क्षणभंगुर शादी की खुशी

क्षणभंगुर शादी की खुशी

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एक दिन मैं दौड़ता हुआ, न जाने कहाँ-कहाँ भटकता हुआ पहुँचा अपने ही गाँव के नजदीक पम्पहाऊस पर वहाँ पर एक बड़ी नहर के पानी से करीब दो छोटे नाले तथा दो बड़ी नहरें निकलती हैं। वहाँ की यदि छटा देखी जाये तो मानों दुल्हन की भाँति लगती है जो अपने समस्त गहनों सहित शादी के जोड़े में डोली में बैठी हुई मंद-मंद मुस्कुराती हुई अपने पति के घर जा रही हो, साथ ही अपने मायके की यादों को संजोकर अश्रुधारा भी बिखेरती हुई जा रही हो।

ऐसा ही कुछ नज़ारा यहाँ भी था। यहाँ की चारों तरफ की हरियाली से ऐसा महसूस होता है कि यहाँ पर वसुन्धरा ने हरियाली रूपी हरे कपड़े, पेड़ों रूपी गहने पहन लिये हो जब हवा चलती है तो पेड़ व हिलती-डुलती घास मुस्कान सी प्रतीत होती है, परन्तु जहाँ पर घास नहीं है वह जगह विरान, सुनी-सुनी तथा निस्तेज सी आँखें हैं जो मानों किसी के बिछुडने पर उसके विरह में अश्रु बिखेर रही हो। मैं यहाँ का नज़ारा देखकर, नहर के ऊपर दोनों तरफ मिट्टी के टीले से बने हुए हैं उनपर चढ़ा। वहाँ पर कैसे एक बड़ी नहर के पानी को भारी सूंडो से ऊपर छोटी नहरों चढ़ाया जाता है, देखकर वहाँ से सीधा अपने गाँव पहुँचा। गाँव को ना जाने क्या हो गया था ऐसा लगता था मानो पूरे गाँव को साँप सूँघ गया था। गाँव में मुझे कोई दिखाई ना दिया, गाँव में जो पुरानी हवेलियाँ थी वे डरावनी दिखाई दे रही थी। मैं जल्द ही गाँव से बाहर निकल लिया, हालांकि मैं थका हुआ था मगर डर के आगे तो भूत भी नाचते हैं। अपने गाँव से निकल कर मैंने देखा कि पास ही के एक गाँव में कुछ लोग चले जा रहे थे। उनसे पूछने पर पता चला कि मेरे गाँव वाले सभी लोग पास ही उस छोटे से गाँव में गये हैं, क्योंकि वहाँ पर एक शादी हो रही थी। मैं भी वहीं पर चला गया। वहाँ पर जाकर देखा तो वहीं पर मेरी माँ है, वहीं पर पिताजी हैं। वहीं पर बहने और सभी रिश्तेदार वहीं पर हैं। माँ आज यहाँ पर किसकी शादी है, मैंने माँ से पूछा। बेटे आज यहाँ एक लड़की की शादी हो रही है, यह कहकर माँ अपने काम में व्यस्त हो गई। सभी खुश नज़र आ रहे थे, लगभग सभी खुश नजर आ रहे थे। तभी बारात आ गई, बारात आ गई, शोर सुनाई देने लगा। मैंने देखा कि दुल्हा सफेद घोड़ी पर बैठा हुआ था उसके चारों ओर उसके साथी चल रहे थे। आगे बाजा बज रहा था। कुछ लोग बाजे के साथ नाच रहे थे। लगभग सभी मस्ती में झूम रहे थे।

दुल्हा दरवाजे के पास पहुँच गया, तभी दुल्हन माला लेकर आई। उसके साथ में बहुत सी लड़कियाँ थी उनमें से एक लडक़ी ऐसी भी थी जिसे देखकर मैं झूम उठा। मैंने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि इस लड़की के साथ मेरी मुलाकात होगी। उसने जब मुझे देखा तो वह दुल्हन का साथ छोड़कर मेरे पास आ गई। मेरी प्यासी आँखें उसके चेहरे को चूमने लगी। मैं उसे खड़ा एकटक देखता ही रह गया। तभी क्या बात है ऐसे क्या देख रहे हो, उस लडक़ी ने कहा। आज तुम कितनी सुन्दर लग रही हो। आज मेरी बहन की शादी है आओ चलो बैठते हैं। वो मेरे लिए और अपने लिए दो कुर्सी ले आई। हम दोनों बैठ गये। जाने तभी उसके मन में क्या सूझा, वो अपनी कुर्सी को बिल्कुल मेरे समीप ले आई ओर कान में कहती है आओ बाहर चलते हैं। चलो मुझे भी यहाँ पर घुटन सी महसूस हो रही है। मैनें भी उसकी हामी मिलाई। ठहरों, एक मिनट मैं अभी आई कहकर वह अन्दर चली गई। जब वह बाहर आई तो उसके हाथों में कुछ पॉलिथीन थी हम बाहर ना जाकर यदि छत पर चलें तो कैसा रहेगा, वह बोली। हाँ, आपने यह ठीक कहा, चलो हम छत पर ही चलते हैं। दोनों छत पर पहुँच गये। छत पर लो मैं आपके लिए ये मिठाई लेकर आई हूँ। और एक -एक पेप्सी की बोतल। हम दोनों मिठाई खाने लगे, पेप्सी खोलकर उससे घूँट भर पीने लगे।

