दान दहेज

दान दहेज

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अच्छा घर बार, धन दौलत, नौकरी चाकरी , छोटा परिवार, एक शब्द में कहे तो जैसा वह सोचा करती थी वैसा ही सब कुछ। राकेश इंजीनियर है, माता -पिता, सरकारी नौकरी वाले, बहन दोनों ससुराली, उसने अपने जानिब सब कुछ पता लगाया था । आज के युग में भी राकेश हर प्रकार के नशे से दूर था। माता पिता से दूर न जाना पड़े इस विचार से अपना काम प्रांरभ किया था। जरा मन पीछे हटा, एक साथ रहना याने हिमानी के ऊपर जिम्मेदारी का दबाव । रोक टोक ! कौन सी बड़ी बाधा थी ? शादी के साल भर बाद ही उसने इससे भी बड़ी बाधा को नहीं उखाड़ कर इतनी दूर फेक दिया था कि दुबारा कभी उसकी हवा तक न लगी। आकाश क्या कम मातृ भक्त था ? पिता के न रहने पर बस माँँ बेटे ही तो रह गये थे परिवार के नाम पर। दोनों में एक दूसरे के प्राण बसते थे, लेकिन उसने पार किया न इतनी बड़ी बाधा। वैसे ही हिमानी भी साल के अंदर ही या तो अपने घर में अकेली अपने पति के साथ रहती या अपना घर बना लेते दोनो।

पर ये क्या हो रहा है ? यहां से लड़की पसंद करके, कुल-गोत्र , राशि वर्ण, नाड़ी-योनि, पूछ पूछा कर गये, कुंडली के छत्तीस गुण मिलते थे। हिमानी के मुरझाये चेहरे पर प्रसन्नता की चमक देखी थी उसने

’’माँ, मेरे जाने पर घर कैसे चलेगा ?’’ उसने उदास होकर पूछा था, सोचे भी क्यों नही ? दस वर्ष से कमा कर घर चला रही है। शिवानी और भवानी पढाई पूरी करके चार पैसे कमाने के लिये हाथ पैर मार रही हैं। किसी प्रकार अपना खर्च निकाल ही लेती है। आधार स्तम्भ तो हिमानी ही हैै। आकाश को घर बैठे लगभग दस -ग्यारह वर्ष हो गये, जो कुछ मिला उससे यह एक घर खरीद लिया था। थोड़ा बहुत पेंशन है चल रही है गाड़ी । तीनों बेटियाँँ बेहद समझदार है। उन्हे अपनी आर्थिक स्थिति का अंदाजा भलीभांति है। मरे लड़के वाले माने तो घर बेचकर करनी होगी शादी । कैसी तो हो गई हिमानी, अठारह बीस की उम्र में जैसे फूल खिलते थे उसके चेहरे पर। आँँखे हँसती रहती थीं जैसे। कोई मोहक सुगंध झरती रहती थी उसकी देह से, धीरे -धीरे बदल गई वह। अब तो सदा गंभीर रहती है। आॅफिस से आई, कमरे में घुसी। न अधिक बातचीत न कोई फरमाइश । जो कुछ मिला, खाई पी चली। बेचारी ! अपनी उम्र में किसे नही लगता ? उसकी तो तीनो बेटियां तीस के पार हो चुकी थी। बेटे का मुंह देखने की चाह में तीन देवियां आ गईं। उसके बाद तो न जाने कैसे स्वयं ही पूर्ण विराम लग था। वह तो अभी दो साल पहले तक प्रतिमाह अपने शरीर में कुछ अलग प्रकार का परिवर्तन खोजा करती थी, अब तो हो गया सब कुछ । सब मनसूबा बेकार निकला। फोन आ गया,

’’आपकी लड़की तो हमे पंसद है परंतु हम ऐसे घर से लड़की लाना नहीं चाहते जिस घर में दादा दादी न हो हमें माफ कीजिएगा। कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर गिर पड़ी थी वह, ऐसा पहली बार हुआ हो यह भी तो नही है। तीसरी बार है उसकी शादी का लगते -लगते टूट जाना।

