धनसुखा की सपना और नैनसुखा की

धनसुखा की सपना और नैनसुखा की

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धनसुखा अपने गाँव में एक प्रतिष्ठित एवं परिश्रमी किसान था। करीब २६ साल पहले उसकी शादी हुई थी। यह सोचकर धनसुखा आज बहुत खुश हो रहा था। परन्तु साथ-साथ उसे अपनी पिछली बातें भी याद करके रोना आ रहा था। बड़ी धूमधाम से धनसुखा का विवाह हो गया। धनसुखा की नई नवेली धर्मपत्नी भी धनसुखा से बहुत खुश थी। दोनों एक-दूसरे का साथ पाकर बहुत खुश थे।

धनसुखा खेतों में प्रात: चार बजे ही चला जाता था, उसकी पत्नी शान्ति सुबह रोटी बनाकर आठ-नौ बजे तक खेत में पहुँच जाती और धनसुखा को खाना खिलाती। शााम होते ही धनसुखा की पत्नी वापिस घर आ जाती। धनसुखा रात को करीब आठ-नौ बजे घर आता।

एक दिन धनसुखा बोला- अबकी बार अच्छी फसल है। इस फसल को बेचकर हम पाँच बीघा जमीन और खरीद लेंगे। देखो जी, “मैं तो कहती हूँ कि अब मैं गर्भवती हूँ। यदि लड़का हुआ तो हम लड्डू बनवायेंगे और पूरे गाँव का न्यौता देंगे”-शान्ति बोली। ठीक है, ठीक है। उसकी हाँ में हाँ मिलाई धनसुखा ने। कुछ दिन बाद वह खुशी का दिन भी आ ही गया। उन दोनों के यहाँ एक लड़के ने जन्म लिया दोनों बहुत ही खुश थे। उन्होंने लड्डू बनवाये और पूरे गाँव को खिलाये। दो साल बाद धनसुखा की पत्नी ने एक लड़की को जन्म दिया। वह लड़की भी बहुत सुन्दर थी और बिल्कुल माँ शान्ति के नैन-नक्ष पर गई थी। धनसुखा और शान्ति दोनों बड़े खुश थे।

मगर शायद भगवान को उनकी यह खुशी ज्यादा अच्छी नहीं लगती थी। उस लड़की के जन्म के छ:-सात महीने बाद ही शान्ति के पेट में दर्द उठने के कारण देहान्त हो गया। उसके देहान्त से बच्चों की जिम्मेदारी भी अब धनसुखा पर आ गई थी। धनसुखा उसके विरह में पागल सा हो गया था, मगर जल्दी ही वह संभल गया क्योंकि उसे पता था कि यदि वह भी शान्ति के विरह में पागल हो गया तो उसके बच्चों को कौन पालेगा।

धनसुखा ने अपने खेतों को बंटाई पर दे दिया और खुद अपने बच्चों की परवरिश में जुट गया। छ: साल का होने पर वह अपने बेटे नैनसुख को एक स्कूल में पढऩे के लिए भेजने लगा। नैनसुख पढ़ने में बड़ा ही होशियार था। वह स्वयं स्कूल पढ़कर आता और घर आकर अपने पिता और छोटी बहन मैना को भी बताता। कुछ बड़ी होने पर धनसुखा ने अपनी बेटी मैना को भी स्कूल में पढ़ने के लिए स्कूल भेजना शुरू कर दिया। नैनसुख और मैना दोनों भाई बहन पढ़ने में बड़े होशियार थे। हमेशा कक्षा में प्रथम श्रेणी से पास होते। नैनसुखा को अपने पिता के सभी गमों और उन पर बीती हर बात के बारे में पता था। इसलिए वह सदा अपना ध्यान पढ़ाई की और ही रखता था। एक दिन उसने बी.ए. फाईनल का इम्तिहान दिया और पूरे कॉलेज में वह प्रथम श्रैणी में आया। अब तक उसकी बहन मैना भी बाहरवीं पास कर चुकी थी और वह भी प्रथम श्रेणी से ही पास हुई थी।

