छलावा भाग 7

छलावा भाग 7

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छलावा        

भाग 7

                     कमिश्नर के साथ हुई बातचीत के दौरान मोहिते ने अपने स्केच उन्हें दिखाए जिन्हें अपने हाथो में लेकर उन्होंने ध्यान पूर्वक देखा था। दोनों के बीच गहन विचार विमर्श के दौरान मोहिते ने वो कागज सावधानी पूर्वक सहेज लिया था और कमिश्नर के कार्यालय से निकलते ही सीधे फिंगर प्रिंट्स डिपार्टमेंट में गया। वहाँ उसे एक्सपर्ट शैलेश पांडे मिला जो उत्तरप्रदेश का रहने वाला था पर उसके दादाजी आजादी के बाद मुम्बई आ गए थे और उसके पिता का जन्म यहीं हुआ था। इस प्रकार अब वो मुम्बई का ही बाशिंदा था और उसका उत्तरप्रदेश आना जाना भी कम ही हो पाता था। जब से बख़्शी ने हर किसी पर शक करने का आइडिया सरकाया था तब से मोहिते अलर्ट हो गया था। उसने स्केच दिखाने के बहाने कमिश्नर साहब की उँगलियों के निशान भी ले लिए थे और उनकी जांच के लिए लैब में आ गया था। 

हैलो पांडे! कैसे हो? मोहिते बोला 

जिन्दा हैं आपके राज में साहब! पांडे हँसता हुआ बोला। वो काफी खुशमिजाज इंसान था। मोहिते ने भी मुस्कराते हुए उसकी ओर कागज बढ़ा दिया उसे अलग से कुछ बोलने की जरुरत नहीं थी क्यों कि पांडे अपने काम में बड़ा दक्ष था उसने सावधानी से कागज मोहिते के हाथ से लिया और उसपर से फिंगर प्रिंट्स उतारने का उपक्रम करने लगा। लेकिन तुरंत ही वह सिर उठा कर मोहिते को देखने लगा।उसके चेहरे पर विस्मय के भाव थे। मोहिते ने पूछा, क्या हुआ पांडे?

अचानक पांडे ने जोरदार ठहाका लगाया और बोला आज एक अप्रैल तो नहीं है मोहिते साहब तो आप मुझे क्यों मूर्ख बना रहे हैं? 

यह कागज तो बिलकुल कोरा है! 

मोहिते को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके सामने कमिश्नर साहब ने कागज को पकड़ा था तो उनकी उँगलियों के निशान कागज पर क्यों नहीं आए यह बात उसकी समझ से बाहर थी। वह सिर खुजाता हुआ अपने ऑफिस में आ बैठा। तब तक बख़्शी आ पहुंचा। मोहिते ने उसे यह सारा किस्सा कह सुनाया। बख़्शी बोला, "वैरी गुड! ये हुई न बात। अब तुम सही लाइन पर हो। चलो! कमिश्नर साहब के पास चलते हैं और सीधे-सीधे उँगलियों की छाप मांगते हैं। जांच होनी ही है तो सबकी हो। और मैं और तुम भी अपनी उँगलियों की छाप देंगे। 

    मोहिते खुश हो गया। वो कमिश्नर से सीधे फिंगर प्रिंट्स नहीं मांग सकता था। अगर बख़्शी कह रहा था तो उसका काम सुगम हो जाता। वे सीधे कमिश्नर के ऑफिस में पहुंचे। और बख़्शी ने कमिश्नर से कहा, "सर! मेरा मानना है कि कातिल हम में से ही एक है और हमारे पास उसके फिंगर प्रिंट्स हैं तो मैं चाहता हूँ कि हर किसी के फिंगर प्रिंट्स लिए जाएँ और उनका मिलान हो। कोई इससे न छूटे। न मैं न आप! क्या कहते हैं?

बहुत अच्छा ख़याल है, सुबोध कुमार मुस्कराते हुए बोले, और उन्होंने दराज खोलकर एक सफेद कागज़ निकाल कर टेबल पर रख दिया जिसपर नीली स्याही में पूरी हथेली की स्पष्ट छाप बनी हुई थी। बख़्शी ने देखा कि कमिश्नर साहब की पूरी हथेली पर इंक पैड की गाढ़ी स्याही लगी हुई थी। कमिश्नर आगे बोले, मैं खुद यही सोच रहा था और अभी मैंने अपनी हथेली की छाप ली और मोहिते को बुलाने ही वाला था कि तुम लोग आ गए। 

        वहीं दूसरे कागज़ लेकर मोहिते और बख़्शी ने भी अपनी उँगलियों की छाप दी और बाहर निकल आए। फिर चौकी में मौजूद एक एक आदमी के फिंगर प्रिंट्स लिए गए और मोहिते ने खुद वे कागज ले जाकर पांडे के सुपुर्द किए और आतुरता से परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा। 

       इधर बख़्शी ने चौदह पुलिस वालों को उनकी मोटर साइकिलों के साथ बुलवाया था वे सब पुलिस ग्राउंड में खड़े थे। मोहिते के साथ वहाँ पहुँच कर बख़्शी ने कड़ी जांच की। उनसे मोटर सायकिल चलवाकर देखी और भी कई प्रयोग किए पर नतीजा सिफर रहा। 

         शाम को फिंगर प्रिंट्स एक्सपर्ट की भी रिपोर्ट आ गई। एक भी निशान सुए के निशानों से मैच नहीं करते थे। मोहिते माथा पकड़ कर बैठ गया। वो जिस रास्ते पर चलने की कोशिश करता था वही बंद मिलता था। पर अपनी ट्रेनिंग में सतत प्रयास का पाठ उसने सीखा था तो हार कर बैठना उसके स्वभाव में ही नहीं था। अचानक उसके दिमाग में एक बात आई कि फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट शैलेश पांडे अगर छलावा हो तो उसकी उँगलियों के निशान भी तो जाँचे जाने चाहिए। और अगर वो ही छलावा हुआ तो क्या जरुरी है कि वो सही रिपोर्ट दे? उसने पांडे के प्रिंट्स लेकर अपने हिसाब से जांचने का फैसला किया और अपने सिपाही ज्ञानेश्वर को जाकर शैलेश के फिंगर प्रिंट्स ले आने को कहा। पांच मिनट बाद ज्ञानेश्वर खाली हाथ लौट आया और मुंह लटकाकर बोल, पांडे के फिंगर प्रिंट्स की अब कोई जरूरत नहीं है मोहिते साहब! उसका खून हो गया है। छलावे ने उसकी आँख में भी सुआ घोंप दिया है।

 

आखिर किस हाल में हुआ पांडे का क़त्ल

कहानी अभी जारी है ......

आगे जानने के लिए पढिये भाग 8

 


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