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Arti jha

Drama

4.5  

Arti jha

Drama

हाउस वाइफ

हाउस वाइफ

10 mins
14

आज देव की शादी थी उसी देव की जो जाने कितनी लड़कियों के तस्वीर देखकर ना ना करता रहा सबको रिजेक्ट....क्योंकि कोई उसकी पसंद की नहीं थी वो तो भला हो उस पंडित जी का जिनकी लाई हुई तस्वीर देखकर देव ना कर ही नहीं सका यह थी शगुन..थी तो गरीब घर से पर सुंदर और सुशील। आख़िर अम्मा की मिन्नते कबूल हुईं और आज देव अपनी शगुन को लेकर घर आया। घर पर वैसे थे ही कौन देव की अम्मा.....अम्मा मतलब ...वह अपनी दादी को अम्मा बुलाता था क्योंकि उसके जन्म के समय ही मां परलोक सिधार गई सो दादी अम्मा बन गई....हां और पांच छः महिलाएं वर वधू के आगमन पर मंगलगीत गा रही थी। अम्मा आरती का थाल लेकर अपनी बहुरानी का स्वागत करने लगीं। घर तो है तीन रूम का लेकिन घर कम और कबाड़खाना ज्यादा लग रहा ..... हर चीज यहां वहां भटकती आत्मा की तरह भटक रही थी.....और देव का सुहागसेज ....उस छह बाय छह की पलंग पर एक कोने में कपड़े लादे पड़े थे,एक कोने में देव के बहुत सारे फाइल्स और बीच में थाली कटोरा चम्मच.... सो अम्मा बहुरानी को अपने कमरे में ले गईं।देव बेचारा पराजित सा देखता रह गया...अब कहे कैसे...लाज शर्म भी तो कोई चीज होती है सो पूरी रात करवटें बदलते निकल गईं। सूरज निकलने से पहले ही शगुन उठती है और नहा धोकर ही रसोई में पाँव रखती है अम्मा तो धन्य थी ऐसी संस्कारी बहू पाकर. धन्य तो देव भी था कितने कसीदे गढ़े थे उसने उसकी सुंदरता पर....सरलता पर.....हंसने की अदा पर... कुछ बुरा था ही नहीं,सबकुछ परफेक्ट,लेकिन ये प्रथम मिलन का प्रेम जीवन के अंतिम सांस तक निभ जाए ....प्रेम तो वही हुआ वरना आकर्षण तो हर प्राणी में होता ही है और आकर्षण में लिप्त प्रेम की अवधि बड़ी छोटी होती है। देव ने अपनी कंपनी से पंद्रह दिनों की छुट्टी ली थी...और सच इन दिनों अपनी शगुन को एक पल न आँखो से ओझल हो ने देता। अम्मा भी बहुत खुश थीं उन्होंने बहु नहीं बेटी की तरह शगुन को प्यार दिया कभी लाडो कभी बहुरिया कभी मेरी बच्ची इन्हीं संबोधनों में शगुन पूरी तरह समा गई थी। कई दिनों तक आसपड़ोस से सब नई बहू को देखने आते रहे पर एक दिन देव को थोड़ा अजीब लगा जब तान्या ने पूछ दिया भाभी किस फील्ड में है आई मीन जॉब करती है न? "नहीं हाउसवाइफ हैं" "ओह!क्या देव भैया आजकल तो सब जॉब वाली लाते है.."....उसने अगले ही पल जीभ काटी शायद उसे एहसास हो गया कि नहीं बोलना था। अम्मा ने बात संभाली मेरी बहुरिया लाखों में एक है..कोई जॉब वाली हमें न चाहिए.. समय बीतता गया। अम्मा को अस्थमा की समस्या थी सो उन्हें बड़ी देखभाल की जरूरत रहती.. कभी कभी तो ऐसा अटैक पड़ता की पास कोई न रहे जीवन लीला खत्म होते समय न लगे पर शगुन हर पल साए की तरह रहती.....समय को पंख लगे और पूरा एक वर्ष बीत गया। शादी की पहली वर्षगांठ पर देव अपने तीन विशेष मित्रों को घर आने का निमंत्रण दिया शाम को उसके तीनों मित्र अपनी अपनी पत्नी को लेकर आए।