एक डरावनी रात की काहानियाँ
एक डरावनी रात की काहानियाँ
[भाग -1] वाणपूर् की एक तूफानी रात
पुणे सेहर की सीमा आते आते वाणपूर नामक एक जगह पर, संदीप और बिमलाजी का घर था। ये जगह उतनी जानी-पहचानी तो नहीं हुआ करती पर ये सुख सुविधा वाली जगाओ से ज्यादा दूर भी नहीं थी।
रसोई की खिड़की से झांकते हुए - "हाय ये तूफानी मंजर। जाने कहाँ और कैसे रुके होंगे दोनों । मना कर रही थी जाने के लिए; ऊपर से ये बिन मौसम बरसात का भी क्या ही कहना। पता नहीं ये आजकल वाणपुर में क्या होता रेहता है।" ऐसे सोचते हुए बिमला देबी खिड़की बंद करती हे । रात का खाना बनाने जाते हुए , वे परेशान होकर अनजाने में एक बर्तन गिरा देती हे । उस स्टील के बर्तन की झण वाली आवाज सुनकर , "अरे क्या तोड़ दिया बिमु !!" उधर से आवाज लगाकर पुकारते हुए संदीप जी आ गये रसोई के भीतर ।" क्यों तोड़ फोड़ करने में बड़ा मजा आ रहा आपको देबी जी ? बिमला जी का मूड थोड़ा सही करने के लिए , ऐसे थोड़ा मजाक़िया लहजा में बोले संदीप जी । पर बिमला जी तो अनुपस्थित मन लिए काम करने लगी थी ; तो संदीप जी को कोई जवाब नहीं मिला। "अब परेशान होकर तबीयत बिगाड़ लेंगी आप, समझी!।" अब ऐसे चिंता वाली डांट लगाए संदीप जी । फिर भी चिड़चिड़ाहट न गयी बिमला देबी की । आखिर माँ जो हे । वो भी दो दो जवान बच्चों की, प्रदोष और प्रेरणा । जो की इस वक़्त घर से बाहर गये हुए थे। उनकी कोई ठीक ठिकाना नहीं थी अब तक; क्यूंकि अचानक पुणे की मौसम बिगड़ने की वजह से फोन पर भी कॉन्टेक्ट नहीं हो पा रहा था उनका। अब संदीप जी चाहे बिमला की मन को थोड़ा बदलना चाहते तो थे, पर वो खुद भी पिता थे। आखिर परेशान तो वो भी हो गये थे भीतर से। बिमला को आश्वस्त करके खुद बालकोनी और गेट पर जाकर नेटवर्क जाँच रहे थे की फोन मिल जाए दोनों बच्चों में से किसी को।
प्रदोष और प्रेरणा दोनों जुड़वा भाई बहन थे । माँ बाबा के ये दोनों होनहार और अच्छे बच्चे हुआ करते थे । माँ बाबा को इनसे कभी कोई शिकायत शायद ही हुई होगी । इसलिए उनको कभी किसी बात के चलते कुछ मना नहीं किया गया । वैसे ये लोग अकेले कभी बहार नहीं रहे पर ये पहली बार वो भी तीन दिनों के लिए कॉलेज की स्टडी टूर और पिकनिक पर उनको भेजने माँ बाबा राजी हो गये थे। यही सोच कर बिमला परेशान हुए जा रही थी ; की पहली बार बाहर भेजा हे कहीं कुछ गलत ना हो जाये । बिमला को उसके बच्चों की सुरक्षा के लिए बहुत फ़िक्र हो रही थी; नहीं तो और किसी बात के लिए वो चिंतित नहीं थी क्यों के उन्हें भरोसा था की उनके दोनों बच्चे कुछ भी ऐसा नहीं करेंगे जिससे उनकी सम्मान पर आंच आये। पर बाहर दूसरो का क्या भरोसा...ऐसे सोचते सोचते बिमला दो कप चाय लेकर आती हे संदीप जी के पास। माँ बाप दोनों अपने बच्चोको सोच कर ड्राइंगरूम से बालकोनी की तरफ उस तूफानी मंजर को घूरते हुए अपना अपना चाय का कप थामे बैठे रहे।