अजीब बदलाव आ रहा है लड़के वालो में ! पहले दान दहेज, सुंंदर पढी लिखी लड़की, बारातियो के स्वागत सत्कार की बात होती थी । अब घर में दादा दादी ! चाहे स्वयं अपने माँँ बाप के साथ न रहते हो। सब बहाना है अवश्य किसी दुश्मन ने शादी काट दी है।

हिमानी के दादा को तो वह नहीं ला सकती लेकिन दादी ! उसे ला सकती थी, पता नही अब वहां रहती है या नही। वह कहां आयेगी ? जब इतने दिनों में कभी नही आई, न खोज खबर ली तो अब क्या रहेगी आकर ? सुनकर उसे तो खुशी ही मिलेगी। बेटे को देख कर शायद पिघल जाये। कोशिश करनी होगी। लोगों की सोच नहीं बदली जा सकती। सोच ये कि जिस परिवार में सयानो का स्थान रहता है उस परिवार की लड़कियां अपनी ससुराल मे भी बुजुर्गों, की सेवा करती हैं उनके संस्कार में होता है । हालाकि यह सिद्धांत पूर्ण रुपेण सच नहीं है, उसकी मां ने तो पगली सास की अंत तक सेवा की। क्या मजाल जो बाहर निकलने दे ? चाहे वह कितना ही चाीखे चिल्लाये, घर गंदा करे या गालिया दे, वह सब सहती थी लोग कहते पागल खाने भेज देा ! पंरतु वह नहीं मानी, घर पर ही दवाई होती रही, बहुत कुछ ठीक भी हो गई थी दादी।

परंतु उसे तो न जाने क्यों आकाश और अपने बीच सास बरदास्त ही न हुई। पहले दूसरे दिन से ही जल में तैरती काई की तरह किनारे करना शुरु कर दिया था उसे।। पहले -पहले शर्मिन्दा सा आकाश बगले झाँकता रहता, उसकी प्यारी पत्नि सारिका फूट- फूट कर रोती होती, मां गुस्से से उबलती होती, वह किसे सम्हाले किसे छोड़े ? फिर उसने डांट कर माॅ को चुप कराना और सारिका को सान्त्वना देना प्रारंभ किया था। उसकी दृष्टि में माँ का अत्याचार बढ़ता ही गया था। सारिका के आॅसू झूठे नही हो सकते थे न ?

’’माॅ यहां लेटी क्या कर रही हो ?’’ वह हिमानी की आवाज सुन कर चैक उठी। वह आ गई है अपने काम से । आज कल किसी कंपनी में काम कर रही है। आते ही एक बार माँ को अवश्य पूछती है।

’’माॅ क्या हुआ ?’’

वह उठी थी, बेटी को एक गिलास पानी देना उसका फर्ज बनता है। उसके मुॅह से कुछ नही निकल सका।

’’क्या हुआ मां बोलो न ? लड़के वालों का फोन आया क्या ?’’ वह माॅ का चेहरा देख परेशान हो उठी थी।

’’कहते है जिसके घर दादा -दादी न हों उस घर से लड़की नहीं लेंगे । बताओ भला जिसके घर दादा-दादी न हों उसकी लड़की क्या कंुआरी रहेगी ?

’’चिन्ता मत करो माॅ ! जहाँ भाग्य होगा वहाँ शादी लगेगी ही।’’ उसने सयानो की तरह समझाया। ’’वैसे मां ! हमारी तो दादी थी नऽ..ऽ.? उसका प्रश्न सारिका को हिला गया।

’’थी बेटी ! हो सकता है अभी भी हो। उसके मन में कोई खोट न होता तो क्या घर छोड़ कर चली जाती ? लगभग 28 साल हो गये घर से निकल,े कभी बेटे की भी सुधि नही ली। वैसे यदि वो घर मंे होती तो और कोई रिश्ते वाले घर की ड्योढी़ न चढ़ते।’’ वह हिमानी के लिये चाय पानी ले आई थी। उसने देखा भी नहीं माँ की ओर। बहुत रोना धोना मचायी।

’’तुम्हारी गलती की सजा मुझे मिल रही है माॅ ! तुम्हे बना के रखना था न अपनी सास से ? अब हम तीनों बहने कहो तो किसके घर बैठंे जाकर ? वह रोये जा रही थी।

