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Mohsin Atique Khan

Romance

4  

Mohsin Atique Khan

Romance

दिल पर किस का ज़ोर

दिल पर किस का ज़ोर

12 mins
651

मोहन जब लखनऊ के राय उमानाथ बली आडीटोरियम में दाखिल हुआ तो अन्दर का जादुई माहौल देखकर सम्मोहित हो गया। हाॅल के अन्दर सुरमई अंधेरा फैला हुआ था और स्टेज पर इन्द्रधनुश के रंग बिखेरती हुई रोशनियों के बीच एक हसीन, चंचल युवती नृत्य कर रही थी। दरअसल यह एक डांस कम्पीटीशन था जो स्कूल काॅलेज के विद्यार्थियों के लिए आयोजित किया गया था। मोहन को उसके मित्र सलमान ने निमंत्रित किया था, जो इस डांस कम्पीटीशन के संचालकों में था। मोहन को शुरूआत में हाॅल के अन्दर कुछ सुझाई नहीं दे रहा था, लेकिन चंद मिनट अंधेरे में घूरने के बाद उसको बाल्कनी के नीचे तीन कुर्सियां एक साथ खाली नज़र आ गयीं और वह अपने दोस्तों राकेश और रवि के साथ आगे बढ़ गया और तीनों जाकर खाली कुर्सियों पर बैठ गये। एक के बाद एक कई युवतियों ने अपना बेहतरीन नृत्य प्रस्तुत किया। ज्यादातर डांस नये गीतों के झुमा देने वाले संगीत पर हो रहे थे। लेकिन कुछ डांस ऐसे पुराने गीतों पर भी हुए जो दिलों को छू जाने वाले थे। विशेष रूप से अभिलाषा नाम की एक युवतीं ने जब ‘उमराव जान अदा’ फिल्म के गीत ‘‘इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजा़रों हैं’’ पर अभिनेत्री रेखा के खास अंदाज में डांस किया तो एक अजीब सा समा बंध गया।

     इस रक्स व सुरुर में मोहन को काफी देर से अपनी दाहिनी बगल से हल्की-हल्की सिसकियों की आवाज सुनाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई लड़की चुपके-चुपके रो रही हो।उसने थोड़ी देर तक कोशिश की कि वह उस लड़की से संबोधित न हो मगर मानवीय दया के भाव ने अंगड़ाई ली और वह पूछ ही बैठा-‘‘एक्स्क्यूज़ मी।’’

‘‘जीे।’’

‘‘क्या मैं पूछ सकता हूं, आप क्यों रो रही हैं?

‘‘जीे!’’

‘‘आप रो क्यों रही हैं।’’

‘‘नहीं बस ऐसे ही।’’

‘‘प्लीज़ बताइये, आपको क्या तकलीफ है? हो सकता है, मैं कुछ मदद कर सकूं।’’

‘‘जी वो मेरी मम्मी मुझे यहाँ छोड़कर अस्पताल चली गयी हैं, मुझे जिस गीत पर डांस करना था वो कैसेट गुम हो गयी है। मैं पन्द्रह दिन से इस काॅम्पिटीशन के लिए तैयारी कर रही थी, मगर अब मैं इसमें पार्टिसिपेट नहीं कर पाउंगी।’’

‘‘क्या आप मुझे अपने गीत का टाइटल बता सकती हैं?’’

‘‘जी उसकाटाइटल है,’’ढूंढ रही हूं ऐसा दीवाना, थोड़ा सा पगला थोड़ा सियाना।’’

‘‘ठीक है, आप इंतज़ार कीजिए, मैं अभी लेकर आ रहा हूँ।’’ इतना कहकर मोहन खड़ा हुआ और रवि के हाथ से बाइक की चाबी लेकर उससे यह कहते हुए गेट की तरफ बढ़ गया-‘‘बस अभी आया।’’

लगभग आधा घन्टे बाद वह वापस आया तो रवि और राकेश पूछने लगे-‘‘कहाँ गये थे यार, कितनेबेहतरीन डांस तुमने मिस कर दिया।’’ मोहन बोला- ‘‘मैं बस यहीं जनपथ मार्किट गया था।’’फिर वह उस लड़की से सम्बोधित होते हुए थोड़ा बेतकल्लुफी से बोला-‘‘ये रही आपकी कैसेट।’’ फिर मुस्कुराते हुए कहा-‘‘अब रोऐंगी तो नहीं आप।’’