धनसुखा ने अपनी बेटी की शादी करने के लिए एक ऐयर फोर्स में लगा हुआ लड़का पसंद किया। मगर उस लड़के के बाप ने कहा- “देखिए साहब, मेरे लडक़े को पढ़ाने, लिखाने और यहाँ तक पहुंचाने में मैनें इस पर करीब दस लाख के करीब रूपये खर्च किये। यदि तुम वो रूपये दे सको तो मैं ये रिश्ता मंजूर कर लूँगा नहीं तो आप जा सकते हैं।” धनसुखा बोला- “मैंने जो अपनी लड़की की पढ़ाई कराई है। उसका खर्चा कौन देगा तुमने तो मुझसे माँग लिये, मैं किससे माँगू? मैं तो पहले ही गरीब हूँ।” यह सुन लड़के के पिता बोला- चलो साहब आपने अपनी लड़की पढ़ाई उसके लिए मैं पाँच लाख रूपये छोड़ने के लिए तैयार हूँ। बाकि तो तुमने देने ही पढ़ेगें। ठीक है साहब, मैं पाँच लाख रूपये दे दूँगा। -धनसुखा बोला। दोनों में शादी की बात पक्की हो गई। धनसुखा ने जैसे तैसे करके अपने पाँच खेतों को गिरवी रख दिया और कहा कि मैं पाँच साल में तेरे पैसे लौटा दूँगा। देख भाई धनसुखा, यदि पाँच साल में मेरे पैसे न लौटाये, तो तेरी सारी की सारी जमीन मेरी हो जायेगी, सेठ बोला। ठीक है, लालाजी। मेरी सारी जमीन तेरी हो जायेगी। यह कहकर धनसुखा पैसे लेकर घर आ गया। धनसुखा ने अपनी बेटी मैना की शादी बड़ी धूमधाम से की, जो रूपये जमीन गिरवी रखकर उसने प्राप्त किये थे वे पाँच लाख रूपये भी दहेज में अपनी बेटी के ससुर को दे दिये।

धनसुखा अब चिन्तित सा रहने लगा। उसकी चिन्ता को देख कर नैनसुख आगे की पढ़ाई छोड़कर नौकरी की तलाश करने लगा। पहले तो वो सोचता था कि कोई बड़ी सी नौकरी हाथ लग जाये मगर जहाँ जाता वहीं पर नौकरी के लिए पैसे मांगे जाते। जो भी फार्म भरता उसके टेस्ट में प्रथम आता, उसे बुला भी लिया जाता मगर इंटरव्यू के समय साहब लोग जो बड़ी-बड़ी पोस्टों पर बैठे थे,कहते भाई यदि कुछ सेवा पानी करो तो शायद हम तुम्हें यह नौकरी दिलाने की सिफारिश ऊपर वाले अधिकारी से कर सकते हैं क्योंकि उसके चाय-पानी का बंदोबस्त हमें ही करना होता है। चाय-पानी के लिए क्या चाहिए साहब, नैनसुख ने कहा। यहाँ ये बाते ना करो नैनसुख, मैं तुम्हें यह नम्बर देता हूँ शाम को बात कर लेना। उन अधिकारियों में से एक अधिकारी ने कहा। नैनसुख वह नम्बर लेकर घर आ गया। शाम को उसने उस अधिकारी के पास फोन किया और पूछा कि साहब मैं नैनसुखा बोल रहा हूँ सुबह इंटरव्यू के लिए आया था। हाँ नैनसुखा बोलो। मैं तुम्हारे ही फोन का इंतजार कर रहा था। साहब वो आपसे पूछना था कि कितने रूपये लगेंगे, आपकी चाय पानी के। देखों, भाई नैनसुखा मुझे तो ये रूपये चाहिये नहीं क्योंकि मेरे पास तो भगवान की दया से सबकुछ है। अच्छी तनख्वाह है अच्छा घर है और भगवान इस नीच काम रिश्वत से हमेशा मुझे बचाये रखें। मुझे तो अपने हाथों की कमाई में संतुष्टि है। मगर वो जो हमारा अधिकारी है। उसे चाहे जितने भी रिश्वत के पैसे मिलें सबको हज्म कर जाता है। बस उसी को चाहिये चाय-पानी के रूपये। तो फिर बताओ ना कितने रूपये में आयेगी, उसकी चाय। देखो भाई नैनसुखा मैंने आज सुबह तेरे जाने के बाद ही साहब से बात की थी और कहा था कि नैनसुखा बेचारा गरीब घर से है और उसे नौकरी की सख्त जरूरत है और पढाई में भी काफी होशियार लगता है। यदि यह हमारे यहाँ ऑफिस में काम करने के लिये आये तो हमारे ऑफिस का रूतबा बढ़ जाये। तो अधिकारी ने कहा कि गरीब है तो ठीक है इसे ही काम पर रख लो, मगर मेरी चाय-पानी का खर्चा मुझे चाहिए। चाहे तुम अपनी जेब से देना। मैंने उसे चाय पानी के खर्चे के लिए राजी कर लिया है। वो साहब की चाय थोड़ी महंगी है। यदि दे सकते हो तो बोलो। मैं तैयार हूँ बोलो। यदि दस लाख रूपये दे सकते हो तो कल से ही काम पर आ जाना। मैं साहब से कहकर तुम्हें अच्छी सी सीट दिला दूंगा। चाय-पानी के इतने रूपये? भई नौकरी भी तो बड़ी है। दो साल में पूरे कर लोगे। मगर एक बात है यदि तुमसे ज्यादा देने वाला कोई और युवक आ गया तो साहब उसे नौकरी पर रख लेगें। सोच लो, ऐसा मौका बार-बार नही मिलता। ठीक है, साहब मैं पैसे का इंतजाम करके कल सुबह ही आपके पास आ जाता हूँ। अच्छा साहब अब फोन रखता हूँ।

