नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

1.0  

नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

दोस्ती

दोस्ती

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रात को करीब 8ः00-8ः30 बज रहे थे । लेखक घर पर अकेला था कि तभी उसका एक दोस्त रवि मल्होत्रा उससे मिलने आया । वह अक्सर आता -जाता रहता था । इसलिए वह कुछ देर बात करने पर दोनों छत पर चले गये । कुछ देर बाद लेखक नीचे उतर आया । बाहर गया देखने कुछ, मगर मिला उसे कुछ । बाहर नल से पानी की बूंदे बेकार बहे जा रहा था । इसलिए लेखक ने सोचा कि क्यों ना पानी भरा जाये । इसलिए लेखक घर वापिस आया और ले पानी का बर्तन जा लगाया । रात का माहौल आज पहली बार लेखक को न जाने क्यों शहरों जैसा प्रतीत हो रहा था चारो तरफ गलियों में रोशनी ही रोशनी दिखाई दे रही थी । चारों ओर चहल-पहल जैसे दिन के उजाले में आज तक कभी लेखक ने नही देखी । पानी भरने के बाद घर आकर रोटियां अर्थात खाना बनाने लगा । उसका दोस्त रवि मल्होत्रा अब भी उस के घर की छत पर ही बैठा हुआ था । तब वहां पर लेखक के पड़ोस में रहने वाला नाते में लेखक का चाचा मगर दोस्त की हैसियत से ही दोनों मिला करते थे । वह आया । लेखक बात न करने के मूड में था । इसलिए उसने उसे छत पर बैठे रवि की तरफ टरका दिया । वह छत पर चला गया । यह सोचकर लेखकर को कुछ राहत हुई । वह इनके लिए खाना बनाते हुए झुंझला उठता था । लेखक खैर इतना अच्छा खाना तो कभी नही बनाता था मगर फिर भी किसी के खाना बनाते हुए कोई चला आए तो झुंझलाहट तो होती ही है । इतनी सोच ही रहा था कि उपर से रवि की आवाज आई लेखक साहब इसका तो काम हो गया । इतनी सुनते ही घबरा उठा लेखक । और बोल पड़ा -क्या बकते हो रवि । इसे नीचे उतार लाओ । रवि तो मानों पहले ही उसे मारने की तैयारी कर के आया था । इसलिए वह सारा सामान लेकर आया था । उसे वह नीचे ले आया । लेखक ने जब उसे देखा तो उस युवक के जिस्म के चारों ओर पॉलिथीन लिपटी हुई थी । लेखक ने कहा इसे अन्दर एक कोने में डाल दो । वह घसीटता हुआ उसे एक कोने में ले गया ।

अब तो 6ः00-7ः00 दिन बीत गये । लेखक भी स्वप्न समझ कर उस बात को भूल गया था । और रवि मल्होत्रा ने उसका कभी जिक्र ही नही किया । उसका तो मानो दामन साफ हो चुका था । मगर रोज शाम को घर आता और लेखक को दूसरी बातों में उलझा लेता ।

एक दिन लेखक के अन्दर के कमरे से भिन्नी-भिन्नी बदबू सी निकलने लगी । लेखक दोपहर को उस कमरे में गया तो उसका दम घुटने लगा और क्षणभर में ही उस कमरे से बाहर निकल आया । उस कमरे में लाईट का कनैक्शन बाहर से था सो बाहर आकर अन्दर की लाईट जलाई और मुंह पर कपड़ा लपेट कर अन्दर पहुंचा । अन्दर का नजारा देखकर लेखक हक्का-बक्का रह गया । वह एक दम से ठंडा पड़ गया । क्या मेरे घर में लाश । लेखक तुरंत बाहर निकला । और पहुंचा रवि के घर । रवि-रवि बाहर आओ । क्या बात हैं लेखक साहब । अभी आया ।

लेखक के पास आने पर ’क्या हुआ यार’

देख यार उस लाश को बाहर निकाल। बड़ी बदबू आ रही है और फूल कर मुनक्का जैसी हो गई है लगता है अब फटी-अब फटी । लेखक की बात सुन कर

यार धीरे बोल, आज रात को हम उसे कहीं बाहर फेंक आयेंगे ।

लेखक को कुछ संतोष हुआ ।

रात को करीब 10ः00 बजे रवि वहां आया ।

लेखक महोदय चलो, अब हम चलते हैं ।

देखो भई मैं तो तुम्हारे साथ नही जाऊंगा क्योंकि मुझे तो डर लगता है, कहीं पुलिस वालों ने देख लिया तो मुझ पर कलंक लग जायेगा । लेखक बोला ।