‘‘थैंक्स, मगर मेरा नाम निकल चुका है।’’ लड़की ने थोड़ा अफ़सोस के भाव से कहा।

‘‘अरे! अच्छा रुको मैं कोशिश करता हूँ।’’ फिर वह रवि से सम्बोधित होते हुए बोला-‘‘रवि यार एक काम करना है।’’

‘‘क्या?’’ रवि ने पूछा।

‘‘वो मेरे बगल में जो साहिबा हैं, उनका नाम निकल गया है, कैसेट गुम होने की वजह से ये अपने नंबर पर डांस नहीं कर सकीं, मैं कैसेट ले आया हूँ, ऐसा करो सलमान से बात करके किसी तरह........’’ रवि ने बात काटते हुए कहा-‘‘ठीक है देखता हूँ ।’’, इसके बाद वह उठकर सलमान के पास गया और उसे सारी बात बताई।

सलमानने कहा-‘‘एक मिनट रुको, मैं अभी सैक्रेटरी से बात करके आता हूँ ।’’

कुछ देर बाद सलमान वापस आया और रवि से बोला-‘‘उस लड़की से कह देना की सबसे आखिर में उसका नाम अनाउंस किया जायेगा।’’

मोहन यह बात उस लड़की को बता कर फिर से नृत्य व संगीत की रोमानी शेाम में खो गया, क्योंकि इतने उम्दा-उम्दा डांस पेश किये जा रहे थे जिन्हें देखकर लोग झूम उठते थे।आखिरकार सैक्रेटरी ने अनाउंस किया-‘‘दोस्तों अब हम अपने सोलो-डांस कम्पटीशन के आखरी पार्टीसिपेंट को बुलाने जा रहे हैं, इसके बाद ग्रुप-डांस का मुकाबला शुरू किया जायेगा। हां, तो हमारी आखिरी पार्टीसिपेंट हैं मिस प्रीति पाण्डे।’’

सैक्रेटरी के खामोश होते ही गाने की धुन बजनी शुरू हो गई और परदे के पीछे से प्रीति डांस करती हुई प्रकट हुई। मोहन को अब मालूम हुआ कि उस लड़की का नाम प्रीति पाण्डे है। हाल के सुरमई अंधेरे में मोहन उसका चेहरा ठीक से नहीं देख सका था, मगर अब स्टेज पर पड़ने वाली चकाचैंध रोशनी में बड़ी हद तक उसके चेहरे के नुकूश का अनुमान लगाया जा सकता था। वो एक छरहरे बदन की नाज़ूक सी लड़की थी, उसके नयन बड़े तीखे और चेहरे की बनावट बड़ी आकर्षक थी। उसने जब एक खास अंदाज़ में डांस शुरू किया तो उसके डांस करने के अंदाज़ से लोग झूम उठे। मोहन को भी उसके डांस से एक तरह की खुशी महसूस हो रही थी। आखिरकार डांस खत्म हुआ और लोग थोड़ी देर के लिए हाॅल से बाहर निकल आये, क्योंकि पन्द्रह मिनट बाद गु्रप-डांस का मुकाबला शुरू होने वाला था। मोहन और उसके दोनों साथी टी स्टाॅल की तरफ बढ़ गये और वहीं खड़े होकर चाय की चुस्कियां लेने लगे। तभी किसी ने पीछे से बहुत ही मीठी आवाज़ में कहा-‘‘एक्सक्यूज़ मी।’’ मोहन ने पलटकर देखा तो देखता ही रह गया, वो लड़की बला की खूबसूरत और अत्यन्त आकर्षक थी, उसने अपने सुनहरे बालों को सिर्फ एक हेयरबैंड लगाकर अपनी पुश्त पर डाल रखा था। उसकी आंखें सुरमई और सुखऱ् लबों पर नज़ाकत थी, यक़ीनन वो लखनवी हुस्न का शाहकार थी और सफेद पोशाक में वो इस वक़्त स्वर्ग से आयी अपसरा सी लग रही थी। मोहन पर तो जैसे सकता छा गया, उसकी ज़ुबान से कोई शब्द ही नहीं निकल रहा था, आखिरकार उस लड़की ने बातों का सिलसिला शुरू करते हुए कहा-‘‘ओह, साॅरी मैं आपको सही तरीके से थैंक्स भी नहीं कह पाई थी।’’ अब मोहन को होश आया उसने सोचा भी नहीं था कि जो लड़की उसकी बग़ल में बैठी हुई थी वो इतनी खूबसूरत होगी, मोहन ने अपने हवास दुरुस्त करते हुए कहा-‘‘अरे, इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है, प्रीति जी।’’

