धैर्यशालिनी बेटी
धैर्यशालिनी बेटी
धैर्यशालिनी बेटी
अपार धृति वाली बेटी है वह
उसकी अंगुली किवाड़ से पिच गई,
उसकी ही परिचिता की गलती से,
अंगुली कट गई, रक्त बहने लगा,
चुपचाप से पीछे से आकर
मम्मी की साड़ी पकड़ी,
धीरे से बोली 'अम्मा अम्मा'
अम्मा ने उसकी आवाज़ सुनी
पीड़ा भरी
पूछा क्या बात है ?
तो पता चला अंगुली कट गई !
तीन वर्षीया बिटिया
न रोई, न चिल्लाई,
न कोई शिकायत की,
ऑंखें में ऑंसू लिये
चुपचाप खड़ी रही।
मम्मी व्याकुल हुई
डाक्टर भैया के पास ले जाकर
पट्टी बँधवायी।
ऐसी हिम्मतवाली बेटी !
कोई परेशानी नहीं हुई।
उसे बड़ा करने में।
एक बार बेटी के जूते फट गये,
छोटे हो गये,
अँगूठा बाहर झॉंकने लगा,
पर पिता ने उसके जूते नहीं खरीदवाये।
फिर एक दिन बाजार गये,
कुछ ख़रीदारी की
पर बिना बेटी के जूते लिये लौट आये।
बेटी भी साथ थी,
पर कोई ज़िद या शिकायत नहीं।
धीरे से बेटी ने इतना ही कहा
पिता जी क्या आज भी
मेरे जूते नहीं खरीदवायेंगे ?'
यह सुन पिता विचलित हुए ,
बाजार गये बेटी के साथ,
फिर उसके जूते ख़रीदे।
बेटी बहुत सब्र वाली
पिता मना करते तो मान जाती,
कभी बच्चों जैसी ज़िद नहीं की।
पढ़ने में तेज कुशाग्र बुद्धि,
कोई परेशानी नहीं दी कभी।
ऐसी समझदार बेटी !
हमारे घर का गौरव बेटी।।