एक और गुनेहगार देवता - भाग १
एक और गुनेहगार देवता - भाग १
विक्रांत मेरा बरसों पुराना मित्र हैं। उसकी और मेरी जान- पहचान मेरे एक सहपाठी के जरिये हुई थी। उस समय मैं सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। दो-चार जगह रिटेन क्लीयर कर चुका था पर इंटरव्यू में सफलता नहीं मिल रही थी। यूँ तो सरकारी नौकरी पाकर ही एक प्रतियोगी की पूरी धाक घरवालों, दोस्तों, पड़ोसियों पर पड़ती हैं, परंतु दो-चार जगह रिटेन भी निकाल दो तो ७०-८० प्रतिशत धाक तो जम ही जाती हैं। घरवालों को यकीं हो जाता हैं कि नालायक आजकल लायक बनने की कोशीश कर रहा हैं। "बस इसके इंटरव्यू ही नहीं निकल रहे" इतना भी घरवाले बोलने में गर्व तो कर ही लेते हैं और दो चार तंज सुरसा की तरह बढ़ती बेरोजगारी और सरकारी नौकरियों की कमी, सामाजिक ताने बाने पर कह कर अपने नालायक की इंटरव्यू वाली असफलता को ढाप ही देते हैं।
उस समय विक्रांत भी सरकारी नौकरी की तैयारी में लगा हुआ था, पर सिर्फ कहने को या घरवालों को संतुष्ट करने के लिए। अब यह हर मध्यमवर्गीय परिवार की इच्छा होती हैं कि उनके बच्चे सरकारी नौकरी ही करें। आपको मैं इस बारे में बताकर बोर नहीं करना चाहता। विक्रांत ने कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग करी थी सो उसका मन कोडिंग में था, जो कि सही भी था। उसका मन था कि किसी बड़ी सिलिकोन मल्टीनेशनल कंपनी में काम करे और विदेश में बस जाए। उसके पिता ऊर्जा मंत्रालय में थे और उनके मन में पुत्र को आईएएस बनाने की इच्छा थी। विक्रांत ने जब बताया कि उसकी प्लेसमेंट हो गयी हैं तो पिताजी का आदेश हुआ कि सरकारी नौकरी की तैयारी करो। विक्रांत को प्लेसमेंट में मिला पैकेज दिख रहा था और पिता को सरकारी नौकरी की स्थिरता और रुआब। किसी तरह पिता पुत्र में समझौता हुआ कि विक्रांत एक बरस सरकारी नौकरी की तैयारी को देगा, अगर सफल हुआ तो ठीक नहीं तो वो कोडिंग ही करेगा। पिता की योजना थी कि पहले कोई अफसरी का पद मिल जाये फिर विक्रांत को यूपीएससी की तैयारी में लगवा देंगे। इसके विपरीत विक्रांत का फंडा क्लीयर था कि एक साल मौज करो और फिर वही जो उसे करना था। उसने पीछे से फ्रीलानसिंग शुरू कर दी थी, इंटरनेट से छोटे मोटे प्रोजेक्ट हासिल कर कोडिंग करता रहता था।
मेरा सहपाठी प्रयाग उसकी मौसी का लड़का था। प्रयाग ने मुझे फोन किया कि वो अपनी मौसी के लड़के को मुझसे मिलवाना चाहता हैं, उसे प्रतियोगी परीक्षा के स्वरूप और किताबों के बारे में मुझसे बात करनी हैं। मैंने हामी भर दी और फिर एक शनिवार को प्रयाग के घर पर मिलना तय हुआ।
मैं प्रयाग के घर पहुँचा तो घर पर प्रयाग के सिवा कोई नहीं था। घरवाले किसी रिश्तेदार की शादी में करनाल गए हुए थे।
"और भाई, आजकल क्या कर रहा हैं तू" मैंने सोफे में धँसते हुए पूछा।
"कुछ नहीं यार, पापा के साथ ही बिजनेस में लग गया हूँ, अभी पापा नया शोरूम खोलने के लिए जगह देख रहे हैं, या तो लाजपत नगर या फिर ग्रेटर कैलाश" प्रयाग ने पानी की बोतल देते हुए कहा।
"यार, तेरा सही है शोरूम खुला और तेरी लाइफ सेट और एक हम हैं अभी भी अपसेट"
"नहीं यार, शोरूम चलाने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, पापा की दुकान तो एक ही हैं और हम तीन भाई, इसलिए पापा कहते हैं कि तुम तीनों भी अपना बिजनेस सेट करो, जब तक मैं जिंदा हूँ मेरी दुकान मैं ही संभालूँगा, किसी को नहीं मिलेगी" प्रयाग बोला।
"अच्छा तु शोरूम किस चीज का खोल रहा है, तेरे पापा का बिजनेस तो हार्डवेयर का हैं" मैंने एक नया सवाल प्रयाग को पूछा।
"छोड़ यार, ओपनिंग पर तुझे जब बुलाऊँगा तब खुद ही देख लियों" प्रयाग टीवी के रिमोट पर उंगलियाँ चलाते हुए बोला।
"अबे बता ना, मैं कोनसा तेरे पड़ोस में शोरूम खोलने वाला हूँ"
"कॉस्मेटोक्स और आर्टिफिशियल ज्वेलरी" प्रयाग झेपते हुए बोला।
" सही है, कॉलेज में भी तु लड़कियों के बीच में जाने के बहाने ढूंढता था और जब बिजनेस की बात आई तब भी तू वही बहाने ढूंढ रहा हैं। मैं प्रयाग की टांग खेचने लगा।
इतने में डोरबेल बजी, प्रयाग खोलने के लिए गया। दरवाजा खोलते ही प्रयाग ने पूछा - कि तू सुट्टा भी लाया है ना?
