चुड़ैल

चुड़ैल

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काले लम्बे पैरों तक गिरते चमचमाते केश, लम्बे नुकीले नाखून, आँखें लाल रंग से सनी और सबसे एहम उलटे पैर। ऐसा ही कुछ माँ बताती थी उसके बारे में जब भी खाना नहीं खाता था या शरारत करता। माँ तुरंत कहती सुधर जाओ नहीं तो उसके पास छोड़ आएगी । हाँवो,जिक्र भर भी जिसका आज भी

 मेरे माथे में पसीने की तरेड़ें आजाती हैं रगों में बहता खून मनो जम सा जाता है और दोनों होंठ आपस में एक दूसरे से ऐसे जुड़ जाते हैं जैसे गोंद

 लग गयी हो । लोग उसे डायन बुलाते हैं और कुछ चुड़ैल।


क्या हुआ? “ डायन ” यह शब्द पढ़के आपकी आँखों की भौहें  भी कस गइं या  शायद कुछ सहम से गए या अगर तो आप ज़िंदादिल मिज़ाज़ के हैं तो 

 एक ज़हरीली सी मुस्कान आपके लबों पे सज गयी होगी । पर आज ७ साल बाद भी इस नाम से मेरे चहरे पे एक ही जज़्बा झलकता है खौफ़ का । वह खौफ जिसका चेहरा इतना डरावना था कि आज तक मेरे कानो  में दर्द से कराहती वह चींख गूँज उठती है ।


बात उस साल की है जब ना मैं बच्चा रह गया था और न ही बड़ों की गिनती में मुझे लिया जाता था, बस आस पास ही था । गाँव की ताज़ा हवा मिटटी में

 पल के ज़िन्दगी मज़े में थी । पर उस दिन के बाद सब बदल गया ।


हाँ , वो पूर्णिमा का दिन , सुबह से गाँव में कुछ शोर सा था । उस दिन सब लोग एक एक झुण्ड बना के बातें कर रहे थे । सबके चेहरे इस क़दर बने थे 

मानो कोई शेर फिर से गावं में घुस आया हो । पर बात थी क्या आखिर ? पूछता भी तो  किससे ? माँ से पूछता तो वो कोई कहानी बना के टाल देती

 और पिताजी शहर गए थे । कुछ ख़ास दोस्त भी नहीं थे मेरे गाँव में खुद में रहने की अजब सी आदत थी मुझे ।


मैंने अक्सर  बचपन से देखा था की जब भी गावं में लोग यूँ गुच्छों में कानाफूसी करते दिखते हैं उसके ठीक अगले दिन गावं में अजब सन्नाटा होता है जैसे किसी  की मौत  का शोक   हो, फिर  पुलिस  भी आती । पर इन सब का राज़ मुझसे नदारद ही रहा ।उस दिन भी यही मंज़र था । वही कानाफूसी वाला

। मैनें तय कर लिया था अबकी बार इस राज़ से परदा उठा कर रहूँगा । मैं सच्चाई की तह तक जाके रहूँगा । नहीं जानता था यह सच्चाई मेरा सुकून मुझसे छीन लेगी उसके बाद मैं फिर कभी सो नहीं पाउँगा, सच! आज भी हर रात चीख के जाग जाता हूँ । उफ़ ये चीखें पीछा ही नहीं छोड़ती ।


मैने माँ को इत्तेला की आज रमेश के घर जाना है श्याम को । उसके पिताजी शहर से कोई किताब लाए हैं हम दोस्त मिलके पढ़ेंगे । माँ नहीं मान रही थी पूछते ही माना कर दिया और कहा की ७ बजे के बाद घर से कहीं नहीं जाना है ।मैं मन बना चुका था तो पहली बार बग़ावत भरी आवाज़ में माँ से काफ़ी तर्क किया और अपनी बात मनवा ली । बेचारी माँ फिर भी समझाती रही कि रमेश के घर पे ही रहना और बाहर मत निकलना । कोई गड़बड़ बाद में ना हो मैं पहले ही अपने जिगरी दोस्त रमेश को अपनी पार्टी में बुला चुका था । और उसे भी एक जुनून चढ़ गया था गावं का सच जानने का ।


बस फिर क्या था टिकटिकी लगाए मैं उस दिन सूरज डूबने का इंतज़ार करता रहा पर उस दिन सूरज ने ना डूबने की ठान रखी थी । हर घंटे घंटे बाद मेरी नज़र घड़ी की सुइयों को तलाशती; उफ़ ये 6 कब बज़ेंगे? और फिर जैसे ही घड़ी का काँटा 6 की ओर बढ़ा मैं बिना माँ को बोले ही घर से रवाना हो गया ।

रमेश और मैं उस दिन खेत चले गये और तय किया की ८ बजे तक उस बरगद से थोड़ी दूर जो खेत है वहीं रहेंगे । हाँ, गाँव में एक पुराना बरगद था सब कहते वहाँ चुड़ैल रहती, बिल्कुल वैसी ही जैसी अक्सर माँ बताती थी । मैं अक्सर उस के पास से गुज़रता और झाँक के देखता । कहीं टहनियों से ना चिपकी हो, कहीं उल्टी ना लटकी हो, पर कभी दिखी नहीं वो । तब मालूम नहीं था की इस बरगद का सच जिस दिन जान जाऊंगा फिर कभी उसके नज़दीक जाने की हिम्मत ना हो सकेगी ।


