मानवता की भाषा
मानवता की भाषा
मानवता की भाषा
बात उन दिनों की है जब मेरा मन्नू आठ वर्ष का था... उसे एक अजीब सी आदत लग गई थी, वह पंछियों और तितलियों को खूब परेशान करता।
करता यूं कि कमरे में गौरैया को खूब भगाता कभी कभी उसे अपनी मुट्ठी में बंद करने की कोशिश करता....गौरैया छटपटाती...और उसकी ची चीं सुनकर मन्नू खूब हॅंसा करता। ओह उसकी छटपटाहट में उसे आनंद आता....ये कैसा शौक? उसके इस अजीबोगरीब आदत से मै परेशान हो गई। एक दिन तो हद हो गई मन्नू की किताब की शेल्फ साफ करते हुए देखा उसने कई टिंडृडों के पैर में बड़ा सा धागा बांध रखा था और उस धागे को शेल्फ से।
सारे टिड्डे वही फड़फड़ाते रहे मेरे क्रोध की सीमा न रही उस दिन मैने उसे खूब डांट लगाई पर वह दांत निपोड़कर ही..ही...ही.....ही...करते बोला.....
"मम्मा ये न राम जी का घोड़ा है।"
"तो..तू इसपर सवार होकर दादी घर जाएगा या अपनी नानी के घर?कहां जाएगा"?
"क्या मम्मा आप तो और.....इतना पिद्दी सा ये मुझे कहां ले जाएगा।"
"तो तूने इसे क्यों बांधा,मै तेरे पांव बांधू ऐसे"?
"पर ये तो कीड़े मकोड़े है मम्मा ...मै तो आपका राजा बेटा" वह मेरे गले से लिपटने लगा।
"हट भाग यहां से .....तुझे पता भी है इन्हें कितनी तकलीफ होती है"?
देख मन्नू मै बता देती हूं ये लास्ट वार्निंग है....."
"ओके मम्मा....उसका मस्तीखोर अंदाज"।
मै तो अपनी बात बोल गई पर उसकी स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया रत्ती भर भी बदलाव नहीं, ऐसा लगा मानो मेरी बातों का उसपर कोई असर ही नहीं पड़ा। दो चार दिनो के बाद फिर उसने गौरैया को कमरे में बंद कर खूब भगाया.....कभी उसे जोर से पकड़ लेता कभी कभी उसके पंखों को खींचकर खेलता...
।अभी दो दिनों पहले ही कितना समझाया था इसे.... कैसे समझाऊं कि समझ में आए....हां मानती हूं वह अभी बच्चा पर वह किसी की तकलीफ को अपनी मस्ती समझता है? ये अजीब था....शॉकिंग
एक दिन मै यूं ही बालकनी में बैठी थी आसपास कबूतर मंडरा रहे थे।
तब तक मन्नू भागता हुआ मेरे पास आया और मेरे गोद में झूल गया
मम्मा....मेरी प्यारी मम्मा।
"हट भाग यहां से...मै तेरी मम्मा नहीं....और तू भी मेरा बेटा नहीं..तू मेरा बेटा हो ही नहीं सकता..जा यहां से"
"होमवर्क में हेल्प करो न मेरी,आज मिस ने बहुत सारा होमवर्क दिया"
मम्मा
मम्मा...क्यों नाराज़ हो?
"आज गौरैया तेरी शिकायत लगा रही थी,कह रही थी मन्नू मुझे बहुत परेशान करता है।"
"अच्छा...वो बोलती थोड़े न है
"क्यों नहीं बोलती?बोलती है।
"हा पर आपको उनकी भाषा थोड़े न आती है"
"आती है"।
"तुझे यकीन नहीं है न"?
उसने न में सिर हिलाया।
"अच्छा तुझे अभी दिखाती हूं अभी कबूतर ने आकर मुझसे पानी मांगा,उसे प्यास लगी है जा एक कटोरे में पानी लेकर आ"
मनु दौड़कर कटोरे में पानी लाया थोड़ी ही देर में कबूतर पानी में चोंच मारने लगा।
मन्नू आश्चर्य से मुझे देख रहा था "सच्ची मम्मा"
आपको सच इनकी भाषा आती है?
क्या ये हिंदी में बात करते है?
