत्महत्या के परिणाम की भयावहता का अहसास होने लगा था| उसकी देह ठंड़ी हो रही थी| मुंह पर वह नीलापन आ रहा था जिसे देखकर कलेजा हिल जाता है और आँखों से आँसूं बहने लगते हैं|
किशन की आँखें ठहर गइ थी जिसे देखकर सोनिया देवी चीख पड़ी| किशन को मॄत घोषित करने से पहले ड़ाक्टरो ने उसे बचाने की अपनी अन्तिम कोशिश की… इस समय वहां मौजूद किसी भी शख्श को उसके बचने की आशा न थी मगर शायद मौत को धोखा देने में मजा आता है| वह उस वक्त कभी नहींं आती जब लोग उसकी राह देखते होते हैं| जब रोगी कुछ संभल जाता है, उठने बैठने लगता है, सबको विश्वास हो जाता है कि संकट टल गया, उस वक्त घात में बैठी हुइ मौत सिर पर आ जाती है| यही उसकी निष्ठुर लीला है| जैसे अब किसी को भी किशन के जीवित बचने की आशा न थी तो उसने किशन को अपना शिकार नहीं बनाया|
जी हाँ… यह संभव है कि कभी-कभी एक शरीर जो कि मॄत प्रतीत होता है| असल में जीवित होता है किन्तु सुषुप्तावस्था में या अचेतन होता है जो कुछ समय बाद फिर से जीवित हो सकता है| सच में किशन मरा नहींं था| किसी कारणवश वह भी मॄतप्राय: या अचेतन हो गया था किन्तु अब फिर से ठीक हो गया था| किशन को न जाने किसके आशीर्वाद या दुआ से वरदान स्वरूप विधाता ने उसका जीवन लौटा दिया था|
श्रीहरिनारायण ने रोहन को सामुहिक घोषणा करके अपने परिवार का सदस्य बनाते हुए, उसे अपना चौथा बेटा मान लिया| रोहन को उसके साथ हुई अन्होनी के लिए उसके मोहल्ले और शहर वासियों के साथ-साथ सारे देशवासियों की सहानुभुति व स्नेह तो मिला ही था| उसके धैर्य और बहादुरी के लिए उसे राजकीय सम्मकष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं| जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं| यह संसार रोहन जैसे मर्दों के लिये है| जिस दु:ख को हम सुनना भी नहीं चाहते, रोहन उसे भोग रहा था फिर भी वह अपनी माता के अधूरे सपने को पूरा करने के लिये दोबारा आस्ट्रेलिया गया|
दूसरों का सम्मान करना एक शिष्ट आचरण है और दूसरों से सम्मान पाना एक नशा| उम्र का एक पडाव ऐसा आता है जब हर व्यक्ति चाहता है समाज मे उसका अपना एक अलग व्यक्तित्व, अलग पहचान हो तथा लोग उसे सम्मान की दॄष्टि से देखें| लेकिन बहुत से ऐसे नौजवान हैं जो आत्महत्या करके अपने माता-पिता की आत्मा व उनकी सामजिक प्रतिष्ठा को छलनी कर जाते है| एक बेटे के लिए इससे बड़ा कोइ कलंक न होगा कि उसके बूढ़े और कमजोर माता-पिता को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए लोगो के सामने भीख मांगने के लिए उन हाथों को फैलाना पड़े, जिनके सहारे कभी उसने चलना सीखा|
विधाता ने किशन को इस कलंक से बचा लिया, जिसका एहसास उसे बखूबी था|
कई दिन हो गए लेकिन वह राघिका से बात तक न कर सका था लेकिन अब वह उसके बिना भी अपने परिवार के लिए हंसी खुशी जीने लगा| इस वक्त वह कुलदीप व सुनील के साथ दुकान पर बैठा गप्पे हांक रहा था| अचानक सागर वहां आया और किशन को बाहर बुलाया|
“भाई राधिका ने आपके लिये पत्र भेजा है” सागर ने एक कागज किशन की ओर बढा दिया|
