बुडापेस्ट
बुडापेस्ट
सुमन....सुमन अरे कहाँ हो ? रमेश घर में घुसते हुए सुमन को पुकारने लगता है। सुमन कमरे से बाहर निकलती है तो रमेश हँसते हुए उसकी बाँहें पकड़ घुमाने लगता है। " अरे.....अरे मैं गिर जाऊँगी "......सुमन हतप्रभ सी हो रमेश को रोकती है।
रमेश उत्साहित हो सुमन को बताता है कि ऑफिस के कार्य से हंगरी 'बुडापेस्ट' जाना है। इस बहाने हमारे लिए भी एक बदलाव हो जाएगा। "तुम साथ चलोगी ना?"....रमेश सुमन की ठुड्डी ऊपर उठाते हुए पूछता है। सुमन हल्के से मुस्कराकर सिर हिला देती है।
सुमन और रमेश के विवाह को चालिस साल हो गए। बच्चे हुए नही। रमेश हमेशा ऑफिस में ही व्यस्त रहता। सुमन...उम्र के आधे पढ़ाव को पार करते-करते एक खालीपन से भर गयी थी। ऐसे में अलमारी में रखी एक चिठ्ठी उसके खालीपन का कोई एक कोना भर जाती थी। काॅलेज के समय यह चिठ्ठी आहान ने उसे दी थी। जिसमें उसने अपनी मोहब्बत का इजहार बहुत खूबसूरती से किया था। सुमन इस चिठ्ठी को लेकर आहान पर बहुत गुस्सा हुई। उस समय उसका विवाह रमेश से तय हो चुका था।
उसके बाद आहान को कभी काॅलेज में नही देखा गया। सुमन ने वह चिठ्ठी ना जाने क्यूँ अपने पास रख ली थी।
सुमन ने आहान की चिठ्ठी वाली बात रमेश को कभी नही बतायी। वह राज बस इन चालिस सालों में सुमन के एक खाली कोने को भरता रहा।
सुमन और रमेश बुडापेस्ट आ गए। बहुत सुन्दर जगह थी। रमेश के पास तो यहाँ भी सुमन के लिए वक्त नही था। वह अकेले ही घूमने निकल जाती।
सुमन एक आर्ट गैलरी में खड़ी तस्वीरें देख रही थी। तभी उसे पीछे से अपना नाम सुनाई देता है। सुमन पीछे मुड़कर देखती है तो एक लम्बे बालों वाला पैंसठ-सत्तर साल का आदमी खड़ा था। सुमन उसे देख बुरी तरह चौंक जाती है….यह तो वही काॅलेज वाला आहान है। यह यहाँ बुडापेस्ट में…?
वह कुछ पूछे उससे पहले ही आहान उसे बताने लगता है कि वह काॅलेज छोड़ बुडापेस्ट अपने अंकल के पास आ गया था। कुछ सालों बाद यहीं की सिटिजनशिप मिल गयी। उसका एक कॉफी बार भी है।
"तुम कैसी हो सुमन…? उम्र ने तुम्हारी सुन्दरता पर जरा भी प्रभाव नही डाला। यहाँ रमेश के साथ आई हो…?"
सुमन को कुछ सूझ नही रहा था। आहान को इतने सालों बाद देख उसे लगा मानो चिठ्ठी का वह राज उसके सामने आ खड़ा हुआ हो।
"क्या मेरे साथ मेरे कॉफी बार में कॉफी पीने चलोगी..?" कहते हुए आहान इंडियन एयरलाइंस महाराजा का पोज़ बना कर खड़ा हो जाता है। सुमन खिलखिला कर हँस देती है। उस हँसी में सुमन के अंदर एक नयी उमंग की कोपल फूटती दिखाई दी।
रमेश ऑफिस मिटिंग में इतना व्यस्त रहता कि चाहकर भी सुमन को समय नही दे पा रहा था। आहान से उसकी मुलाकात हो चुकी थी। उसने सुमन को बुडापेस्ट घुमाने की जिम्मेदारी आहान को सौंप दी थी।
सुमन और अहान के बीच बुडापेस्ट घूमते हुए एक विशेष दोस्ती का रिश्ता बनने लगा था।
एक दिन टहलते हुए सुमन जरा सुस्ताने पेड़ के सहारे खड़ी हो जाती है। उसकी साँसें तेज-तेज चल रही थीं। अहान भी वहीं आकर खड़ा हो जाता है। हँसते हुए बोलता है "लगता है तुम बूढ़ी हो रही हो।" यह सुन सुमन की हँसी निकल जाती है। अचानक अहान अपने तपते ओठों को उसके ओठों पर रख देता है। सुमन के शरीर में एक तरंग सी दौड़ पड़ती है। सुमन को ऐसा महसूस हुआ मानो उसने प्यार की उस तस्वीर को पा लिया हो जिसे वह हमेशा रमेश में ढूँढती रही।
सुमन के अंदर प्यार की एक नयी उमंग उठने लगी थी। पर वह यह राज रमेश से छुपाना नही चाहती थी। वह रमेश को चिठ्ठी और आज जो कछ आहान और उसके बीच हुआ सब बता देती है। रमेश सुनकर बहुत आहत होता है। कभी सोचा ही नही था कि उम्र के इस पढ़ाव पर आकर कुछ ऐसा भी होगा। रमेश सुमन से कहता है... "छोड़ो जो हुआ सो हुआ अब हम इंडिया वापिस चलते हैं।"
सुमन कुछ देर सोच कर फिर रमेश से कहती है..."वह इंडिया वापिस नही जाएगी। वैसे भी अब तुम्हारे साथ मैं वह स्वाभाविक जीवन आगे नही जी पाऊँगी। हमेशा एक अपराधबोध लगेगा। मैं यहीं रह कर खुद अपना आगे का रास्ता तय करुंगी।"... रमेश खामोश अपने जीवन की इस 'बदलती तस्वीर' को देख हैरान था।
पन्द्रह साल बीत गए। सुमन और आहान लाठी लेकर चलते हैं पर अपने प्यार की उमंग को आज भी वैसा ही बनाए रखा है बिना किसी बंधन के।