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Prabodh Govil

Drama

4  

Prabodh Govil

Drama

बसंती की बसंत पंचमी- 28

बसंती की बसंत पंचमी- 28

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169

जॉन की पार्टी शुरू होने में तो अभी पूरा आधा घंटा बाक़ी था। पार्टी में आने वाले अभी आए भी नहीं थे, लेकिन उससे पहले ही श्रीमती कुनकुनवाला ने जो दृश्य ख़ुद अपनी आंखों से देखा उनका पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

वे तो बालकनी में बैठी हुई अपनी सहेलियों से फ़ोन पर टूटे हुए तार फ़िर से जोड़ने की कोशिश कर रही थीं कि अचानक उन्होंने देखा दो आदमी उनके घर के बाहर नीचे गेट पर आकर रुके। आश्चर्य तो उन्हें तब हुआ जब उन्होंने देखा कि वो लोग घर के भीतर नहीं आए बल्कि उनका बेटा जॉन ही लगभग दौड़ कर बाहर गया। इतना ही नहीं, बल्कि जॉन ने वहां जाकर अपनी जेब से निकाल कर उन्हें कुछ रुपए दिए जो उन्होंने झटपट गिन कर अपनी जेब में रख लिए। उसके बाद वे न तो वहां रुके और न ही जॉन ने उनसे घर में भीतर आने का कोई आग्रह किया या उनकी कोई मनुहार ही की।

श्रीमती कुनकुनवाला को पहली नज़र में ही ऐसा लगा जैसे उन लोगों को उन्होंने पहले भी कहीं देखा है। फ़िर तुरंत ही उन्हें याद आ गया कि कहां देखा है, कब देखा है! और ये याद आते ही उनका माथा ठनका।

अरे, ये तो वही प्रोड्यूसर और डायरेक्टर साहब हैं जो उस दिन उनकी पार्टी में आए थे और उनकी सहेलियों को फ़िल्म की शानदार कहानी सुनाई थी।

लेकिन...

लेकिन उस दिन तो इनके ठाठ - बाट ही कुछ निराले थे। ये शानदार कार में आए थे। कपड़े भी खासे रईसाना थे। हज़ारों रुपए के तो कलरफुल सन - ग्लासेज़ चढ़े थे इनकी आंखों पर!

और आज ये दोनों एक ही बाइक पर सवार होकर शोहदों की तरह यहां चले आए? उनके बेटे ने भी उन्हें बाहर से ही टरका दिया? और उन्हें रुपए किस बात के दिए गए हैं? उधर सब फ्रेंड्स कह रही हैं कि उन्होंने फ़िल्म के लिए कोई पैसे नहीं दिए? माजरा क्या है आख़िर?

बेटे के ऊपर आते ही वे उस पर फट पड़ीं।


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