चाँद पर दाग।
चाँद पर दाग।
सफ़र खूबसूरत है मंज़िल से भी... (गाना गाती हुई)। ओह... माफ़ कीजिएगा अंकल। हमारा आपको डिस्टर्ब करने का कोई नापाक इरादा नहीं था। वो तो हमारी पुरानी आदत है... गाना सुनते सुनते गुनगुनाने का। और ट्रेन के सफ़र के दौरान तो हमें और अच्छा लगता है। हम दिल से सॉरी हैं। आप अखबार पढ़ीए। दोबारा ऐसा नहीं होगा। अरे, हमारी तो आप से जान-पहचान ही नहीं हुई (श्रोता से बात करते हुए)। हाई! हम हैं दीनाज़ वशीर, अपने अब्बु ताबिस वशीर की इकलौती औलाद। हमारी उम्र 20 साल की है और हम कश्मीर के हैं। इतना काफ़ी है ना हमारे बारे में? अच्छा तो आप जानना चाहते हैं कि हम जा कहाँ रहे हैं? दरअसल हम भाग रहे हैं। नहीं नहीं आप जैसा सोच रहे हैं वैसा कुछ नहीं है, कोई इश्क मोहब्बत का चक्कर नहीं है। हमारे मज़हब में निकाह के पहले इश्क, हराम है। हम तो अपने ही मुल्क यानी कश्मीर के लोगों से भाग रहे हैं।
हम बचपन से ही खुश मिजाज़ हैं, हमारे अब्बु - अम्मी को तो हम जैसे ईद का चांद होता है ना! बिल्कुल वैसे लगते हैं। बस चांद पर जो दाग लगे हैं, वही मिटाने की ख्वाहिश में ईधर उधर भटक रहे हैं।
ये बात 3 साल पहले की है, उस दिन भी सब कुछ बेहतरीन था, दिसम्बर का महीना था और रात से ही बर्फबारी शुरू हो चुकी थी। हम सुबह उठकर, खुदा को इबादत फ़रमा कर, नास्ते के टेबल पर ज़ीनत खाला के साथ फोन पर बात कर रहे थे, उनकी खैरियत पूछ रहे थे। फिर हम यूनिवर्सिटी के लिए रवाना हो गए। यूनिवर्सिटी पहुंच कर, हर रोज़ की तरह हम नोटिस बोर्ड चेक करने लगे। नोटिस बोर्ड एक बड़े से पोस्टर से भरा था। बंदीपुरा के सिटी हॉल में म्यूजिक कॉन्सर्ट हो रहा था। हमने बिना कुछ सोचे, जाने का फैसला कर लिया। हमारे घर से बस एक घंटे का रस्ता था। हम वहां पहुंच कर टिकट खरीद कर हॉल में दाखिल हो गए। कॉन्सर्ट के खत्म होने के बाद, उनके मैनेजर ने स्टेज पर आ कर इत्तला किया कि उनकी बैंड को एक लेडी सिंगर की जरूरत है, इसलिए जिसको भी गाने का थोड़ा बहुत इल्म और दिलचस्पी हो, वो कल सुबह 9 बजे इसी जगह पर ऑडिशन के लिए आ जाए। हमारी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। हम दोबारा पहुंच गए वहीँ। खुशनसीबी कहो या बदनसीबी, हमारी गायकी उन्हें बेहतरीन लगी और हम चुन लिए गए। बस फिर ये ख़बर सारे कस्बे में आग की तरह फैल गई। एक सुबह कुछ लोगो का काफिला हमारे घर के सामने था। हमें आगाह कर गए के इस्लाम में लड़कियों का मौसीक़ी करना गुनाह है, और इसका अंजाम बेहद खतरनाक होगा। पर हम नहीं डरे, आखिर पहली बार हमारे मौसीक़ी को किसी ने साराहा था। फिर सब कुछ बदल गया। हमारे पहले कॉन्सर्ट के दिन कुछ मज़हब के रखवालों ने हम पर हमला करवाया। हम वहां से भागे, बहुत जोर से भागे, पर उन लोगों ने हमे घेर लिया और हम पर तेजाब फेंक दिया। दर्द, खौफ, गुस्सा और बदनसीबी सब जैसे हमारे जिस्म को तार-तार कर रही थी। उसके बाद क्या हुआ, हमें किसने अस्पताल पहुंचाया, हमें इल्म नहीं। बस आंखें खुली तो अब्बु और अम्मी सामने खड़े सिसक रहे थे। शायद उनके चांद पर लगे दाग निहार रहे थे। उसके बाद थोड़ा ठीक होते ही, अब्बु ने हमारी सलामती के ख़ातिर हमरा गाना गाना छुड़वा दिया, और हमारे निकाह के लिए लड़के देखने लगे। पर कौन भाला इस अधजली को अपनी बेगम बनाना चाहेगा! खाला को पता चलने पर उन्होंने अब्बु से कहकर हमे उनके पास बुला लिया, वो दिल्ली में रहती हैं, वहाँ के डॉक्टर ज्यादा क़ाबिल है, और दाग जल्द ही हट जाएगा ये कहने पर अब्बु मान गए। हम दिल्ली आ गए, पर इस चांद से दाग नहीं हट पाया। छःह महीने हो गए हैं, आज हम ऐसे ही एक कॉन्सर्ट करके आ रहे हैं, यहीं दिल्ली में ही। सही सोचा आपने, हम गायकी नहीं छोड़ पाए। हमारे नाम का मतलब ही गायकी है, "दीनाज़" का मतलब ही है गायकी तो हम भला कैसे गुमराह होने देते अपने वज़ूद को! हमने कश्मीर ना लौटने का फैसला बना लिया है। हम उन हैवानों के बीच में नहीं रह पाएंगे अब जिन्हें हमे या हमारे आवाज की कोई कदर नहीं। थोड़े पैसे जोड़ने के बाद, इंशाअल्लाह, अब्बु और अम्मी को भी यहीं बुला लेंगे। अब हमारे दाग को नहीं, हमारे हुनर को नवाज़ा जाता है। उस चांद की तरह, इस चांद ने भी अपने दाग को नज़र का टीका समझना सीख लिया है।