नही लेखक साहब, ऐसा कुछ नही होगा और फिर तुम तो मेरे साथ हो लाश को मैं कांधे पर लिए चलता हूं । थोड़ी दूर की ही तो बात है । जहां लोग शौचादि करके आते हैं वहीं पर लाश को गिरा आते हैं । रवि बोला ।

लेखक था शरीफ, उसे तो बस यही पता था कि वह तो निर्दोष है और फिर उसे कौन क्या कहेगा । पुलिस वालों के आने पर वह पुलिस को सब सच-सच बता देगा । उसे नही पता था कि उसके घर आने वाला उसका दोस्त ही उसे मुसीबत में डाल देगा । वो दोनों उस लाश को बाहर गिरा कर आ गये । और रात को दोनों अपने-अपने घर जाकर सो गये । सुबह लेखक को जल्दी ऑफिस जाना था । वह लेखक सरकारी नौकरी लगा हुआ था ।इसलिए सुबह नहा-धोकर खाना खाकर ऑफिस चला गया । और सांय को जब घर वापिस आया तो उसके घर के सामने भीड़ जमा थी । कुछ रिपोर्टर, गांव का सरपंच, गांव के लोग भीड़ बना रहे थे । भीड़ को चीरता हुआ लेखक घर के दरवाजे के पास पहुंचा । सभी लोग लेखक से बता रहे थे कि आज तेरे घर पुलिस आई है । वह तुझे पकड़ कर ले जायेगी । मगर लेखक निडर था उसे किस बात का डर था । दरवाजा खोलने वाला ही था लेखक कि तभी ठहरिए लेखक महोदय, थानेदार की आवाज सुनते ही पिछे मुड़ा लेखक ।

क्या बात है थानेदार साहब ।

जी, मुझे मजबूरन आपको गिरफ्तार करना पड़ रहा है । थानेदार बोल पड़ा ।

क्या साहब, एक बार फिर लेखक पीला पड़ गया, मगर साहस बांधते हुए बोल पड़ा-किस जुर्म में ?

मौत के जुर्म में...........।

सुबूत क्या है ?

ये घड़ी ? क्या ये तुम्हारी है । घड़ी निकालकर दिखाते हुए थानेदार बोला ।

जी साहब, हां ये घड़ी तो कल शाम को मैनें अन्दर संभाल कर रखी थी । लेखकर सोचने लगा ।

मगर सर, ये तो मेरे किसी दुश्मन की साजिश हो सकती है जो मुझे फंसाने की कोशिश कर रहा है ।

हर मुजरिम यही बोलता है हम किसकी माने साहब जोर से बोल पड़ा थानेदार ।

अब लेखक को बिना कुछ बोले ही उनके साथ चल देना पड़ा, क्योकि सारे सुबूत उसके ही खिलाफ थे ।

लेखक को जेल डाल दिया गया । अभी तक लेखक यही समझ रहा था कि सब सच्चाई का पता चलने पर उसे जेल से बाईज्जत बरी कर दिया जायेगा, मगर आज उसका अन्तिम निर्णय था ।

कटघरे में मुजरिम को खड़ा किया गया और पूछताछ की गई मगर मुजरिम ने साफ इंकार कर दिया कि उसने यह खून नही किया । तब सबूत के तौर पर उसकी घड़ी पेश की और गवाही के तौर पर लेखक के सामने वाले कटघरे में लेखक के दोस्त रवि मल्होत्रा ।

लेखक तो यही सोच रहा था कि आज उसका दोस्त रवि मल्होत्रा अपना कसूर कबूल कर लेगा और मुझे रिहा करा देगा । उसकी आंखों में अद्भूत चमक आ गई थी, मगर अगले ही पल का लेखक को पता नही था कि उसके दोस्त के रूप में एक शैतान उसके सामने खड़ा है । जब रवि से पूछा गया कि यह खून क्या लेखक ने किया है तो रवि बोला -

देखिए साहब, मैं गीता पर हाथ रखकर कसम खाता हूं कि मैं जो कुछ कहूंगा सच कहूंगा, सच के सिवा कुछ नही कहूंगा । जिस रात यह अर्थात मेरे दोस्त लेखक जी लाश गिराने बाहर गए उस रात इन्होनें मुझसे भी प्रार्थना की थी कि यार इस लाश को गिराने में मेरी मद्द करो तो मैंने साफ इंकार कर दिया । मैं पुलिसथाने में फोन करना चाहता था मगर तभी इसने मुझसे कहा कि -यार यदि तु मेरा दोस्त है तो ऐसा मत करना और हां ये 20 हजार रूपये अपने पास रख ले और किसी को कुछ मत कहना । साहब मुझे पैसों की सख्त जरूरत थी इसलिए पैसे ले लिए, और किसी से कुछ नही बताया । अब पुलिस वालों ने मुझसे पूछताछ की तो मुझे ग्लानि महसूस हुई मुझे अपने ऊपर बड़ा क्रोध आ रहा है कि चंद पैसों की खातिर मैं मुजरिम का साथ न दूं । इसलिए सब सच-सच बता कर इस बात का प्रायश्चित कर लेना चाहता हूं साहब ।

