बोझ
बोझ
"कितनी मशक्कत के बाद पूरे एक लाख रुपए नगद देकर तुम्हारे लिए दिव्यांग सर्टिफिकेट का जुगाड़ किया था और तुम साक्षात्कार के लिए जाकर भी शामिल हुए बिना वापस आ गए। तुमने पूरा मेहनत और पैसा बर्बाद कर दिया। जी तो करता है कि।" पिताजी की झल्लाहट स्वाभाविक थी।
"सॉरी पापा, आप मेरे साथ जो भी करना चाहें, कर सकते हैं। दिव्यांगों के लिए आरक्षित जिस पद के लिए मैं साक्षात्कार में शामिल होने गया था, उसके अन्य दिव्यांग उम्मीदवारों को देखकर मेरी अंतरात्मा काँप उठी। मेरी हिम्मत ही नहीं हुई साक्षात्कार में शामिल होने की। पापा, मैं कुछ और नौकरी या छोटा-मोटा काम करके अपना गुजारा कर लूँगा, पर उन दिव्यांगों का हक मारकर जीवन भर का बोझ नहीं उठा सकूँगा।" बेटे ने सिर झुका कर कहा।
पिता ने पुत्र को गले से लगा लिया, "सॉरी बेटा, मैं पुत्र मोह में अंधा हो गया था।"
दोनों की आँखें नम थीं।
