छोटा जादूगर ( सत्य कथा)
छोटा जादूगर ( सत्य कथा)
अक्सर रविवार के दिन मैं बाजार का दौरा करती हूँ क्योंकि यह एक दिन ही हमारा अपना होता है। आज भी रविवार था मैं कुछ आवश्यक सामान के लिए बाजार गई थी। जब मैं "प्रकाश बाजार" की एक दुकान से कुछ सामान ख़रीद रही थी, तभी एक छोटा सा नौ-दस वर्ष का लड़का उस दुकान के सामने आया। वह हाफ पैंट और हाफ शर्ट पहने था। कपड़ों का रंग बदरंग हो गया था। पैर में चप्पल नहीं थी। हाथ में एक गंदा सा झोला पकड़े था। दुकान के सामने आकर तुतलाता हुआ बोला -साहब कलतब ( करतब) देख लो।दुकानदार उसे बुरी तरह डाँट कर भगा रहा था, अपशब्द बोल रहा था, कि मैंने उसे रोक लिया। वह बालक मेरे अंतरतम तक उतर चुका था। अब मैंने उससे पूछा क्या दिखाते हो, तो वह बोला- हाथ की छफाई ( सफाई) मैंने कहा दिखाओ। अब उसने अपने झोले में से तीन कटोरी, तीन पत्थर, एक रूपए का सिक्का तथा एक छोटा सा डंडा निकाला। उसे देखकर मुझे जयशंकर प्रसाद की कहानी का पात्र छोटा जादूगर याद आ गया।
अब उसने करतब दिखाना शुरू किया, पहले एक- एक कटोरी के नीचे एक- एक पत्थर रखा फिर तीनों पत्थर एक ही कटोरी के नीचे से निकल दिए। बड़ी चतुरता व सफाई से वह करतब दिखा रहा था। बीच बीच में बोलता जा रहा था, यह तो तेलर है पिच्चल तो अबी बाकी है। ( यह तो अभी ट्रेलर है पिक्चर अभी बाकी है।) उस बच्चे को जानने के लिए मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
मैं उसकी हाथ की सफाई से ज्यादा उस को देख रही थी। उसने मुझे एक सिक्का देकर मुट्ठी बंद करने के लिए कहा और मेरी नाक से सिक्का निकाल कर दिखाया। उसकी हाथ की सफाई देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। इतना छोटा बालक कितनी चतुरता से अपना करतब दिखा रहा था। अब मैंने उससे प्रश्न पूछना शुरू किया।
तुम्हारा नाम क्या है ? उसने बड़े गर्व से कहा सुनील।
तुम कहां रहते हो ? थोड़ा सी उदासी के साथ उसने कहा रेलवे स्टेशन पर।
तुमने यह जादू कहां से सीखा ? अपने बापू से।
बापू कहाँ हैं ? जादू दिखाने गए हैं।
तुम्हारी माँ कहाँ है ? देश में, वह बीमाल ( बीमार) है।
देश कहां है ? देश.... देश में है औल ( और) कहाँ है। उसकी भोली बातें मेरे हृदय को छू रही थीं । मैंने पूछा -
तुम भीख तो नहीं मांगते ? नहीं, बिल्कुल नहीं।
बापू कहते हैं किसी से भीख नहीं मांगना चाहिए। इसलिए बापू ने मुझे जादू सिखाया है। मैं जादू दिखाने के बाद ही पैसा लेता हूँ। बिना दिखाये नहीं लेता। पर कोई मेरा जादू देखता ही नहीं है। आज कितने दिन बाद आपने देखा है।
सामने ही मिठाई की दुकान थी, मैं उसे दुकान पर ले गई। उससे पूछा क्या खाओगे ? उसने लड्डू की तरफ इशारा किया। मैंने दुकानदार से उस बच्चे को लड्डू देने के लिए कहा।
अब लड्डू खाते खाते मैंने पूछा - तुम स्कूल जाओगे, पढ़ाई करोगे तो उसने कहा मुझे पलना ( पढ़ना) नहीं आता। मैं स्कूल नहीं जाऊंगा। मैं करतब दिखा कर पैसा इकट्ठा करूँगा।
मैंने फिर पूछा -अच्छा यह बताओ, फिर उस पैसे का क्या करोगे ? माँ की दवाई लाऊंगा, साइकिल खरीदूंगा। मुझे साइकिल पर घूम-घूम कर जादू दिखाना है। बापू भी साइकिल से घूम-घूम कर जादू दिखाते हैं।
मैंने उसे कुछ रूपए दिए तो वह बहुत खुश हुआ और इतनी तेजी से भागा कि पता ही नहीं चला कि वह किस दिशा में गया।
उस दिन मैं घर आकर पूरे दिन उस दस वर्ष के बालक सुनील के विषय में सोचती रही। मुझे उस बालक पर गर्व हो रहा था और समाज पर आक्रोश ।वह छोटा सा बालक जो भीख नहीं मांगता है हाथ की सफाई या जादू दिखाकर कमाता है। हम उस बालक का थोड़ा सा जादू देखकर उसे दस रुपये नहीं दे सकते हैं। पर हाथ फैलाये भिखारी को दे सकते हैं। इस तरह हम अप्रत्यक्ष रूप से भिक्षावृति को बड़ावा देते हैं। हम अपनी इस प्रवृत्ति के कारण एक दिन उस बालक को भी भीख मांगने पर मजबूर कर देंगे। अब हम सबको सोचना है कि हमें अपने समाज और देश के लिए क्या करना है।