‘‘अगर आपने आज कैसेट ना लाकर दिया होता तो मैं इस मुकाबले में हिस्सा ना ले पाती और मेरी सारी मेहनत बेकार चली जाती।’’ प्रीति ने आभार व्यक्त किया।

‘‘माफ कीजिएगा मैंने आपको चाय के लिए नहीं पूछा।’’ मोहन को जैसे कुछ याद आ गया था। उधर रवि ने टी स्टाॅल वाले से कहा ‘‘भैया ज़रा एक चाय और देना।’’

‘‘ओह, नो, थैंक्स, रहने दीजिए ना।’’ प्रीति जल्दी से बोली। तब तक मोहन टी स्टाॅल की तरफ मुड़ चुका था। उसने चाय उठाकर प्रिती को पेश करते हुए कहा।

‘‘प्लीज लीजिए ना।’’ और प्रिती ने आहिस्ता से चाय ले ली। चाय खत्म करने के बाद सबके साथ ये चारों भी हाॅल में आ गये।औरग्रुप-डांस काॅम्पटीशनका मज़ा लेने लगे। लगभग डेढ़ घण्टे के बाद ये मुकाबला भी खत्म हो गया और अंत में नतीजे का ऐलान किया गया। प्रीति ये सुनकर खुशी से उछल पड़ी कि उसने सैकण्ड पोज़िशन हासिल कि है और मोहन को भी दिली खुशी महसूस हुई।

मोहन ने प्रीति से विदा ली और रवि के पीछे बाइक पर बैठ गया। जब बाइक आगे बढ़ गई तो रवि बोला-‘‘क्या भई, लड़कियों से तो तुम्हे बहुत एलर्जी थी, आज क्या हो गया। वैसे यह लड़की है बहुत ख़ूबसूरत।राकेश ने चुटकी लेते हुए कहा-‘‘मोहन यार ये बताओ इससे बात करते हुए कैसा लग रहा था? कहीं दिल तो नहीं आ गया।’’

मोहन चुप चाप बैठा हुआ उन लोगो की बातें सुनता रहा और उनपर कोई टिप्पणी न की।

वो रात उसकी ज़िन्दगी की पहली रात थी जब उसने अपने दिल में एक प्रकार की बेचैनी महसूस की। प्रीति के खयालों से वो जितना ही बचता था वो उतना ही उसको सता रहे थे। उसे प्रीति से की हुई बातें रह रह कर याद आ रही थी और धीरे धीरे उसके दिल के समंदर में हलचल सा बरपा कर रही थीं। वह रात तो किसी तरह करवटों में गुज़र गयी मगर उसे यह एहसास करा गयी कि प्रीति के हुस्न का जादू उसके दिल व दिमाग पर चढ़ चुका है।

वह इतवार का दिन था राकेश ने शाम को गांधी भवन में डांस काॅम्पिटिशन के बारे में बताया तो मोहन फ़ौरन वहां जाने के लिए तैयार हो गया, इस उम्मीद पर कि शायद प्रीति से फिर मुलाकात हो जाये। उसके दिल में एक बार फिर प्रीति को देखने और उससे बातें करने की इच्छा जाग उठीथी।

हाॅल की सारी लाईटें जल रही थी और हाॅल में दिन का सा उजाला था क्यूंकि मुकाबला अभी शुरू नहीं हुआ था।उन लोगों को बैठे दो चार मिनट ही हुए थे कि सामने से प्रीति आती हुई नज़र आई। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और आंखों में ग़ज़ब की चंचलताथी। निकट पहुंचकर प्रीति ने कहा-‘‘हैलो, आप कैसे हैं।’’