राधिका का नाम सुनते ही उसके दिल की धड़कन अनायास बढ़ गई‚ आंखे सजल हो गयीं|
किशन ने पत्र पढना शुरू किया –
प्रियतम,
मुझे क्षमा कर देना| मैने आप पर भरोसा न करके आपके प्यार का जो अपमान किया‚ उसके बाद मैं खुद को आपकी दासी बनने के योग्य भी नहींं समप्रेम की स्मॄति में प्रेम के भोग से कही अधिक माधुर्य और सागर है| आपने मुझे प्रेम का वह स्वरुप दिखाया, जिसकी मैं इस जीवन में आशा भी न करती थी| मेरे लिए इतना ही बहुत है| मैं जब तक जीऊगी, आपके प्रेम में मग्न रहूगी| लेकिन आपने आत्महत्या का प्रयास करके जो गलती की उसके सामने मेरी गलती कुछ भी नहीं| जीवन में भले ही कितनी ही उलझनें, कितनी ही तकलीफें, कितने ही दु:ख और कितने ही सुख हों हमेशा हौंसले और सकारात्मक सोच के साथ जीना चाहिये फिर प्यार तो समर्पण है, त्याग है, तपस्या है, जो आपने चाहने वाले पर सब कुछ न्योछावर कर देता है| प्यार हमेशा प्रेरणादायी होता है अगर हालात ऐसे हो भी गये थे कि हमें अलग-अलग जीना पडता, तब भी सब कुछ वैसा ही चलते रहना चाहिए था जैसा आपके परिवार और आपके लिये शुभ होता, आपको कुछ ऐसा करके दिखाना चाहिये था जिससे मै तडप जाती कि मैने किसे खो दिया और आपके चाहने वालों को खुशी होती| जो प्यार साधना के तप को झेल चुका हो, उसे तो सारी कायनात मिलकर भी नहीं हरा सकती| परन्तु कभी–कभी हालात ऐसे हो जाते है जब दो प्रेमियों के मिलन की आवश्यकता को समझना या समझाना मुश्किल हो जाता है| तब समस्त जीवन बल्कि बहुत सी ज़िन्दगियों की बलि देने से अच्छा है| एक आदर्श की बलि दे देना|
इसीलिए मै आपसे दूर जा रही हूँ लेकिन मैं फिर आऊगी और हम फिर मिलेंगें, परन्तु केवल उसी दशा में जब तुम एक कामयाब इन्सान बन जाओगे| यही मेरे लौटने की एकमात्र शर्त है| मैं तुम्हारी हूँ और सदा तुम्हारी रहूगीººº|
तुम्हारी ,
राधिका
किशन राघिका से अलग होने की कल्पना से ही काँप उठा| वह राघिका से इतना जुड़ गया था कि उससे अलग वह अपना अस्तित्व ही स्वीकार नहीं कर पा रहा था| किशन ने खत अपने दिल के करीब जेब में रख लिया-मिलना तो हमें हर हाल में है,
देखना है, नसीब मिलाता कैसे है|
"अरे किशन, किस सोच में पड गए यार" किशन को सोच में पडा देख सुनील ने पूछा|
अनायास उसके दिल की धड़कन बढ़ गई, जिस स्थिति से वह बचना चाहता था वही उसके सामने आ गई| किशन कुछ भी नहीं बोल पाया|
''क्यों किशन, किसका खत है| '' कुलदीप ने पूछा|
''भैया‚ वह राधिका वह अच्छी लड़की है|'' सागर से बताये बिना न रहा गया|
''क्या कहा राधिका| ''
“जी भैया”
“क्या यह खत तुझे राधिका ने दिया है| ”
“जी हाँ भैया‚ शायद वह आज ही यह शहर छोडकर जा रही है|”
“शहर छोडकर उसे जाने कौन देगा‚ किशन मेरा भाई‚ मेरी जान है और मेरी जान की जान को मै जाने नहीं दूंगा” कहते हुए कुलदीप उठ गया|
“कुलदीप… रूक जाओ… कोइ जरूरत नहीं उस लडकी को रोकने की” सुनील ने कहा|
“यार सुनील ये तुम बोल रहे हो‚ क्या तुम्हारे लिये किशन की खुशी कोइ मायने नहीं रखती”
“किशन उस लडकी के बिना भी खुश है” सुनील ने कठोर शब्दों मे कहा|
