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Yash Mehta

Romance

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Yash Mehta

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एक और गुनेहगार देवता - भाग २

एक और गुनेहगार देवता - भाग २

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बीयर की सारी केन प्रयाग ने चिलर में डाल दी। मैं आया तो था विक्रांत को परीक्षा के बारे में समझाने, पर अब प्याज, खीरा और ककड़ी काट रहा था। हम लोगो में से न तो किसी को इतनी तगड़ी पॉकेट मनी मिला करती थी और न ही इतनी कोई कमाई थी कि किसी बार में जाकर पार्टी कर ली जाए। उस समय दिल्ली में बार भी सारे महंगे होते थे।आज तो दिल्ली में हर कोने में बार हैं और वो भी किफायती। सस्ते बार सामाजिक ढाँचे के लिए सही हैं या गलत, इस पर एक अच्छी खासी बहस हो सकती हैं। इक तरफ यह अच्छा हो चुका हैं कि काफी लोग अब सड़क की जगह इन सस्ते बार में जाकर पी लेते हैं, दूसरी तरफ शराब की खपत कई गुना बढ़ चुकी हैं। 

तो हम लोगो की बीयर पार्टी या तो तब होती थी जब किसी का घर खाली हों या सर्दियों की रातों में जब हमारे यहाँ के पार्क सुनसान हो जाते थे। सर्दियों में ओल्ड मोंक चलती थी। इसके अलावा और भी शर्तें थी। नशा जल्दी उतर जाना चाहिए, मुंह से शराब की खुशबू नहीं आनी चाहिए। चौकिये मत, शराब की बदबु नहीं होती। शराब की खुशबू होती हैं असल में, शराब बदनाम हैं इसलिए संज्ञा ही बदल दी किसी ने। कोई घर पर पकड़ा नहीं जाना चाहिए। अगले दिन जब सारे दोस्त वापस मिलते थे तब ऐसा लगता था जैसे कारगिल का युद्ध जीत कर जवान लौटे हैं। 

अब रही बात शराब की, तो जनाब आपको मेरी कहानी तभी अच्छी लगेगी जब आपको इश्क़ और शराब दोनों या फिर दोनों में से एक अच्छा लगता हों। इश्क़ बेइंतहा कीजिये, शराब लिमिट में ही पीजिये। वो ग़जल तो सुनी ही होगी आपने, बड़ी महंगी हुई शराब कि थोड़ी थोड़ी पिया करो। 

मूंग की दाल में कच्चा प्याज और फिर निंबू। ठंडी ठंडी बीयर, खाली घर, कोई रोकने वाला नहीं और स्पीकर्स पर बजते इंडी पॉप गाने। प्रयाग ने स्पीकर्स की आवाज़ बढ़ा दी, यह पड़ोसियों को अपनी गुंडागर्दी दिखाने का तरीका होता था। किसी को मुसीबत हो आवाज़ से तो घर आ जाए। पड़ोसियों ने भी घास नहीं चरी होती थी, दो-चार दिन बाद घरवालों से शिकायत हो जाती थी।

 मम्मी या पापा पूछते "बिट्टु की मम्मी कह रही थी कि तुम्हारे घर से बड़ी तेज आवाज़ें आ रही थी, तीन लड़कों को भी मैंने अंदर जाते हुए देखा"। बिट्टु की मम्मी को लगता कि हम बदला नहीं लेंगे, बिट्टु की शामत आती थी। 

यह शिकायत उन दिनों तन मन जला देती थी पर अब याद आती हैं तो आँखें भरी चली आती हैं। सब बदल चुका हैं, कोई बोस्टन में हैं, कोई डेनमार्क तो कोई बंगलौर। कोई किसी जिले का डीएम हैं तो कोई बैंक में मैनेजर। कोई कश्मीर बॉर्डर पर हैं तो कोई चीन वाले बॉर्डर पर। सबकी अपनी अपनी दुनिया हैं। कुछ दोस्त आज भी साथ हैं, कुछ हमें याद ही नहीं करते और कुछ को हम याद नहीं करते और कुछ याद करना ही नहीं चाहते। 

बीयर की पहली पारी निपटाने के बाद हम सुट्टे मारने पीछे वाली बालकनी में आ गये। विक्रांत ने मुझसे कहा " यार, तुझसे एक काम था"। 