शगुन ने उन सबके लिए तरह तरह के पकवान बनाए...... दरवाजा खोलते ही देव भौचक्का सा रह गया तीनों दोस्त की पत्नियां जींस टॉप में थी। अंदर आने के बाद सबने अपनी पत्नी का परिचय कराया अनीश की पत्नी बैंक मैनेजर थी निखिल की सॉफ्टवेयर फील्ड में और पंकज की उसकी बिज़नस पार्टनर। देव ने मुरझाए मन से शगुन के बारे में कहा था ये हाउसवाइफ हैं। "ओहो ग्रेट" अनीश ने चहकते हुए कहा। देव बार बार अपनी पत्नी को देखता कभी उन सबकी..... शगुन सबसे अलग लग रही थी असल में वो थी भी सबसे अलग... गहनों से उसे बहुत लगाव नहीं है पर सजना संवरना अच्छा लगता है,पांव में मोटी सी पायजेब जो दो कदम चलते ही छम छम छम छम करे कलाई पर कम से कम इतनी चूड़ियां तो हो की बाल कान के पीछे करते ही खन खन आवाज हो दोनों भवों के बीच बड़ी बिंदी, और सिंदूर? सिंदूर इतना तो होना चाहिए कि दूर से ही किसी की विवाहिता होने का परिचय दे दे। शगुन को सबसे घुलमिल पाने मे दिक्कत हो रही थी क्योंकि सभी अंग्रेजी में जाने क्या घिटर- पिटर कर रहे थे। शगुन आवभगत में ही लगी रही.चाय पानी नाश्ता और खाना। देव ने उसे घर के कामों में ही उलझाए रखा। सबके जाने के बाद देव बहुत देर तक गुमसुम बैठा रहा..... पहली बार देव के चेहरे पर असंतोष के भाव दिखे और साफ साफ दिखे शगुन ने बड़ी मासूमियत से पूछा था "आपके दोस्त की पत्नी ऐसे फटे पुराने कपड़े पहन कर क्यों आई थी और ऊपर वाला कपड़ा छि:.... "वो डिज़ाइन है फटा हुआ नहीं...कभी बाहर निकली होती तो दुनिया के बारे में कुछ पता होता...तुम तो कुएं की मेढक हो...तुम्हार लिए रोटी भात सब्जी रसोई...और अम्मा यही दुनिया है।" आज पहली बार देव ने इतना कड़वा बोला मानो अंदर से उबल रहा हो..... "अच्छा जी..और तुम?" पहले तुम फिर सारी दुनिया। शगुन को अब तक भनक नहीं लगी थी कि देव कि बीमारी कुछ ही पलों में कितनी गंभीर हो चुकी है। वह हँसी ठिठोली में हर बात निकालती रही। आज शगुन बड़े अच्छे मूड में थी "अच्छा सुनो न.....देख रही हूं इधर तुम्हारा ध्यान मुझपर है ही नहीं....... सुनो न अम्मा कह रही थीं कि हम उन्की गोदी में पोता पोती कब रखेंगे,....बताओ मै क्या कहूं अम्मा से?" "बस तुम आ गई अपनी औकात पर शादी करो बच्चे पैदा करो, बस...जीवन में कुछ और तो करना नहीं...मुझे नहीं बच्चा वच्चा चाहिए मै चाइल्ड फ्री रहना चाहता हूँ। तुमने सुना नहीं अनीश और उसकी वाइफ ने कितनी लंबी चौड़ी प्लानिंग की हुई है अपने फ्यूचर की.. हटो यार नींद आ रही है...जाओ जो जिंदगी सरस बीत रही थी अब उचाट लगने लगी...... शगुन को अब सब समझ आने लगा था,वह दिन भर देव की बातें सोच सोचकर परेशान होती रहती एक दिन उसने मन बना लिया कि वह भी टीचर की जॉब करेगी। एक दिन उसने हिम्मत जुटाई ".मै सोच रही थी टीचर की वेकेंसी निकली है मै भी फॉर्म भर दूं?" "जरूरत नहीं" "क्यों?" "अम्मा को कौन देखेगा...उन्हें अस्थमा है भूल गई क्या?" "अम्मा ने हां कर दी है....हो जाता मैनेज....दिन में लाजो भी रहती है और वैसे भी तीन बजे तक की बात है....चार पैसे भी आ जाते।" "अरे हाँ आ गए पैसे....चार लोगों के सामने ठीक से तो बोल नहीं पाती हो और जॉब करोगी.....मेरे दोस्त की बीवी कैसे फर्राटेदार इंग्लिश बोल रही थी....तुम हाउस वाइफ ही ठीक हो..." देव के बर्ताव में भयानक परिवर्तन आ गया था.......क्योंकि वो हर वक्त अपनी दोस्तो की पत्नी से शगुन की तुलना करता रहता था।आखिरकार एक दिन देव ने बम फोड़ा "शगुन न तुम बदल सकती हो न मै बदल सकता हूं....तुम ऐसे ही पांच हाथ की साड़ी में लिपटी रहेगी...तुम आज के समय के साथ नहीं चल सकती हो.....