छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल
छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल
यह कहानी छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल कहावत को ध्यान में रखकर लिखी गई है ।
आज मकर संक्रांति की धूम मची हुई थी । आसमान पतंगों से अटा पड़ा था । विभु को बहुत शौक था पतंग उड़ाने का मगर कोरोना की चपेट में आ जाने से उसने अपने सारे शौक बंद कर दिये थे । वह छत पर बैठ कर एक साथ पकौड़े और गर्म हलवे का आनंद ले रहा था और "वो मारा , वो काटा" के शोरगुल में अपनी आवाज भी मिला रहा था । पतंगों को कटते देखकर उसे बड़ा आनंद आ रहा था । वैसे भी दूसरे की पतंग काटकर जितना सुख मिलता है उतना और किसी चीज में नहीं मिलता है ।
वह अभी आसमान में पतंगों को ही देख रहा था कि अचानक उसकी निगाह पड़ोस की छत पर चली गई । उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । पड़ोस के मकान में दो महीने पहले ही कोई किरायेदार आये थे । उनकी एक बेटी लगभग बीस साल की थी । बहुत सुंदर, गोरी चिट्टी । उसके बाल कटे हुए थे इसलिए उसने उसका नाम "परकटी" रख लिया था । विभु ने देखा कि परकटी पतंग उड़ा रही है । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ परकटी को पतंग उड़ाते देखकर । थोड़ी ही देर में उसे पता चल गया कि उसे पतंग उड़ाना कुछ ज्यादा नहीं आता है । विभु ने सोचा छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल वाली कहावत लागू हो रही है यहां पर । विभु की इच्छा हुई कि अभी बाजार से पतंग और मांझा लेकर आये और उसकी पतंग काट दे । पर उसने सोचा कि वह कोई मंझी हुई खिलाड़ी तो है नहीं इसलिए उससे पेच लड़ाने में क्या आनंद आयेगा ? वह चुपचाप बैठ गया ।
थोड़ी देर में परकटी की पतंग विभु की छत पर गिर पड़ी । विभु उसे उठाकर देने जा ही रहा था कि वह बोल पड़ी "आप रहने दो । आपको पतंग उड़ाना तो आता है नहीं , इसलिए मैं ही आ रही हूं पतंग लेने" । विभु को बात चुभ गई । उसने मन ही मन कहा "छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल" शोभा नहीं देता है । पर क्या करें ? छछूंदर को ये चमेली के तेल वाली कौन बताये ? अगर गले पड़ गई तो ? लेकिन इसको इसकी औकात बतानी भी जरूरी है । आखिर उसकी काबिलियत को चुनौती दी गई थी, इसलिए अब और शांत नहीं बैठा रहा जा सकता था । विभु को जोश चढ गया ।
वह तुरंत बाजार गया और बाजार से खूब सारी पतंग , बढिया मांझा और चरखी ले आया । पीछे से परकटी आई होगी और अपनी पतंग ले गई होगी क्योंकि वह पतंग अब उसकी छत पर नहीं थी । उसने मां से पूछा "मां, छत पर कोई आया था क्या" ?