बिमला बोली , " ए जी सुनो कुछ पता चला क्या , फोन मिला क्या उनको या उनके प्रोफेसर को ? मुझे बेहद घबराहट हो रही । देख रहे हो ना हवा कैसा अजीब रुख मोड़ रहा और अब शाम के चार बजने वाले हे उनकी कोई बात नहीं हुई हमसे । क्या करे?" बिमला को इस तरह परेशान देख कर संदीप जी अपनी चिंता छुपाते हुए उनको कहते हे, "बिमु ऐसे तुम बुरा सोचती रहोगी तो बुरा हो जाएगा , हम जो बारबार सोचते हे वो सच का रूप ले लेता हे। ऐसे तुम तबीयत भी खराब कर लोगी , बिपि बढ़ जाएगी तुम्हारी । अब चिंता मुझे भी हे पर अभी किसी को भी फोन नहीं लग रहा । हम कर भी क्या सकते हे प्रार्थना के अलावा? धीरज रखो ; पिंटू भाईसाब का बेटा भी उन्हीं के साथ गया हुआ हे । वो भी परेशान होंगे अपने इकलौते बच्चे को लेकर । अब हमारे साथ साथ उन सारे बच्चों के लिए प्रार्थना करो की सब सही सलामत अपने घर आ जाये। तुम माँ हो दुनिया में माँ से ज्यादा कोई ताकतवर नहीं इसलिए तुम दुआ करो, शांत हो जाओ । और अभी संध्या आरती करते हुए प्रार्थना करो; देखना काल सुबह तक ये तूफान भी थम जाएगी और उगते सूरज के साथ सब वापस भी आ जायेंगे । मैं रेडियो ऑन कर देता हूँ कुछ खबर रखने के लिए, ये बिजली शायद आज तो आने से रही ।
ऐसे मन में सोचते कभी अपने में या एक दूसरे से बुदबुदाते मातापिता दोनों उस कभी ना गुजरने वाले दिन जैसा लग रहा दिन के ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगे । ऐसे शाम के पांच बज गए ; तभी किसी के दरवाजा खटखटाने की आहट हुई । इस तूफानी शाम में कौन मेहमान दरवाजे पे दस्तक दे रहा था ये देखने के लिए संदीपजी हैरान होकर चश्मा लिए उठ खड़े हुए और दरवाजे के तरफ जाने लगे । तभी बिमला जी दोनों के खाली कप उठाकर रसोई घर मे जाने लगी। डोर खोलने के बाद दरवाजे पर कोई नहीँ था । संदीप जी बड़े हैरान हुए और फिर थोड़े देर में अपार्टमेंट की छोटे बच्चों पर मन ही मन थोड़ा गुस्सा दिखाए सोचे की यहाँ हम इतना परेशान हे और इन् बच्चों को मजाक सूझ रही। तभी चिड़चिड़ाये संदीप जी वापस मुड़कर अंदर जा ही रहे होंगे की डोर बंद करते समय, साइड में लेटर बॉक्स के अंदर कुछ होने का एहसास उनको हुआ । संदीप जी थोड़ा ठहर गए और कुछ सेकंड के चलते सोचने लगे की क्या आज सुबह उन्होंने अख़बार लेते समय लेटर बॉक्स की तरफ ध्यान नहीं दिए? क्यों की रोज ये काम वो खुद करते थे । फिर उन्होंने सोचा की शायद जल्दी में उन्होंने आज बॉक्स ठीक से जाँच नहीं किये होंगे तो छोटी सी ये चीज आँखों के पार रह गई होगी। कोई बात नहीं अभी ले लेते हे ; ऐसा मन ही मन खुद को कहते कहते उन्होंने चिट्ठी उठा लिया और अन्दर से दरवाजा बंद किया।
चिट्ठी को उलट पलट करके देखते हुए फिर जाकर उस सोफे पर बैठ गए संदीपजी । उस चिट्ठी पर कोई एड्रेस या नंबर नहीं था पर वो लिफापा जऊ वाली गम से बंद किया हुआ था जैसे अँग्रेज़ों के समय कोई साही घराने से संदेश भेजते वक़्त की जाती थी। ये कागज भी आज के जमाने की पेपर जैसे नहीं लग रही थी जो की हल्के से पिली लग रही थी । उसे खोलने जा ही रहे थे की पिछे से रेडिओ से आवाज कहने लगी , "आप सुन रहे हे आज की मुख्य समाचार । अभी तक की वाणपुर मौसम की खबर के अनुसार ये तूफान अगले १२ या १४ घंटे तक अपना स्थिति बनाये रखेगी । शहर की सारी मुख्य रास्ते क्लोज़ कर दी गयी हे । अगले १२ से १४ घंटे तक कोई भी गाड़ी सेहर की अंदर से या बाहर से नहीं चालू होगी । सभी पुणे वासियों को अनुरोध सब सुबह ७ बजे तक कृपया अपने अपने घरोमे रहे। इसके साथ ही एक और बिशेष खबर : पुणे से लोनावला होते हुए वापस आनेवाली एक कॉलेज बस जो स्टडी टूर पर गयी हुयी थी और