एक लंबा और पतला सा लड़का अंदर घुसते हुए बोला - अपने ब्रांड की लाया हूँ।
"विक्रांत यह यश हैं और यश यह विक्रांत" प्रयाग ने उस लंबे पतले लड़के से मेरा परिचय करवाया।
मैं सोफे से उठा, विक्रांत से हाथ मिलाया और वापस सोफे में धँस गया।
" यार, मैंने तुझे पहले भी कहीं देखा हैं। " विक्रांत मुझसे मुखातिब होते हुए बोला। "अरे हाँ, याद आया.... तुम लोगो के कॉलेज में ही तुझे देखा था। तू एक लड़की के साथ बैठा हुआ था क्रिकेट ग्राउंड में और तेरे हाथ में कोई बुक भी थी"
"भाई, यह क्यूँ नहीं बोलता कि लड़की को देख रहा था तू, खैर तुझे इतना याद हैं, तेरी मेमोरी शार्प हैं" मैंने थोड़ा कंफर्ट जोन में आते हुए कहा।
"अच्छा, बता बियर पीता हैं?" विक्रांत ने मेरी तरफ फुल टॉस गेंद फेंक दी, और हर बल्लेबाज फुलटॉस को छक्के में तब्दील करना चाहता हैं।
मैं कुछ बोलता इससे पहले ही प्रयाग बोला... विक्रांत, तू राजीव को जानता हैं न, यश और राजीव कई बार कॉलेज से जल्दी भाग जाते थे और राजीव के घर की छत पर या फिर यश के स्टडी रूम में इनकी बियर पार्टियां होती थी।
इक बार यश ने राजीव के घर उल्टी कर दी थी।
"पार्टी की बात सही हैं, मैंने नहीं बल्कि राजीव मे मेरे घर पर उल्टी करी थी, वो सबको उल्टा बताता था" मैंने प्रयाग की बात का समर्थन और खंडन एक साथ किया।
"अबे, तुम दोनो ने ही करी होगी एक दूसरे के यहाँ" विक्रांत ने मुझ पर फब्ती कसी।
लड़कियों की अपेक्षा लड़के एक दूसरे के दोस्त जल्दी बन जाते हैं और अगर कोई शौक दो लड़कों में कौमन हो तो फिर तो वो " ब्रदर फ्रॉम अनदर मदर" हो जाते हैं। कुंभ के मेले के बिछड़े भाई। लड़को की दोस्ती भी शुद्ध होती हैं। अगर लड़का किसी लड़की को चाहने लगे तो उसके दोस्त उस लड़की को भाभी मानने में देर नहीं लगाते। एक ही सुट्टे से ४-४ दोस्तों का एक साथ कश लेना तो दोस्ती के धर्म का सबसे बड़ा यज्ञ हैं। उधारी लेना और वापिस न करना, दोस्त के हॉस्टल वाले रूम को अड्डा बनाना, अपनी गर्लफ्रेंड को घुमाने के लिए दोस्त की बाईक मांगना और पेट्रोल न भरवा ले वापिस करना, बात बात में टांग खिचते रहना, नाम की बजाय गालियाँ देकर एक दूसरे को बुलाना, दोस्त और आपका दिल एक ही लड़की के लिए जब धड़के तब उसके के लिए अपने प्यार का बलिदान करना या फिर उससे बलिदान करवाना। आज भी अगर आप देखोगे तो 1990 se 2010 तक के हिंदुस्तानी लड़को के दो कॉमन फेवरेट गाने आपको जो मिलेंगे - पहला नशा पहला प्यार और पुरानी जींस। अब हमारी उमर के लड़के ४० को छूने वाले हैं और जब हम पुराने दोस्तों से मिलते हैं तो बस वही पुरानी यादें ताजा होती हैं, हम नोस्टाल्जिया से ग्रसित हैं।
क्रमश...

