बसंती की बसंत पंचमी- 5
बसंती की बसंत पंचमी- 5
फ़ोन से निपट कर रसोई में मुश्किल से दो- चार बर्तन धोए होंगे कि फ़ोन फ़िर बजा। और कोई समय होता तो श्रीमती कुनकुनवाला टाल जातीं, पर बर्तन धोने में भला क्या मन लगता, चलो इस बहाने थोड़ा सा रेस्ट का इंटरवल ही सही, उन्होंने नेपकिन से हाथ पोंछते हुए फ़ोन उठा ही लिया। और तब पता चला कि श्रीमती अरोड़ा को भी उनकी बाई से काम आ पड़ा।
अरोड़ा जी की बाई दो- तीन दिन पहले काम छोड़ कर चली गई।
ये हो क्या रहा है? आसपास की बिल्डिंगों से एक के बाद एक बाई - संकट गहराने की खबरें मिल रही हैं। भला हो उनकी मंडली का जिसकी सदस्यों से एक दूसरे के समाचार मिलते रहते थे।
अब ऐसा समाचार भी भला किस काम का, कि सभी मुसीबत में घिर -घिर कर मदद के लिए एक दूसरे को टटोल रहे हैं।
क्या मोहल्ले भर की बाईयों का कोई कुंभ मेला लग रहा है जो सब एक साथ वहां जा रही हैं? पर मेले में भी जातीं तो छुट्टी लेकर जातीं। यहां तो सब छुट्टी कर- कर के जा रही थीं, अर्थात काम छोड़- छोड़ कर।
सबको हैरानी थी।
लगभग पच्चीस मिनट की संक्षिप्त सी बातचीत के बाद श्रीमती कुनकुनवाला ने फ़ोन रखा और बर्तनों की खनक फिर सुनाई देने लगी। वे काम पर लौट आईं।
वे मन ही मन फ़ोन को कोस रही थीं कि दिन चढ़ता जा रहा था और काम था कि सारा का सारा ऐसे ही फ़ैला- बिखरा पड़ा था।
अभी तो नाश्ता भी बनाना था।...(जारी)
