हरि शंकर गोयल

Romance Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल

Romance Classics Inspirational

एक दूजे के लिए (भाग 2)

एक दूजे के लिए (भाग 2)

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उधर मोना का मूड बहुत ही खराब था। इतनी सी भी बात नहीं मानी अतुल ने। टी शर्ट की ही तो बात थी। उसकी पसंद नापसंद का कोई खयाल नहीं है उसको। वैसे तो बड़ा प्यार जताता है लेकिन मर्दानगी भी झाड़ता है। मैं आज के जमाने की नारी हूं कोई पुराने जमाने की अनपढ़ गंवार स्त्री नहीं जो अपने मर्द की हर बात मानने को विवश थी। सारा मजा किरकिरा कर दिया एनीवर्सरी का उसने। मोना का मिजाज बिगड़ गया था।

घर के काम में मन लग ही नहीं रहा था उसका। वैसे घर का काम भी क्या था ? काम तो बाई कर रही थी ना। झाड़ू , पोंछा, कपड़े, बर्तन। सब तो बाई ही करती थी। नाश्ता और खाना कुक बनाता था। उसका काम था खुद को तैयार करना। यह काम वह बड़ी शिद्दत से करती थी। लेकिन आज मूड खराब होने से वह ढंग से तैयार भी नहीं हो पाई थी। जैसे तैसे तैयार होकर वह ऑफिस पहुंच गई। 

उसकी कुलीग "परी" सामने ही अपने केबिन में बैठी थी। हैलो हाय हुई दोनों में। मोना को वह थोड़ी अपसैट सी लगी। वह उठकर उसके पास चली गई। 

"क्या बात है परी , कुछ अपसैट लग रही हो" ? मोना ने बात शुरू करते हुए कहा। 

" हां मोना , थोड़ी सी अपसैट तो हूं। आज "अभि" की तबीयत कुछ ठीक नहीं है" 

"तो तुम्हें अपने घर पर होना चाहिए था ना अभि की देखभाल के लिए" 

"हां यार। मैंने तो बहुत कहा था मगर अभि माने ही नहीं। कहने लगे क्या करोगी पूरे दिन घर में रहकर ? और जबरदस्ती मुझे यहां भेज दिया" 

"कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है जनाब का ? आपको यहां भेज कर कहीं गुल तो नहीं खिलाए जा रहे हैं पीठ पीछे से " ? मोना ने अपना संदेह प्रकट किया। 

"तू भी ना , आज सुबह सुबह से मार खाएगी मुझसे। एक तो मैं वैसे ही अपसैट हूं और उस पर ये सितम कर रही है तू। मैं तो ऐसा सपने में भी नहीं सोच सकती हूं। अभि ऐसे नहीं हैं " 

"किसी के माथे पर लिखा रहता है क्या कि वो कैसे हैं ? मुझे तो कुछ गड़बड़ लग रहा है"। 

"मेरा अभि तो करोड़ों में एक है। मैं कितनी भाग्यवान हूं जो मुझे अभि मिले। देख , दुबारा अभि के लिए कुछ ऐसा वैसा बोलेगी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा , हां " परी थोड़ा आवेश में बोली। 

"अच्छा बाबा नहीं बोलूंगी , बस। अच्छा , अब चलती हूं। काम भी बहुत पड़ा है अभी"। और मोना अपने केबिन में आ गई। 

लगभग दो घंटे बाद अचानक परी उसके केबिन में आई और बोली " मोना , लगता है मुझे जाना पड़ेगा। अभि को दो बार फोन लगाया था लेकिन उसने रिसीव ही नहीं किया " 

"मैंने तो पहले ही कहा था कि कुछ गड़बड़ है मगर तुम तो अपने पति परमेश्वर को पाक साफ समझती हो ना "। 

"यार, एक तो मैं वैसे ही परेशान हूं और तू अपनी बकवास से मुझे और परेशान कर रही है। मुझे तो यह डर लग रहा है कि कहीं तबीयत तो ज्यादा खराब नहीं हो गई है अभि की " ? 

