बजट ~~
बजट ~~
विकास अपनी पत्नी के साथ ऑफ़िस जाने के लिए घर से बाहर निकल ही रहा था,तो उसे आवाज़ देते हुए अम्मा ने रोका -"कुछ रुपये मुझे देते जाना बेटा,घर के लिए सब्ज़ी और चीनी मँगाना है l" तुरंत माँ को विकास हज़ार रुपए पकड़ा तो दिया पर गेट की तरफ़ आगे बढ़ते हुए अपनी पत्नी से चिड़चिड़ाते हुए कहने लगा-"ये क्या तमाशा है निशा.. !आये दिन माँ रुपये माँगती हैं..! पहले तो घर में इतना खर्च नहीं होता था.. ! पिछले महीने भी बाबूजी आ गये थे !
और अब अम्मा का रोज़ किसी न किसी चीज़ के लिए रुपये माँगना तंग आ गया मैं तो...!" और पुनः चिड़चिड़ाते हुए कहने लगा - "कब तक रहने का इरादा है इनका ?" तो निशा ने कहा-" पता नहीं अभी तक तो उन्होंने जाने की बात नहीं की है l "ये सुनकर पुनः झल्लाते हुए विकास बोला -" इन लोगों को गाँव में कुछ मिलता तो है नहीं, बस यहाँ आकर हमारा बजट बिगाड़ते रहते हैं..!" ये सुनते ही अम्मा की आँखें भर आई .. सहसा दिल से उठती हुई..
हूक ने आँसू भरी पलकों को बहने के लिए किनारा दे दिया,और.. बेटे की बातें बार - बार कानों में गूँजनें लगी..ख़ुद का बेटा,और ऐसी बातें कर रहा है.. !" अब अम्मा स्वयं को धिक्कारने लगी... "मुझे यहाँ आना ही नहीं चाहिए था...! जिन बच्चों की परवरिश के लिए हमने अपना सर्वस्व लुटा दिया... आज उन्हीं बच्चों का हमसे बजट बिगड़ रहा है..!"अबतो यहाँ का पानी भी ज़हर के समान है कहते हुए अम्मा ने तुरंत एक पत्र लिखा - "बेटा, मैं तुम्हारे घर खर्च के रुपये लेकर वापस गाँव जा रही हूँ l
लेकिन वहाँ पहुँचते ही तुम्हारे रुपये बाबूजी के हाथों मनीऑर्डर करवा दूँगी l" पत्र को सामने ही पलंग में रखकर घर की चाबी बेटेके मकान मालिक को पकड़ते हुए तुरंत स्टेशन के लिए निकल गयीं ..l
ख़ुद की धड़कन भी माँगने लगी है उससे चंद रोटी के टुकड़ों का हिसाब... समय बता तो क्या तू इतना हो गया है खराब..?