बिटिया
बिटिया
हम बात करने जा रहे हैं, लड़कियों के प्रति लोगों की सोच पर। हमारे समाज में ऐसे बहुत से लोग हैं जो ये सोचते हैं कि बिटिया जब सयानी हो जाये तो उनका बाहर निकलना ठीक नहीं है, चाहे वह स्कूल ही क्यों न हो| अगर लड़कियां कुछ करना चाहें तो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती हैं| हर लड़की कुछ न कुछ करना चाहती है चाहे वह किसी के भी घर की क्यों न हो| चाहे वह अमीर घर की हो या गरीब घर की, है तो एक लड़की ही न।
हमारे समाज में लोग ज्यादा से ज्यादा दबाव लड़़कियोंं पर ही डालते हैं। माना की दबाव डालना बुरी बात नहीं है, पर इतना दबाव नहीं डालना चाहिए कि वह अपने मन की बात न कह सके।
बेटी हो या बेटा दबाव तो दोनों लोगों पर डालना चाहिए। क्या बेटा गलती नही ं करता ?
बेटा भी गलती करता है, पर उसके गलती को
अनदेखा कर दिया जाता है।
माता-पिता को अपने बच्चों को समझाना चााहिए।
उनके दिलों दिमाग में चल रहे नकारात्मक
सोच को बाहर निकालने की कोशिश करना चाहिए,
उन्हें क्या सही है और क्या गलत है इसके बारे में बताने की कोशिश करना चाहिए।
कुछ बच्चों को ज्यादा
समझाने की जरूरत ही नहीं पड़़ती
मगर कुछ बच्चों को समझाने पर भी वो समझना ही नहीं चाहते हैं, कोई करे भी तो क्या करे इंसान के हाथ की पांंचो उंंगलियाँ बराबर तो नहीं होती ंं|
अक्सर देखा जाता है कि बच्चे जब
छोटे होते हैं तो अपने माता पिता के बहुत करीब होते हैंं और जैसे- जैसे बड़े होते हैं वैसे- वैसे अपने माता पिता
से दूर होते जाते हैं क्यों ?
क्यों अपने मन की बात नहीं बताते हैं ?
बच्चे जब बड़े हो जायें तो माता पिता को अपने बच्चों के साथ माता पिता की तरह न रहकर एक दोस्त की तरह रहें तो शायद बच्चे अपने मन की बात कहेेें और शायद अकेला महसूस न करें चाहे वह बेटा हो
या बेटी। क्योंकि हम बड़ों से अपने दिल की बात नहीं कह पाते मगर एक सच्चे दोस्त से अपने दिल की
हर बात कह देते हैं।
बेटा- बेटी एक समान,
फिर क्यों भेद करे इंसान।