"तो एक काम करते हैं। ऐसी चिंता की हालत में मैं तुम्हें गाड़ी ड्राइव करने की इजाजत नहीं दे सकती हूं। मैं छोड़ आती हूं तुम्हें। मैं भी अभि के हालचाल पूछ आऊंगी " 

"ये ठीक रहेगा"। और दोनों चल दी। 

करीब आधा घंटे बाद दोनों परी के फ्लैट पर पहुंच गई। वहां जाकर पता चला कि अभि को थोड़ा बुखार था। वह पैरासिटामोल लेकर सो गया था। फोन साइलेंट मोड पर रख दिया था। अभी अभी आंख खुली थी उसकी। परी और मोना को देखा तो उठने की कोशिश करने लगा लेकिन दोनों ने मना कर दिया उठने के लिए। वह लेटा ही रहा। 

"अब कैसी तबीयत है" परी की आवाज थोड़ा लड़खड़ा गई थी उसकी हालत देखकर। "आपने फोन रिसीव नहीं किया तो मुझे चिंता हो गई थी" परी की आंख से दो बूंद टपक गई। 

"अरे , चिंता की कोई बात नहीं है परी। मैं ठीक हूं। थोड़ा मुंह कड़वा कड़वा हो रहा है। कुछ भी खाने की इच्छा नहीं है और ये राधा (काम वाली बाई ) कभी दूध तो कभी जूस पिलाए जा रही है। मना करता हूं तो कहती है कि मैडम कह कर गई हैं। भई , आपका साम्राज्य है सब जगह। हम पर भी और राधा पर भी। हमारी तो सुनती ही नहीं है" अभि मुस्कुराते हुए बोला। 

"देखते नहीं मोना भी मेरे साथ है। जब देखो छेड़ते रहते हो " परी ने कृत्रिम गुस्से से कहा 

"अरे हां, कैसी हो मोना जी" ? 

"मैं अच्छी हूं। परी आपकी चिंता कर रही थी तो मैं भी हालचाल पूछने आ गई" मोना बोली 

"धन्य भाग हमारे जो आप पधारे। आजकल तो अतुल भी पता नहीं कहां रहता है ? दिखता ही नहीं है वह। लगता है कि दोनों में खूब छन रही है " ‌ अभि शरारत से बोला 

मोना मुस्कुरा कर रह गई। इतने में राधा किन्नू (गंगानगर, हनुमानगढ़ में पैदा होने वाला संतरा और मौसमी का मिक्स फल) का जूस बना लाई। अभि ने मना भी किया लेकिन परी ने अपने हाथों से उसे पिला दिया। मोना उन दोनों की बॉन्डिंग देखकर आश्चर्यचकित थी। 

तीनों गपशप करने लगे। अचानक अभि ने पलंग से खड़े होने की चेष्टा की। परी ने पूछा "क्या हुआ" ? 

"लगता है वॉमिटिंग आ रही है" 

परी डस्टबिन लेने दौड़ी। इतने में अभि को जोरदार वॉमिटिंग हो गई। सारा कमरा गंदा हो गया। बिस्तर पर भी कुछ गंदगी हो गई थी। 

मोना अपनी नाक पर रूमाल रखकर बाहर भागी। परी ने अभि को संभाला। उसकी पीठ सहलाने लगी। थोड़ा पानी लाई और उसे कुल्ला करवाया। उसे सहारा देकर उठाया और दूसरे कमरे में ले जाकर पलंग पर लिटा दिया। 

राधा वॉमिटिंग साफ करने लगी। परी ने उसे रोक दिया। कहने लगी "तुम कोई दूसरा काम कर लो। यह मैं करूंगी। मोना ' तुम थोड़ी देर अभि के पास बैठ कर उससे बातें करो " 

"ये तुम साफ करोगी परी " ? 

"और कौन करेगा, मोना ? अभि मेरा पति है। यह मेरा फ़र्ज़ है। यह काम मैं राधा से नहीं करवा सकती हूं। कुछ काम पति पत्नी को ही करने होते हैं" 

"आजकल की औरतें गुलाम नहीं हैं परी। पुराने जमाने की औरतें करती थीं ऐसी गुलामी। अब जमाना बदल गया है " 

"इसमें जमाने की बात कहां से आ गई मोना ? और इसमें गुलामी की क्या बात है ? कल को अगर यही घटना मेरे साथ होती तो ? रिश्तों में कोई छोटा , बड़ा नहीं होता है मोना। सब एक दूजे के लिए होते हैं। यदि ऐसे समय पर भी हम अपनों के साथ खड़े नहीं हुए तो फिर अपना क्या और पराया क्या " ? 

