दहेज से घर नहीं भरता
दहेज से घर नहीं भरता
रीमा अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, वह इसी साल एमबीबीएस , एमएस की पढ़ाई पूरी करके डॉक्टर बनी थी।
उसकी मां मीरा जी और पिता मदन जी चाहते थे कि उनकी बेटी अब शादी कर ले।
मदन जी ने रीमा से पूछा भी अगर उसको कोई पसंद हो तो वह बता दे ?
ले किन रीमा ने कहा पापा मैंने आपसे वादा किया था, आप मुझे डॉक्टर बनने दें तो मैं आपकी पसंद से शादी करूंगी। इसलिए मैंने किसी को नहीं पसंद किया है, अब आप ही पसंद करिए।
मदन जी ने अपने रिश्तेदारों से कहा वह रीमा के लिए कहीं अच्छा सा रिश्ता बताएं, और वह खुद भी रीमा के लिए लड़का ढूंढने लगे।
मदन जी मध्यम वर्गीय थे इसीलिए उन्होंने एक रिश्ता भी उसी कैटेगरी में खोजा।
कुछ दिनों बाद रीमा को देखने के लिए लड़के वाले आए, लड़की के साथ उसकी मां , पिताजी बहन और उसके जीजा जी थे।
समीर अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था, उसके घर वाले उसको डॉक्टर बनाए थे, इसीलिए वह चाहते थे हमको अच्छा खासा दहेज मिले।
समीर भी एक डॉक्टर था, वह भी दहेज का लालच था । उसकी सोच रीमा से बिल्कुल अलग थी, जहां रीमा आज के जमाने को अपना रही थी ,वही समीर रूढ़िवादी था ,और दहेज को अपना हक समझता था।
दोनों परिवारों से कुछ औपचारिक बातें हुई ,और समीर रीमा को एक कमरे में बात करने के लिए भेज दिया गया।
समीर और रीमा ने एक दूसरे से बातें करने लगे, रीमा ने कहा देखिए मैं भी डॉक्टर हूं और आप भी, जितना आपके घर वालों ने आपकी पढ़ाई लिखाई का खर्चा किया है ,उतना ही मेरे घर वालों ने, फिर दहेज की तो कोई बात ही नहीं होनी चाहिए।
रही बात शादी के खर्चे की तो आप भी आज के जमाने के हैं, और हम भी तो दोनों परिवार मिलकर उठा लेंगे।
आप भी अपने माता पिता के अकेले हैं, और मैं भी, तो जैसे मैं आपके परिवार को अपनाऊंगी वैसे ही आप मेरे परिवार को।
इतना सुनते ही समीर भड़क गया और बोला, मेरी मां पापा ने मुझे इसीलिए डॉक्टर नहीं बनाया है कि मैं सड़क छाप लड़की से शादी कर लूं।
इतना खर्चा किया है उन्होंने मेरी पढ़ाई पर इतना भी ना मिले तो फिर बेकार है शादी करना।
मैं तुमसे शादी नहीं करूंगा।
रीमा ने कहा शुक्रिया आपका समीर जी, अच्छा हुआ आपकी असलियत अभी ही सामने आ गई। वरना बाद में मेरा क्या होता।
रही बात डॉक्टर कि तो यह मत भूलिए मैं भी एक डॉक्टर हूं। और मेरी पढ़ाई पर भी उतना ही खर्चा लग रहा है। मिस्टर समीर आप क्या तोडेंगे इस शादी को, मैं खुद ही आपसे शादी नहीं करना चाहती।
रीमा ने कहा "दहेज लोगे क्या घर भरोगे"
समीर और रीमा दोनों बाहर आए ,दोनों के चेहरे और हाव भाव को देखकर लग रहा था, दोनों इस शादी के लिए तैयार नहीं है।
समीर की मां ने पूछा क्या हुआ बेटा, पसंद है लड़की?
समीर ने कहा मां मैं ये शादी नहीं कर सकता, यह लोग दहेज भी नहीं देना चाहते हैं, और शादी का खर्चा भी आधा-आधा उठाने को कह रहे हैं।
अनिल (समीर के पिता) जी ने मदन जी से कहा, भाई साहब मैं यह शादी नहीं कर सकता।
मैंने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया डॉक्टर बनाया, किसी अमीर घर में शादी कर लूंगा।
मेरे बेटे के लिए लड़कियों की कमी नहीं है।
मदन जी समझ चुके थे रीमा ने समीर से क्या कहा।
लड़के वाले जा चुके थे, रीमा भी अपने मन की बात कह कर खुश थी, वहीं पर मदन जी अपनी परवरिश पर फूले नहीं समा रहे थे।
आज मैं अपनी बेटी पर गर्व हो रहा था, अपनी बेटी के फैसले पर गर्व हो रहा था।
कुछ ही दिनों बाद रीमा की शादी, उसके साथी डॉक्टर जतिन से धूमधाम से हुई।
जतिन भी इकलौता बेटा था, उसने रीमा की सभी शर्तें मानी, और साथ में रीमा से वादा भी लिया, कि तुम जैसे अपने परिवार का ध्यान रखती हो, वैसे ही मेरे परिवार का ध्यान रखोगी। जितना इज्जत अपने मां पापा को देती हो, उतना ही मेरे परिवार को दोगी।
इस ने भी अपनी सहमति जता दी थी, जतिन के मां पापा फूले नहीं समा रहे थे। चांद जैसी बहू के रूप में बेटी पाकर।
और वहीं पर मदन जी और मीरा जी भी प्रफुल्लित हो रहे थे, हीरे जैसा दामाद के रूप में बेटा पाकर।
(दोस्तों हमारे समाज में दहेज प्रथा एक कानूनन अपराध है, फिर भी लोग दहेज लेने से नहीं चूकते हैं। दहेज पर अपना हक समझते हैं,कुछ जगहों पर तो इसका विरोध हुआ तो बंद हो गया, लेकिन जगहों पर अभी भी है। मेरा मानना है यह प्रथा बंद होनी चाहिए हर जगह पर। इसकी वजह से कितने घर बर्बाद हो गए, कितनी शादियां विफल हो गई, कितनी बेटियां जलाई गई, कितने मां बाप बिक गए और वहीं पर कितने मां बाप सदमा बर्दाश्त न कर सके और दुनिया ही छोड़ कर चले गए)