हमने सुन रखा था गांव के चौधरी उस कानाफूसी वाले दिन उस बरगद के पास ही मुलाकात करते हैं । बातचीत करते हैं और उनकी बात को जानना हमारा मिशन बन चुका था ।काफ़ी देर वहाँ पलकें बिछाए हम इंतेज़ार करते रहे पर चौधरी तो दूर उस दिन तो कोई परिंदा भी ना भटका बरगद के पास । ८. ३० बज चुके थे और अब तक वहां कोई हरकत नहीं हुई थी तो हम भी मायूस वापस घर लौटने को कूच कर गये ।अभी बस खेत से निकल के थोड़ा आगे कदम बढ़ाया ही थे की अचानक सामने से देखा 100 लोगों का झुरमुठ हाथ मे मशाले लिए चीखते चिल्लाते गालियाँ देते आ रहे थे । इतना रोष था उनकी आवाज़ में मानो कयामत हो गई है । हम सहम गये और बरगद की उल्टी तरफ एक घर की दिवार के पीछे चले गये और छुपके सब देखने लगे ।

नहीं जानते थे ये मंज़र हम कभी ना भूल पाएँगे ।


भीड़ का वो झुरमुठ हाथों मे मशाल लिए अब बरगद के पास पहुँच चुका था । मशालों की रोशनी, लोगों का झुरमुठ और इतना शोर, ना कुछ समझ आ रहा था न दिखाई भर भी ठीक से दे रहा था । बस कुछ औरतों के रोने चीखने की आवाज़ सुनाई दे र्ही थी । हम समझ नहीं पा रहे थे यह आवाज़ें कहाँ से आ रही हैं क्योंकि भीड़ में सिर्फ आदमी ही थे फिर यह औरतें कहाँ है?


अचानक भीड़ थोड़ी सी एक ओट हुई तो जो मंज़र दिखा वो बयान करते आज भी उंगलियाँ काँप रही हैं मेरी । २ औरतें थी खून से सनी हुई, कोई कपड़ा नहीं था पूरे बदन पे । हाँ एक छितरा भी नहीं । शरीर का हर हिस्सा खून में तर् था । उनके हाथ बँधे थे और उन्हे ज़मीन पे घसीट के बरगद के पास लाया गया । फिर सारे आदमियों ने एक घेरा बना लिया और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । बस उन औरतों की और ज़ोर ज़ोर से चीखती आवाज़ें आने लगी । वो चीखें नहीं थी इतना दर्द था उनमे मानो दर्द रो रहा था ।


काफ़ी देर तक यह सिलसिला चलता रहा । मैं और रमेश डर से काँप रहे थे । नहीं समझ पा रहे थे की वहाँ चल क्या रहा है । ना ही इतनी हिम्मत थी कि भीड़ के बीच जाके सब रोक सके । थोड़ी देर बाद वो घेरा टूट गया और चीखें भी खत्म हो गइं । वो औरतें और भी जायद खून से सनी बेहोश पड़ी थी । फिर भीड़ मे से लोगों ने उन पे कुछ छिड़कना शुरू किया । सुगंध से मिट्टी का तेल लग रहा था । और इससे पहले की हम कुछ भी समझ पाते एक चिंगारी कहीं से गिरी और आग में झुलस गइ वो दोनो बुरी तरह से चीखती । भीड़ मे खड़े लोग अभी भी गालियाँ दे रहे थे ।


कुछ देर बाद चीखें ख़तम हुई तो किसी ने पानी डाल दिया और दोनो जली लाशों को कपड़े मे समेट के वहीं बरगद के नीचे दबा दिया । सब चले गये जाते जाते बस एक बात सुनाई दी चुड़ैल थी साली दोनो अच्छा हुआ फूँक डाला ।


मैं और रमेश डर से जम चुके थे । हमारी आँखों से आंसू बंद न हो रहे थे । बड़ी हिम्मत जुटा के हम हौले हौले कदमों से घर निकले । घर जाते ही मैने माँ को गले लगा लिया । माँ कुछ समझी नहीं बस चिंता मे डाँटने लगी । इतनी देर कहाँ था? और मैं रोता रहा । उस रात माँ से चिपक के सोया मैं । सोया कहाँ था आँख बंद करते ही वो भयानक मंज़र सामने आ जाता । चुड़ैल थी क्या सच मे वो? चुड़ैल, पर उसके पैर तो सीधे थे । रात इसी कशमकश मे बीत गयी ।


सुबह उठ के देखा गांव मे पुलिस थी । सबके घर से पूछताछ कर रही थी । हमारे घर भी आयी । माँ से कुछ पूछा चली गई । मैं समझ चुका था कि कल रात के हादसे की शिनाख्त कर रही थी ।


तभी सामने पड़े ख़बर के कागज़ पर नज़र पड़ी “दो औरतों को चुड़ैल बोलके हुआ सामूहिक बलात्कार और फिर ज़िंदा जला दिया गया” जब तस्वीर देखी तो पैर से ज़मीन निकल गई । यह तो ज़मुना काकी और उनकी बेटी थी । मैं अक्सर जाता था इनके घर । बहुत प्यार करती थी मुझे और इनकी बेटी भैया बुलाती राखी बाँधती थी । सामूहिक बलात्कार? यह सुनते ही जाने क्यों उलटी हो गइ मुझे? मैं भागा शौचालय औरफूट फूट के रोया । अब उन चीखों की वजह समझ आयी ।नहीं,वो चुड़ैल नहीं हो सकतीं। क्या सच मे वो चुड़ैल थीं? अगर थी भी तो क्या यह जो हुआ व इंसान कर सकते ? यह तो हैवानियत को भी शर्मसार कर दे ।


हाँ मैं आज भी चुड़ैल शब्द से डरता हूँ पर चुड़ैल से नहीं ।…….


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