दोस्ती
दोस्ती
आज तीस साल बाद ऑफिस के ईश ग्रुप की रियूनियन पार्टी थी। चारों तरफ चहल कदमी हो रही थी। ग्रुप के छः सदस्य कमलेश, रमेश, रूपेश, हितेश, भावेश और महेश काफी समय बाद मिलकर खुश थे। पार्टी कमलेश की ओर से रखी गई थी। सभी लोग अकेले ही पार्टी में आये थे और अगली बार अपने परिवारों के साथ आने की योजना बना रहे थे।
"यार कमलेश तूने यह तो कमाल ही कर दिया, पूरी मंडली फिर से जमा दी।"रमेश ने ड्रिंक लेते हुए कहा।
"हाँ यार, बात तो तू ठीक कह रहा है। अगर कमल ने यह पार्टी न रखी होती तो हम सब लोग अपने आप मे इतने बिजी हो गए थे कि किसी से बात तक करने की फुर्सत नहीं थी।" भावेश ने रमेश का समर्थन किया।
"अरे भाई इसकी तो तैंतीस साल पहले भी यही आदत थी, जब हम सब ने मिलकर ग्रुप बनाया था।" महेश ने हँसते हुए कहा।
"नाम भी तो इसी ने रखा था। लाख समझाया था साहब को कि यह कॉलेज ग्रुप है कोई धार्मिक संस्था नहीं लेकिन इन पर तो हिंदी भाषा का भूत सवार था। कहने लगे कि ग्रूप के सभी लोगों के नाम के अंत मे ईश की संधि है तो इस ग्रुप का नाम होगा 'ईश ग्रुप'।"हितेश ने चुटकी ली।
"लेकिन यार हमारे ग्रुप के जय-वीरू कहाँ है ? क्या उन दोनों को इनवाइट नही किया तूने ? बहुत समय हो गया उन दोनों की कोई खोज खबर लिये हुए।" रुपेश ने सबको कुछ याद दिला दिया।
"कौन ? वह अपने राजेश और परेश। हाँ यार वे दोनों तो है ही नहीं। तभी तो मैं कहूँ कि क्या कमी लग रही है।" भावेश ने कुछ याद करते हुए कहा।
"यार कमलेश तुम तो कुछ बोल ही नहीं रहे। इतनी देर से हम लोग ही आपस में बक-बक किये जा रहे हैं। कुछ सीरियस है क्या ? वे दोनों भी अभी तक नहीं आये।" रमेश ने गिलास रखते हुए बोला।
कमलेश जो अभी तक चुप था, उसने बोलना शुरू किया- "दोस्तों मैं तुम लोगों से कुछ कहने जा रहा हूँ और चाहता हूँ कि मेरी यह बात तुम सब ध्यान से सुनो और समझो।"
"क्या हुआ कमल ? कहीं कुछ बहुत बुरा तो नहीं हुआ जो तू इतना सीरियस है ? जब तुमने हम सभी को अपने घर पर पार्टी करने के लिये बुलाया तो मुझे लगा कि तू हम सब को इकट्ठा आमने सामने लाना चाहता है क्योंकि व्हाट्सएप या फेसबुक पर कितनी भी बात कर ले, तसल्ली तो आमने सामने मिलने से ही मिलती है पर अब लगता है कि बात कुछ और ही है। बता ना क्या हुआ है ? कुछ परेशानी है तो हम है ना।" भावेश गम्भीर था।
कमलेश भावुक हो उठा। उसने रुँधे हुए गले से कहना शुरू किया- "मदद की जरूरत मुझे नहीं परेश को है। वह हॉस्पिटल में है। डॉक्टर्स ने उसे ब्लड डायलिसिस पर डाल दिया है। राजेश उसी के साथ है।"
"क्या ! तुमने हमें फोन पर बताया क्यों नहीं ? हमें इस वक्त उसके पास होना चाहिए।" रमेश घबराए हुए स्वर में बोला। बाकी सब भी अवाक रह गए।
"क्योंकि बात इससे कहीं ज्यादा बड़ी है। कुछ दिन पहले मैं किसी काम से दिल्ली गया हुआ था तो सोचा कि परेश से मिलता चलूँ। उसे फोन किया पर उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था।मैने सोचा कि किसी काम मे व्यस्त होगा। फिर मैंने अचानक ही उसके घर जाने का मन बना लिया। पता नहीं क्यों लेकिन मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था।
"जब मैं उसके घर गया तो उसके बेटे ने कहा कि परेश अब वहाँ नहीं रहता। जब मैंने उससे पूछा कि अब परेश कहाँ है तो उसने मेरे मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया।"
"मैंने तुरंत राजेश को फोन लगाया कि शायद उसे कुछ पता हो क्योंकि हम सब में से वही परेश के ज्यादा करीब है। परेश की एक छोटी सी छींक की खबर भी उसे ही पहले होती है इसलिए जब राजेश को फोन किया तो उसने बताया कि परेश हॉस्पिटल में ब्लड डायलिसिस पर है और वह उसी के साथ है।" कमलेश ने बात खत्म की।
कमलेश की बात सुनकर हर कोई हैरान रह गया।ऑफिस की इंटर्नशिप के दौरान हुई ये दोस्ती इतनी गहरी थी कि अलग अलग ट्रांसफर मिलने के बाद भी सब लोग आपस मे जुड़े हुए थे।जब सोशल नेटवर्किंग नही हुआ करती थी तब फोन से और अब व्हाट्सएप वगैरह पर।
"तो उसे हुआ क्या है ? उसका परिवार उसे अकेला छोड़ ही कैसे सकता है जब उसे सबसे ज्यादा जरूरत है।" रमेश गुस्से में था।
"राजेश बता रहा था कि भाभी के जाने के बाद परेश डिप्रेशन में चला गया और धीरे धीरे वह घर से दूर होता गया। फिर वह बिना किसी को भी बताये कई दिनों तक घर से गायब होने लगा। अभी दो दिन पहले राजेश को सड़क के पास घायलावस्था में मिला था।
डॉक्टर खून में इंफेक्शन बता रहे हैं और उनका मानना है कि जब तक कि वह अपने डिप्रेशन से बाहर नहीं निकलता, उसकी बीमारी ठीक नहीं हो सकती। "कमलेश एक बार में बोल गया।
"तो इसको ठीक करने का कोई तरीका भी होगा।" भावेश आतुरता से कहने लगा।
"हाँ है ना। अपने मेल-मिलाप ग्रुप के पुराने दोस्तों से मिलेगा तो ठीक हो जायेगा।" महेश की आवाज थीं।
"पर ग्रुप का नाम तो ईश ग्रुप है।" रुपेश ने चुटकी ली।
"अरे भई इसी चक्कर में हमारा जय-वीरू का जोड़ा टूटने जा रहा था। नाम बदल दो इसी वक्त।" हितेश ने माहौल हल्का करने की कोशिश की।
"जय-वीरू की सेना को किसने जगाया,जो कुम्भकर्ण बनी सो रही थी।" कमलेश इतराया।
चारों ओर ठहाके गूँजने लगे इस तसल्ली के साथ कि वृद्धावस्था में अकेले रहने की पीड़ा का समय रहते निदान हो गया था और दवा का नाम था दोस्ती।