एक डरावनी रात की काहानियाँ - २
एक डरावनी रात की काहानियाँ - २
भाग - २
बाणपुर की एक तूफानी रात में किसी तरफ हो रहे ये अजीब घटनाएं धीरे धीरे रहस्यमयी रूप लिए जा रही थी । शहर के उस तरफ अपार्टमेंट में परेशान संदीपजी परितोष सर से इस बारे में चर्चा कर रहे थे।
संदीपजी टेलीफ़ोन में परितोष सर से कहते हे , "सर आप सही कह रहे , ये कोई मामूली लघुचाप या मौसम परिवर्तन के तहत हो रही तूफान नहीं हे। अभी अभी मेरे घर पर वो खूनी पिसाचिनि नजाने कैसे आकर छुपी हुई थी और उसके उत्पात मचाते मचाते हम बचे । अगर बिमला ने दुर्गा मंत्रों से उसे काबू ना किया होता तो शायद वो आज मुझपर हमला करने में कामयाब हो जाती। उसके इसी मनसूबे को पूरा करने से रोकने के लिए, आपने और पिताजी ने बरसो पहले हमारे संगठन का मूल रूप से रूपांतरण किया था और बिमला से मेरी विवाह करा दी थी। पर न जाने कैसे वो वापस आज मेरे घर में घुस गयी। ऐसा तभी हो सकता हे जब उसे किसी दूसरे की मदद मिले। और इससे जरूरी बात ये की वह प्रदोष और प्रेरणा के बारे में कुछ अनाप शनाप कह गयी। कुछ सन्देश की बात भी कर रही थी…और सभी बच्चों के ना मिलने की बात कह कर गयी। कहीं मेरे ऊपर आया हुआ बरसो पुराना मुसीबत मेरे ऊपर से हट कर हमारे बच्चों की सर तो ना मढ़ गयी? अच्छा होता बरसो पहले वो मुझे ले जाती , कम से कम आज ये दिन तो ना देखना होता!" बड़े हताशा से संदीपजी परितोष सर से ये सब कहने लगे थे, एक लाचार पिता की भाँति ।
ये बातें सुनकर परितोष सर थोड़ा असंतोष प्रकट करते हुए कहने लगे कि, "पहले तो तुम आपने आपको सम्भालो सन्दीप । और ये क्या कहे जा रहे? जैसे तुम आज आपने बच्चों को लेकर परेशान हो अतीत में तुम्हारे पिता और हम सब भी उसी मुकाम पर खड़े थे बेटे। तुम उनके तथा हमारे सन्तान के स्थान पर थे । तुम ये बात कैसे भूल रहे हो? और इस बार भी सिर्फ तुम्हारे नहीं, हम सभी के ऊपर ही ये परेशानी आई हे । हमारा संगठन एक परिवार ही तो हे। जो भी मुसीबतें किसी पर आता हे उससे हम सब मिलकर ही निपटते हे। हमारे सारे सदस्यों के बच्चे हमारे तथा संगठन के भविष्य है, हम सबके नयी पीढ़ी, तो हम मिलकर इसका समाधान खोजेंगे। एक समय तुम्हारा था जब तुमने हमारी समस्याओं के समाधान के लिए मुश्किल से मुश्किल जवाब ढूंढ लाते थे । और आज इतनी कमजोर पड़ रहे?" तुम्हारे पिता की एक बात मैं हमेशा बोलता रहा हूँ सबको की, भय मरने से पहले मार देती हे, इसलिए जबतक मौत आयी नहीं उससे कैसा डर? क्या तुमने आपने बच्चों को कुछ होते देखा? नहीं ना? तो बस हिम्मत बनाए रखो । डर का सामना हमेशा से हम करते आये हे और करते रहेंगे। मैं अभी आ रहा हूँ चिंता ना करो ।" इतना कहकर फोन की लाइनें दोनों तरफ से काटी गई।
फोन के रखते ही फिर किसी की आने का खटखट दरवाजे पर हुई। इसबार संदीपजी सोच कर ही चलने लगे की अबकी बार ये बच्चे डांट खाएंगे। पर तुरंत डोर ओपेन करते ही , उनके जुबान पर अटकी डांट वाली बाते चुप होकर रह गये, क्यों के दरवाजे पर पिंटू भाईसाहब थे। उन्हें देखते ही संदीप जी समझ गए की ये भी उन्हीं की भाँति अपने बेटे को लेकर परेशान थे। और भी एक बात ये थी की पिंटूभाई भी उन्हीं के सीक्रेट सोसाइटीसे जुड़े सदस्य थे। वो भी इसी अपार्टमेंट में उनके साइड फ्लेट पर रहते। फिर दरवाजे पर "आइये भाईसाहब" सम्बोधित करके संदीपजी, पिन्टूजी को अंदर ले आए। दोनों बैठ गए वापस सोफे पर। अब धीरे धीरे शाम ढल रही थी। बाहर तूफान भी बढ़ती जा रही थी। पिन्टूजी ने कहना आरम्भ किया , "संदीप भाई बच्चों की बारे में कोई खबर? बात हुई आपकी? आपने रेडियो पर वो संवाद सुनी? मौसम वाली…मुझे बहुत टेंशन हो गयी हे, प्रदोष और प्रेरणा की साथ अरविंद् भी उसी बस में गया हुआ था। उसकी माँ बीना भी बेहद परेशान हो रखी हे। भगवान करे सभी लोग ठीक और सही सलामत वापस लौट आये। न जाने क्यों भाईसाहब मुझे ऐसा आभास हो रहा ये बिन मौसम का तूफ़ान कोई अनहोनी का संकेत हे । "
ये बातें सुनकर संदीप जी आपने घर पर हुई दूसरी घटना के बारे में भी उन्हें बताते हुए केहते हे, "पिंटू भाईसाहब आप शत प्रतिशत सच बोल रहे ये तूफान प्राकृतिक नहीं मालूम पड़ रही । परितोष सरको भी यही लगा। और अभी थोड़े देर पहले खूनी पिशाचिनी भी अपशब्द बोल कर गई। मुझे समझ नहीं आ रहा क्या किया जाए। " पिन्टूजी सहमति से सर हिलाते हुए बोलते हे, "संदीप भाई सुनिए ! परितोष सरको आने में कुछ वक़्त लगेगा । आखिर तूफान भी तो तेज हे । तबतक हमें ऐसे हाथ पर हाथ रखे सर का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, हमें उनके आने तक हमसे जो सम्भव करना चाहिए। वो अभी नहीं आये पर में तो हूँ ना आपके साथ ! मित्र वही जो मुसीबत में काम आये। आपके और मेरे बच्चे सब हमारे ही तोह हे । हमारी अगली पीढ़ी
को हम ऐसे ही गुमशुदा नहीं होने दे सकते। चलिए अब मुझे विस्तार से बताइये पिशाचनी ने क्या क्या कहा आपसे ।"
[उलझने इतनी भी सहज नहीं मालूम पड़ रही थी। आखिर कौन सी सीक्रेट सोसाइटी की स्थापना की गई थी जिसकी बारे में ये सब बात कर रहे थे बीच बीच में… कहाँ गए इनके बच्चे और वो सारे जो बस में थे… ये सब गुत्थियां खोलने कहानियों के साथ चलते रहे… ]
- क्रमशः …