आज वापस लौट रही थी उसकी कोई सुचना नहीँ मिलपाई। घटना कुछ इस्स तरह हे की नज़दीकी पुलिस स्टेशन पर उनमें से किसी ने कॉल करके बोले की वो मुसीबत मे है तेज तूफान अचानक आने के वजह से उन्हें रास्ता पता नहीं चल रहा पर लास्ट अपडेट की मुताबिक वो लोनावला के पास वाले जंगल इलाके से होते हुए गुजर रहे थे और वही तूफान की वजह से गाड़ी रुकी पर अब उन्हें रास्ता पता नहीँ चलरहा । और इसके चलते एक टीम भेजी गई थी पर वो लोगों को किसी भी यान का कोई सिगनल या पता नहीँ मिलरहा और वो भी तूफान से जंगल रास्तेकी बीचोबीच रुके हुए हे। सूचनाओं की मुताबिक वो बस रबिनारायण महाबिद्यापीठ से ३ दिन पहले तक़रीबन पचीस छात्रछात्रिओ को लेके निकली थी जो आज वापस आने वाली थी । पर अभी तक किसीका कोई भी खबर नहीँ मिलपाई हे । अभी के लिए इतना ही , आगे का अपडेट हम देते रहेंगे , तबतक केलिए सभी उन् बच्चोके सलामती केलिए दुआ करे। इसके साथ अभी तक का समाचार यही तक, आगे जानने के लिए हमारे साथ बने रहे , नमस्कार।" फिर बस रेडियो पर वो महिला खेल की वारेमे बोलने लगी । लेकिन ये सुनकर संदीपजी और बिमला देबी दोनो के मानो दिल थम गए । संदीप जी चिट्ठी नीचे रख कर आपनी और आते हुए बिमला की करुण चेहरा देखने लगे , बिमला अपने पति को पकड़े रोने लगी। उनको चुप कराते हुए संदीपजी की आंखें भी भर आयी थी । कुछ देर दोनों एक दूसरे को थामे रोने लगे फिर संदीपजी बोले , "नहीं हिम्मत नहीं हारेंगे हम । हमें अपने बच्चों पर विस्वास रखना होगा तबतक जबतक पूरी खबर नहीं आती। बस सिर्फ लापता हुई हे , मौसम खराबहोने के कारण ये होरहा । तुम डरो मत ; और अगर कोई बिपदा आयी भी होगी तो हमारे बच्चे बहत समझदार और साहसी है बिलकुल उनकी दादा की तरह । इसलिए गलत कुछ मत सोचो बिमु । और सबसे बड़ी बात ये मत भूलो की उनके ऊपर महाकाल का आशीर्वाद हे, हाँ महाकाल का आशीर्वाद।"
तभी अचानक बिमला चुप हो जाती हे और बड़े बड़े पलकोसे संदीपजी के तरफ देखती हे जैसे की उसे कुछ याद आगया हो । तब वो बारी बारी सांसे लेकर बोलती हे की , "पर उन्हें इस वारेमे कुछ पता नहीँ , हमने कभी बताया ही नहीं सबकुछ कितना सामान्य चल रहा था ,मैं भूल ही गयी थी। पर अब लग रहा जैसे ये तूफान प्राकृतिक नहीं किसी रहस्यमयी अनहोनी की सूचना हे । ए' जी अब क्या करे ? आपको कुछ सोचना होगा हम यूं ही हाथ पर हाथ रखे बैठ नहीं सकते, कुछ सोचिये और कीजिये ।" ऐसे बिमला थरथराने लगी। संदीप बोले, "हाँ पर तुम शांत हो जाओ और भगवान की शरण लो , तबतक मैं सोचता हूँ ; लगता हे पारितोष सर को बुलाना पड़ेगा।" बिमला बोली, " जैसे ही नेटवर्क आये उन्हें फोन घुमाइए और कहे सबकुछ , उन्हें आना ही होगा । " संदीप कहते हे ,"हाँ उन्हें किसी भी तरह मदद करने बोलना होगा ।" और फिर वो तेजीसे अपने स्टडी रूम में चले जाते हे ।
इधर बिमला पूजा घर में आकर एक अखंड दीया जलाती है अपने दोनों बच्चों के लिए और शिवजी को मन ही मन कहती हे की, "है महाकाल तुम्ही मुझे ये बचे आपने आशीर्वाद स्वरुप दिए हो , दिए हुए आशीर्वाद ऐसे छिना नहीं करते भगवन, उन्हें सही सलामत घर भेज दीजिये, इस माँ पर दया करे। कृपया उनको रास्ता दिखाए प्रभु।" फिर महा मृत्युंजय का जाप करने लगजाती हे।
