दिलजला आशिक और दिलफेंक हसीना
दिलजला आशिक और दिलफेंक हसीना
"ये इश्क नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे एक दिलजला आशिक है, एक दिलफेंक हसीना है
और झगड़ा कुत्ते को लेकर है"
एक और गीत पेश है
ये इश्क हाये, बैठे बिठाये, थाने पहुंचाये हाय। ओ रामा ..
कहां से शुरू करें और कहां खत्म करें, समझ ही नहीं आ रहा है। एक प्रेम कहानी बड़ी चर्चित है आजकल। ये ऐसी कहानी है जो न कभी सुनी और न कभी देखी। इस कलयुग में पता नहीं और क्या क्या देखना पड़ेगा ?
आधुनिक इश्क शायद ऐसा ही होता होगा जिसमें एक अदद कुत्ते को लेकर प्रेमी प्रेमिका में इतना झगड़ा हो जाये कि "दिलजला आशिक" और "दिलफेंक हसीना" जो कल तक साथ साथ जीने मरने की कसमें खा रहे थे, आज उन्हें साथ रहना भी कुबूल नहीं है। और हद तो तब हो जाती है जब दिलजला आशिक अपने साथ अपना कुत्ता भी ले जाता है।
दिलफेंक हसीना भी कोई लॉलीपॉप नहीं है जिसे हर कोई निगल जाये ? बड़ी तेज तर्रार, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली, चीख चीख कर आसमान सिर पर उठाने वाली, अपने अलावा सारी दुनिया को गलत बताने वाली और हर किसी को "हरामी" कहने वाली हसीना है वह। पी एम, प्रेजिडेंट को तो वह अपनी ठोकर पर रखती है। बस, अपनी "मालकिन" से थोड़ी बहुत डरती है। आखिर उसी ने तो उसे यहां तक पहुंचाया है।
ऐसी दिलफेंक हसीनाऐं एक एक लाख रुपए के सैंडल पहनती हैं। पचास हजार रुपए का स्कॉर्फ और डेढ लाख रुपए का पर्स रखने वाली यह दिलफेंक हसीना गरीबों के लिए अपने दिल में इतना दर्द रखती है कि उस दर्द के मारे उसे रातों में नींद नहीं आती है। पर चूंकि उसे गरीबों की सेवा करनी होती है इसलिए उस दर्द को भुलाने के लिए वह रोज रात को पचास पचास हजार रुपए की कीमत वाली पूरी एक बोतल पी जाती है। तब जाकर कहीं नींद आती है। गरीबों की सेवा करना इतना आसान काम है क्या ? ऐसी गरीब हितैषी हसीना हमने तो आज तक देखी नहीं है। शायद मीडिया वालों ने भी नहीं देखी थी इसलिए मीडिया ने उस दिलफेंक गरीब हितैषी हसीना को सिर आंखों पर बैठा लिया और उसे लक्ष्मीबाई का कलयुगी अवतार घोषित कर दिया। मीडिया की इस घोषणा पर जनता झूम उठी और वाह वाह करने लगी।
दिलफेंक हसीनाओं की एक खास बात यह होती है कि वे इश्क तो करती हैं पर शादी नहीं करतीं। क्या पता कल को कोई और बढ़िया सा "शोना बाबू" मिल जाये। इनकी ये तलाश पूरी जिन्दगी चलती रहती है इसलिए ये हसीनाऐं हर शाम किसी नये "पंछी" के साथ बिताती हैं। आधुनिक होने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा ना !
इनके खर्चे भी इनके नखरों की तरह ही होते हैं, बेतहाशा, असीम, अपार। बेचारा दिलजला आशिक उन खर्चों को कहां से पूरा करे ? इनके शौक भी अजीबोगरीब होते हैं। बच्चा इनको चाहिए नहीं लेकिन कुत्ते का भरपंर शौक रखती हैं ये हसीनाऐं। इसलिए बेचारा दिलजला आशिक अपनी माशूका के लिए एक 75000 रुपए का कुत्ता खरीद लाया। पर ये कुत्ता उस दिलजले आशिक का दुश्मन बन गया। जबसे कुत्ता घर में आया तब से मैडम कुत्ते के साथ सोने लगी और बेचारे दिलजले आशिक को सोफे पर करवटें बदलते हुए रात बितानी पड़ गईं। अब यह कैसे बर्दाश्त हो ?
