दिवस(द इंडियन म्यूटन) भाग - 1

दिवस(द इंडियन म्यूटन) भाग - 1

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शेखपुर नामक क़स्बे में श्रजित मल्होत्रा का सम्पन्न परिवार निवास करता था।इस क़स्बे में सब से अधिक ज़मीन जायदाद अगर किसी के पास थी तो वो मल्होत्रा जी के पास ही थी।वह बड़े ही नेक दिल और सभी की मदद करने वाले करुण स्वभाव के धनी थ मल्होत्रा जी के दो बेटे थे।जिन में बड़े बेटे का नाम अशिन मल्होत्रा था और छोटे बेटे का नाम आशय मल्होत्रा।बड़ा बेटा अशिन भारतीय सेना का जाँबाज़ फौजी था छोटा बेटा खेती किसानी देखता था। श्रजीत मल्होत्रा के इस सम्पन्न परिवार में अगर किसी चीज़ की कमी थी तो यह कि उनके इतने बड़े घर में कोई चहकने वाला बच्चा नही था।उनकी दोनों बहुएँ फिलहाल बे औलाद थीं।यह वो कमी थी कि सबकुछ होने के बावजूद मल्होत्रा जी को अपना ही घर सन्नाटे का बसेरा लगता।

एक दिन रोज की तरह वह सुबह तड़के टहलने निकले और जब सुबह की सैर से वापस होने लगे तो उनके कानों में नवज़ात बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी।उन्हों ने मुड़ कर आगे पीछे दाएं बाएं देखा पर कोई नज़र नही आया तो सोचने लगे, लेकिन यह मासूम बच्चे के रोने की आवाज़ आ किधर से रही है।तब ही उनकी निगाह एक कूड़ेदान पर पड़ी। जब वह कूड़े दान के पास पहुंचे तो देखा एक प्लास्टिक बैग काफी तेज़ी से हिलडोल रहा था।मल्होत्रा जी ने जब उस बैग को उठाया और जब उसमें एक नवजात बच्चे को देखा तो वह कांप उठे।उन्हें समझने में देर न लगी कि किसी पापी ने अपने पाप को मरने के लिए इस कूड़ेदान में फेंक दिया है।उन्हों ने बच्चे को उठाया और अपने कांधे पर रखे तौलिए से उस रोते मासूम बच्चे को पोछा साफ किया और फिर सीने से लगाते हुए बोल पड़े "ईश्वर अजब है त मल्होत्रा जी ने वहां एक पल की भी देर नही की,बच्चे को सीने से सटाये सीधा घर पहुंचे और अपनी पत्नी को आवाज़ लगायी ज़रा बाहर तो आओ क्या कर रही हो।पत्नी ने बाहर आकर जब मल्होत्रा जी की गोद मे नवजात शिशु को देखा तो पूछ बैठीं,अरे! यह बच्चा किसका है, इसे कहाँ से उठा लाये तो मल्होत्रा जी ने अपनी पत्नी को पूरा वाकया बताया तो उनकी पत्नी ने खुश हो कर उस शिशु को अपने गोद में ले लिया ।बच्चा अब भी रो रहा था।बच्चे की रोने की आवाज़ सुन कर उनकी दोनों बहुएं और उनका छोटा बेटा भी वहां पहुंच गया।दोनों बहुएं भी बच्चे को देखकर बहुत खुश हुईं।फ़ौरन वो बच्चे के लिए गाय के दूध का इंतेज़ाम करने में लग ग बच्चा दूध पीने के बाद शांत था।बहुएं बच्चे को दुलार रही थीं कि बच्चे ने कपड़ा गीला कर दिया। बहुओं ने जैसे ही बच्चे के गीले कपड़े को हटा कर दूसरे वस्त्र से शिशु के तन को ढ़कना चाहा उनकी निगाह बच्चे के प्राइवेट पार्ट पर गई जिसे देख कर दोनों बहुएं सन्न रह गईं।उन्हों ने फौरन माँ को बुलाया हालात बताईं तो उन्हों ने भी अपने हाथ अपने मुंह पर रख लिए और कहा जाओ इस बच्चे को बाबू जी के हवाले कर आओ।एक बहु ने बच्चे को उठाया और बाबू जी की गोद में ले जा कर डाल दिया और कहा,बाबू जी प्लीज इस शिशु को वहीं ले जा कर छोड़ आइये जहां से इसे लाए थे बाबू जी बोले,यह क्या कह रही हो? आखिर! हुआ क्या?तो पास में खड़ा उनका बेटा बोला,"यह बच्चा न लड़की है ना लड़का यह तो हिजड़ा है बाबू जी कुछ बोलते इस से पहले दोनों बहुयें गुस्से से बोलीं यह गंदगी हम नही रखेंगे और वैसे भी जब किन्नरों को पता चलेगा तो इसे उठा ही ले जाएंगे,और यह कह कर अपने कमरे में चली गईं।