संदीप जी स्टडी में जाकर अपने टेबल के सबसे नीचे वाली बक्स खोलते हे और एक किताब निकालते हे जो की एक लॉक डाइरी की तरह थी । तब वो उसका चाबी खोजने ड्रॉयर खोलने ही वाले थे की, हलकी मुस्कुराहट के साथ एक आवाज आयी , "प्रोफेसर संदीप !!! प्रोफेसर संदीप ??" फिर एक अट्टहास । संदीप आपने डायना फिर बाएँ और फिर से पीछे और आगे देखकर थोड़ाडेर खड़े रहे । ताजुब की बात ये थी की वो बिलकुल डरे नहीँ थे और सामान्य थे , जैसे की उन्हें पता हो की ये आवाज किसकी थी । फिर गुरहाने की एक अजीब आवाज से कोई बोलने लगी , "क्या ढूंढ रहे प्रोफेसर ? हा - हा - हा (डरावनी हँसी) चाबी ? फिर से हा - हा - हा (डरावनी हसी के साथ)- हम तुम एक कमरे में बंद हे और चाबी खो गयी, (फिर गुरहाने की आवाज में अजीब हँसी)।" तब संदीप जी बोले , "तू क्यों आयी हे यहाँ क्या चाहती हे, अखिर तुझे आजाद किसने किया सपनों के भंवर से?" ये तूफान , मेरे बच्चों का गायब होना , ये सब कहीं तेरी कोई करामात तो नहीं?" गुस्से से संदीप तिलमिलाकर पसीना हो गये थे । फिर दूसरे तरफ से वो आवाज गाने लगी ,"तेरे सपनों की भूलभुलैया से मैं आजाद हो गयी....हम तुम इस कमरे में बंद हे और चाबी खो गयी ..हूँ हूँ हूँ ....(ई -हा -हा - हा, फिर गुरहाने की आवाज)।" संदीपजी इधर उधर देखते हुए फिर एक कोने मे छत से धीरे से आती हुयी लम्बी सांसो की आवाज की दिशा समझते हुए घूमे तोह वहाँ मिला वो मंजर जो पाठक कभी ना देखना चाहेंगे । जी हाँ कुछ सड़ी हुयी लास जैसे शरीर लिए एक अशरीर उल्टा बैठी थी उस कोने में, जिसके मुंह से गली हुई खून बह रही थी, दुर्गंध फेल गई थी चारो ओर । वो नाखून और दांत चबाकर संदीपजी के ऊपर कूद गयी की तभी उधर से बिमला गंगाजल छिड़की और पवित्र दुर्गा मन्त्रों का उच्चारण करने लगी । तभी वो आत्मा गरजते ग़ुस्से मे बोलने लगी, "नहीं मिलेंगे वो बच्चे, ना उनकी सन्देश तुम तक पहुंचेगी प्रोफेसर , हम होने नहीँ देंगे । मुझे वापस भेजकर कोई फायदा ना होने वाला क्यों के जबतक तू मुझे भेजेगा तबतक वो सन्देश खो जाएगा । याद रख तेरे सामने भी होगा तब भी ढूंढ नहीं पाएगा । (आह....गरजने लगा )।" फिर संदीप जी अपने बुक सेल्फ के पीछे से एक छोटा बॉक्स जैसा कुछ निकाल कर खोले तो एक भँवर निकल कर उस बुरी आत्मा को दूसरी कायनात में वापस लगायी ।फिर कुछ देर के लिए खामोशी छा गई और सिर्फ पानी की बूंदे धरती पर गिरने और बिजली कड़कने की आवाज ही सुनाई देती रही। थोड़े देर बाद बिमला देवी कहने लगी, "ये इस घर में प्रवेश कैसे कर गया? खैर आपको पता है अब हमें क्या करना चाहिए, चलिए देर मत कीजिए। परितोष सर को बुलाने की तैयारी कीजिए। और मैं आपके पिताजी को।" ये कहकर वो वापस पूजा घर मे चली गई। अब लेकिन संदीप जी गहरी सोच में चले गए कि वह भूत प्रवेश किया नहीं शायद करवाया गया; और वो किसी संदेश के वारे में बोल कर गया। अखिर कैसा व कौन सा संदेश! ऐसे सोच में डूबे वो मोबाइल मे नंबर डायल करने लगे परितोष सर को।
फोन के दूसरे तरफ से, "हेलो संदीप! हाँ बेटे बोलो कैसे याद करना हुआ। कहीं तुम भी मेरी तरह इस तूफान के वारे में तो नहीं सोच रहे?"...
आखिर बहुत कुछ हो रहा था या होने जा रहा था बाणपुर की इस तूफानी रात में, तो जानने के लिए बने रहे अगले अध्याय के साथ....
क्रमशः ...

