बसंती की बसंत पंचमी- 6
बसंती की बसंत पंचमी- 6
श्रीमती कुनकुनवाला की इस कॉलोनी में एक ही अहाते में कई इमारतें खड़ी थीं, किंतु एक ओर बड़ा सा गार्डन भी था, जहां सुबह या शाम को थोड़ा टहलने या जॉगिंग के बहाने उनकी मित्र मंडली कभी कभी मिल भी लेती थी। ज़्यादा संपर्क तो फ़ोन के माध्यम से ही था।
लेकिन इधर दो- चार दिन में ही कई सहेलियों से जब उनकी बाईयों के काम छोड़ कर चले जाने की शिकायत मिलने लगी तो अब सबका मिलना भी दूर की कौड़ी हो गया। अब घर में पड़ा काम छोड़ कर कोई कैसे टहलने या जॉगिंग करने आए।
अब सबने इस तरफ़ दिमाग़ दौड़ाना शुरू किया कि इस मुसीबत का क्या हल निकाला जाए।
अब तक तो किसी एक की बाई छुट्टी जाती तो वो दूसरी की कामवाली को बुला लेती थी। इससे दो फ़ायदे होते। एक तो आसानी से काम भी हो जाता, और दूसरे सहेली के घर की अनसुनी बातें भी पता चल जातीं।
यही कारण था कि सबको एक - दूसरे की वो बातें भी पता रहती थीं जो ख़ुद छिपाई जाती थीं।
आज श्रीमती कुनकुनवाला बच्चों को अभी नाश्ता परोस ही रही थीं कि उनकी नज़र बेटे की स्टडी टेबल पर पड़ी। आमतौर पर बेटे की ये टेबल लैपटॉप, मोबाइल या उनकी दूसरी एसेसरीज़ और नए- नए गेज़ेट्स से भरी रहती थी। वो तो ये भी नहीं जानती थीं कि ये सब चीज़ें किस काम आती हैं और बच्चे इनके पीछे क्यों इतने दीवाने रहते हैं।
लेकिन आज उन्हें मेज पर एक ऐसी चीज़ रखी दिखाई दी कि उनकी आंखों में चमक आ गई। उन्हें बेटे पर भी मन ही मन प्यार आ गया। क्या वो भी...(जारी)