श्रजित अपनी पत्नी से बोले,मैं इस नवजात शिशु को कहीँ नही ले जाने वाला और न ही कोई इसे उठा कर ले जा सकता है।मैं इस बच्चे को खुद पालूंगा।पत्नी ने कही ठीक है मैं आप के साथ हूँ।आप नाराज न हों।

फिर क्या था इस बच्चे के कारण प्रत्येक दिन सास बहुओं में तू तू ..मैं मैं.. होने लगी।श्रजीत जी के लाख समझाने के बावजूद कोई समझने को तैयार ही न था नतीजा एक दिन दोनों बहुयें और छोटा बेटा घर छोड़ कर दूसरे घर में रहने शहर चले गए। श्रजीत जी को बहुत बुरा लगा पर वह इतने छोटे मासूम बच्चे के साथ अन्याय नही कर सके।

एक महीने बाद उनका बड़ा बेटा जो फौज में था उन से मिलने आया तो बोला पिता जी आप ने बहुत नेक काम किया है।मैं उन्हें बहुत समझाता हूँ पर वो लोग यहां घर पर लौटने को तैयार नही हैं,हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिए।और माँ एक खुशखबरी यह है कि तुम जल्द ही दादी माँ बनने वाली हो।यह सुन कर माँ खुशी से झूम उठी और बोल पड़ीं देखो! यह बच्चा कितना भाग्यशाली है के इसके क़दम घर में पड़ते ही दूसरी खुशी ने दस्तक दे फौजी बेटे ने माँ की बातों को स्वीकार किया और कहा वाक़ई यह बहुत प्यारा और भाग्यशाली है।वैसे आप लोगों ने इसका नाम क्या रखा है? तो श्रजित जी बोले,मैं ठहरा पुराने जमाने का तू ही सुझा कोई अच्छा नाम तो आशिन ने कहा पापा इसका नाम "दिवस" रखो,दिवस माने दिन।हम सब के दिन बहुर गए पापा,सब ठीक हो गया देखो।माता पिता को भी आशिन का दिया यह नाम अच्छा लगा और फिर तीनों उसे दिवस दिवस कह कर दुलारने लगे। श्रजित ने बात बदली और बोले बेटा तेरी नई नई पोस्टिंग है,वहां तो खूब गोलियां चलती होंगी।जानते हो कभी- कभी तो मैं यह सोच कर डर जाता हूँ कि....!!वह आगे और बोल न सके तो आशिन ने कहा, बाबू जी चिंता की कोई बात नही के सरकार सेना की सुरक्षा पर बहुत खर्च कर रही है तथा आधुनिक हथियार व अन्य सामग्री बाहर से मंगवा कर सेना के हवाले कर रही है।बाबू जी बोले अब बस भी कर बाप से झूठ बोलता है।रोज़ मैं सेना की शहादत की खबरें पढ़ता और सुनता हूँ। सच पूछो तो ऐसी खबरें पढ़कर मेरा दिल दहल उठता है। आशिन ने कहा पापा आप भी ना...वैसे हमें यह भी नही भूलना चाहिए के वतन के लिए शहादत का जाम पीना भी कम बड़ी बात नही बाबू जी। बेटे की ज़ुबान से इस हौसले की बात सुन कर उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया और वह आशिन को अपने सीने से सटा लिए और कहा मुझे गर्व है अपने बेटे पर।आशिन ने माँ के आंसू पोछते हुए कहा, ''माँ रोते हुए अपने बेटे को विदा नही करते।'' यह कह कर माता - पिता का आशीर्वाद लेकर वह अपनी ड्यूटी पर वापस चला गया।