’’शांत हो जा बेटी ! जिन्होने तुझे ठुकराया है वे बड़े अभागे हैं । उनकी सोच की बलिहारी है। उन्हंे बहू नहंी नौकरानी चाहिये जो जीवन भर उनका गू ढोती रहे। अच्छा हुआ जो उन्होने मना कर दिया , वर्ना जीवन भर का रोना हो जाता।’’ सारिका अब दूसरे ढंग से समझा रही थी हिमानी को।

और भी अच्छे अच्छे रिश्ते आये किन्तु बात न बनी । नाना -नानी दादा दादी की खोज-बीन में यह तो नहीं कहा जा सका कि लड़की की दादी अब इस संसार में नही है ? सब कुछ सुनते आकाश चुप रहे। जब सारिका एकदम से झल्ला गई तब धीरे से कह दिया,

’’उस दिन भी तुम्हारे ही मन की चली थी जब माॅ रोती हुई 10 बजे रात को घर से निकली थी। मैं कुछ कर सका था क्या ? तुम तो हाथ में मिट्टी तेल का डिब्बा लेकर खडी थी- यह घर से निकले या इसी समय जल मरुंगी, फिर रहना जेल में माॅ बेटे एक ही संग । हम ते लाचार हंै तुम्हारी योजनाओ के आगे। वह ओैर जल भुनकर राख हो गई थी। उसे पता ही न चला था कि उसका पति मन में उसके प्रति ऐसी भावना रखता है।

’’बताओ पापा ! बेटे हो कर कभी खोजे दादी को ? माॅ तो परकोठिया थी आप तो उनके बेटे थे ? हिमानी ने कटघरे में ले लिया था उसे।

’’पता क्यंांे नही लगाया ? इसी शहर के राजेन्द्र नगर में डाॅक्टर बलदेव के यहाँ रहती है। वे लोग उसे बहुत मानते हैं. कभी कभी मिलता हूँ तो गले लगा कर पूरे टाइम रोती रहती है।’’

’’अच्छा तो इतना बड़ा धोखा किया तुमने मेरे साथ ! कभी हवा नहीं लगने दी कि तुम उसके बारे में कुछ जानते हो, उसके सारे करम भूल गये ? शर्म नही आती है उसका बेटा कहलाने में ? सारिका नागिन सी बल खा गई।

’’हाॅ आती है शर्म उसका बेटा कहलाने में , मैं ऐसा बेटा हूूँ जिसने अपनी माॅ को घर से निकल कर परायो के घर आश्रय लेते देखा है, कुछ न कर सका मैं । जेल जाने से डरता था न और तुम्हारे हाथ में तो हमेशा ...?

आकाश ने जरा व्यंग से कहा।

’’पापा चलिये ! हम दादी को लेकर आयंेगे, बात शादी की नहीं है हमंे अपनी दादी चाहिये ! माॅ यदि नहीं मानती है तो हम तीनों भी घर छोड़ कर निकल जायंेगी। हिमानी की आवाज में दृढ़ता थी।

’’हम सब मर जायंे तो भी नहीं झूकेगी।’’ सारिका ने हारे हुये स्वर मे कहा।

’’पापा हम कल चलेंगे दादी से मिलने ?’’ हिमानी ने अपना फैसला सुनाया जैसे।

’’माॅ सबसे पहले निकल कर आॅटो में बैंठ जाना नऽ..ऽ! वर्ना अब तुम्हारे अकेले होने की बारी आ गई है। हिमानी का स्वर तल्ख था।

’’राणो! तुम्हंेेेे मंैेने बेटे से कम नही माना, भतार पाने के लिये इस तरह उतावली हो जाओगी ये तो कभी सोचा भी नही था मंैने ?’’ सारिका ने अपने दोनो हाथों से अपना सिर दबाया।

रात भर उसे नींद नही आई, लड़कियां कुआरी नहीं बेवा जैसी दिखने लगी हंै , समय पर ही सब कुछ अच्छा लगता हैै। इनका बनाना है तो यह भी सही इसलिये जिन्दा है आज तक मेरे जी का कंटक। कहते भी है न वक्त पर गधे को भी बाप कहना पड़ता है। चलँू पैर पकड़कर मना लाऊँ, नहीं तो लड़कियां बेहाथ हो जायंेगी ,आ गई तो काम होते ही फिर वही रास्ता दिखा दूंगी। नहीं आयी तो ये जो ज्यादा चपड़ चपड़ कर रही हंै हमेशा के लिये चुप हो जायंेगी। आदमी हारता अपनी कोख से ही है। मैं ही मूर्ख थी जो जानते बूझते इन्हे संसार में ले आई इसीलिये तो लोग बहा देते है नाली में, लगता जो कुछ लगता, आज ये दिन तो नहंी देखना पड़ता। वह पूरी रात सोचती रही।

