धारणा
धारणा
आजकल हमलोग जिस दौर में जी रहे हैं मुझे एक चीज बड़ी अजीब लगती है लोग बड़ी जल्दी किसी के बारे में कुछ भी धारणा बना लेते है।लोगों के पास इतना समय नहीं की दूसरों को समझने की कोशिश करें.लेकिन अगर आप किसी के बारे में अच्छा नहीं सोच सकते तो बुरा तो मत सोचो....हम सब गलत धारणा की पोटली बनाते-बनाते शब्दों की सारी सीमाएं लांघ जाते हैं,और उस दिन हमारे पास प्रायश्चित के अलावा कुछ भी नहीं रह जाता जब हमारी ग़लत धारणा ग़लत साबित हो जाती है।
सच कहूं?? मै ये सब इसलिए बता रही हूँ कि इस अध्याय की एक गुनहगार मै भी हूँ।अभी कुछ ही दिन हुए थे हमें दिल्ली के अपार्टमेंट में शिफ्ट हुए।हमारे टावर में एक चारूलता थी,हर समय वो लड़ाई के लेकिन ऐसेअवेयर रहतीं जैसे बॉर्डर पर हमारे सैनिक भाई चौकन्ना रहते हैं। उससे कोई भी पंगा नहीं लेना चाहता था क्योंकि वो बात का बतंगड़ बनाने में एक्सपर्ट थीं उसने मुझे अपने फ्रेंड्स क्लोज ग्रुप में एड कर दिया।उस ग्रुप में मुझे मिलाकर सात लेडीज थी।
शनाया ग्रूमिंग क्लास चलाती थी,डिंपल का अपना बुटीक था तान्या तनेजा का ब्यूटी पार्लर था,मै वसुंधरा योगा टीचर और रचना बैंक में असिस्टेंट मैनेजर पोस्ट पर कार्यरत थी, एक थी नताशा उसने शेखी बघारने में मास्टर डिग्री हासिल की थी और चारु....…उसका काम बस बात का बतंगड़ बनाना। मै और रचना ग्रुप में ज्यादा एक्टिव नहीं रहते थे क्योंकि मेरी तीन महीने की बेटी थी और मैं अपना कीमती समय सिर्फ उसपर खर्च करना चाह रही थी और रचना को ड्यूटी से फुर्सत नहीं रहती।
एक दिन फ्लैट नम्बर 702 में किसी की शिफ्टिंग हो रही थी तभी संयोग से मुख्य दरवाजे पर रखा चारु का सुंदर गमला टूटकर बिखर गया तभी चारु रूम से नागिन की तरह फुफकारती हुई निकली
"अरे अरे ओ हैलो.....आपने मेरे गमले कैसे तोड़ दिए....देखकर सामान नहीं रख सकते क्या?"
"सॉरी वहीनी...व्हीलचेयर से लग गई।"
"किसी चीज से लगी हो.. आई डोंट केयर...कुछ पता भी है सारे मार्केट से ढूंढकर लाई थी.....पांच-पांच सौ के गमले थे"।
"ला दूंगा वहिनी"
"हा तो ला ही देना....और सुनो.... अभी मेंटेनेंस वाले को कॉल करो और यहां पर सफाई करवाओ
मिट्टी फैल गई...."
रूम के भीतर जाकर धड़ाम से दरवाजा बंद करने की आवाज आई।
अगली ही सुबह चारु के घर की डोरवेल बजी। चारु के पति मिस्टर अजय ने दरवाजा खोला
"नमस्ते दादा..मै श्रद्धा भोसले कल ही शिफ्ट किया है....कल एक टैडी बाहर रह गया था..…....
"हां हां तो हमने चुरा लिए....उधर से शेरनी ने मोर्चा सम्भाल लिया
"अरे ना ना वहिनी ग़लती से आ गई हो."
"हम खड़े खड़े वैसे पचास टैडी खरीद सकते हैं समझी....कुछ सोच कर ब्लेम लगाया कर"
वो मुड़ने लगी तब तक चारु का बेटा वो टैडी लेकर निकला...
.आंटी आंटी कल बंटी ने देखा तो घर में ले आया ..वो हमारी मेड का लड़का।
"इट्स ओके बेटा."उसने टैडी लिया और ज्योंहि जाने लगी तभी मिसेज चारु ने एक और टोंट कसा
"उस सड़े हुए टैडी पर मै थूकुं भी न...
"पर मेरे लिए ये टैडी बहुत अनमोल है"
"हां वो तो तुम्हे देखकर तुम्हारा स्टेटस पता चलता है।"
मै भी उसी फ्लोर पर थी पर मेरा फ्लैट कॉर्नर में था वैसे भी सोसायटी में देखा है एक ही फ्लोर के लोग एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देख पाते सब अपनेआप में व्यस्त,और लड़ाई झगड़े में तो किसी को पड़ना ही नहीं .....
