बेबस

बेबस

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स्टार होटल का दरबान रामप्रसाद आज बहुत खुश था। नये साल के स्वागत में होटल में रंगारंग कार्यक्रम चल रहा था। डीजे के संगीत और रंग बिरंगी रोशनी के बीच वह भी जन्नत का आनंद ले रहा था। शराब के नशे में झूमते-लड़खड़ाते हुए निकल रहे अमीरजादों की टिप से उसकी जेब भरी जा रही थी। सहसा उसकी नज़र सड़क के उस पार गयी तो सारी खुशी काफूर हो गयी। कड़कती ठंढ में खड़े कुछ अधनंगे बच्चे कँपकपाती सर्दी से जूझते हुए कुछ आस में होटल की ओर देख रहे थे। आती-जाती गाड़ियों के बीच उनका मासूम चेहरा लुकाछिपी खेल रहा था। उसे अपने बचपन के दिन याद आने लगे। वह अपने जेब की गर्मी से बच्चों की सर्दी दूर करने को व्याकुल हो गया। सहज ही उसके कदम सड़क की ओर बढ़ पड़े। बढ़ते कदमों के बीच ही उसकी नज़र सीसीटीवी कैमरे पर गयी। उसके दिमाग ने तुरन्त बढ़े कदम वापस खींच लिये। आँखों से निकलती गंगा-जमुना की धारों की छुपाने की कोशिश करता हुआ अब वह सड़क के उस पार देख रहा था। पर अब वह केवल देख ही रहा था....


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