समय मानों पंख लगाकर उड़ रहा था, दिवस स्कूल जाने लगा था ,वह पढ़ने में और खेल में कठिन से कठिन मंत्र स्पष्ट बोलने में बहुत होशियार और प्रतिभावान छात्र था ,समय बीता आज उसका हाईस्कूल का रिज़ल्ट आया था उसने शत् प्रतिशत् नम्बरों से टॉप किया था। श्रजित जी और उनकी पत्नी बहुत खुश थीं। उन्होंने दिवस से कहा लो बेटा मिठाई खाओ कि तुमने तो कमाल ही कर दिया। दिवस गुमसुम था मानो सफलता की कोई खुशी उसके दूर -दूर तक न थी | वह बोला," पिता जी सभी बोलते हैं कि मैं आपको कूड़े में पड़ा मिला था या तू तो एक हिजड़ा है"।बाबू जी जितने भी जॉब के फार्म निकलते है उसमें साफ लिखा रहता है विकल्प "मेल" या "फीमेल" , तीसरे लिंग का विकल्प क्यों नहीं छपा होता है फार्म में ? यह देश का कानून हमारे लिये इतना पक्षपाती क्यों हैं पिताजी? मैं किन्नर(ट्रांसजैण्डर) हूँ इसमें मेरा क्या कसूर है। कोई मेरा अच्छा दोस्त नहीं है सब मुझ पर हंसते है माँ। यह सुन माँ ने उसे गले लगाकर कहा एक दिन सरकार जागेगी और न्याय के लिये बदलाव ज़रूर होगा। दुनिया बुरा कहती उसे कहने दो, ये तो दुनिया है.मैं तेरी माँ हूँ यह तेरे पिताजी हैं, बस यही सच हैं। बेटा लोगों की बातों पर ध्यान मत दो. हम सब तुझसे बहुत प्यार करते हैं और तुमसे तुम्हारे टीचर्स भी तो तुम्हें कितना प्यार करते हैं फिर मैं हूं न तुम्हारी दोस्त। कहो तुम्हें उत्तीर्ण होने की ख़ुशी में कौन सा फोन, लैपटॉप चाहिये ले लो और खूब नाम करो,जब नाम होगा तो हंसने वालों की हंसी गायब हो जायेगी। पिताजी बोले," चलो हम लोग गंगा दर्शन को चलते हैं और पिकनिक मनाकर आते हैं

समय कब बीत गया, पता ही न चला ,एक दिन दिवस ने श्रजित जी से कहा पिताजी मेरे कारण दोनों भाई और उनके बच्चे, कोई यहां नहीं आता ,समाज के लोग भी कुछ कार्यक्रमों में आपको और माँ को नहीं बुलाते। मेरे कारण आपको क्या कुछ नहीं सहना पड़ रहा है,श्रजित जी ने कहा, ऐसा मत बालो दिवस, रात बहुत हो गयी है आराम कर लो जाकर। कल तुम्हारी प्रतियोगी परीक्षा है ना शहर में, जब जल्दी सोयेगा तभी तो जल्दी जगेगा दोनों मुस्कुराये और फिर दिवस कुछ देर अध्ययन करने के बाद सो गया।