हम सात फ्रेंड्स में किसी के बच्चे का बर्थडे या एनिवर्सरी सेलिब्रेशन का निमंत्रण उसी ग्रुप में पड जाता....इन सबसे वो फ्लैट नंबर702वाली अछूती रह जाती क्योंकि वह उस ग्रुप में नहीं थी एक बार उससे पूछा गया उसने इंकार कर दिया,यह बात चारु को नागवार गुजरी।वह हरवक्त उसे बेइज्जत करने की ताक में लगी रहती।उस दिन मेरी बेटी का अन्नप्राशन संस्कार था मैने सबको बुलाया और फ्लैट नंबर702वाली को भी।
सुबह नौ बजे का मुहूर्त था मेरी सभी फ्रेंड्स सज धजकर आ गई सिवाय फ्लैट नंबर702के,वो भी आई पर बहुत देर से वो बार बार हाथ जोड़े जा रही थी
"सॉरी वहिनी देर हो गई।"
"अरे कोई नहीं।"
"किती गोड आहे"(कितनी प्यारी है) कहते हुए उसने आद्या को गोद में लेकर दुलारने लगी
चारु मौके की तलाश में थी
"सर्वनाश....ओ वसू छोटी बच्ची को साफ सफाई में रखा कर....हम तो इससे साफ कपड़ों से अपना फर्श साफ करते है।उड़ी बाबा.....दुनिया में कितने गंदे लोग है" उसने नाक सिकोड़ते हुए कहा था।
किसी को समझने में देर नहीं लगी कि यह बात किसे कही गई थी।
वो आद्या को मुझे पकड़ाते हुए बाहर निकल गई।
नवीन ने इतना जरूर कहा था मेरे घर में कौन कैसे आता है इससे किसी को कोई मतलब नहीं होनी चाहिए, नवीन उसे प्रसाद देने गए और खाना खाने के लिए बहुत मिन्नते कर के आए पर वो खाना खाने नहीं आई।
नवीन बहुत नाराज़ हुए
"यार तुमलोग अपने घर किसी को बेइज्जत करने के लिए बुलाते हो?"
"मुझपे क्यों नाराज़ होते हो मैने कुछ नहीं कहा"
"तो रोका भी नहीं अपनी सो कॉल्ड फ्रेंड को ऐसी बेहूदा हरकत के लिए"
"वैसे एक सच कहूं उसने ऐसे कुछ गलत भी नहीं कहा,उसके कपड़े में तीन जगह हल्दी की दाग लगी थी थोड़े ढंग के कपड़े पहन लेती,बाल भी यूं ही जूड़ा लपेट कर आ गई थी"। मुझे यूं नवीन का उसके साइड से बोलना अच्छा नहीं लगा सो मैने भी उसकी खूब मीन मेख निकालने लगी
"तुम सबमे वो सबसेअच्छी लग रही थी" नवीन मुझे घुड़ते हुए ऑफिस चले गए।
और थोड़ी देर में हमारी व्हाट्सएप मीटिंग शुरू हो गई।
चारु - "फ्रेंड्स किसी ने नोटिस किया वो 702वाली कैसी गॅवार सी लग रही थी। शनाया तुम्हारी क्लास की उसे बहुत जरूरत है ग्रूम कर दो उसे भी।"
शनाया - "और डिंपल एक दो डिजाइनर कपड़े सिल देगी।"
तान्या - "ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी देखना। क्या कहती हो वसु?"
"हाॅ मुझे भी ऐसा ही लगता है।" मैने भी सबके टोंट का समर्थन किया।
खैर समय बीतता गया और वो फ्लैट नंबर702वाली सबसे अलग थलग हो गई। दस महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला एक दिन मैने सुना गार्ड भैया किसी को बता रहे थे कि 702खाली होने वाला है मैने यह बात ग्रुप में डाल दी।
अगले ही दिन चारु ने ग्रुप कॉल किया
कैसे हो सब?
"फ्रेंड्स आज किसी खास वजह से हमने ये ग्रुप कॉल किया?"
"ऐसा क्या?"
"सुना है 702वाले कही और शिफ्ट हो रहे है?"
"अच्छा कैसे पता"
"वसू ने सुना वो गार्ड भैया कल किसी और को बता रहे थे कि702 कल परसों खाली हो जाएगा।"
"मै तो पहले ही बोल रही थी वो यह ज्यादा दिन टिक नहीं पाएगी।"
"कुछ लोग ऐसे ही होते हैं आदत रहती है चॉल में रहने की बट आ जाते हैं सोसायटी में रहने।"
"मै सोच रही थी क्यों न कल हम सब उसके यहाॅ चाय पर चले" चारु ने ये नया तीर छोड़ा।"
"पर बिना बुलाए?"