जाते -जाते बड़ी उदार होकर माफ करती गई थी, अब समझ में आया उसने बड़ी होशियारी से मुझे श्राप दिया था। तुमने मेरे साथ जो भी किया, अपनी समझ से ठीक ही किया। तुम मेरे अरमानो का फल हो मैं तुम्हे माफ करती हूॅ! भगवान् करे तुम्हंे ऐसे दिन कभी न देखने पडं़े। अब समझ में आया उसका तात्पर्य था तू बेटे की माॅ न बन सके, बेटा नही होगा तो बहू कहां से आयेगी, फिर घर से कौन निकालेगा ?

उसी का श्राप फला है वर्ना तीन में एक भी लउ़का दे देते भगवान् तो क्या ये लडकियां इतना चढ़ पाती ? वह अकेले में रोती रही थी।

हिमानी शिवानी आज काम पर नही गई । हिमानी ने जल्दी से कुछ नाश्ता बनाया, आकाश और सारिका दवाई खाते है। ब्लडप्रेशर की, वह तो एकदम शांत थी। तैयार हुई जैसे -तैसे, क्या कोई शादी में जाना है जो तैयार होकर जाय ? खुदा ना खाश्ता यदि आ ही गई तो इस छोटे से घर में कहां रहेगी ? नही-नही मैं भी तो सत्तर साल की होगी, पता नही कौन-कौन सी बीमारी हो गई होगी, कहीं खांसी हुई तो पूरा घर थूक -थूक कर भर देगी। कैसे बोलेगी उससे इतने दिनो बाद- आटो में बैठी वह सोच रही थी।

राजैन्द्र नगर 15 कि.मी दूर है, शिवाजी नगर से। जब वे डाॅ. बलदेव के शानदार भवन के सामने पहुंचे तो देखा कि एक युवक एक वृद्धा को साथ लिए धीरे -धीरे टहल रहा रहा है। लान में।

दरवाजे पर आटो से पांच जन को उतरते देख वह गेट के पास आ गया था। सब एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे कि वृद्धा बोल पड़ी -आकाश मेरा बेटा ! उसने आगे बढ़कर आकाश को गले लगा लिया। उसकी उंचाई बहुत कम हो गई थी कमर झुक गई थी, चेहरे पर झुर्रियों का सामा्रज्य था, सिर के बाल बगुले के पंख जैसे हो रहे थे। आकाश की कमर से लिपटी वह रोने लगी थी जार -जार।

’’मेरी तकदीर ही खोटी है बेटा , तुझे रोज -रोज देख भी नही सकती, कितने दिनो बाद आया है इस बार । भूल ही गया था मुझे- अन्य लोगांे की उपस्थिति की बात वह भूल गई थी ऐसा लग रहा था।

’’आइये न आप लोग अन्दर !’’, युवक ने उन्हे अंदर बुलाया।

तीनो युवतियां एक साथ वृद्धा से लिपट गईं।

’’दादी , दादी हम आप की पोतियां ! आप को लेेने आई हंै-हिमानी ने उसके झुर्रियां भरे माथे को चूमते हुए कहा।

’’मेरी पोतियां? हे भगवान! कहीं मैं खुशी से मर न जाउं ? वृद्धा की स्थिति अजीब हो रही थी, एक बार हंसे एक बार रोये।

सभी आकर लान में पड़ी कुर्सियों पर बैठे, सारिका अब तक चुप थी।

’’दादी हमंे तो कल ही आप का पता चला है और आज लेने आ र्गइं, तैयार हो जाइये ।’’ हिमानी चंचल हो रही थी।

