बिना जल, कहाँ है कल
बिना जल, कहाँ है कल
आज रामनगर का ग्राम पंचायत बड़े-बड़े सरकारी अफसरों की अगुवाई कर रहा था। लोग सरकारी बाबुओं को उम्मीद की नज़रों से देख रहे थे। आखिर हो भी क्यों न ? पहली बार जो इस ग्राम पंचायत में एक बड़ी -सी पानी की टंकी का उद्घाटन स्थानीय विधायक द्वारा किया जा रहा था।
झामलाल का पूरा परिवार, जिसके भरण-पोषण का एकमात्र साधन किसी समय में मछलियों का व्यापार हुआ करता था, अपनी लाचार आँखों से पानी की टंकी को निहार रहा था। किसी समय में रामनगर ग्राम पंचायत मछली उत्पादन का प्रमुख केन्द्र हुआ करता था। नदियाँ उफान पर रहा करती थी। तालाब और कुएँ जल से लबालब भरा रहता था। दूर-दूर तक जल ही जल नज़र आता था और इसीलिए मछली पालन यहाँ का मुख्य व्यवसाय था।
झामलाल मछली पकड़ने में निपुण था। उनकी अधिकतर ज़िन्दगी जल के बीच ही बीता करती थी। वे अक्सर कहा भी करते थे कि जल के बिना मेरे जीवन का कोई अस्तित्व नहीं। अपनी तीन बेटियों में से दो की शादी झामलाल ने मछली पालन से ही किया था। सबसे छोटी बेटी रजिया कुपोषण के कारण अक्सर बीमार रहा करती थी। मछली का कारोबार बंद होने के कारण झामलाल मजबूर हो गया था। रजिया अब शादी के लायक हो चुकी थी और उसके हाथ पीले करवाना झामलाल की बड़ी समस्या थी।
वर्षों की अकाल ने जल स्तर को इतना नीचे पहुँचा दिया था कि किसी समय जल के बीच पलने वाला यह गाँव आज बूँद-बूँद का मोहताज था। चापाकलों ने पानी देना बंद कर दिया था। मछली पालन तो दूर लोग ढंग से खेती भी नहीं कर पा रहे थे।
झामलाल इससे आगे कुछ और सोच पाता उसकी बेटी रजिया ग्राम पंचायत का बुलावा लेकर उसके पास पहुँच गई। झामलाल अनमने भाव से उद्घाटन स्थल पर पहुँचा। नेताजी लोगों को जल का महत्व समझा रहे थे। झामलाल के आँखों में आँसू थे। वो पीछे मुड़ा और मन में कुछ बुदबुदाया। उनकी आवाज़ पीछे खड़ी बेटी रजिया को ही सुनाई दी।
झामलाल के शब्द थे : "बिना जल, कहाँ है कल।"