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विनीता धीमान

Drama

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विनीता धीमान

Drama

बरगद की छाव में

बरगद की छाव में

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पेड़ तो हमारे जीवन का हिस्सा है जितने हो उतने कम लगते है इस धरा का श्रंगार है यह हरे भरे पेड़। 

हमारा जीवन इन पेड़ों से मिलने वाली ऑक्सीजन पर ही निर्भर है। और कभी कभी कुछ यादें भी इनसे जुड़ी होती है वहीं मैं आपके साथ शेयर कर रही हूं

हमारे गांव में एक बहुत बड़ा बरगद का पेड़ था। उस पेड़ के चोरों ओर चारपाइयों का जमघट लगा रहता था, गांव के बड़े बूढ़े लोग दिनभर वहीं बैठे रहते थे और पूरे गांव से जुड़े सभी समाचारों की जानकारी आप यहां से ले सकते थे।

कौनसे घर में क्या क्या हुआ, किसके घर में कौनसी रामायण और महाभारत चल रही है, किसकी शादी कब, किस से होनी सब यही पर तय होती है, कौन मरा, कौन पैदा हुआ सब पता चल जाता था, किस घर की औरत तेज है किसकी अच्छी, किसकी छप्पन छुरी है तो किसकी बिल्कुल गाय जैसी 

गांव में आने वाली और जाने वाली सभी बरातों की आगवानी और बिदाई यही से हुआ करती थी। पूरे गांव का जमावड़ा लग जाता था जब कोई पंचायत होती

किसका बच्चा कब क्या करेगा… यह सब भी यही इस पेड़ के नीचे बैठे लोगों का खास दिलचस्प मुद्दा था और जब पास में से पानी, या खेतों की तरफ जाती औरतों का झुंड यहां से निकलता तो हर बूढ़ा ताकता रहता था कि घूंघट की आड़ में से किसी का चेहरा दिखाई दे जाए और उस समय के ये ताऊ लोग चलने के स्टाइल से ही पहचान जाते थे कि कौन किस की बहू है, पत्नी है।

हम सब बच्चें भी दिनभर वहीं खेला करते थे हमारे दादाजी वहीं पर बैठते थे। पूरे दिन घर से बरगद के पेड़ तक ना जाने कितने चक्कर लगाए जाते थे इसकी कोई गिनती नहीं थी। और छुट्टियों के दौरान तो सुबह से रात तक हम बच्चे यही डेरा डाले रखते थे

लेकिन पापा को गांव छोड़ना पड़ा क्यूंकि पापा की नौकरी दूर किसी शहर में लग गई, हम सब भी गांव से शहर आ गए लेकिन आज भी उस बरगद का पेड़ मेरे दिलो दिमाग में रचा बसा हुआ है एक खूबसूरत याद बनकर, मेरी दीदी की शादी गांव में की थी और वी ही बरगद का पेड़ "हमारे गांव की शान और पहचान था" बरगद का पेड़ जिसने पता नही कितनी शादियों को अपनी बाहों का सहारा देकर पूरा किया था।

लेकिन जब साल गांव जाना हुआ तो देखा कि सड़क निर्माण का काम चल रहा है तो अब इस बरगद के पेड़ को काफी सारा काट कर छोटा कर दिया हैं। अब वहां कोई नहीं बैठताचारपाई भी नहीं दिखीबड़ा अजीब लगा तो पता चला कि अब गांव में वो बड़े तो रहे नहीं और काफी सारे लोग जॉब के चलते शहरों को आ गए हैं अब किसी के पास इतना समय भी नहीं है।

बेचारा वो बरगद का पेड़ जो हमारी पहचान था आज केवल एक सड़क का नाम बरगद वाली सड़क बनकर रह गया है। अब उस का सिर्फ नाम शेष रह गया है और अब वो रिश्ते, प्यार,अपनापन, भाईचारा सब किस्से बन गये हैं।


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