एक दर्द अनसुना सा
एक दर्द अनसुना सा
कृपा अपनी मां का हाथ थामें रोड़ क्रॉस कर रहा था !
मां आंख से अंधी थी! इसलिए बेटा हाथ थामे और कुछ बातें नहीं शायद रास्तों के बारे में कुछ कुछ बता रहा था अपनी बातों से ही मां को दुनिया भर के रंगों से रूबरू करवा रहा था! वो रोड़ के उस पार जानें की चाह में एक कदम आगे जैसे ही बढ़ा रहा था के तभी एक ऑटो वाले ने उसे डाट दिया बोला ओए अंधा है क्या दिखता नहीं है तुझे! वो डांट कर आगे बढ़ गया, मां को दुःख हुआ "अंधा" शब्द सुन के, लक्ष्मी आंख से अंधी थी कानों से बहरी नहीं थी!
बेटे ने जब मां का मुरझाया सा चेहरा देखा तो समझाने लगा बोला मां इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है गलती मेरी थी!
मैंने ही ध्यान नहीं दिया!
मां सोच रही थी, काश कानों से भी भगवान मुझे बेहरा बनाया होता तो कितना अच्छा होता कम से कम दुनिया के कड़वे बोल मेरे कानों में तो ना पड़ते!
अचानक कुछ मिनट के लिए रेड लाइट हुई, बेटे ने फिर से मां का हाथ थामा और आगे बढ़ने लगा इससे पहले की वो रोड के उस पार पहुंच पाता के बीच रास्ते ही ट्रैफिक जाम खुल गया और एक कार बड़ी ही तेज़ी से आगे बढ़ती चली आ रही थी गाड़ियों के बीच में दो जिंदगी फंसती सी नज़र आई तो बेटे कृपा ने मां को बचाने की चाह में ऐसा धक्का दिया के मां तो बच गई, पर कृपा कार के सामने आ गया और ऐसा टक्कर मारा उस कार ने के, एक मां से उसकी लाठी ही छीन लिया! जब भीड़ की आवाज उसके कानों में पड़े तो सबके जुबां पर एक ही शब्द थे, ये तो मर गया पुलिस को फोन करो एंबुलेंस को बुलाओ!
मां तो जैसे सुध बुध ही गँवा बैठी!
लक्ष्मी का बेटा अब नहीं रहा जिस हॉस्पिटल में उसे लेकर गए थे वहीं के लोगों ने उसका अंतिम संस्कार किया!
ज़िंदगी बहुत महंगी है यारों जरा संभल कर रोड़ क्रॉस करना, ये महंगी गाड़ी में जो बैठे है जनाब शायद आँखों से कम दिखता है, या शायद उसे आप से ज्यादा जल्दी है कहीं पहुंचने की!