नैनसुखा ख्यालों में डुबा हुआ सा अपने घर की तरफ बढ़ रहा था। मगर उसके कदम उसका साथ देने से इंकार कर रहे थे। वह धीरे-धीरे चलता हुआ अपने घर आया। शाम को जब धनसुखा खेतों से घर आया तो उसने नैनसुखा से पूछा-क्या हुआ नैनसुख तुम आज सुबह इंटरव्यू देने गये थे। क्या तुम्हें नौकरी मिल गई? धनसुखा बोला-नहीं पिताजी, उन्होनें १०लाख रूपये मांगे हैं। तो क्या हुआ मैं तुम्हें कल सुबह ही रूपये लाकर दूंगा, धनसुखा ने कहा।

सुबह होते ही धनसुखा पहुँचा सेठ के घर। सेठ जी नमस्ते। आओ धनसुखा, आज बहुत दिनों बाद आये हो, क्या मेरे पहले वाले रूपये लाये हो। नहीं सेठ जी, बल्कि और रूपये लेने आया हूँ। और वो भी दस लाख रूपये। धनसुखा तुम तो जानते हो कि अभी तक तुमने जो रूपये बेटी की शादी में उधार लिये थे वही अभी तक नही लौटा पाये। उनको तीन साल से ज्यादा समय हो गया है। एक शर्त पर मैं तुम्हें और रूपये दे सकता हूँ यदि तुम अपनी सारी जमीन मेरे नाम कर दो तो? हाँ, सेठ जी मैं अपने बेटे के भविष्य के लिए अपनी सारी जमीन तेरे नाम कर रहा हूँ एक बार नौकरी मिल जाये, जमीन तो फिर खरीद लेगें। नौकरी से बेटे का भविष्य तो सुधर जायेगा नहीं तो सारी पढ़ाई उसकी खेतों की मिट्टी में मिल कर रह जायेगी। ठीक है धनसुखा तुमने सही सोचा है इतना पढ़ा लिखा नैनसुख खेतों में काम करने योग्य थोड़े ही है वह तो साहब की कुर्सी के लिए बना है। उसे यह नौकरी मिल गई तो तुम्हारा तो भाग्य ही चमक जाएंगे। फिर तो तुम भी धूल मिट्टी का काम छोड़कर अपने घर आराम से रहना। ये लो दस लाख रूपये और इन कागजों पर दस्तखत करते जाओ। सेठ ने सारी जमीन यहाँ तक की उसके घर की जमीन भी अपने नाम करा ली।

दस लाख रूपये लेकर धनसुखा अपने घर आकर अपने बेटे नैनसुख को देकर बोला-जा बेटा जा, ये रूपये ले जा और अधिकारी को देकर अपना भविष्य बना। नौकरी मिल जाने पर सारे पैसे वसूल हो जायेंगे। जमीन तो और भी खरीद लेंगे। तेरी पढ़ाई के लायक तुझे नौकरी मिल गई, इससे ज्यादा हमें और क्या चाहिए। नैनसुख रूपये लेकर पहुंचा साहब के घर और कहा-ये लो साहब मैं रूपये ले आया। ठीक है नैनसुख, मुझे यही उम्मीद थी तुमसे। क्योंकि नौकरी तुम्हारे ही लायक है। मुझे आशा है कि तुम जल्द ही ये रूपये वसूल कर लोगे। हमारी कोशिश भी यही रहेगी दो साल के भीतर-भीतर तुम्हारे सारे पैसे तुम्हें मिल जाये। मगर हाँ बेटे एक बात का ध्यान जरूर रखना। यह कुर्सी तब तक ही तुम्हारी है जब तक कि कोई और दूसरा तुमसे ज्यादा पैसे देने वाला व्यक्ति इसे ना मिले। यदि कोई तुमसे ज्यादा पैसे देने वाला इसे मिला और तुम्हारे हाथ से कुर्सी गई। ठीक है साहब। तो अब जल्दी से ऑफिस चलते हैं। दोनों ऑफिस पहुंचते है नैनसुखा का सभी से परिचय होता है। सबसे मिलकर नैनसुख बहुत खुश होता है। शाम को घर जाते समय नैनसुख दो हजार रूपये रिश्वत के कमा कर घर जाता है तो मिठाई घर ले जाता है।