लेखक यह सब सूनता रहा ओर चुपचाप सूनते रहने के सिवा उसके पास सबूत भी क्या था । आज तक उसने कहानियों में कपटी दोस्तों के बारे में पढ़ा और लिखा था, मगर प्रत्यक्ष रूप में आज देख भी लिया ।

अब मुख्य न्यायाधीश बोला - हां मुजरिम को अपनी सफाई में कुछ कहना है क्या ?

लेखक बोला- ’जी साहब, कहना तो बहुत कुछ था मगर मैं ज्यादा ना बोलते हुए यही कहना चाहता हूं कि ये खून मैनें ही किया है इसकी जो सजा मुझे मिलनी चाहिए उसे मुझे दो और एक बात और भी मैं कहना चाहता हूं कि मैं इस दुनिया में सबसे धन्य हूं जो मुझे ऐसा मित्र मिला । रवि मल्होत्रा । एक दोस्त तो अपने दूसरे दोस्त की हर बुराई को छिपा लेता है मगर मेरे इस दोस्त ने मेरी हर बुराई हर बुरे काम को दुनिया के सामने लाकर मेरा छुपा हुआ चेहरा सबके सामने लाकर खड़ा कर दिया । मैं बाहर से शराफत का चोला पहने हुए दुनिया के सामने शरीफ बनने का ढोंग रचता रहता था । मेरे दोस्त ने आज एक मिसाल कायम कर दी है । जिससे हमारे सारे समाज को सीख लेनी चाहिए और उसने मेरे 20 हजार रूपये लेकर भी आत्मा के झकझोरने पर 20 हजार रूपये मुझे वापिस करके रिश्वत न लेकर समाज के सामने नया इतिहास रचा है । मैं तो सोचता था कि 20 हजार रूपये देकर मैं साफ बच जाऊंगा, और रवि तो मेरा दोस्त है वह मुझे बचा लेगा, मगर वाह मेरे दोस्त तूने तो कानून का साथ दिया । मैं भी चाहता था कि मुझे ऐसा ही दोस्त मिलें । मैंने दूसरों के दुख-दर्द की परवाह किए बिना ही ऐसा गलत कार्य किया । मैं बचने के लायक तो नही मगर यदि मुझे एक और मौका दिया जाए जिससे मैं देवता समान मेरे दोस्त के पैर छू सकूं इससे मुझे बड़ी खुशी होगी ।

ठीक है तुम पैर छूकर वापिस कटघरे में उपस्थित हो जाओ ।

अब तो रवि के दिल में ऊथल-पुथल होने लगी । वह सोच रहा था कि कहीं लेखक उसे वहीं सभी के सामने पकड़ न लें और उसका गला दबाकर सब सच-सच न उगलवा ले । इसलिए वह चौकन्ना रहा, मगर लेखक ने जाकर उसके पैर छुए और वापिस कटघरे में आकर इंसाफ मांगने लगा ।

न्यायाधीश अपना फैसला सुनाने लगा । उसने कहा कि -’देखिए वैसे तो केस साफ है मुझे फैसला सूनाने में तनिक सा भी समय नही लगेगा, मगर केस को देखते हुए मैं सोचता हूं कि यहां बात कुछ और ही है सो मैं अभी से इस केस का फैसला सूनाने में 15 मिनट और लेना चाहता हूं । इस केस का फैसला मैं 15 मिनट बाद ही सूनाऊंगा ।

15 मिनट में धरती-आसमान एक हो सकते हैं । लेखक के इस तरह के व्यवहार ने रवि मल्होत्रा की अन्तर्रात्मा को झकझोर कर रख दिया । उसको अपने आप पर ग्लानि हो चुकी थी । उसने सोचा कि मैं भी कितना मूर्ख, नीच, दुष्ट हूं । जो दोस्ती को न समझते हुए एक छोटे-से स्वार्थ की खातिर अपने सच्चे हितैषी दोस्त को फांसी पर चढ़ा देना चाहता हूं । यदि लेखक दोस्त मर गया तो मैं कभी भी इसका पश्चाताप नही कर पाऊंगा । नही मैं उसे बचा कर ही रहूंगा । इस सारे अपराध को मैं स्वीकार कर ही लूंगा । जिन्दगी बार-बार मिल जाती है मगर ऐसा दोस्त नही मिलता । जो अपने दोस्त के जीवन की खातिर अपने प्राण भी न्यौछावर कर देना चाहता है । सभी सवालों के जवाब उसकी अन्तर्रात्मा से निकल रहे थे । उसकी आत्मा भी उसे स्वार्थी बता रही थी ।

