छलावा भाग 3

छलावा भाग 3

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छलावा      

भाग 3

अरे देवा! गणपति बप्पा! असा कसा झाला बाबा? मोहिते खुद से ही बड़बड़ा रहा था, वो इधर कैसे आ गया?

          दरअसल मृतक की पीठ पर एक सफ़ेद कागज चिपका हुआ था जिसपर अखबार की कतरने काट कर एक इबारत बना कर चिपकाई गई थी जिसमें लिखा हुआ था "चुन-चुन के मारूँगा" और पेन्सिल से एक व्यक्ति का चेहरा बना हुआ था जिसकी आँख में सुआ घुंपा हुआ था। बख़्शी ने साफ़ साफ़ मोहिते की देह में उठती झुरझुरी को महसूस किया। बख़्शी ने फौरन उसे पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर को बुला लाने को कहा। थोड़ी देर में सरकारी डॉक्टर हाजिर हुआ यह एक रिटायरमेंट की अवस्था पर पहुंचा हुआ झोलझाल सा आदमी था जिसने अपनी आँखों पर तार का बाबा आदम के जमाने का चश्मा पहन रखा था और उसने अपना स्टेथोस्कोप ऐसे गले से लपेट रखा था जैसे मदारी सांप लपेट रखते हैं। 

ये कागज मरीज की पीठ पर कहाँ से आया? बख़्शी ने सीधा सवाल किया, क्या पोस्टमार्टम करते वक्त आपने पीठ देखी थी? डॉक्टर हंसने लगा। मोहिते ने आँखें तरेरने की कोशिश की तो डॉक्टर ने ऐसे लहजे में उत्तर दिया मानो नाक से मक्खी उड़ाई हो वह बोला 'आप दोनों की मिलाकर जितनी उम्र होगी उतने सालों से पोस्टमार्टम कर रहा हूँ! पोस्टमार्टम में लाश का एक-एक रोम नाप लिया जाता है समझे? यह पेपर किसी ने बाद में यहाँ चिपकाया है। और कुछ पूछना हो तो जल्दी करो एक उधड़ी हुई लाश मेरा इन्तजार कर रही है।' अब दोनों क्या कहते? उसे जाने को कह दिया। पर दोनों बड़े हैरान हुए। इस मोर्ग के दरवाजे पर हमेशा चौकीदार मौजूद रहता है पर किसे पता वह कहीं पान सुपारी खाने या धार मारने चला गया हो और कातिल यहाँ कागज चिपका गया हो। वैसे भी उस मोर्ग में कौन आना चाहेगा जहाँ लाशें स्वागत को मिलें? तुरन्त चौकीदार की पेशी हुई मोहिते की एक ही घुड़की में उसने बक दिया कि वो इधर उधर पान तम्बाकू लेने या चाय पानी के लिए आया-जाया करता है। सुनकर दोनों ने असहाय भाव से गर्दन हिलाई। वैसे भी यह काफी बड़ा अस्पताल था जहाँ खूब आमदरफ्त होती रहती थी। उसे डिसमिस करके वे चलने लगे तो बख़्शी टॉयलेट में घुस गया और दो मिनट में हल्का होकर  बाहर आकर मोहिते से बोला, चलो!

          दोनों बाहर निकल ही रहे थे कि घिघियाता हुआ एक वार्ड बॉय दौड़ता हुआ आया और खुद को संभाल न पाने के कारण इनके आगे ही मुंह के बल गिरा। बख़्शी ने उसे झपट कर उठाया और पूछा क्या हुआ? जवाब में उसके मुंह से बोल न फूटा। उसकी आँखें मानो उसकी कटोरियों में से उबली पड़ रही थी उसने एक दिशा में उंगली उठा दी। वे दोनों बगूले की तरह दौड़ते हुए उस दिशा को पहुंचे और सीढ़ियों की ओर घूमते ही बुरी तरह ठिठक गए। सामने चौकीदार चौखट से टेक लगा कर हाथ लटकाये खड़ा था। उसकी दांई आँख खुली हुई थी और उनमें भारी आश्चर्य की झलक थी पर बाईं आँख थी ही नहीं क्यों कि उसमें एक सुआ जड़ तक धंसा हुआ था। वो सुआ इतने वेग से मारा गया था कि उसकी नोंक खोपड़ी को छेदती हुई पीछे की चौखट में जा धँसी थी और चौकीदार का शव उसी के सहारे खूंटी से टंगा सा लग रहा था। उसकी आँख से अभी भी खून परनाले की तरह बह रहा था और बदन गर्म था।

         फौरन अस्पताल घेरेबंदी कर के चप्पे-चप्पे की तलाशी ली गई एक एक आदमी को टटोला गया पर छलावा नहीं मिला। टॉयलेट की एक खिड़की टूटी मिली शायद उसी में से वो फरार हो गया था। बख़्शी ने बताया कि जब वो टायलेट में घुसा था तब खिड़की सही सलामत थी। 

             पुलिस अस्पताल में घुसकर ऐसी वारदात कर देने से छलावे की दीदादिलेरी का आभास होता था। अभी तक उसे कोई विक्षिप्त इंसान मानने की भूल कर रही पुलिस को अपना मार्ग बदलने को मजबूर होना ही था। वह कोई बहुत शातिर अपराधी था जिसका खून करने का मकसद कोई नहीं समझ पा रहा था।

कहानी आगे जारी है ....

क्या हुआ आगे?

क्या छलावा बख़्शी के काबू में आ सका?

या बख़्शी और मोहिते की टोली को हार माननी पड़ी

जानने के लिए पढ़ें भाग 4 


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