‘‘फाइन और आप।’’ मोहन ने कहा।

‘‘मैं ठीक ही हूँ।’’ प्रीति ने जवाब दिया। अभी प्रीति इतना ही कह पाई थी कि पीछे से एक लड़की ने बड़ी शोखी से कहा-‘‘ओह, सो गुड, तो ये हैं मिस्टर मोहन।’’

इसके बाद मोहन से सम्बोधित होते हुए बोली-‘‘ये आपके लिए बहुत परीशान थी। सिर्फ आपका नाम और आपकी तारीफें, लगता है आपने कोई जादू कर दिया है।’’‘‘धत’’ प्रीति ने झेंपते हुए कहा। और फिर मोहन से उसका परिचय कराते हुए बोली-‘‘यह मेरी बेस्ट फ्रैन्ड सपना है,बहुतही चंचल और शोख।’’ सपना बोल उठी-‘‘देखिये मोहन जी ये मुझे बहुत परीशान कर रही थी कि मैं किसी तरह से आपका पता या फोन नम्बर ज़रूर मालूम करूं, इस बार आप इनको सब कुछ बताकर जाइयेगा।’’फिर उसका हाथ पकड़ कर कहा-‘‘थोड़ी देर के लिए बाहर चलते हैं अभी तो मुकाबला शुरू होने में कम से कम आधा घण्टा लगेगा।’’ मोहन इन दोनों के साथ बाहर एक चाय की दुकान पर आ गया और चाय के बाद तीनों टहलते हुए शहीद स्मारक की तरफ चल दिए। वहां शहीद स्मारक के उत्तर की ओर वाली ग्रिल पर तीनों नदी की तरफ पैर लटका कर बैठ गये और अगस्त के बादलों भरे मौसम में गोमती की हल्की-हल्की लहरों की ठंडक का अनुभव करने लगे। बातों बातों में कितना समय निकल गया किसी को पता ही न चला। सपना की नज़र घड़ी पर पड़ी तो उसने चौंकते हुए कहा‘‘मेरे ख़याल में अब हमें चलना चाहिए क्योंकि काफी वक्त हो गया है और हमारा नंबर आने ही वाला होगा।’’ इसके बाद तीनों गांधी भवन आडिटोरियम वापस आ गये वो दोनों स्टेज की दाहिने तरफ ड्रेसिंग रूम में चली गयीं और मोहन, रवि तथा राकेश के पास आकर बैठ गया। राकेश ने पूछा-‘‘क्यों भाई कहां चले गये थे, बहुत देर लगा दी।’’

‘‘उन दोनों के साथ टहलते हुए शहीद स्मारक तक चलागया था।’’ मोहन ने कहा। तब तक रवि पूछ बैठा-‘‘अच्छा ये बताओ मुलाकात कैसी रही और क्या-क्या बातें हुई।’’

‘‘कुछ खास नहीं, बस इधर-उधर की बाते हो रहीं थी।’’

‘‘यार बाद में बात करेंगे। उधर देखो कितना बेहतरीन डांस हो रहा है।’’ राकेश ने कहा। इसके बाद तीनों डांस का मज़ा उठाने में लीन हो गये। तीन-चार लड़कियों के बाद प्रीति का नाम पुकारा गया।

‘‘आईये आजाइये यूं ना रह रह कर हमें तरसाइये।’’ गीत पर डांस करते हुए परदे के पीछे से प्रकट होती हुई प्रीति को देख कर मोहन के दिल की धड़कनों की रफ़्तार एकदम से बढ़ गई। उसके डांस में पता नहीं क्या अजीब कशिश थी की वह जैसे उसके एक एक स्टेप पर झूमने लगा होे। डांस के दौरान मोहन को ऐसा लगा जैसे बहुत सारे इशारे खुद उसके लिए हों। प्रीति का डांस खत्म होते ही उसको एक अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी और वो हाॅल से निकलकर बाहर आ गया। इसके पीछे-पीछे रवि और राकेश भी चले आए।

‘‘क्या हुआ यार?’’ राकेश ने पूछा।

‘‘मैं जा रहा हूँ, अब यहां मेरा दिल नहीं लग रहा है। पता नहीं क्यों अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही है।’’ मोहन ने कहा।