दूसरे दिन वह माता-पिता जी के पाँव छूकर प्रतियोगी परीक्षा देने शहर निकल गया। परीक्षा के बाद वह अचानक शहर वाले मकान में बिन बताये ट्रक लेकर पहुँचता गया और डोरबेल बजाया तो बहु ने दरवाज़ा खोला और पूछी तुम कौन हो? दिवस ने बताया मैं शेखूपुर से आया हूँ मेरा नाम दिवस है। बहू बोलती ओह! तो तुम्हीं हो दिवस। चले जाओ यहाँ से। वह बोला," आप सब लोग घर चलिये प्लीज़"। वह बोली तुम्हारे वहां रहते तो कभी नहीं। दिवस ने कहा, मैंने वह घर छोड़ दिया है और अब आप आज के बाद मुझे वहां कभी नही देखोगी।नीचे लोडर खड़ा है सामान पैक कीजिये घर चलिये। तभी छोटी बहू बोली," अगर पिताजी तुम्हें हिस्सा भी दें तो वादा करो तुम नहीं लोगे। जो भी ज़मीन है हम दोनों की है। दिवस बोला, आप लोग चलिये मैं कुछ नहीं लूंगा। यकीन रखिये।तो वो लोग वापस लौटने को तैयार हो गईं रात गए वो लोग शेखूपुर वाले घर पहुंचे तो माँ ने दरवाज़ा खोला तो सामने दोनों बहुयें और उनके बच्चें व अपने छोटे बेटे को देखकर हैरान रह गईं, मारे खुशी के बच्चों के हथेलियाँ चूमने लगीं। यह सब देख श्रजित जी भी बहुत खुश हुए। दूसरे दिन खाने के समय श्रीजित जी ने कहा लगता है दिवस शायद शहर में ही रूक गया है तभी उन्हें खाद वगैरह मंगवाने की याद आयी तो वह दिवस को फोन मिलाए तो दिवस ने कहा, मैं ठीक हूँ और फिर फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया।जिसे श्रजित ने सीरियस नही लिया।

श्रजित व उनकी पत्नी बहुत खुश थे कि एक बार फिर पूरा परिवार एक साथ था। वो बहुत खुश इस लिए भी थे के वर्षो बाद पूरा घर बच्चों की किलकारियों से खिल उठा था।