"हां, पड़ोसी किरायेदार की एक लड़की आई थी । उसकी कोई पतंग आ गई बताई अपनी छत पर । वह अपनी पतंग ले गई है" । विभु को अब कन्फर्म हो गया था । उसका रास्ता साफ हो गया था । "आज मजा चखाऊंगा इस परकटी को । बहुत नखरे करती घूमती है यह । एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा है इसने उसे । वह कितनी बार बिना काम के ही उसके पीछे पीछे बाजार गया था मगर पता नहीं कितनी प्राऊडी है यह कि उसने एक बार भी उसे ढंग से नहीं देखा था । चलो आज दिखाते हैं कि हम क्या चीज हैं" । विभु ने मन ही मन सोचा
उसने एक मिनट में अपनी पतंग आसमान में चढा दी । परकटी की पतंग बहुत नीचे थी । विभु ने अपनी पतंग 'सटाक' से नीचे की और तेजी से झटका मारते हुए जोर से खींच ली । परकटी की पतंग एक झटके में "खचाक" से कट गई । विभु के मुंह से जोर से आवाज निकली "वो काटा ऽऽऽऽऽऽ" । बेचारी परकटी खींसें निपोरते हुए रह गई ।
उसने झेंपकर विभु की ओर देखा और आंखों से अंगारे बरसाने लगी । विभु की मुस्कान और चौड़ी हो गई । विभु को मुस्कुराते हुए देखकर वह और चिढ़ गई और एक चांद वाली पतंग लेकर उड़ाने लगी । विभु देख रहा था कि उसे पतंग उड़ाने में बहुत परेशानी हो रही है । पतंग बार बार छत पर वापस आ जाती थी । बड़ी मुश्किल से वह दस मिनट में उसे आसमान में पहुंचा पाई थी । इतनी देर में विभु ने पांच और पतंगें काट दी थी । वह तो परकटी की पतंग पर निगाहें जमाए बैठा था । जैसे ही परकटी की चांद वाली पतंग आसमान में उड़कर इठलाने लगी कि विभु ने फिर से उसे काट डाला । अबकी बार उसकी आवाज पहले से दुगनी हो गई "वो माराऽऽऽऽ" । अब परकटी ने भरपूर नजरों से विभु को देखा । पहली बार दोनों के नैनों के पेंच लड़े थे । परकटी की आंखों में अभी भी अहंकार की चांदनी फैली हुई थी । नजरें चार होते ही विभु के दिल में "धक धक" सी होने लगी थी ।
गुस्से से परकटी के गाल और लाल हो गये थे । उसने फिर एक पतंग निकाली और उसे उड़ाने लगी । इतने में विभु की पतंग कट गई । विभु की पतंग कटते देखकर परकटी को बहुत खुशी हुई । जब दुश्मन हमसे भारी हो और हमसे उसकी पिटाई हो नहीं रही हो तब दुश्मन की अगर कोई तीसरा आदमी पिटाई कर देता है तब बड़ा आनंद आता है । परकटी का वही हाल था । उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । उसकी इस हालत पर विभु को बड़ा आनंद आ रहा था ।
जब परकटी की पतंग आसमान में नाचने लगी तब विभु ने दूसरी पतंग निकाल कर उड़ा दी । यह इंद्र धनुष की आकृति वाली पतंग थी । परकटी ने अपनी पतंग को बचाने की बहुत कोशिश की मगर विभु ने उसे लपेट ही लिया और पल भर में उसका पत्ता काट दिया । परकटी चिल्लाती रह गई और विभु जश्न मनाने लग गया ।
"ऐ मिस्टर ! मेरी पतंगों को क्यों काटे जा रहे हो" ? परकटी चिल्लाते हुए बोली
"पतंग ही काट सकता हूं मिस, और कुछ नहीं । इसलिए वही कर रहा हूं" विभु ने उसे छेड़ते हुए कहा ।
"अब से आगे मेरी पतंग नहीं काटोगे आप" ? वह आदेशात्मक स्वर में बोली
"क्यों ? आपकी पतंगों पर कोई कर्फ्यू लगा है क्या" ? विभु का चेहरा विनोदी था अब और भी विनोदी हो गया था ।
"बस, मैंने कह दिया जो कह दिया" ।
"जो हुकुम, जहांपनाह" । विभु ने दोनों हाथ जोड़ दिये । परकटी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई ।
अब परकटी की पतंग फिर से आसमान में चढ गई थी । विभु ने इस बार उससे पेच तो लड़ा लिये मगर इस बार उसने अपनी पतंग परकटी के हाथों कटवा ली । परकटी खुशी से चीख पड़ी । विभु मंद मंद मुस्कुरा रहा था । अबकी बार परकटी की आंखों में अहंकार नहीं बल्कि प्यार ही प्यार था । उन दोनों के बीच एक नई प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी ।