यह सूनकर रवि बोला-‘‘चलो हम लोग भी चलते हैं, आज के लिए इतना मनोरंजन काफी है।’’ इसके बाद तीनों हाॅस्टल वापस आ गये। मगर हाॅस्टल पहुंचकर भी मोहन को सुकून नहीं मिला बल्कि बेचैनी और बढ़ गई। इसे लगा जैसे उसके खयालात में दीवानापन बरपा है और उसके दिल के समुंदर में कुछ वक़्त के लिए जो थोड़ा सा ठहराव पैदा हुआ था, उसमें एक बार फिर से लहरें उठने लगी हैं, जो पहले से ज़्यादा ताकतवर हैं। उसकी नींद को न जाने क्या हो गया कि लाइट बंद करने के बाद भी घण्टों करवट बदलता रहा और नींद का कोसांे पता नहीं चला। अब उसे अफसोस हो रहा था कि उसने प्रीति से डांस खत्म होने के बाद मुलाकात क्यों नहीं की, उसका पता या फोन नंबर क्यों नहीं लिया फिर यह सोचकर दिल को तसल्ली दी कि हो सकता है प्रीति किसी दिन मुझसे खुद सम्पर्क करे, उसके पास तो मेरा पता और फोन नंबर है ही। इस बेचैनी और कश्मकश की हालत में दो-तीन हफ्ते गुजर गये। कई बार रवि और राकेश ने उसको कुरेदने और कुछ मालूम करने की कोशिश की मगर कामयाब ना हो सके।

एक दिन राकेश ने कुरेदते हुए कहा-‘‘यार इतने परीशान क्यों हो आजकल, कुछ बताओ तो क्या हुआ।’’

‘नहीं कुछ नहीं यार ऐसे ही।’’ मोहन ने उदासी से जवाब दिया।

तब राकेश ने मुस्कुराते हुए चंचल भाव से कहा-‘‘तेरी आंखें बयान करती हैं अफसाना तेरे दिल का। अगर इतनी बैचेनी है तो उसको प्रोपोज़ क्यों नहीं कर देते।’’

‘‘दो मुलाकातों में किसी से प्यार थोड़े ही हो जाता है।’’ मोहन ने कहा।

‘‘प्यार तो एक नज़र में ही हो जाता है। बस एहसास करने की बात है।’’ राकेश बोला।

’’यार मेरे पास उसका फोन नम्बर या पता नहीं है।’’ मोहन ने मायूसी से कहा।

     ‘‘यह हुई न बात। आख़िर दिल की बात ज़बान पर आ ही गयी। हमारे सामने इश्क व मुहब्ब्त पर बहुत फिलासफी झाड़ते थे, अब पता चला न कि दिल पर किसी का ज़ोर नहीं है।’’ इसके बाद राकेश यह कहता हुआ उठकर चल दिया-‘‘ठीक है यार, कोई साॅल्यूशन निकालता हूँ।’’

इसी बेचैनी और तड़प के आलम में एक दिन मोहन अपने कमरे में लेटा हुआ प्रीति के खयालों में गुम था कि अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई। वह चुपचाप उठा और दरवाज़ा खोल दिया। मगर सामने जो चेहरा उसे नज़र आया उसने एक क्षण के लिए उसे स्थिर सा कर दिया। उसे ऐसा लगा जैसे वह कोई ख्वाब देख रहा हो। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। चंद क्षणों तक दोनों स्थिर खड़े रहे और फिर अचानक प्रीति लपक कर उसके गले से लग गई। उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे, जो ओस की बूंदों की तरह मोहन के कंधों में पेवस्त हो रहे थे। प्रीति ने सिसकते हुए कहा-‘‘मोहन उस दिन तुम मेरे लिए रुके क्यों नहीं, मैं नहीं जानती कब कैसे पर मुझे तुमसे प्यार हो गया है। मैं तुम्हारे प्यार में पागल हो चुकी हूं।’’

वह प्रीति की ज़ुल्फों में उंगलियां फेरते हुए बे अख्तियार कह उठा-‘‘आई लव यू।’’ और इस जुमले के बोलते ही उसे ऐसा लगा जैसे उसके दिल की सारी बेचैनी दूर हो गयी हो और एक अलग तरह के सकून का आभास हो रहा हो।



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