इधर दिवस रेलवे स्टेशन पर एकांत में अकेला बैठा सोच रहा था कि जो लोग उसे हिजड़ा कहते हैं उन से जाकर कोई क्यों नही पूछता कि क्या हम आसमान से टपके हैं या हमको भी किसी ने पैदा किया हैं।अजब है, ज़ाहिर है हिजड़ों ने तो हिजड़ें को जन्म नहीं दिया होगा, आख़िर! हमारा क्या कसूर है जो हमारे हिस्से में मात्र नौ महीने का ही प्रेम आता है? और जन्म लेते ही कूड़े के ढ़ेर पर फेंक दिया जाता है।कैसी विडंबना के बस हमें नौ महीने ही माँ का स्पर्श मिलता और बाकी ताउम्र माँ-बाप की सूरत देखने को भी तरस जाते हैं।बस यही जिंदगी दी है इस समाज की विकृत सोच ने, जिसने हमारा जीवन नर्क बना रखा है । यह समाज हमें नर्क की ज़िंदगी देता हैं और बदले में हम तो फिर भी सभी को दिल से दुआयें देते हैं। भगवान शिव ने विष कण्ठ में धारण कर लिया था पर हमारा तो सम्पूर्ण जीवन ही विषगार बना हुआ है फिर भी हम जी रहे ह आख़िर क्यों समाज में हमें बेटी और बेटे जैसा सम्मान नहीं मिलता । सरकार की कोई भी योजना हमारे तक क्यों नहीं पहुँचती ।हर नेता हमसे वोट की उम्मीद तो रखता हैं लेकिन हमें न्याय नहीं देता क्यों?मौका देख केवल ज़लील करते है लोग। समाज में बराबरी का दर्जा तो बहुत दूर की बात हैं। पोलियो की ड्रॉप भी हमारे लिये नहीं । लड़का-लड़की सभी को पढ़ाओ देश को साक्षर बनाओ पर किन्नर का कभी किसी स्लोगन में नाम तक नहीं आता ,किन्नर नौकरी के फार्म भी ना भर सकें। क्या हम लोग समाज और देश के लिए केवल मनोरंजन का साधनमात्र हैं ? यही सब बातें सोच - सोच कर वह रो पड़ा तो पीछे से किसी ने उसके कांधे पर हाथ रखा। दिवस चौंक कर पलटा तो देखा दो तीन किन्नर उसके पीछे खड़े थे। वह बोले अपुन लोग का यही इच नसीब है चलो अपनी दुनियाँ में ।दरअसल हम बहुत दूर से ताड़ जाते हैं जो अपनी बिरादरी का होता है। दिवस चुपचाप उनके साथ एक मोहल्ले में पहुँचा जहां सभी किन्नर ही किन्नर थे। सभी ताली ठोंक के बोले,' साले कमीने लोग मजे लेकर सज़ा हम लोग को देते हैं। चल चिंता न कर सुबह इन ही से चलकर वसूलेंगे डियर। दिवस इस माहौल को देखकर डर गया और उसका डर और भी उस समय बढ़ गया जब दो-तीन किन्नर वहां उसे देखते ही आकर उससे लिपट गये। वह घबराया सा बोला प्लीज़ दूर रहो मुझे यह हरकत पसंद वहाँ का माहोल देख, उन सब लोगों से बात करने के बाद दिवस ने कहा कि मुझे नही पता आप लोग अपनी इस नर्क भरी ज़िन्दगी को किस तरह जीते हैं या आप लोगों के आगे की जीवन जीने का क्या प्लान है पर मुझे लगता है ऐसी ज़िन्दगी जीने से बेहतर है आप लोगों में जो लोग शिक्षित हैं वो किसी प्राईवेट स्कूल में पढ़ाएं बाकी किसी फर्म, कल कारखानों में मज़दूरी करें और यह सब नाच गाना,तालियां ठोंक कर वसूली करना छोड़ दें। आप ही सोचो यह नाच गाना, तालियां ठोंक कर वसूली करना क्या आप लोगों को अच्छा लगता है दिवस की बातें सुन कर सरोज किन्नर ने वहां मौजूद अन्य किन्नरों से कहा, जो दिवस कहे वही करो। जरा इसे भी समाज का नंगा सच देखने का मौका दो यार। कल, परसों, नरसों, थरसों इसकी सुनो फिर उसके बाद येही सिर्फ़ हम लोग की सुनेगा।कारण चंद ही दिनों में इसे खुद ही पता चल जाएगा कि आज का सभ्य समाज कहलाने वाला समाज अंदर से कितना बदसूरत है या कितना बड़ा जाल,फ्रॉड है।इसे क्या पता यह वही जाल समाज है जो हर दिन न जाने कितनों को मौत की मुँह में धकेलने का अकेला ज़िम्मेदार भी है।और दिवस से कही चल अब तू भी जा कर सो जा। दिवस सरोज की बातें सुन कर चुप नही रहा बल्कि साफ शब्दों मैं कहा मैं सोऊंगा पर अकेले वहां मेरे साथ कोई नही होगा तब। यह सुनकर वहां मौजूद सभी ज़ोर से हंस पड़े। जब दिवस ने देखा कि एक छोटे से कमरे में पाँच-छ: लोग दायें- बायें होकर एक साथ सोये हुए हैं तो यह सब देख कर दिवस की आंखें भर आयी उसी रात दिवस ने एक मैसेज अपने पिता जी को लिखा के मैं जहां भी हूँ ठीक हूं पर घर मे अब किसी नौकरी से लगने के बाद ही लौटूंगा।

इधर सुबह सभी किन्नर जब सज धज कर तैयार हो रहे थे कि दिवस वहाँ से चुपके से निकल गया और पास के ही एक प्राईवेट स्कूल में जाकर बात कर के पढ़ाने लगा। वहाँ उसने राष्ट्रीय साईकिल रेस के लिये लोगों को फॉर्म भरते देखा और पुलिस की भी दौड़ के आधार पर सीधी भर्ती का फॉर्म भरते देखा तो उसने भी दोनों फार्म में तीसरे लिंग(थर्ड जेंडर) का नया विकल्प स्वंय बनाकर फार्म भेज दिया।

वह प्राईवेट स्कूल में बच्चों को गणित पढ़ाने लगा उसके पढ़ाने का तरीका इतना अच्छा था कि प्रिंसिपल उसे निकाल न सका। वह रोज़ सुबह दौड़ने जाता और स्कूल में भी पढ़ाता। यह सब देख सरोज किन्नर ने सभी से कहा दिवस अभी नया है उसकी तरफ ध्यान न दो। जो चाहे वो करने दो उसे।

क्रमशः......


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