बसंती की बसंत पंचमी- 14
बसंती की बसंत पंचमी- 14
श्रीमती कुनकुनवाला के ज़रा सा कानों पर ज़ोर देते ही उनकी किस्मत ने भी उनका साथ दिया। शायद हवा से जॉन के कमरे की साइड वाली खिड़की थोड़ी खुल गई। अब उसकी आवाज़ उन्हें बिल्कुल आराम से सुनाई दे रही थी। मज़े की बात ये कि उस दूसरी खिड़की को जॉन ने बंद भी नहीं किया। बंद क्यों करता, अब मम्मी श्रीमती कुनकुनवाला उसे दिख तो रही नहीं थीं। वो तो दूसरी ओर की खिड़की पर थीं।
और अब जाकर श्रीमती कुनकुनवाला को अपनी शंका का समाधान मिला।
वो कई दिनों से बेचैन थीं न, कि लड़के इतनी इतनी देर तक आपस में भला क्या बात करते हैं! तो लो, पता चल गया उन्हें। उनका लाड़ला जॉन किसी लड़के से नहीं बल्कि लड़की से बातचीत में मशगूल था।
अरे पर ये शंका का समाधान कहां हुआ? ये तो शंका उल्टे और बढ़ गई। लड़का लड़की से बातचीत क्यों कर रहा है? कौन है लड़की? चिंता और बढ़ गई।
जाने दो, होगी कोई। कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के के दोस्तों की कोई कमी थोड़े ही होती है। और इस उम्र में तो दोस्त लड़के भी होते हैं, लड़कियां भी। श्रीमती कुनकुनवाला कोई पुराने ज़माने की माताश्री तो थीं नहीं, जो इतनी सी बात पर कुपित हो जाएं। उल्टे उन्हें तो मन में गुदगुदी सी होने लगी, कि लड़का लड़कियों से घुल- मिल कर बात करने जितना बड़ा हो गया।
हाय, पर जब कॉलेज महीनों से बंद है तो इतनी इतनी देर तक क्या बात कर रहा है? कहीं वीडियोकॉल न हो।
अरे नहीं - नहीं, वो भी क्या सोचने लगीं। सारी दुनिया के बच्चे भय से, बीमारी से डरे हुए हैं, ऐसे में थोड़ा मन बहलाव करें तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा, जाने दो।
अरे पर है कौन ? लड़की इतनी देर से...