घर में कुत्ता आ गया तो खर्चे भी और बढ गये। पैसों की जरूरत और बढ़ गई। पर इन दिलफेंक हसीनाओं के पास सब उपाय रहता है। पैसों के लिए दिलफेंक हसीनाऐं अपना तन, मन, जमीर, देश, नियम, कायदे, मर्यादा, लोक लाज सब बेच देती हैं। और तो और अत्यंत गोपनीय चीजें भी सार्वजनिक कर देती हैं। तो पैसों के लिए दिलफेंक हसीना ने भी अपना जमीर बेच दिया और अपना गोपनीय पासवर्ड भी अपने एक "अजीज दोस्त" को दे दिया। अब वह दोस्त जब चाहे तब उस पासवर्ड का इस्तेमाल कर सवाल रूपी तोप दाग देता था। उन सवालों से लिबरल्स भांगड़ा करने लगे और दिलफेंक हसीना की जय जयकार करने लगे।
दिलजले आशिक को सब कुछ बर्दाश्त था पर दिलफेंक हसीना का "जमीर बेचना" बर्दाश्त नहीं हुआ। दोनों में जमकर झगड़ा हुआ। झगड़े की कोई तो वजह होनी चाहिए न तो झगड़े का कारण बना "बेचारा कुत्ता"। दोनों प्रेमी प्रेमिकाएं अपनी अपनी राह पर चल दिए। अब बात बेचारे कुत्ते पर आकर ठहर गई।
आशिक ने कुत्ता खरीदा था इसलिए उसने उस पर अपना हक जताते हुए उस कुत्ते को वह अपने साथ ले गया। दिलफेंक हसीना को यह बात कैसे गवारा होती ? वह तो अपनी ठोकर पर पूरी दुनिया को रखती थी तो भला वह दिलजला आशिक उसके सामने क्या हैसियत रखता था ? उसने कुत्ता चोरी की रपट थाने में लिखा दी और दिलजले आशिक को चोर घोषित कर दिया।
आधुनिक अंग्रेजी दां लक्ष्मीबाई के सामने थानेदार बेचारा क्या करता ? "यस मैम" करते करते वह उसके आगे पीछे दुम हिलाने लगा और पहुंच गया दिलजले आशिक के घर वह कुत्ता लेने। साथ में हथकड़ी भी ले गया था वह। हालांकि आशिक एक वकील था पर जब "वर्दी" अपनी पर उतर आए तो वकील शकील कुछ नहीं कर सकते उसका। फिर इन वकीलों की दाल केवल कोर्ट में ही गलती है। वहां पर तो इनके ही भाई बंधु बैठे रहते हैं इसलिए जो ये चाहते हैं, उनसे करा लेते हैं। मगर यहां पर थानेदार अकड़ गया। आखिर उसके पीछे अंग्रेजन लक्ष्मीबाई का असीम बल था। कुत्ता लेकर ही वापस लौटा वह थानेदार।
बात दिलजले आशिक को चुभ गई। जब कोई आशिक और वह भी दिलजला जब अपनी पर आता है तो वह सारी दुनिया से टकरा जाता है। फिर उसके सामने कोई दिलफेंक हसीना हो या कोई अंग्रेजन। अब तो महाभारत होना ही था, तो शुरू हो गया। बात कुत्ते से शुरू हुई थी जो एक दूसरे के कपड़े फाड़ने तक आ गई।
दिलजले आशिक को दिलफेंक हसीना के सारे राज पता थे। कुछ कुछ वैसे ही जैसे विभीषण को यह पता था कि रावण की जान उसकी नाभि में है। उसी तरह दिलजले "विभीषण" ने "दिलफेंक रावण" के सारे राज "राजा रामचंद्र जी" को बता दिये। अब तो रावण दहन होना निश्चित हो गया। दिलफेंक हसीना को अब महसूस होने लगा कि वह कुत्ता उसके लिए कितना अपशकुनी निकला। पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब रावण का अंत होना तय है बस शुभ घड़ी का इंतजार है। तो इस बार दीवाली पर रावण दहन होगा। अब समझ में आया कि यह घोर कलयुग है। इसमें दीवाली पर, रावण दहन और होली पर विजया दशमी मन सकती है।