"अरे हाॅ जी वो तो खूब बुलाने लगी....हमें जाकर उसे शर्मिंदा करना है...बस"
"साल होने को आ गया उसने अपने घर किसी को बुलाया?" बस दूसरे के घर ठूसने चली आती है"
"वो तो एक ही बार आई"
"हाॅ तो किसी ने उसे फिर बुलाया ही नहीं।"
"तो एक बार यही सोच लेती..ये सोसायटी का चलन है एक बार मै भी सबको बुला लूँ "
चलो ग्रुप कॉल एंड करती हूँ कल शाम के 4बजे फाइनल।
"ओके डन।"
अगले दिन मुझे भी बड़ी एक्साइटमेंट थी कि फ्लैट नंबर 702, में जाना है और फाइनली शाम चार बजे हमलोग फ्लैट नंबर702 में पहुंचे कॉल बेल बजाते ही श्रद्धा निकली हम सबको देखकर बहुत खुश तो नहीं हुई पर अपने चेहरे पर एक बनावटी खुशी लाने की कोशिश जरूर की उसने और हाथ जोड़ कर हमें अंदर बुलाया।
हम सब अंदर आ चुके थे। सामानों की पैकिंग हो चुकी थी ।
"सुना है आप कही और शिफ्ट हो रहे हैं।" मैने ही बात छेड़ी
"हो वहिनी....हम पुणे लौट रहे हैं।"
"लगता है ये जगह पसंद नहीं आई।"
"बस"
वो लगातार अपने दोनों हाथों को दबाती रही....लगा उसने कई दिनों से बाल नहीं संवारे होंगे...होंठ सूख कर पपड़ी सी पड़ी थी...
आज हम सब चाय पीने आए आपके यहाँ।"
"अच्छा किया वहिनी.....हम भी आधे घंटे में निकलेवाले ही है" वह बुदबुदाई
"मै आती हूँ चाय रखके।"
वह किचेन में चली गई और यहां मेरी चुगलखोर सहेलियों की गॉसिप शुरू हो गई।
"हे देख देख शेल्फ पे कितनी धूल जमी है...ओह और पंखे पर भी.....लगता है डस्टिंग वस्टिंग नहीं करती मै तो इतनी गंदगी में एक पल न रह पाऊं।" नताशा शुरू हो गई।
फाइनली वह सबके लिए चाय लेकर आई।
"सॉरी सारी पैकिंग हो गई है....बस चाय ही ला पाई"उसने नज़रे झुका लीं।
सबने हल्की फुल्की बातें की पर वह ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही थी....ऐसा लग रहा था मानो ध्यान कही और हो। ऐसा लग रहा था कुछ तो है जो हमें दिख नहीं रहा था..........
मै उठ खड़ी हुई
"चाय बहुत अच्छी थी.अब हमें चलना चाहिए।"
सारी फ्रेंड्स बाहर आ गई मै दुबारा मुड़ी
"फ्रेंड्स मै उसे एक बार बोल कर आती हूँ उसने सारी पैकिंग कर ली है फिर भी कोई जरूरत हो तो हमें बताए कहते ही मै उसके रूम तक पहुंच गई मेरे पीछे सारी फ्रेंडस आ गई पर अब हमारे सामने जो दृश्य था वो देखते ही हमरा कलेजा मुॅह को आ गया पांव जैसे जम गए....
एक बेड पर किशोरावस्था का लड़का लेटा हुआ था,बगल में एक व्हीलचेयर रखी थी साइड में एक बड़ी सी रैक जिसपर सिर्फ दवाइयां..एक अटेंडर उस बच्चे के सिरहाने के पास,एक टैडी..वही टैडी जिसके लिए चारूलता ने उसे इतना सुनाया,बच्चे के पास था....
मिस्टर योगेंद्र बार बार उसकी पल्स चेक कर रहे थे और श्रद्धा उसे एकटक देख रही थी ...वह रूम नहीं आईसीयू का पूरा-पूरा सेटअप लग रहा था।
"माझा मुलगा"(मेरा बेटा) उसने अपने बेटे के सर पर हाथ फेरा और रूम से बाहर निकल आई...और धीरे से बुदबुदाई ...."लास्ट स्टेज ऑफ मस्कुलर डिस्ट्रोफी।"
हम सब निशब्द थे.. मूवी सलाम वेंकी मेरी नज़रों के आगे घूम गई....ओह तो ये इतनी बड़ी प्रॉबलम में थी और हम सब उसकी उपेक्षा में लगे थे बिना सच जाने।
मेरा शरीर बर्फ सा ढंडा पड़ गया...मै अपने रूम में आकर धम्म से बैठ गई।
"तब...तुम सब की चाय पार्टी कैसी रही....या आज भी उस बेचारी को बेइज्जत करने में लगे थे?"