"नहीं"
तो क्या ये सब इंग्लिश में बात करते है।
"नहीं"
ओह फिर ये किस भाषा में बात करते है, मुझे भी सिखाओ न प्लीज प्लीज प्लीज"
"इनकी मानवता की भाषा है,जिस दिन तुझे दूसरों की तकलीफ से तकलीफ होने लगे, और जिस दिन दूसरों को तकलीफ में देखकर तेरी आँखें रोने लगे और तू उनकी हेल्प करने को दौड़ पड़े समझना तुझे इस भाषा का ज्ञान होने लगा है समझा अकल के अंधे"
मै इतना कहकर बालकनी से कमरे में आ गई,और मन्नू अपने कमर पर हाथ रखकर देखता रहा उन पंछियों को....उनकी चहचहाहट में शब्द ढूंढता रहा शायद.........
हां इस बार तीर बिलकुल निशाने पर लगा था।मन्नू के स्वभाव को मै धीरे धीरे बदलते हुए देख रख रही थी भोला मन शायद पंछियों की भाषा जानने की उत्सुकता ने उसके अंदर के शरारती मन्नू को बदलना शुरू किया।
इस बात को तीन महीने बीत गए थे अब वो रोज एक कटोरे में पंछियों के लिए पानी रखने लगा....और जोर से बोलता.. "और कुछ चाहिए हो तो बताना...."
एक दिन बालकनी में कबूतर ने दो अंडे दिए।मन्नू बहुत खुश था और हमेशा चौकन्ना रहता की उन अंडों को बिल्ली न दबोच ले.....वह बड़े गौर से कबूतर को अंडे सेते हुए देखता।
समय बितता रहा अंडों में से चूज़े निकले अब स्कूल से आने के बाद मन्नू का सारा समय उसी कबूतर के इर्द गिर्द बीतता।एक दिन मन्नू ने अपने लाल पेंट से कबूतर के पंख रंग डाले मैने आश्चर्य से पूछा ऐसा क्यों तो वह मेरी गले में बाॅंह डालकर बोला मम्मा ये न इसकी पहचान है कहीं से कभी भी आएगा मै इसे पहचान लूॅंगा....ये मेरा बाबू है।उसने उसे फ्लाइंग किस दिया।फिर मन्नू मुझसे लाड जताते हुए बोला "मम्मा ये कबूतर बिल्कुल आपकी तरह है"
"क्यों"?
"ये भी बारिश में अपने बच्चों को अपने पंख में छिपा लेती है खुद भींग जाती है....आप भी तो ऐसे ही कई बार स्कूल से आते वक्त अपना दुपट्टा मेरे सर पर रख देती हैं खुद भींग जाती है। आप मुझे हर परेशानी से बचा लेती है आप सुपर मॉम हो आप मेरे लिए न डोरेमॉन हो, लव यू मम्मा"।
वह मुझसे लिपट गया। वह अब छोटी छोटी बातें महसूस करने लगा था।
पर उस दिन सब कुछ बदल गया,जब पूरा आसमान रंग बिरंगे पतंगों से सराबोर था,मै मन्नू को लेकर थोड़ी देर के के लिए पतंग बाजी देखने छत पर चली गई, लौटकर ज्योंहि दरवाज़ा खोला बालकनी से अजीब सी आवाज आई कबूतर के फड़फड़ाने की मैं और मन्नू दोनों बालकनी में भागे कबूतर माँझे में बुरी तरह फंसा था उसके पंख तितर बितर हो गए थे..और पेंट वाला पंख धरती पर शरीर से अलग हो निस्तेज पड़ा हुआ था।गले से खून निकलने लगा था.... वह बुरी तरह तड़प रहा था।मन्नू जोर से चीखा....."मम्मा ..मम्मा बचा लो इसे... डॉक्टर अंकल को कॉल करो न....मम्मी"
उसकी ऑंखों से मोटे मोटे ऑंसू झड़ने लगे वह उस कबूतर को अपनी गोद में लेकर बैठ गया कुछ ही पल में कबूतर शांत हो गया....बिल्कुल शांत...मानो उसे मन्नू का ही इंतजार रहा हो। मन्नू को मैने किसी तरह सम्भाला....उसने रोते रोते हिचकियों में बोला "मम्मा इस कबूतर ने मुझसे बात की...उसने कहा मेरे बच्चों का खयाल रखना"।मैने उसे गले लगा लिया....
"हां बेटा ज़रूर रखेंगे इनका खयाल....चल इन बच्चों के लिए दाना लेकर आएं."
.मैं मन्नू की उंगली पकड़ बाहर निकल गई। मेरी भी आँखें नम थीं पर सुकून इस बात का था कि आज उसे मानवता की भाषा समझ आ गई थी।
आरती