छोड़ो मै ज्यादा घुमाकर बातें नहीं करता सीधा कहता हूं मुझे तुमसे तलाक चाहिए। यह अंदाजा शगुन को कुछ दिनों पहले हो गया था। और सुनो अगर तुम्हारी भी सहमति होगी तो आराम से सब हो जाएगा वरना मुझे थोड़ा महंगा वकील हायर करना पड़ेगा मजबूत केस बनाना होगा बेहतर होगा तुम भी सोच लो खाने का पहला निवाला फांस की तरह अटका रहा किसी तरह पानी पीकर निवाला भीतर धकेल भरी थाली बाहर चिड़ियों के लिए पलट कर आई। चुपचाप बिछावन पर जाकर लेट गई। तलाक क्यों? जिस हाल में रखा रही...जो कहा जैसे कहा सब उनकी मनमर्जी....फिर ये तलाक क्यों? डेढ़ वर्ष में उनसे कोई शिकायत नहीं की...कुछ मांगा नहीं....तलाक क्यों? आखिर रहा नहीं गया तो पूछ ही बैठी " आपको मुझसे तलाक क्यों चाहिए? "गुड क्वेश्चन...तलाक कोई किसी से क्यों लेता है क्योंकि उसके विचार नहीं मिलते...हमारे तुम्हारे विचार बिल्कुल नहीं मिलते....तुम अपने रंग ढंग बदल नही सकती हो....तो मैं भी तुम्हारे साथ नहीं रह सकता ,बेहतर है दोनों अलग रहे।"
"अम्मा को कौन देखेगा, ये नहीं सोचा?"
"वो मेरी अम्मा है,तुम्हे सोचने की जरूरत नहीं"
"ठीक...."
अम्मा ने कितना समझाया देव को, डराया धमकाया खाना पीना तक छोड़ दिया पर उसकी एक ही रट थी शगुन आज के जमाने के लिए बनी नहीं है मेरी नहीं बन पाएगी उससे।
लाख ताम झाम के बाद कोर्ट से तीन महीने की मोहलत दी गई। समय अपनी रफ्तार से सरकता गया,पर देव का मन तनिक भी नहीं बदला। आज तीन महीने की मोहलत खत्म हो गई। शाम में संयोगवश उस रास्ते से गुजरते हुए अनीश आ धमका।
"और सुना क्या सब चल रहा है?"
"औल गुड यार।"
 "अम्मा कैसी हो? मजे में कट रही है न? उसने अम्मा के पैर छुए।
"भैया आए हो तो खाकर जाना"।रसोई से झांकती हुई शगुन ने कहा।
"जरूर भाभी,ये मौका मिस नहीं करूंगा" आज फिर वह चटकारे ले लेकर खाना खाया।
"यार तू नसीबों वाला है जो इतना अच्छा पका पकाया खाना मिलता है।"
"क्यों भाभी अच्छा नहीं पकाती क्या ?"
"हा हा हा हा जोक ऑफ द डे...वो बस मुझे पकाती है ..खाना नहीं। मैडम सुबह सुबह ड्यूटी निकल जाती हैं उनके पीछे सारा काम मेरे सिर...सुबह का नाश्ता ..मैडम का लंच पैक करना उनके वाटर बॉटल में पानी भरना सब और फिर उन्हें गाड़ी से ऑफिस ड्रॉप करना।
"अच्छा?"
"हां तो और क्या..भाई तेरी तो ऐश है ऐश जो इतनी अच्छी भाभी जी मिली है।"
"तेरी बैंक मैनेजर है..कम है ?"
"ओ हैलो...आजकल नौकरी वाली बहुत मिल जाती हैं पर घर संभालने वाली नहीं मिलती है रिश्ते नहीं संभलते आजकल.... मॉम डैड आए थे दो तीन महीने के लिए पर सप्ताह भर में नाराज होकर चले गए।" "क्यों?" "हमारी मेमसाहब के रंग ढंग उन्हें पसंद नहीं आए...मै भी उसे बोल बोल कर थक गया यार जब तक मॉम डैड हैं थोड़े ढंग के कपड़े पहन लिया करो पर वो तो बस अपने मन की करती हैं। अब भाभी को देख ले साक्षात देवी लग रही हैं" मॉम डैड को ऐसी बहू चाहिए थी।"
  "तुम दोनों की बनती नहीं?" "बस कट रही है.....ठीक है यार अब क्या करना शादी की है तो निभाना तो है ही।" "तलाक क्यों नहीं ले लेता इतनी चिलम चिल्ली क्या करना।"
"तलाक????? मज़ाक है क्या ..तू सठिया तो नहीं गया,वो सुन लेगी तो तुझे भी कच्चा खा जाएगी।" अम्मा समझाओ अपने लाडले को सठिया गया है। चल यार देर हो गई मिलते है फिर..अनीश झटकते हुए बाहर निकल गया। पर देव फिर बहुत देर तक गुमसुम बैठा रहा। शगुन ने खाना का प्लेट देव की तरफ सरका दिया। "तुम नहीं खाओगी?" "भूख नहीं"
 अम्मा तुम तो आओ,खाना नहीं खाओगी"
 अम्मा की कोई आवाज नहीं आई। आज देव भी हाथ जोड़कर उठ गया।घर में सन्नाटा पसरा था,जैसी किसी की मातम मनाई जा रही हो।

