एक अधूरा सिलसिला
एक अधूरा सिलसिला
तीन साल गुजर चुके थे शायद, या फिर उस से ज्यादा पर वर्णाली को हर एक बात, हर एक एहसास उसके बगीचे पर आज ही खिले हुए गुलाब की तरह याद थी, बिल्कुल ताजी। हाँ, समय के साथ साथ उन यादों पर धूल की परत ज़रूर जम गई थी, पर उस धूल के परत के नीचे से भी कितनी हसीन दिख रही थी। वर्णाली जैस अंदर से सिहर उठी। तीन साल बाद आज क्यों याद आ रहा है वो ? "तीन साल बाद... हर रोज तो याद आता है वो !" जैसे वर्णाली के अंदर से कोई आवाज आयी। पर हर बार तो में उस याद का गला घोंट देती हूँ। फिर आज ये टीस क्यों उठ रही है ? क्यों मन कर रहा है कि एक बार, बस, एक बार उसकी तस्वीर देख लूँ ? फिर एक बार उसे महसूस कर लूं ?
इतने में वर्णाली की आंखें नम हो आयी। उसको याद आ रही थी दीप की। वैसे तो वो दीप को वो 6 साल से जानती थी पर उस से बात चित्त तीन साल पहले ही शुरू हुई थी। दीप और वर्णाली एक ही स्कूल में पढ़ते थे। वर्णाली पहले से ही थी, पर दीप आठवीं कक्षा में आया था। क्लासमेट थे, तो फॉर्मल हाई - हैलो चलता रहता था। पर कब वर्णाली को वो अच्छा लगा, कब वो उसकी फिक्र करने लगी और कब वो उसे चाहने लगी, उसे कुछ नहीं पता। ये दिल भी है ही अजीब, कब किस पर आ जाए कहना नामुमकिन है। फिर देखते ही देखते स्कूल खत्म हो गया और उसे देखना भी। स्कूल के बाद वर्णाली के पापा ने उसे नया स्मार्ट फोन दिलाया। फिर व्हाटसआप पे आते ही वर्णाली को मन हुआ कि वो दीप से बात करे। दिल कहता हाँ, तो दिमाग ना पे अड़ा रहता। फिर इतनी जद्दोजहद के बाद वर्णाली ने एक "हाई !"भेज ही दिया। और देर से ही सही पर रीप्लाई भी आया। उसके बाद से बातें बढ़ने लगी, नजदीकियां बढ़ने लगी और वर्णाली दीप को ज्यादा जानने लगी। वो बिना कुछ सोचे समझे पूरे दिन की बात, फ्यमिली की बात, पापा के ऑफिस की टूअर से वो कितनी ना खुश थी, और कैसे डर था कि वो मैथ्स में फ़ैल हो जाएगी, सब बताने लगी। और वो भी "हाँ" "हूं" में रीप्लाई कर दिया करता था, और इतने में ही वर्णाली खुश हो जाती। रोज सुबह पहले "गुड मॉर्निंग "विश करने का उन दोनों में काम्पेटीसन था। फिर कुछ दिनों के बाद दीप भी उस से खुलकर बातें करने लगा। सब बताता था, कहाँ गया था, क्या खाया, घर पर क्या हुआ, और वो चाय कितनी अच्छी बनाता था, सब कुछ। वर्णाली ये ये जानती थी कि वो उस से कभी अपनी दिल की बात नहीं कह पाएगी। और कह भी दे, तो क्या वो कुबूल करेगा ?
अगर उसे भी मुझसे मोहब्बत हुआ तो क्या वर्णाली के घर पर इस रिश्ते को मंजूरी मिलेगी ? कभी नहीं। और फिर दर्द दोनों तरफ से होगा, दिल दोनों का टूटेगा। इसीलिये वो सोचती की, जिस रिश्ते का कोई भविष्य नहीं, उस रिश्ते को बढ़ावा नहीं देगी वो। पर उस से बात किए बगैर रहा भी तो नहीं जाता था। अपने कमबख्त दिल के हाथों मजबूर जो थी वो। इतने में चार महीने बीत गए, बोर्ड के रिजल्ट के बाद उसने दूसरे शहर के कॉलेज में दाखिला लिया। मतलब अब उस से मुलाकात तो दूर बात भी नहीं हो पाएगी...उसके हास्टल में फोन रखने की इजाजत नहीं थी।ये सोचकर वर्णाली गुमसुम सी हो गयी। फिर उसने मन बनाया की वो अपने फ्यूचर के लिए जा रहा है तो उसे खुश होना चाहिए। आखिरकार वो चला गया और अकेली रह गई वर्णाली।
फोन के नोटिफिकेशन से उसका ध्यान टूटा और वो यादों के बादल से बाहर आती, तब तक उसकी आँखों से बूंद गिर चुके थे। फोन को हाथों में लिया तो मन किया कि एक बार उसकी तस्वीर देख ले। गैलरी पर जाके बहुत ढूँढा पर मिली ही नहीं। एक वो वक़्त था, जब वो उसके तस्वीरों को अलग से फ़ोल्डर में, और चाट्स को बेकअप में रखती थी और आज एक तस्वीर भी नहीं है उसके पास।
फोन बदल दिया था उसने और शहर भी पर उसकी सारी तस्वीरें जो वर्णाली झगड़ कर उस से निकलवाती थी, आज भी उसके मेमोरी कार्ड मे हैं। फिर वो फेसबुक पर जाके उसकी प्रोफाइल चेक करने लगी। एक फोटो निकाला और उसको जूम करके उसके चेहरे पर हाथ फेरने लगी। अजीब सा सुकून मिला उसे। नजर उसकी कलाई पर पड़ी, सूनी थी। उसे याद आया एक दिन दीप ने दो घड़ियों का पिक्चर भेजा था। नीचे लिखा था "विच वन ? "इस से पहले की वो देख के रिप्लाई करती, दूसरा मेसेज आया "जल्दी बोलो ना !" "राइट वाली " उसने रिप्लाई किया था। क्या वो अब भी वही घड़ी पहनता होगा ? वो सोचने लगी। ऐसा नहीं था की वर्णाली ने कोशिश नहीं किया था, बहुत बार हॉस्टल पर कॉल किया, वो छुट्टियों में घर आया होगा सोचकर उसकी मां को कॉल किया, फिर जब बारहवीं के बाद वो वापिस फेसबुक पर आया तो बहुत बार मेसेज किए पर शायद वो सब भूल चुका था। अब वो मेसेज देख कर भी रीप्लाई नहीं करता था। यादों से बाहर आ कर वर्णाली ने आंसू पोछते हुए सोचा... घड़ी वो कोई भी पहनता हो, वक़्त अब बदल चुका है।