"अरे भाई, मैं सब बता दूंगा। कैसे तैयारी करनी हैं, क्या पढ़ना हैं क्या नहीं" थोड़े घमंड से मैंने विक्रांत को कहा

"यार, वो तो ठीक हैं.... वो तो पड़ोस में एक लड़की रहती हैं ना सिम्मी.... "

"हाँ... तो" मैंने घूरते हुए विक्रांत को पूछा। 

"यार, मेरी उससे बात करा दे! "

"भाई, तूने मुझे यहाँ कैसे तैयारी करनी हैं यह जानने के लिए बुलाया था या इस काम के लिए" मेरा दिमाग सातवें आसमां पर जा चुका था। 

"प्रयाग, यह क्या बकचोदी हैं?" मैंने प्रयाग को बीच में लाते हुए पूछा। प्रयाग बिल्कुल चिलर से निकली केन सा ठंडा हो चुका था। मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर देखा तो उसने अपनी आँखें ही बंद कर ली। प्रयाग कापने लगा था। 

"अब यार, इसको मिर्गी का दौरा न पड़ जाये। प्लीज, यश इसे मत बोल, मेरी बात सुन" विक्रांत की आवाज़ कांप रही थी। 

प्रयाग को दसवीं कक्षा से मिर्गी के दौरे आते थे। मुझे भी अपने गुस्से पर पानी डालना पड़ा अन्यथा अनर्थ हो जाता। अगर प्रयाग को दौरा आ जाता, तो हमारी बीयर पार्टी की भी पोल खुल जाती और अच्छा खासा ड्रामा हो जाता सबके घरों में। 

हम प्रयाग को बालकनी से घर के अंदर लाये। मैंने एसी ऑन किया और फिर प्रयाग को बिस्तर पर लिटा दिया। 

"प्रयाग, तू थोड़ी देर आराम कर ले" मैंने प्रयाग को लिटाते हुए कहा। प्रयाग ने मेरी तरफ देखा और फिर बिना कुछ कहें तकिये में अपना मुंह छुपा लिया। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। मुझे फिर गुस्सा आया पर मैं फिर से गुस्सा निगल गया। 

"विक्रांत, देख भाई, मैं यह सब गोरखधंदे नहीं करता, वो मेरे पड़ोस में रहती हैं.... हम लोग बचपन से साथ बड़े हुए हैं, मैं अपनी इमेज उसके आगे नहीं बिगाड़ सकता। तुझे अगर उससे दोस्ती करनी हैं.... तू खुद कोशीश कर... मुझे बीच में मत ला..... और मैं बोलता ही चला गया। 

मैं बोलता गया, विक्रांत सुनता गया और प्रयाग तकियों के बीच में मुंह डालकर पड़ा रहा। दोस्तों में लडाई होती हैं तो शांत भी जल्दी हो जाती हैं और होती भी क्यों नहीं, अभी तीन बीयर की केन बाकी थी। 

" यार, मेरी बात तो समझ" विक्रांत फिर से चालू हो गया। 

आगे क्या होता हैं। आगे यहीं होता हैं कि दोस्त पिघल जाते हैं। 

"सुनुंगा भी और समझूँगा भी..... रेल देखने चलेगा?" नशा अब हल्का हल्का उठ रहा था। 

"रेल देखने??.... बच्चा हैं क्या?" विक्रांत स्तब्ध था। 

"इसे रेल देखने का बहुत शौक हैं, यह दिल्ली कैंट स्‍टेशन रेलवे जाता हैं" प्रयाग आखिरकार बोला। प्रयाग की नकली बेहोशी अब दूर हो चुकी थी। 

"यह भी अजीब शौक हैं! " विक्रांत और ज्यादा आश्चर्यचकित हो गया।

"यह रेलवे स्‍टेशन हरियाली से भरा पड़ा हैं। यह सुस्त सा रेलवे स्‍टेशन हैं, जहाँ सुस्त सी रेल आती हैं। लोग सुस्ती से ट्रेन से उतरते हैं या सुस्ती से रेल में घुसते हैं। लेकिन इसी स्‍टेशन से भारत की सबसे लगजरी ट्रेन चलती हैं। इसी स्‍टेशन पर "फैरी क्वीन" खड़ी हैं, जो 1855 में बनी थी और आज भी धुआँ उड़ाती हैं"..... मैंने विक्रांत को बताया। 

"ठीक हैं भाई..... चलते हैं"

और हम लोग रेल देखने के लिए निकल गए। 

क्रमश: ......... 


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