 सुबह बर्तन की खटर पटर से शगुन जग गई देखती क्या है अम्मा रसोई में काम कर रही है गैस पर कुछ पक रहा था....इधर जल्दी जल्दी चाय के लिए केतली में पानी डाला जा रहा था।
"अम्मा ....मै आ ही रही थी तुम रसोई में क्यों आई?"
 "अम्मा जाओ तुम आराम करो मै अभी हाथ मुॅंह धोकर आती हूँ" अम्मा अब भी चुप थी.....
 "अम्मा!तुम कोर्ट तक तो चलोगी न?
"हमें माफ कर" अम्मा का रोना धोना शुरू हो गया।
"अपनी बहुरिया को आखिरी विदाई देने नहीं चलोगी? "अम्मा का कलेजा फट पड़ा....मत जा लाडो मेरी बिटिया बन के रह जा...."
"किस हक़ से अम्मा?" शगुन बिल्कुल शांत थी कोई ऑंसू नहीं.....कोई शिकायत नहीं....कोई विनती भी नहीं। रोज की तरह आज भी उसने सारा काम निपटाया और कोर्ट जाने के लिए तैयार होने लगी।अम्मा जरा जरा सी देर पर सुबकती ही रहीं दस बजे तीनों घर से निकल पड़े। आधे रस्ते में देव को अम्मा की इन्हेलर की याद आई...
 "ओह यू टर्न लेना होगा...अम्मा की इन्हेलर रह.....
"मैने रख ली थी...." देव पीछे मुड़ मुड़ कर देख रहा था अम्मा रो रोकर ऑंखे सुजाए बैठी थी....... पर शगुन?? वह चुप है शांत है स्थिर है।
"शगुन लगता है मैने फाइल भी छोड़ दी"
 "मैने रख ली थी।"
"मुझसे नाराज़ हो?"
 "न"
"अम्मा चाय पियोगी..?.देव ने थोड़ा ब्रेक लेना चाहा। "जहर पिला दे"...अम्मा अभी भी चंडी रूप में थीं लेकिन पोते की जिद के आगे विवश थीं।

देव ने गाड़ी रोक दी....बाहर निकलकर खड़ा हो गया... "शगुन जरा बाहर तो आना..अम्मा तुम भी आओ जरा सी देर के लिए।" सामने बड़ा सा ढावा था...लोग आ रहे थे जा रहे थे...
"चाय नहीं पीना ,जहां के लिए निकला है चल नासपीटे, हे भगवान!मुझे उठा क्यों नहीं लिया ये सब दिन देखने से पहले। अम्मा रोते हुए गाड़ी से बाहर निकली। देव मुस्कुराने लगा.....
."अम्मा ......हम सोच रहे थे उ अनिशबा निभा सकता है अपनी नकचढ़ी बीवी से तो हम काहे नहीं, शगुन तो उससे लाख गुना अच्छी है।"
अम्मा का कलेजा धक से रह गया।न कुछ बोला जा रहा न कुछ पूछा जा रहा था।
 "उ क्या है न...हम थोड़ा भटक गए थे,इतना कहते ही उसने शगुन को सीने से लगा लिया। इतने दिनों से जिन ऑंसुओं के सैलाब को आंखों में समेटे डोल रही थी आज वो बांध टूट गया।

 आरती


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