तभी वह बोली- आज मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ। हाँ-हाँ कहो, क्या कहना चाहती हो। "मैं तुमसे प्यार करती हूँ और शादी करना चाहती हूँ, और गले से चिपक कर जोर-जोर से रोने लगी।" जो बात मैं उससे सालों पहले कहने की सोच रहा था और ना कह सका, वही बात आज इसने इतनी आसानी से कह दी। मुझे मुर्छा सी आ गई और एकटक उसे देखता ही रह गया। एक पल को तो मुझे ऐसा महसूस हुआ कि यह मुझसे मजाक कर रही है। परन्तु उसने फिर एक बार यही दोहराया और मुझे हिलाया हाँ ठीक है, मैं भी तुम से प्यार करता हूँ और शादी करने को तैयार हूँ। -मैं बोला।

मगर हमारी दोनों की शादी वाली यह बात हमारे परिवार वालों को कौन बतायेगा। मैं करूँगा, मैं अपनी बेटी को खुश देखना चाहता हूँ। क्या आपने हमारी सारी बातें सून लीं,- मैं बोला। हाँ, बेटे चलो नीचे आओ तुम्हारे पिता जी कौन हैं। मैंने अपने पिताजी की तरफ इशारा करते हुए कहा -वो है मेरे पिताजी। उसके पिताजी और मेरे पिताजी दोनों आपस में बाते करने लगे। मेरे पिता जी बोले देखिए पंडित जी, आप कैसी बातें कर रहें हैं। आप क्यों हमारे साथ मजाक कर रहें हैं क्या आप अपनी बेटी की शादी मेरे बेटे से करेंगे। ओर नही तो क्या, भई तुम्हारा लड़का अच्छा है मेरी लड़की सुन्दर है दोनों जवान हैं और वे एक-दूसरे को चाहते हैं, लडक़ी के पिताजी बोले। ठीक है जब लड़का राजी, और लड़की राजी तो क्या करेगा काजी, मेरे पिताजी ने कहा।

अब तो मेरी ओर उसकी हम दोनों की खुशी का कोई ठिकाना ना रहा। उसकी बहन की शादी होते ही मुझे शादी वाले मंडप में बैठाया गया, पंडित जी मंत्र पढ़ने लगे। कुछ देर बाद पंडित जी ने कहा कि कन्या को बुलाईये। वह लड़की जिससे मैं प्रेम करता था लाल शादी के जोड़े में मेरे पास आकर बैठी। विधि-विधान के साथ हमारा विवाह हो गया। आज हमारी शादी से जाति-पाति वाली रीत मानों खत्म सी हो गई थी क्योंकि मैंने जिस लडक़ी से शादी की थी वह ब्राह्मण कुल की थी और मैं था प्रजापति कुल का। आज जाति को न देखते हुए किसी ने दो दिलों को मिल जाने दिया। यह मेरे सामने वही समाज था जिसने लैला-मजनूं, हीर-रांझा को एक दूसरे से कभी मिलने ही नही दिया, मगर हम दोनों की शादी में यही समाज खुश नज़र आ रहा था। आज हम दोनों भी बहुत खुश थे। शाम को जब मैं उसके कमरे में गया तो उसने हरे रंग का जोड़ा पहन रखा था बिल्कुल वैसी ही लग रही थी जैसी मैंने पम्पहाऊस की हरियाली देखी थी। मैं, उसके नजदीक गया तो उसके बदन से वही भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी। जैसी उस हरी घास, व खिले हुए फूलो से आ रही थी। धीरे से उसके पास पहुँचकर उसका घुँघट खोला तो वह छुई-मुई की भाँति सिकुड़ गई। उसका चेहरा मानो कँवल की भाँति खिल उठा। वह शर्मा रही थी। मगर मुझे तो उसको छेड़ने में मजा आ रहा था। हमारी सारी रात आँखों ही आँखों में गुजर गई। करीब रात के चार बजे हमें नींद आई।

तभी बेटे उठो- सुबह हो गई, सुबह के आठ बज चुके हैं कॉलेज नही जाना क्या ? -माँ ने झल्लाते हुए कहा।

क्या माँ ? क्या बात है, ढंग से सोने भी नहीं देती। आज की छुट्टी है, यह कहकर मैंने फिर से आँखें बंद कर ली, मगर अब तो उसकी छाया मात्र भी मेरे पास नही थी। मैं उठा तो न वहाँ हरियाली थी न मेरी प्रेमिका। रोजाना की भाँति मेरे पास रखी हुई कुछ किताबें थी ओर मेरे हाथों में मेरा तकिया। मैं बहुत दुखी हुआ ओर बुझे से मन से उठकर मुँह धोने के लिए बाथरूम की तरफ बढ़ गया। यह मेरा स्वप्न था।


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