15 मिनट के बाद वकील आदि व न्यायाधीश अदालत में आए तब तक रवि मल्होत्रा यह सबकुछ सोच-सोच कर जीने से ऊब चुका था । उसे क्षण-क्षण अब महीनों-सालों जैसा प्रतीत हो रहा था । अब न्यायाधीश अपना फैसला सुनाने के लिए बोल पड़ा-

ग्वाहों व सबूतों के तौर पर और खुद मुजरिम के अपना जुर्म कबूल कर लेने से यह साबित हो गया है कि यह खून खूद लेखक ने ही किया है । इसलिए यह अदालत मुजरिम को सजा-ए-मौत का हुक्म सुनाती है ।

यह सुनते ही रवि बोला -’ठहरिए साहब, आप ये फैसला बहुत गलत सुना रहे हैं । आपका कानून वास्तव में अंधा है । वह दिल की फरियाद न सुनकर सबूतों के आधार पर न्याय सुनाता है । इससे यह भी साबित होता है कि कानून एक बिकाऊ चीज है । इसे कोई भी पैसे देकर खरीद सकता है । पैसे देकर सबूत इकट्ठे किए जा सकते है, पैसे देकर गवाह बना लिए जाते हैं और बलि चढ़ते हैं हमारे ईमानदार व सत्य के रास्ते पर चलने वाले ईमानदार व महान व्यक्ति । जिन्हें मित्र कहने पर आज मुझे बड़ा गर्व महसूस हो रहा है परन्तु मैं इनकी दोस्ती के लायक कहां । आज मुझे इतनी ग्लानि हो रही है फिर किस मुंह से इन्हें मैं अपना मित्र या दोस्त कहूं । ये वास्तव में देवता ही हैं । अब सबकुछ भले ही पैसे से मिलता हो मगर ऐसे दोस्त बहुत ही कम और किसी नसीब वाले व्यक्ति को मिलते हैं । मौत की सजा इन्हें नही बल्कि मुझे मिलनी चाहिए । यह कहते हुए उसने सारी-की-सारी घटना ज्यों की त्यों अदालत के सामने रख दी, और मौत के लिए गिड़गिड़ाने लगा । अदालत के न्यायाधीश और अन्य सभी बैठे हुए व्यक्ति उसकी बात पर अचंभित थे । तभी थानेदार बोल पड़ा-

ठहरो साहब, मैं भी इस मामले में उतना ही कसूरवार हूं जितना कि रवि मल्होत्रा । मैंने रवि मल्होत्रा से रिश्वत लेकर सारे सबूत इस महान लेखक के प्रति इकट्ठे किए । मुझे इसकी सजा मिलनी चाहिए ।

इस प्रकार सभी की बातें सुनकर चिन्ता मग्न हुए न्यायाधीश को भी ग्लानी महसूस होने लगी । वह बोला कि -

वास्तव में कानून अंधा ही नही बल्कि बेकार भी हो चुका है । अब भी इस संसार में केवल सच्चाई ही किसी के गलत फैसले व किसी की जिन्दगी बचा सकती है । मैं इनकी बात से खुश हूं कि इन्होनें अपना जुर्म कबूल कर लिया । मगर झूठे फैसले सूनाने से अच्छा है कि मैं भी अपने पद से इस्तीफा दे दूं ।

इस प्रकार से न्यायाधीश अपने पद से इस्तीफा दे देता है और सभी को एक-एक मौका और सुधरने का देता है । न्यायाधीश ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया ताकि और कोई गलत फैसला उसके हाथों से ना हो और किसी निर्दोष को सजा ना मिले । फिर थानेदार ने प्रतिज्ञा ली कि आज के बाद किसी से भी रिश्वत न लेगा, और असली मुजरिम को सजा दिलाएगा । अब रवि मल्होत्रा ने भी प्रतिज्ञा ली कि वह भी ऐसा कोई कार्य नही करेगा जिससे उसे शर्मिन्दगी महसूस हो और अपने दोस्त की खातिर वह समय आने पर प्राण भी न्यौछावर कर देगा ।

लेखक भी पिछे न रह सका-वह रवि के गले मिला और उसके सारे गुनाह माफ कर उसके गले मिला और दोनों खुशी-खुशी घर लौट आए । दोनों की दोस्ती के चर्चे गांव की गली-गली व मोहल्लों में होने लगे । दोनों पक्के दोस्त बन गए और खुशी-खुशी रहने लगे ।


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