छोड़ो न ये बातें
छोड़ो न ये बातें
आज फिर माँ बाबा की लड़ाई हुई, हां उसी तरह माँ चिल्ला रही थी और बाबा शान्त हो कर सुन रहे थे। आज मैंने बाबा से बात की ना जब तो एक बार फिर ज़हन में तुम आ गए.... याद है तुम जब भी शान्त हुआ करते थे तब हम कई लम्हे मुस्कुरा कर बिता लिया करते थे और फिर हमेशा मेरा सवाल होता था तुमसे " अब तो बता दो क्या लिए बैठे हो दिल में"। तुम कभी बताया ही नहीं करते थे न, हमेशा कह दिया करते थे कि "छोड़ो ना ये बातें, कुछ और बात करते हैं" , तुम्हें मालूम था कि इन बातों को यूं ही छोड़ देने से सब कुछ बड़ी ही खामोशी से बिगड़ रहा था हमारे बीच, मगर फिर भी तुम चुप रह जाते थे। मैं हर बार गुस्से से मुंह फुला के बैठ जाया करती थी और तुम न जाने कहां से मेरे गुस्से को सहने की क्षमता ले आया करते थे, कैसे मेरे कहे हर कड़वे शब्द को प्यार समझ के पी जाया करते थे तुम? आज जब माँ बाबा पे चिल्ला रही थीं तब बाबा फिर उसी तरह शान्त बैठे थे जैसे तुम एक टक हो कर मुझे चिल्लाते सुना कर
ते थे। पता है जब घर का माहौल ठीक हुआ तब मैं बाबा के पास गई और मैंने पूछा उनसे की "बाबा आपने माँ को कुछ बोला क्यों नहीं, कैसे सुन लेते हैं हर बार आप उनकी कड़वी बातें", पता है उन्होंने भी यही कहा "छोड़ो न बेटा ये सारी बातें"। बाबा मुस्कुरा रहे थे, मगर इतने साल से वो बस शांत ही हैं यूं ही मुस्कुरा देते हैं माँ के गुस्से के आगे और माँ के साथ भी हैं। न जाने तूम क्यों चले गए?
हर रिश्ता अपने आप में खूबसूरत होता है, हर रिश्ते में कभी कभार खामोशी भी ज़रूरी है मगर याद रहे की खामोशी को रिश्तों के बीच इतनी भी जगह नहीं देनी चाहिए कि वो खामोशी धीरे धीरे रिश्ते को ही खा जाए। इस कहानी में भी कुछ ऐसा ही हुआ था, सालों साल बीत गए, लड़का हमेशा उस लड़की की हर बात, सारा गुस्सा बस चुप चाप सुनता रहा। उसे लगा शायद ऐसा करने से सब ठीक रहेगा मगर ऐसा नहीं हुआ, लड़के की खामोशी ने अंदर ही अंदर रिश्ते को खोखला बना दिया और एक दिन बस यादें बची और कुछ नहीं...।