Jyoti Bujethiya

Abstract Fantasy Inspirational

4.5  

Jyoti Bujethiya

Abstract Fantasy Inspirational

एक दिन ऐसा भी !

एक दिन ऐसा भी !

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आज इस कहानी के माध्यम से मैं आप सभी को एक ऐसी काल्पनिक रचना का दृश्य कराने वाली हूं जिसे सुनकर आप वास्तविकता से परे कुछ अनोखा अनुभव कर सकेंगे।

आज के युग में मानव एक मात्र ऐसा जीव है जो स्वेक्षा से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण कर पाता है। क्या हो अगर यही प्राणी किसी ऐसे विचित्र पहलू में उलझ जाएं कि वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाए।

इस कहानी के स्वरूप को तराशने के लिए हम एक ऐसे बच्चे को अपना किरदार बनाएँगे जो अपनी कल्पनाओं के माध्यम से संसार से भिन्न हो जाता है।

तो आज उद्भव ने अपने स्वप्नों के लिए उड़ान भर ली है, वह गहरी निद्रा में अक्सर डूब जाता है, और ऐसी कल्पनाओं में डूब जाता है जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।

अभी उद्भव आम लोगों की भांति जीवन व्यतीत कर रहा है, किन्तु यह क्या! अचानक उसके सामने के दृश्य में कुछ ऐसा बदलाव आया कि वह असमंजस रहा गया। अचानक मानव जाति के लोग अपने शरीर में अलग सा बदलाव देख रहे हैं। किसी के मुख पर बालों की उत्पत्ति हो रही है तो किसी का कद छोटा हो रहा है। ये क्या आपदा आ पड़ी, क्या यही मानव जाति का विनाश है? किन्तु विनाश में तो पीड़ा का आभास होता है, बदलाव तो किसी और चीज़ की ओर ही इशारा कर रहा है!

चौबीस घंटे बीत चुके हैं, अब तो उद्भव को भी अपनी काया में बदलाव की अनुभूति हो रही है, उसके हाथ पैरों से पेड़ों कि जड़ों के जैसी आकृतियां उभर रही हैं। क्या है ये सब, उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसका शरीर अब ठंडा पड़ने लगा है, चमड़ी कठोर हो रही है, वह अपना लचीलापन खोने लगा है, यहां तक ठीक था किन्तु उसके पैरों की जड़ें अब धरती में समाने लगी हैं। वह सड़क पर दूसरे प्राणियों के मध्य खड़ा रह गया है, ना वह चल सकता, ना बोल सकता, ना बैठ सकता, केवल खड़ा रहकर सुन सकता है, देख सकता है और महसूस के सकता है। पर ये क्या! उसको कुछ आभास हो रहा है! एक आवाज़ तो नहीं कह सकते पर एक पकड़ जो दूसरे पेड़ की जड़ों ने उसकी जड़ों में बना ली है। वह उसको महसूस के सकता है, वह वृक्ष काफी खुश प्रतीत हो रहा है क्योंकि कुछ समय पहले लोग उसको काटने वाले थे, किन्तु अब उसका जीवन बच गया है। 

प्रकृति ने मानो मनुष्य को सीख देने के लिए ये बदलाव किए हो।

अब उद्भव को अपनी जड़ों से जुड़ी मिट्टी से, उस पर रहने वाले जीवों से प्यार होने लगा है। जो उसके माथे पर पत्तियां आई हैं, कुछ सूख के टूट कर गिर रही हैं किन्तु उसको कष्ट नहीं हो रहा है, क्योंकि जिस प्रकार हमारे नाखून मृत हो जाते हैं, त्वचा से अलग हो जाते हैं तो दुःख नहीं होता, उसी प्रकार सूखी पत्तियों के टूटने से कुछ कष्ट नहीं होता। किन्तु जब कोई प्राणी उसकी हरी पत्तियों को या उसकी डाली को तोड़ता तो ऐसा लगता मानो चमड़ी पर से नाखून अलग कर दिया हो।

आज ग्यारहवें दिन उद्भव की जड़ें वापस उसके शरीर में जाने लगी, वापस वह एक मनुष्य की भांति लचीला और चलने लगा है। बाकी लोग जो अलग अलग प्राणी बन गए थे, अब अपने स्वरूप में विकसित हो रहे हैं।

अब उद्भव अपनी जिज्ञासा को सम्भाल नहीं पा रहा है, उसको जानना है कि किस-किस जीव को क्या-क्या परेशानी आई थी, उस परिवर्तन के दौरान।

जब वह अपने घरवालों और दोस्तों से मिला तब उसको प्रतीत हुआ कि सांप को बिना हाथ पैरों के रेंगना पड़ता है, चिड़िया को चोंच से सब काम करना पड़ता है, केंचुएं को हर काम में बहुत कष्ट होता है, चूहे और छिपकली को तो कई लोग बेरहमी से मार देते हैं, उन जीवों के तो कोई कटघरे और एफ० आई ० आर ० दर्ज करने के लिए थाने भी नहीं है, बस जितनी जिंदगी मिल रही है उतनी जी लो, चाहे फिर पूरी जीव जाति ही नष्ट क्यों ना हो जाए।

उद्भव को मनुष्य जाति की शक्तियों का आभास हो रहा है। वो चल पाते हैं, अपने विचार बड़ी ही सरलता से व्यक्त कर पाते हैं और अब तो ऐसे ऐसे उपकरणों का निर्माण हो चुका है जो इन सब दूसरे प्राणियों की सोच और पहुंच से कोसो दूर हैं। किन्तु मानव अपनी योग्यता का आभारी नहीं है, बल्कि उसने अपनी योग्यता को अपना अधिकार समझ लिया है। 

एक मनुष्य चाहे तो क्या कुछ नहीं कर सकता किन्तु वह अपनी योग्यता को भूलकर दूसरी चीजों में उलझ चुका है। उसको ये नहीं मालूम कि एक कुत्ता कितना ही प्रयास कर ले बोल नहीं सकता, एक चिड़िया कितना ही प्रयास कर ले तैर नहीं सकती, एक मछली कितना ही प्रयास कर ले उड़ नहीं सकती , पर एक मनुष्य अपने भाव व्यक्त कर सकता है अलग अलग जरियों से, पानी में तैर सकता है, विमान और दूसरे यंत्रों की मदद से आसमान की ऊंचाइयों को छू सकता है, और क्या कुछ नहीं कर सकता।

अपनी आन्तरिक भूख और ईर्ष्या से बढ़कर मानव जाति को विकसित होना पड़ेगा अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब प्रकृति का प्रकोप विनाश का कारण बन जाए।

चलो ! सुबह हो चुकी है और उद्भव अपने सपने से बाहर आकर अब अपने लक्ष्य की ओर चल पड़ा है। उसको अब अन्य जीवों की भी चिंता है और अब वह प्रकृति की हर रचना का सम्मान करता है।



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