डर
डर
"हे भगवान, ऊपर टंकी मे पानी नहीं, दिन भर कंजूसी से पानी खर्च किया। अब तो पानी आना भी बन्द हो गया। इलेक्ट्रिशियन को सुबह ही फोन किया, आ रा हूँ, आ र हूँ ,यही जवाब।आठ बज गये अंधेरा हो गया बच्चे भी नहीं लौटे चिंता में डूबी माया जी। बाइक झटके से रुकी।
दो लड़के, कान में बाली, फटी जीन्स, सई के काँटो की तरह खड़े बालों की कटिंग
"क्या हुआ"
"ऊपर पानी नहीं चढ़ रहा"
"कब खराब हुई मोटर"
"सुबह से, तभी फोन किया था दुकान पर, अब आ रहे हो।
"अरे अम्मा भौत कम्प्लेन थी।
काम और बात शुरु हुई।"
"घर में कोई नई क्या? आप अकेले रहते। अच्छा बच्चे बाहर होयेंगे। कब तक लौटते वो लोग।
प्रश्न पर प्रश्न माया जी हूँ हाँ करती रही सोच रही थी अजीब कॉलोनी है। मुर्दो की तरह शान्त। मैं बूढ़ी,अकेली, अंदर ही अंदर डरी हुई भगवान को याद करती हुई
"हो गया, पेमेंट कल मालिक लेगा। ठीक"
माया जी ने राहत की सांस ली लड़के जाते जाते रुक गये। अब क्या, "अम्मा ज़ोर की प्यास लगी पानी दे दो।" मर गये। पानी लेने अंदर जाती हूं और ये लड़के पीछे पीछे आ गये, मुझे पकड़ लिया, गर्दन पर चाकू अड़ा दिया, भय का भूत सिर चढ़ कर बोलने लगा।
"किचिन की टयूब खराब है अंधेरे में नहीं जा पाऊंगी"
"तो बताते न। चल गिल्लू टयूब देख लेते है, स्टूल उठा ला सामने से"
टयूब हिलाकर ऐडजस्ट की। रौशनी फैल गई।
"अंदर आ जाओ अम्मा, रौशनी हो गई है। अरे आप तो मेरी दादी जैसे दिखते हो। वो भी इतनी बड़ी बिन्दी लगाती है"
लड़के बाइक पर बैठ रहे थे, माया जी पानी की बोतल लिये आई "पानी तो पीते जाओ,बच्चों। "