बसंती की बसंत पंचमी- 23
बसंती की बसंत पंचमी- 23
कहानी सभी को बेहद पसंद आ रही थी किंतु इस कहानी का अंत बड़ा दर्दनाक था। ये अंत ग़रीबों पर अमीरों के अत्याचार को दर्शाता था। ये उस दौर की वास्तविकता भी थी। जो दुर्बल है, मजलूम है, उसका हित सोचने वाला कोई नहीं। सब अपने अपने हित, अपने अपने स्वार्थ के अनुसार ही सोचते हैं।
इस कहानी की नायिका के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है कि युवावस्था की सीमा को लांघती हुई इस परिश्रमी औरत को जीवन में एक सुख जब हल्की सी झलक दिखाता है तो अपने अपने स्वार्थ में लिप्त इस घरेलू नौकरानी की तथाकथित मालकिनें ही उसकी दुश्मन बन जाती हैं और ये नहीं चाहतीं कि उनकी ये सेविका विवाह कर के कहीं और चली जाए। वे ऐसी परिस्थितियां पैदा करती हैं कि उसकी सगाई टूट जाती है।
ओह, हृदय विदारक अंत। श्रीमती अरोड़ा तो पनीर पकौड़ा हाथ में लिए- लिए ही सिसकने लगीं।
सभी महिलाओं का इस बात से तो मोहभंग हो ही चुका था कि इस फ़िल्म में काम करके वो कोई ग्लैमर वर्ल्ड में कदम रखने में कामयाब हो जाएंगी। उन्हें सुबह से अपने मेकअप और पहनावे को लेकर की गई मेहनत तो बेमानी लग ही रही थी, वो इस बात को लेकर आशंकित थीं कि आज के समय में ऐसी उपदेश देने वाली फ़िल्म कहीं कोई उबाऊ डॉक्यूमेंट्री बन कर न रह जाए।
कुछ देर बाद प्रोड्यूसर साहब और उनके साथ आए डायरेक्टर महोदय तो चले गए किंतु पार्टी में बैठी रह गई उन शेष महिलाओं को भी जैसे सांप सूंघ गया। किसी को नहीं सूझ रहा था कि क्या बोले।
खान- पान के बाद सभा विसर्जित होने लगी। ये तय किया गया था कि कुछ दिन बाद वो लोग फ़िर से आयेंगे और तब कार्यवाही आगे बढ़ सकेगी।
फ़िल्म की बात से ध्यान हटते ही सबको अपनी- अपनी समस्या याद आ गई और बिना किसी ठोस नतीजे पर पहुंचे बैठक समाप्त हुई।