मोना सोच में पड़ गई। वह अभि के पास आ गई। परी ने पूरे फर्श की अच्छे से डिटॉल के पानी से सफाई की और बिस्तर भी साफ किए। फिर वह भी आकर अभि के पास बैठ गई। उसका चेहरा प्रसन्न नजर आ रहा था। अभि ने परी का हाथ अपने हाथों में ले लिया और चुपचाप लेटा रहा। 

"कितने कष्ट दे रहा हूं तुम्हें" ? 

"खबरदार जो एक शब्द भी बोला आगे"। परी ने डांट लगाते हुए कहा। अभि मुस्कुरा कर चुप रह गया ‌ मोना यह सब देख रही थी। 

अचानक मोना को याद आया कि आज तो उसकी एनीवर्सरी है। वह उठते हुए बोली " परी , अब मुझे चलना चाहिए"। 

"थैंक्स मोना , मुझे घर तक छोड़ने के लिए और अभि के पास बैठने के लिए" 

"थैंक्स तो मुझे देना चाहिए परी। मेरी आंखों पर पड़े झूठे और खोखले नारीवाद के पर्दे को हटाने के लिए। थैंक्स तो मुझे बोलना चाहिए कि रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं , इसका पाठ पढ़ाने के लिए। आज तुमने अपने काम और व्यवहार से जो सीख मुझे दी है परी , उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूंगी" 

"मैं कुछ समझी नहीं ? क्या कहना चाहती हो तुम" ? 

"तुम अभी समझोगी भी नहीं , परी। फिर कभी समझाऊंगी तुम्हें। अभी तो मैं चलती हूं। अभी तो "बुद्धू राम को मनाने के लिए भी तो तैयारी करनी है ना"। मोना लगभग दौड़ते हुए बोली। 

अतुल घर आते हुए सोच रहा था कि मोना को कैसे मनाया जाए ? तरह तरह की योजनाएं उसने बना ली थी। गाड़ी पार्क कर उसने घर का गेट खोला। चाबी का एक सैट अतुल के पास और एक सैट मोना के पास रहता था। अतुल के दिमाग में था कि मोना आठ बजे आएगी। अभी छ : बज रहे थे। दो घंटे में तो वह बहुत सारी तैयारी कर लेगा। ऐसा सोचते सोचते कब घर के अंदर आ गया पता ही नहीं चला। 

उसका ध्यान भंग हुआ घर की लाइट देखकर। शानदार लाइटिंग हो रही थी। वह अभी लाइटिंग देख ही रहा था कि सामने मोना दिखाई दी। अरे यह क्या ? मोना ने आज वही साड़ी पहन रखी थी जो वह उसके जन्मदिन पर लाया था। उसने आज भरपूर श्रंगार भी किया था। मोना बिंदी विंदी नहीं लगाती थी मगर आज उसने बिंदी भी लगा रखी थी, कंगन भी पहने थे और सिंदूर भी भर रखा था मांग में ‌। वह सचमुच एक परी लग रही थी। अतुल उसे देखता ही रह गया। 

"ऐसे क्या देख रहे हो मिस्टर ? कभी अपनी वाइफ नहीं देखी है क्या" ? मोना की खिलखिलाहट पूरे कमरे में गूंज रही थी। अतुल अपनी सारी योजनाएं भूल गया था अब ‌। उसे इतना ही सूझा "मुझे माफ़ कर दो , मोना"। 

"श श श श "। मोना उसके होंठों पर उंगली रखते हुए बोली। " माफी तो मुझे मांगनी चाहिए , अतुल। मैं झूठे आडंबर में रिश्तों की कद्र नहीं कर पाई। मैंने तो तुम पर हुकूमत इख्तियार कर ली थी। जो काम कभी मर्द करते थे , वो काम मैंने किया है, अतुल। धौंस जमाने का। अपनी अपनी चलाने का। मुझमें और पुराने जमाने के मर्द में अंतर ही क्या रह गया था। परी को देखकर मेरी आंखों से पर्दा हट चुका है। मैंने तुम्हारा दिल बहुत दुखाया है , अतुल। मुझे माफ़ कर दो ना , प्लीज़ " 

अतुल को कुछ नहीं सूझ रहा था। उसने मोना के ललाट पर एक चुम्बन अंकित किया और कहा " बस, एक मिनट में आता हूं अभी"। 

जब वह तैयार होकर आया तो मोना उसे देखती ही रह गई। उसने वही टी शर्ट और जींस पहन रखी थी जो पिछले रविवार को ही मॉल से खरीदी थी। मोना के अधरों पर एक मुस्कान तैर गई और वह दौड़कर अतुल से लिपट गई। 


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