बतंंगड़

बतंंगड़

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"अम्मा,आप खिलावन भैया को भेजो, हम इंहा नहीं रहेगीं। आपके दामाद कुछ ठीक नहीं।

" "का हुआ बिटिया।"

"हम कहती है जब इन लोगो को नापसंदी थी, तो काहे हमाई शादी की यहाँ।"

"बात का भई बतायेगी भी, कि अपनी ही लगाएगी।"

"सुनो, बिटिया बता रही थी दामाद जी के लच्छन ठीक नहीं। वो उसे पसंद नहीं करते, रूप रंग पर तंज कसते है। कोई पड़ौसी है उसके साथ बैठक जमाते है। भाभी,भाभी करते उसकी लुगाई से हँसी मजाक करते हैं।"

"समधियाना तो शरीफ है हमारा। दामाद जी भी ऐसे नहीं लगते। बिटिया को धोखा हुआ होगा। जल्दबाजी ठीक नहीं।"

"वो तो बस फोन पे जोर जोर से रोए जा रही थी। हिचकियां लिये जा रही थी, का बोल रही थी अंट शंट कुछ समझ नहीं आ रहा था हमाए।"

"मैं दामाद जी से बात करता हूँ।"

"बात करना तब करना, अभी तो खिलावन को भेज बिटिया को तुरत फुरत बुलवाओ, कुछ अनहोनी न घट जाये। दिल घबरा रहा है।"

दामाद जी घर लौटे शाम को, बैठक मे साले साहेब विराजमान, अंदर पत्नी जी कपड़े भर रही सूटकेस में,आंसू भी पोंछ रही अपने।

"ये क्या हो रहा है,और अचानक खिलावन कैसे।"

"हमे लेने आये हैं, हम जा रही है। उस जगह क्या रहना जब हम किसी को काली, मोटी भैंस लगते हो, बहुत सह लिया, शादी समय नहीं दिखा हमारा दबा रंग और ऐसे तो मोटे भी नही थोड़ा वजन ही तो ज़ियादा है।"

"मैंने तुमसे ऐसा कब कहा।"

"अच्छा..' कल शाम पड़ौस के राजे भैया से नहीं कहा---काली मोटी भैस बांध दी।"

आंसू बहे जा रहे थे।"

"ओहो, तुम भी न--धन्य हो। मैं अम्मा बाबू से कह रहा था कि अब हमारे साथ रहो तो उन्होंने कहा कि बेटा अभी न आ पायेंगे। एक भैस वाजिब दाम मे मिल रही थी तो ले ली। बता रहे थे चमकदार काला रंग है, मोटी (स्वस्थ) है। यही बात मैं राजे भाई को बता रहा था की गाँव मे बाबू ने काली मोटी भैस बाँध ली है और तुमने सुना होगा, काली मोटी भैस बाँध दी है। है न ? अब क्या इरादा है जाना है साले के साथ, तो जाओ पर एक बात जान लो तुम तो मेरे लिये अप्सरा से कम नहींहो। काली मोटी हो तो क्या।

"मजाक न करो, भैया को खाना खिला कर भेजते हैं।"


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