मै तो ग्लानि के मारे मरी जा रही थी..मै नवीन का हाथ पकड़ के बैठ गई.....जैसे कुछ छूट रहा हो.....
"अरे क्या हुआ वसू?"
"वहां कुछ झड़प हो गई क्या?" बोलो तो क्या हुआ....किसी ने कुछ तंज कसे?
"वो फ्लैट नंबर 702 वाली का बेटा अपने जीवन के आखिरी पल जी रहा है,.....वो बच्चा मस्कुलर डिस्ट्रोफी से पीड़ित है।"
"मस्कुलर डिस्ट्रोफी?"
"अभी बस इतना समझो उसके बेटे के पास गिने चुने पल हैं.....मेरी बेटी तो दो बार छींक लेती है तो मैं उसे लिए बैठी रहती हूँ और वो पेरेंट्स कैसे जी रहे होंगे.... काश!मैने एक बार कभी पूछ लिया होता......काश! इतनी मुश्किल घड़ी में मै एक बार उसे एहसास दिला पाती कि इस नए शहर में वो अकेली नहीं है.....मै हूं न उसके साथ....काश..
नवीन बिफर गए....
"मैने हमेशा कहा था वसू किसी दूसरे के बारे में टिप्पणी मत किया करो और मतलब ही क्या है किसी ने कैसे कपड़े पहने हैं....किसी ने कैसा मेकअप किया है किसी का स्टेटस क्या है....अब बताओ उसके सामने तुम सारी चुगलखोर सहेलियां कहा खड़ी हो पा रही हो?"
"उसने हर सिचुएशन को कितनी विनम्रता से हैंडल किया है..... वसू एक बार सोचना तुम सारी सहेलियों का कद उसके सामने कितना छोटा है"
मै अब कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी मै उठकर तुरंत नीचे गई और गार्ड से पूछा
"भईया आपको पता है ये फ्लैट नंबर 702 वाले क्यों खाली कर रहे है?"
"उनका लड़का बहुत बीमार है न तो आखिर में अपने होमटाउन लेकर जा रहे है।"
"ये तुम्हे भी पता है?" मै शॉक्ड थी।
"क्या बात करते है मैडम....बहुत अच्छे लोग हैं।"
"वो करते क्या है?"
"डॉक्टर है।आपको नहीं पता?क्या मैडम वो तो सेम फ्लोर पे रहते थे,चारु मैडम के बेटे को उन्हीं साहब ने तो फर्स्ट एड दी थी जब वो साइकिल से गिर गया था।"
मै हताश थी...निराश थी उसकी क़ीमत मुझे आज समझ में आई जब वो हमेशा के लिए जा रहे थे।
उसके सामान गाड़ी में रखे जा रहे थे
और मिस्टर योगेंद्र अपने बेटे को व्हील चेयर पे ला रहे थे श्रद्धा पीछे पीछे आ रही थी,वो मेरे बिल्कुल करीब से जाती हुई निकल गई
मै जोर से चीखी
"रुको"
वह पलट कर देखने लगी
मै दौड़ कर उसके गले लग गई
"आई आम सॉरी मै तुम्हे गलत समझ रही थी,मुझे माफ़ कर दो श्रद्धा।"
मै फफक कर रो पड़ी।
"अरे ना वहिनी..........
कुछ पल चुप रहने के बाद उसने कहा
"लाइफ इतनी अनप्रेडिक्टेबल है... अगले पल का पता नहीं और हम सब छोटी-छोटी बातों के लिए नफरत पालते है...किसी का गमला टूट गया इसके लिए...किसी के बाइक में स्क्रैच आ गई इसके लिए.....
हर चीज को हम सबने अपना स्टेटस सिम्बल बना लिया है।"
"वहिनी सब कुछ यहीं रह जाना है....अगर बांटना ही है तो बस प्यार बांटो एक दूसरे में...मेरे बेटे ने मुझे प्यार बांटना ही सिखाया है...
चलती हूँ ,अपना खयाल रखना"
उसका हाथ छूटने लगा.......उसका बच्चा व्हीलचेयर से गाड़ी में बिठाया जा चुका था। वह भी गाड़ी के अंदर बैठ गई...…मै तो इस लायक भी नहीं थी कि कहती कभी-कभी मुझे याद कर लेना।वह जा चुकी थी...मै उसे तब तक देखती रही जब तक गाड़ी आँखों से ओझल नहीं हो गई।
पता है....हमें कभी उसका एकाकीपन क्यों नहीं दिखा...हमें उसके कोई प्रॉब्लम नहीं दिखाई दिए क्योंकि हम सबने पहले दिन से ही उसके बारे में गलत धारणा पाल रखी थी।
आरती
