दांत भी अपने !

दांत भी अपने !

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मैं क्या जी मेरी गल ते सुणो , सुवेरे-सुवेरे एंवैई चुप करके बैठे हो जी ,कोई गल-बात करो , लो जी चा चू पी लो ! 

   मम्मी मेरा टिफिन तैयार हो गया ? मुझे काॅलेज के लिए देर हो रही है ,जल्दी से चाय-नाश्ता दे दो ।

       ये ले नाश्ता , ये टिफिन सारा कुछ तैयार पड़ा है ,परमिंदर हाली तैयार नी होया ? उसनू देरी नी हो जाणी है ?

       अभी आ जाएगा वैसे भी उसका स्कूल दस बजे का है आ जाएगा अभी बहुत टाइम पड़ा है , देर तो मुझे हो जाणी है ,आप ऐसे ही बातें करते रहोगे तो ।

       मरजाणीए मेरे नाल बात करने से तैनू देरी हो जाणी है ?

      ऐसे नहीं कह रही हूं अगर आपसे बातें करती रहूंगी तो खाने में देर होगी तो फिर काॅलेज के लिए देर नहीं होगी ? होगी ना क्या मम्मी आप भी ना ! 

      मां-बेटी का वार्तालाप काफी देर से जसबिंदरसिंह सुन रहे थे बोले - पुतरजी छेती कर बेकार में बहस करके टाइम खराब कर रही है फिर कहेगी - मेरा इंपोर्टेंट लेक्चर मिस हो गया , चल छेती कर !

        सबके जाने के बाद सारा काम निपटाकर जीतों बाजार गई तीन चार टाइम की सब्जियां और साथ ही किचिन का जरूरी सामान भी ले आई अभी घर पहुंची ही थी कि अंबाले वाली बुआजी आ गई अपने छोटे बेटे महिंदर के साथ बिना किसी सूचना के पूरे सात साल बाद , बेचारी जीतो ने सब दुबारा बनाया हालांकि जो सब्जी बनी पड़ी वो बुआ जी के लिए बासी हो जायेगी ,,खाने पीने में उनके नखरे भी बहुत रहते हैं पिछली बार की तरह कहीं इस बार भी नाराज़ न हो जाए ,जीतो को अभी भी सब याद है। ,,बाऊ जी ने बस इतना ही कहा था - मेरी धी बेचारी सब कर तो रही है थोड़ी ठंड रख ! बुआजी को बहुत गुस्सा आ गया और गुस्से में ही एकदम से बोली - 

     वाह भ्राजी , वो कल की आई कुड़ी धी बण गई और मैं सगी छोटी बहन गैर हो गई , हुण कदी नी आणा मैनू !

        चंगा ,,तेरी मर्जी ! उसके बाद बहुत रोई खाना भी नहीं गुस्से में उसी दिन निकल गई ! तबकी गई सात साल बाद आज आई है जबकि बाऊजी ने कितने फोन किए , समझाया लेकिन बुआ जी ने कभी कोई रिस्पोंस नहीं दिया और आज अचानक बिना बताए ,बेचारी जीतो परेशान ,कहीं बुआजी फिर नाराज़ न हो जाए ! इसी उधेड़बुन में खाना बनाया- खिलाया ,खूब खातिरदारी की ,शाम को सब घर आए बुआजी से प्यार से मिले मगर बाऊजी से रहा न गया तो पूछ ही बैठे - है नी हरजीत कोरे तू ते वडी नराज सिगी हुण किस तरह राजी हो गई आण वास्ते ? मैंने तो नहीं बुलाया था जब बुलाता रहा तब तो तूने सिधे मुंह गल वी नी कीती तो अब क्या खास बात हो गई ?

       वीर जी ए हो जी गलां कीती ते मैं चली जाऊंगी !

       कुड़िए , तू आई वी अपनी मर्जी नाल ते जाएगी भी अपनी मर्जी नाल ! अब बेचारी जीतो डर रही थी ,, जसबिंदर को कहा भी कि बाऊजी को मना करो ना फिर नराज होकर हुणेई गुस्से विच निकल न जाए !

       फिकर न कर बुआ किधर भी नहीं जाने वाली ,, सबसे कई दिनों से झगड़ा चल रहा था , बुरी तरह से झगड़ा करके आई है ,किसी को नहीं छोड़ा ,, सबकी मीन-मेख निकालती रहती थी सो पानी सिर से गुज़र गया ,, बस ,, सो चली आई यहां तुम्हें लाड करने और हंस पड़ा !

       मैनू कोई डर नी ,,मेरे बाऊजी है ना ,, लेकिन त्वानु किस तरह पता चला ? 

       मैनू महिंदर ने बताया । बाऊ जी ने अंदर आते हुए सुन लिया - बिल्कुल सही ,, डरण दी कोई लोड़ नी पुतरजी !

अब हरजीत भी थक गई है ,,दिल की अच्छी है बस ज़बान की ही कड़वी है। मेरी अपनी बहन है दया भी आती है उसकी आदतों पर गुस्सा भी आता है ,,,,, क्या करूं पुतरजी ,दांत भी अपने ते जीभ भी अपनी तो अब क्या किया जाए , कुछ समझ में ही नहीं आ रहा न समझाने से समझती है और ना ही किसी की सुनती है ,लकीर की फकीर ही रह गई ,,किया भी क्या जाए ! ,,बस जो जैसा चल है चलने दो ,, बेचारी हरजीत कौर ,!

                                           

        

       

          


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