बंदर क्या जाने केलों का स्वाद
बंदर क्या जाने केलों का स्वाद
एक नदी के किनारे एक टापू पर एक हाथी रहता था। वह दिन भर उस टापू पर लगे केले खाता था और मज़े से रहता था। उसी टापू से दूर एक छोटा सा टापू था जो नदी के बीचों बीच बना हुआ था। उस टापू पर एक बंदर दिन भर उछल कूद करता रहता था किंतु वह हाथी की तरह परिश्रमी नहीं था। हाथी केले खाकर उन पेड़ों की देखभाल भी करता था तथा अपने टापू को स्वच्छ भी रखता था। परंतु उसके विपरीत बंदर बस अपने टापू पर लगे बेर खाकर उसकी गुठलियां इधर उधर फेंक देता था। वह स्वच्छता पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था । उसके आलस्य के कारण धीरे धीरे उसके टापू के बेर अब धीरे धीरे समाप्त हो रहे थे। पर हाथी का टापू का ख्याल रखने के कारण वहां स्वच्छता भी थी तथा पेड़ों पर फल भी बहुत आते थे। बंदर का टापू देख रेख के अभाव में अब पूरी तरह नष्ट हो चुका था।
एक बार बंदर ने योजना बनाई की दूसरे टापू पर रहने वाले हाथी के वहां जाकर क्यों न केलों का स्वाद चखा जाए। ऐसा सोचकर उसने हाथी को बहलाने के इरादे से जान बूझकर नदी में छलांग लगा दी और उसमें डूबने का अभिनय करने लगा। हाथी उस समय पानी में ही खेल रहा था। बंदर की आवाज़ सुनकर वह तुरंत उसे बचाने दौड़ा और उसे अपने टापू पर ले आया। पानी में डूबने के कारण बंदर बेहोश हो गया था। कुछ समय पश्चात जब उसे होश आया तो हाथी ने उसे खाने के लिए कुछ केले दिए। केले इतने स्वादिष्ट थे कि उन्हें खाकर बंदर की नीयत डोल गई। वह सोचने लगा कि यह हाथी यहां अकेले रहकर केले भी खाता है व टापू का ध्यान भी रखता है जिस कारण पूरा टापू अनुशासित लग रहा है। यह देखते ही वह हाथी को चालाकी से वहां से भगाने की योजना बनाने लगता है । शाम को जब सूर्यास्त होने से पहले नदी सुनहरी पीली दिखने लगती है तब वह हाथी से कहता है कि अच्छा मित्र अब मै चलता हूं अपने खजाने के पास। हाथी ने उससे खजाने के बारे में जानना चाहा तो उसने उसे नदी दिखाते हुए उसे कहा कि यह देखो संध्या होते ही मेरा खजाना अपने आप समस्त नदी में चमकने लगता है। हाथी खजाने की चाह में वहां से नदी में चला जाता है परन्तु रात होने पर वह समझ जाता है कि धूर्त बंदर ने उसके टापू पर कब्जा करने के लिए यह किया है। वह बंदर को भगाने के इरादे से जिस पेड़ पर बंदर रात को सो रहा होता है उस जगह जाकर बंदर के सामने ऐसा प्रतीत करता है जैसे वह किसी से खजाना छिपाने की बात कर रहा हो । चांद से बन रही परछाई के कारण बंदर को ऐसा लगता है जैसे हाथी वाकई किसी से बात कर रहा हो परंतु वह तो अपनी पूंछ को हिला बात करने का अभिनय कर रहा था। खजाना पाने के लालच में बंदर हाथी को बिना बताए उस टापू से वापस अपने टापू पर लौट जाता है किंतु जल्द ही दूसरे टापू से चीखकर हाथी बंदर को उसकी मूर्खता और अपनी योजना के बारे में बता देता है। हाथी दूसरे टापू से आने से पूर्व ही अपनी सखी शार्क को बंदर के वापस आने के रास्ते बंद करने को बोल देता है किंतु तभी बंदर को अपनी गलती का एहसास होता है और वह शार्क से कहलाकर हाथी से क्षमा मांग लेता है और फिर वह तीनों पुनः सच्चे मित्र बन जाते हैं और हाथी व बंदर एक साथ टापू का ख्याल भी रखते और साथ में ढेर सारी मस्ती भी करते और पानी में शार्क के साथ भी खेलते।