“ठीक से देखो फिर बोलना…” कुलदीप ने किशन की उदासी भांप ली थी|
कुछ देर की बहस के बाद वे लोग बाहर आए| सुनील ने जेब से चाबी निकाल कर बाईक स्टार्ट की और पीछे देखने लगा| किशन भीतरी खुशी से उछलता हुआ सुनील के पीछे बैठ गया| उसे लगा उसकी प्रेम कहानी का अंत भी किसी हिन्दी फिल्म की तरह होगा, जिसमे वह नायक की तरह जाकर राधिका को रोक लेगा लेकिन कुलदीप ने किशन को बाईक पर से उतरने का इशारा करके उसे दुकान पर बैठने को कहा तथा वह खुद सुनिल के साथ चला गया|
किशन उदास था| वह केबिन में आकर बैठा ही था कि काउंटर पर रखे फोन की घंटी बजी| रिसिवर उठाया|
"हैलो, इज इट किशन| "
लगा, कानों में किसी ने मिश्री–सी घोल दी हो| बेहद मीठी आवाज,
"जी मैडम आपने सही पहचाना मगर आप हैं कौन”
“अच्छा जी‚ जिसका नमक खाया आज तुम उसी को नहीं पहचानते”
“न्न्न्नमक… क्क्क् कौन हो तुम| ”
“मै रितू बोल रही हूँ ”
“कौन रितू| ”
“जिसके लंच को तुम नाश्ते मे खा जाते थे‚ मै वही रितू हूँ ”
“रांग नम्बर|" कहकर किशन ने फोन रख दिया|
फोन डिस्कनेक्ट होते ही किशन इस सोच में पड गया कि आज अचानक रितू का फोन कैसे आ टपका… वह अभी इस बारे मे सोच ही रहा था कि फिर वही मिश्रीवाला फोन बजा- वही मिठास, वही चाशनी घुली कानों में लेकिन इस बार आवाज कुछ अलग लगी|
"हैलो, जी क्या यह श्रीहरिनारायण घी वालों का नम्बर है| "
"जी मैडम कहिये मै आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ”
“आप कुलदीप जी बोल रहे हैं| ”
“जी नहीं, मै उनका छोटा भाई किशन बोल रहा हूँ ”
“किशन… कुछ सुना हुआ सा लगता है… हा… याद आया तुम वलुच्चे लफंगे बदमाश हो ना जिसने मुझे मेरे घर पर आकर प्रपोज किया था”
“क्क्क्कौन हो तुम| ”
“मै सुलेखा बोल रही हूँ ”
“कौन सुलेखा| ”
“रांग नम्बर" कहकर एक बार फिर किशन ने फोन रख दिया|
“ये हो क्या रहा है” किशन माथे पर हाथ रखकर बैठ गया| हालांकि वह सुरीली आवाज काफी देर तक कानों में गंूजती रही, लेकिन राधिका के बारे मे सोचने की वजह से यह बात जल्दी ही उसके दिमाग से उतर गई|
अचानक उसे किसी के उसके सामने होने का एहसास हुआ| राधिका को सामने पाकर वह जाने क्यों खुद को सहज नहीं पा रहा था|
वह एकदम उसके सामने खड़ी थी|
एकाएक यह विचार किशन के दिमाग मे कौंध गया – अरे यह सब मैने राधिका को ही तो बताया था|
“तो यह सब आपकी शरारत थी” किशन मुस्कुराया|
वह खिलखिलाई| लगा, सच्चे मोतियों की माला का धागा टूट गया हो और उसके मोती साफ–सुथरे फर्श पर प्यारी–सी आवाज करते हुए बिखर गए हों|
"आपकी आवाज में गजब की मिठास है|" किशन ने कहा
आज राधिका ने बनने संवरने में कोइ कसर नहीं छोड रखी थी|
किशन ने उसे गौर से देखा तो ठगा–सा खडा रह गया|
"हाँ, कहिए, मैने फोन पर आपकी बात पूरी बात नहीं सुनी"
"कुछ नहीं, सिर्फ एक अच्छे इन्सान को धन्यवाद देना चाह रही थी|"
"अच्छा इन्सान… इतनी जल्दी ये अच्छा इन्सान बन गया… जब हम गये थे तब तक तो ये इतना अच्छा नहीं था” मुस्कुराते हुए सुनिल ने कहा|
कुलदीप‚ सुनील व सागर को देखकर किशन समझ गया कि यह इन सबकी सोची समझी शरारत थी|
सब लोग बहुत खुश थे|