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Awadhesh Singh

Romance Tragedy

2.6  

Awadhesh Singh

Romance Tragedy

धुँधला सा सवेरा

धुँधला सा सवेरा

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प्रीति एक चित्र सा उभरता मेरे आंखों के आगे, आज कई साल बाद अपने उस अल्हड़ पन रूमानियत से भरपूर दिनों को याद करते हुए। जब मैं अपनी बारहवीं की पढ़ाई में व्यस्त था। तभी उन दिनों एक घटना जो घटी मेरे साथ वो आज भी मुझे अंदर तक झनझनाती है, उसका मेरे साथ ऐसे टकराना उस बारिश के रिमझिम मधुर संगीत के बीच उस पर मेरे हाथों से मेरी किताब का गिरना और उसका मेरे ऊपर आना। मानो आसमा से कोई देव दासी उतर आई हो। मेरा दिल ज़ोर से धड़कता, पर अंदर से डर कही कुछ कह न दे। हम उठे और एक दूसरे को देखा पर कुछ न बोले। उधर क्लास में प्रवेश करते हुए मेरे मित्र राज ने ये सब देख कर मुझे हर बार चिढ़ाना चालू कर दिया। मेरी हालत तब और खराब हो गयी जब मुझे पता चला वो तो मेरे कॉलेज के हेड क्लर्क जी की बेटी है। अब तो मानो साँप सूंघ गया, इधर दोस्त करे परेशान उधर दिल की घण्टी बजी। पर इस सबके बीच उसका देखना मुझे और मन्द मन्द मुस्कान देना शायद मुझे भी भा गया।

प्रीति की आंखों में खोया हुआ में यही सोचता काश हम दोनों के पंख होते तो कहीं भाग जाते बदली के बीच। उफ़्फ़ एक दिन दिल उदासी से भर गया जब वो न पहुँची कॉलेज। इधर धुंध छाया दिल मे दर्द छलक आया। पता किया अगले दिन भी वही हाल, पर मेरा दिल हो गया बेहाल। प्रीति के स्वप्न में खोया मुझे न था कुछ भी भान उसे उसके भाई ने ही घर मे क़ैद कर दिया। जब पता किया तो मेरी पैरो से ज़मीन खिसक गई। किसी ने मेरे नाम से प्रेम पत्र उसके घर पहुँचा दिया। मुझे काटो तो खून

नही, इधर घर पे दाज्यू का डर, उधर कॉलेज में प्रीति के पिताजी का डर और बाजार में उसके डॉ भाई का डर, जो हर बार मेरे दोस्तों से पूछताछ किया करता। कौन है वो कोई मुझे बताएगा। मैने अपने घर को अपना केंद्र बना डाला कहीं न जाना न आना। पर प्रीति अब धीरे धीरे एक धुंधला सा सवेरा बन कर रह गई, कहाँ वो प्रेम जो अभी अंकुरित भी न हो पाया और कहाँ उसका घर पे कैद होना, हद तो तब हो गई जब पता चला कि उसका भाई हमारे साथ क्रिकेट खेलने आया करता था। एक दिन गांव के मेरे एक भाई जो उम्र में छोटा था बता रहा था यही है वो जो पूछ रहा था तुम्हारे बारे में। मेरा सिर चकरा रहा था। करूँ तो क्या करूँ और दिन यूं ही निकलने लगें। पर प्यार गहराई लेने लगा, दिल भी अंगड़ाई लेने लगा, पर करे तो करे क्या हिम्मत जवाब दे गई किसी से कुछ कहने की समाज के रस्में रिवाज़ की वो प्योर ब्राह्मण कुल पूजिता और हम पूरे मांसाहारी राजपूतों के बगीचे के फूल। पर पता चला कि प्रीति उड़ गई परीयो के देश अपने राजकुमार के साथ जो उसका जीवन का खेवन हार था। वही सब था उसके जीवन के बगिया के बहार और मैं उसके यादों के धुंधली धुंधली सी चित्रण को सहेजने चला था। बस कुछ पल उसके संग बिताये हुए थे उनमें खोया हुआ। वो दिन था और आज का दिन घर छोड़ दिया वो समाज छोड़ दिया पर एक चीज न छूट पाई वही धुँधली धुँधली यादें। शायद अब उम्र के साथ ही मौत भी इसका आंनद लेगी।। जब उसे भी सुनाएगी आत्मा मेरी ये कहानी। प्रीति बस एक धुँधला सा सवेरा।


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