आज उसे बहुत खुशी थी वह सोच रहा था कि इसी तरह से यदि कमाई होती रही तो कुछ ही समय में सारे पैसे पूरे हो जायेगें।

यह सोचते-सोचते घर पहुंचा धनसुखा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। नैनसुखा ने धनसुखा को खुशी-खुशी चूमते हुए कहा कि पिताजी आज मैं बहुत खुश हूँ मुझे नौकरी मिल गई और आज की कमाई ये दो हजार रूपये लो। तुमने रिश्वत ली है नैनसुख। जब हम नौकरी पाने के लिए रिश्वत दे सकते हैं तो रिश्वत ले नहीं सकते। ठीक है बेटे जैसी तुम्हारी मर्जी। लो पिताजी मुंह मीठा करो। दोनों ने उस रात खुब मिठाई खाई और खुशी मनाई।नैनसुख लगभग महीने भर वहाँ गया काफी रूपये कमाये। मगर एक दिन जब सुबह वह ऑफिस गया तो उसकी सीट पर एक नया आदमी बैठा था। नैनसुख अन्दर गया और साहब के पास जाकर कहने लगा कि -साहब मेरी सीट पर यह कौन आदमी है जो काम कर रहा है। यह नया आदमी अब तुम्हारी सीट पर काम करेगा। और मैं साहब। अब आप जहाँ चाहे वहाँ जा सकते हैं। तो मेरी नौकरी ? अब आपकी नौकरी कहाँ रह गई? तो फिर ? अब आप अपने घर जा सकते हैं। यह हिदायत आपको पहले ही दी गई थी कि आपसे ज्यादा रूपये देने वाला ही इस सीट का अधिकारी होगा। अब इस व्यक्ति ने इस सीट को पाने के लिए पूरे पन्द्रह लाख रूपये दिये हैं। सो अब आपकी छुट्टी, आप कही भी जा सकते हैं। आपसे जो फार्म भरवाये गये थे उन पर भी यही लिखा था। आपने पूरी संतुष्टि के साथ उन्हें पूरा किया था। आप अपना पूरा-पूरा हिसाब उसी आदमी से ले सकते हैं। नैनसुखा ने अपना हिसाब लिया। और घर की तरफ रवाना हो लिया।

नौकरी मिलने की खुशी में उसके कदम जिस तरह से उठ रहे थे आज उसी तरह से नौकरी जाने के गम में उसके पांव जमीन पर चिपक रहे थे। वह जबरदस्ती उन्हें उठाकर रख रहा था। बार-बार आँखों के आगे अंधेरा-सा छा रहा था। घर पहुंचकर वह खाट पर औंधे मुंह लेट गया। वह सोच रहा था कि अब क्या होगा। शाम को उसका पिता धनसुखा घर आया तो वह अपने पिताजी से लिपटकर बुरी तरह से रोने लगा और कहा-पिताजी हम लुट गये। हमारे सारे पैसे डूब गये। नैनसुख ने अपनी जेब से एक पैकेट निकाला जिसे उसने आज सुबह ही लौटते समय एक दवाई वाली दुकान से खरीदा था। उससे दो-तीन गोलियां निकाली और मुंह में लेकर पानी का गिलास उठाया और दो-तीन गिलास पानी पी गया। वह पैकेट अपने पिताजी की तरफ बढ़ाता हुआ कहने लगा- "लो पिताजी मैंने तो ये गोलियां खा ली अब आप भी खा लो। क्योंकि अब हमारे पास न तो जमीन है और न ही हमारा अपना घर है, एक नौकरी थी वह भी छूट गई। मरने के अलावा अब और कोई चारा नही है।"धनसुखा विलाप करने लगा। वह सोचने लगा कि मेरे पास न जमीन रही, और न ही बेटा रहा। अब तो जीना ही बेकार है। यह कहकर रोते-रोते उसने भी कई गोलियां पानी के साथ निगल ली।

सुबह होने पर पूरे घर में सन्नाटा। दोनों की लाश चौक के बीच में पड़ी हुई थी। हवा सांय-सांय करके तेज चल रही थी। नैनसुखा की पन्द्रह साल की मेहनत उसकी डिग्रियां हवा के साथ इधर-से-ऊधर उड़ उस सन्नाटे को तोड़ रही थी। वो सभी अंधे की भाँति भटक रही थी। गाँव वाले लोगों ने इक्कठा होकर उन दोनों का दाह संस्कार आदि कर दिया और उनके साथ ही नैनसुखा की सभी डिग्रियां चिता की अग्नि के हवाले कर दी गई।


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