’’अपनी माॅ से पूछा बेटी ? वृद्धा ने धीमी आवाज में कहा।

’’माॅ जी मुझे माफ कर दीजिए ! मैं अपनी गलती की सजा भुगत रही हूॅ । शादी नहीं हो पा रही है इनकी। लोग पूछते हैं कि इनकी दादी कहां है ? आप घर चलिये ।’’ सारिका ने वृद्धा के पैर पकड़ लिये।

युवक ने उनके लिये जलपान का प्रबंध किया। आगे पीछे की बातें होती रहीं।

’’ये मेरा बेटा सोमू है, डा. सोमनाथ, बहुत बड़ा डाक्टर है, अपने पापा से भी बड़ा! जब मैं इस घर में आई यह एक वर्ष का था, इनके मां पिता जी डाॅक्टर हंै, उन्हें रात हो या दिन जब मरीज आये अस्पताल जाना प़ड़ता था। डॅा. साहब ने इसे पालने के लिये मुझे अपने घर में शरण दे दी, उन दोनो को मेरे हाथ का भोजन बेहद पसंद है। यह तो आज भी मेरे बिना नहीं रह पाता, देखो घर के सब लोग गर्मी की छुट्टी मनाने शिमला गये हंै और यह घर पर ही रुका है। ड्यूटी भी देख रहा है और मुझे भी। वृद्धा अब संभल चुकी थी। डा. सोमनाथ सब कुछ सुन रहा था।

’’मां जी अब हमंे इनकी नौकरी की आवश्यकता नहीं है। आपकी उम्र हो गई है अब घर चलिये।’’ सारिका ने अधिकार पूर्वक कहा।

’’आंटी जी जरा सोच समझकर बात कीजिए ! ये मेरी दादी हैं नौकरानी नही। ये कहंी नहीं जायंेगी, आप लोग इज्ज्त के साथ वापस चले जायंे। डॅा. की आवाज तल्ख हो उठी।

’’दादी हमारी शादी नहीं हो रही है आपके बिना , क्या हम पूरी जिंदगी कुंआरी रहे, हमारी क्या गलती है ? फिर मम्मी भी तो आप से काफी मांग रही है न..?’’ हिमानी उनसे फिर लिपट गई।

’’आकाश बेटा ! त्ू मुझे लेने आयेगा मैं इसी दिन के इंतजार में जी रही थी, तुझे किसी भी रुप में मेरी आवश्यकता अनुभव हुई यही मेरे लिए बहुत है। मेरी प्यारी बहू मुझे बुलाने आई जीवन का अर्थ पूर्ण हो गया मेरे , उनका कंठ अवरुद्ध हो गया था अँाखांे से अश्रु धार बह रही थी।

’’दादी ! सोचना भी मत जाने के बारे में, यदि गई तो मैं समझूंगा कि तुम्हंे मुझसे प्यार प्यार नही, मेरी सेवा से तुम संतुष्ट नहीं।’’

’’तुमने सोच कैसे लिया कि मैं उस घर में वापस जाउंगी जहां से मुझे दुष्चरित्र ठहरा कर निकाल दिया गया था।’’ वह चिट्ठी़ तुम्हीं ने रखी थी न बहूरानी ?

मेरे बेटे की नजरो में मुझे गिराने के लिये ? मेरा दुर्भाग्य मेरे बेटे ने भी नहीं सोचा कि भरी जवानी में वैधव्य का अभिशाप ढोते ...इसे किस दुःख से पाला ?अधेड़ उम्र मे...मंै प्रेम की पींगे बढ़ा सकती थी ?

’’ और किसी तरह इनके ऊपर कोई असर होता न देख मुझे यह सब कुछ करना पड़ा , मुझे माफ कर दीजिए मां जी। सािरका अपराधी की तरह निगाहंे झुकाये हुए थी।

’’सुनो बहुरानी तुम्हारे पाप की सजा अपनी पोतियो को नहीं दूंगी, इसलिये जब लड़के वाले आयें तब मुझे फोन कर देना, ड्राइवर छोड़ देगा मुझे । जरा भी पता नहीं चलेगा कि तुनमे षड़यंत्र करके अपनी सास को घर से निकाल दिया है।, परंतु एक वादा करो बच्चियों !---

’’क्या दादी मां ?’’- तीनो एक साथ बोली।

तुम तीनो ससुराल जाकर अपनी मां का आचरण न दोहराओगी...।


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